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(उसके लिए) (कोई) तुलना नहीं है । (वह) एक अमूर्तिक सत्ता (है)। (उस) पदातीत के लिए (कोई) नाम नहीं
(वह) (शुद्ध आत्मा) न शब्द (है), न रूप (है), न गंध (है), न रस (है), न स्पर्श (है)। वस इतने ही (वर्णनों) को (तुम) (जानलो) (काफी है)।
इस प्रकार (मैं) कहता हूँ। 98 (जो) प्राणी (मूर्छारूपी) अंधकार में रहते हैं (वे) अन्ध
(ज्ञान रहित) कहे गये (हैं) । प्राणी प्राणियों को दुःख देते हैं । निस्सन्देह प्राणी बहुत दुःखी (हैं)। मनुष्य इच्छाओं में आसक्त (होते हैं) । (इसलिए) निर्बल और अत्यन्त नाशवान् शरीर के होने पर (भी) (मनुष्य) (इच्छाओं की पूर्ति के
लिए) (प्राणियों की) हिंसा करते हैं। 99 (आध्यात्मिक रहस्यों में प्रगति के लिए) (समतादर्शी की) आज्ञा में (चलना) मेरा कर्त्तव्य (है)।
या मेरे धर्म को (जानकर) (ही) (तुम) (मेरी) आज्ञा को (मानो)।
मेरा (समतादर्शी का) धर्म (समतादर्शी की) (मरी) आज्ञा में
(ही निहित है)। 100 जैसे असंदीन (पानी में न डूबा हुआ) द्वीप (कष्ट में फंसे हुए
समुद्र-यात्रियों के लिए) (आश्रय) (होता है), इसी प्रकार समतादर्शी के द्वारा प्रतिपादित धर्म (दुःख में फंसे हुए प्राणियों के लिए आश्रय होता है)।
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