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जस्सेते [(जस्स) + (एते)] जस्स (ज) 6/1. एते (एत) 1)2 सवि छज्जीवणिकायसत्यसमारंभा [(छ)-(ज्जीवरिणकाय)-(सत्थ)-(समारंभ 1/2] परिणाया (परिण्णाय) 1/2 वि भवंति (भव) व 3/2 अक से (त) 1/1 सवि हु (अ)= ही मुणी (मुणि) 1/1 वि परिण्णायकम्मे [(परिण्णाय) वि-(कम्म) 1/1] ति (अ)= इस प्रकार वेमि (बू) व 1/1 सक
17. तं = उसको । परिण्णाय = समझकर। मेहावी = बुद्धिमान । रणेव =
कभी भी नहीं। सयं =स्वयं । छज्जीवरिणकायसत्यं(छ-ज्जीवरिणकाय-सत्यं = छः जीव-समूह, प्राणी-समूह । समारमेज्जा= हिंसा करता है। ऐवऽणेहि (णेव+अण्णेहि) = कभी भी नहीं दूसरों के द्वारा। समारभावेज्जा= हिंसा करवाता है। ऐवण्णेहि (णेव+अण्णे) = कभी भी नहीं, दूसरों को । समारभंते = हिंसा करते हुए (को)। समणुजारणेज्जा = अनुमोदन करता है । जस्सेते(जस्स+एते) = दूसरे के दूसरे के द्वारा, इन छज्जीवणिकायसत्यसमारंभा (छ-ज्जीवरिणकाय-सत्य-समारंभा)= छ: जीव-समूह, प्राणी-समूह के हिंसा कार्य । परिणाया =समझे हुए। भवंति =होते हैं। से= वह । हु=ही । मुरणी =ज्ञानी । परिण्णायकम्मे (परिण्णाय-कम्मे) = जाना हुआ, हिंसा-कार्य । ति= इस प्रकार ।
वेमि= कहता हूं। 18. अट्ट (अट्ट) 1/1 वि लोए (लोअ) 1/1 परिजुण्णे (परिजुण्ण) 1/1
वि दुस्संवोये (दुस्संवोध) 1/1 वि अविजाणए (अविजाण) 1/1 वि अस्सि (इम) 7/1 सवि लोए (लोअ) 7/1 पवहिए (पन्वहिन) भूक 1/1 अनि
1. कभी कभी पष्ठी विभक्ति का प्रयोग तृतीया विभक्ति के स्थान पर होता है।
(हेम प्राकृत व्याकरण, 3-134) चयनिका ]
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