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नूक 2/1 अनि च (अ) ही मनु (प्र)=मत्रमुत्र वयं (बय) 2:1 सपेहाएसंपहाय (मह) मंक सणं (सरा) 21 जापाहि (जाग) विवि 2/1 सक पंडिते (पंटित) 8/1 जाव (अ)जब तक सोतपणापा [(सोत)-(पल्याण) 12] अपरिहोणा (अपरिहीण) नृक 1/2 अनि तपानामा [(ऐत)(पप्रणाण) 1/2] घाणपगाणा [(पाण)-(पन्यारा) 1/2] जीहपनामा [(जीह)-(पण्यारण) 1/2] फामपन्गाणा [(फाम)-(पणाण)1/2] इच्चेहि (इन्चेत) 3/2 वि विल्बल्बेहि [ (विस्व) वि-(ब) 32] पग्णारोहि (परणाण) 312 अपरिहोरोहिं (अपरिहीण) 3/2 वि प्रापट्ट [(आय) + (अट्ठ)] [(आय)-(भट्ट) 2/1] सम्म (म)= उचित प्रकार से समगुवासेन्जालि (समवास) विधि 2/1 सकति (प्र)-इसी प्रकार
वेमि (बू) व 11 सक 30. एवं = इस प्रकार | जाणित्त =समझकर । दुक्तं = दुःख (को) । पत्तयं
प्रत्येक के । सातं = सुत (को)। अगभिरकत न वोतो हुई (को) । चही । खतु सचमुच । वयं = आयु को । सपैहाए देख कर। खएं उपयुक्त अवसर को । जापाहि जान । पंडिते ! =हे पण्डित । जाव =जव तक | सोतपणाणा(मोत-पागारणा)= श्रवणेन्द्रिय की ज्ञान(शक्ति)। अपरिहोणा= कम नहीं । त्तपणापा= चन-इन्द्रिय की जान (शक्ति) । घाणपप्पाणा-प्राणेन्द्रिय की नान-(शक्ति) । जोहपण्णाणा रसनेन्द्रिय की नान-(शक्ति) । फासपगाण स्पर्शनेन्द्रिय की नान-(शक्ति) 1 इच्चेतेहि =इन इस प्रकार । विस्वहि = अनेक भेद (वाली) । पण्णारोहिं जान (भक्तियों) द्वारा । अपरिहारोहिअसीए । प्रायटुं (आय-अट्ट)-यात्म हित को । सम्म= रत्रित प्रकार से। समगुवासेन्जाति = सिद्ध कर ले। ति= इस प्रकार। वेमि= कहता हूँ। 1. कभी-कभी अकारान्त धातु के अन्तिम 'न' के स्थान पर विधि आदि
में 'या' हो जाता है। हिम प्राकृत व्याकरण : 3-158) 96 ]
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