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112 ( महावीर का ) कभी शून्य घरों में, सभा
में, दुकानों में रहना ( होता था )
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( लुहार, सुनार, कुम्हार आदि के ), घास समूह में (छान के नीचे ) ठहरना 113 ( महावीर का ) कभी मुसाफिरखाने में, (कभी) बगीचे में ( बने हुए) स्थान में (तथा) (कभी) नगर में भी रहना होता था । तथा ( उनका ) कभी मसारण में, ( कभी ) सूने घर में (और) (कभी) पेड़ के नीचे के भाग में भी रहना ( होता था) ।
भवनों में, प्याउन
प्रथवा ( उनका ) कभी कर्म - स्थानों में (और) (होता था ) |
114 इन (उपर्युक्त ) स्थानों में मुनि ( महावीर ) ( चल रहे ) तेरहवें वर्ष में (साढ़े बारह वर्ष - पन्द्रह दिनों में ) समता युक्त मन वाले रहे । (वे) रात-दिन ही (संयम में) सावधानी बरतते हुए अप्रमाद युक्त (और) एकाग्र ( अवस्था ) में ध्यान करते थे ।
115 भगवान् ( महावीर ) श्रानन्द के लिए कभी भी नींद का उपयोग नहीं करते थे । और (नींद आती तो ) ठीक उसी समय अपने को खड़ा करके जगा लेते थे । (वे ) ( वास्तव में ) ( नींद की ) इच्छारहित (होकर ) बिल्कुल - थोड़ा सा सोने वाले (थे) ।
116 कभी-कभी रात में ( जव नींद सताती तो ) भगवान् ( महावीर) (श्रावास से) बाहर निकलकर कुछ समय तक बाहर इधर-उधर घूमकर फिर सक्रिय होकर पूर्णत: जागते हुए ( ध्यान में बैठ जाते थे ।
117 उनके लिए ( महावीर के लिए) (उन) स्थानों में नाना प्रकार के भयानक कष्ट भी वर्तमान थे । ( वहाँ ) जो भी
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