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=अगान्ति । महन्भयं = महाभयंकर। दुक्खं =दुःख-युक्त। ति= इस प्रकार | वेमि कहता हूँ । तसंति-भयभीत रहते है। पाणा-प्राणी । पदिसो-प्रत्येक स्थान पर । दिसासु दिशाओं में। य% तथा । तत्थ तत्य--प्रत्येक स्थान पर । पुढो अलग-अलग। पास=देख । आतुरामूच्छित । परितार्वति-दुख पहुंचाते हैं। संति होते हैं। पाणा=
प्राणी । पुढो–अलग-अलग। सिता-भी। 24. जे (ज) 1/1 सवि अन्झत्यं (अज्झत्य) 2/1 जाणति (जाण) व
3/1 सक से (त) 1/1 सवि बहिया (अ)= बाहर की ओर एतं (एता) 2/1 सवि तुलमण्णेसि [(तुलं) + (अण्णेसि)] तुलं (तुला) 2/1
अण्णेसि (अण्णेसि) 1/1 वि "24. जे= जो । अझत्यं = अध्यात्म को । जाणति =जानता है। से वह ।
बहिया बाहर की ओर । एतं = इसको । तुलमण्णेसि (तुलं + अण्णेसि)
तराजू को, खोज करने वाला। 25. एत्यं (अ)= यहाँ । पि = यद्यपि । जाण (जाण) विधि 3/1 सक
उवादीयमाणा [(उव + (आदीयमाणा)] उव (अ) =निकटता अर्थ में प्रयुक्त आदीयमाणा' (आदिय) वकृ 1/2 जे (ज) 1/2 सवि आयारे (आयार) 7/1 ण (अ) = नहीं । रमंति (रम) व 3/2 अक आरंभमाणा (प्रारंभ) वकृ 1/2 विणयं (विरणय) 2/1 (वयंति) (वय) व 3/2 सक छंदोवसीया [(छंद) + (उवणीया)] [(छंद)(उवणीय) भूक 1/2अनि] अज्झोववण्णा [(अज्झ) + (उव)+ (वण्णा)] । अझ (अ)= अत्यन्त उव (अ)=दोष वण्णा (वण्ण) भूकृ 1/2 अनि प्रारंभसत्ता [(आरंभ)-(सत्त) भूक 1/2 अनि । 1. यहाँ अनुस्वार का आगम हुआ है। (हे.प्रा. व्या. : 1-26) 2. यहाँ 'दी' दीर्घ हुआ है । अर्द्धमागधी में ऐसा हो जाता है ।
(पिशल: पृ. 135) चयनिका ]
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