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चलने फिरने वाले जीव (थे) और (वहाँ ) (जो) (भी) पंखयुक्त (जीव थे ) ( वे ) ( वहाँ ) ( उन पर ) उपद्रव करते थे ।
118 ( महावीर ने इस लोक संबंधी और परलोक संबंधी (अलीकिक ) नाना प्रकार के भयानक ( कष्टों ) को (समतापूर्वक सहन किया) । (वे ) अनेक प्रकार के रुचिकर और अरुचिकर गंधों में तथा शब्दों में ( राग-द्व ेष रहित रहे) ।
119 अहसक (और) बहुत न बोलने वाले ( महावीर ) ने अनेक प्रकार के कष्टों को शान्ति से भेला (और) ( उनमें ) ( वे) सदा समतायुक्त (रहे ) | ( विभिन्न परिस्थितियों में ) हर्ष (और) शोक पर विजय प्राप्त करके (वे) गमन करते रहे । 120 लाढ़ देश में रहने वाले लोगों ने उनके (महावीर के लिए बहुत कष्ट ( पैदा किए ) (और) (उनको ) हैरान किया । ( लाढ़ देश के ) निवासी रूसे ( थे), उसी तरह ( उनके द्वारा ) पकाया हुआ भोजन ( भी रूखा होता था) । कुत्ते (कूकरे ) वहाँ पर ( महावीर को ) संताप देते थे (और) उन पर टूट पड़ते थे ।
121 ( वहाँ पर ) कुछ ही लोग (ऐसे थे ) (जो) काटते हुए कुत्तों को (और) हैरान करने वाले ( मनुष्यों) को दूर हटाते थे । ( किन्तु वहुत लोग छुछु की आवाज करते थे (और) कुत्तों को बुला लेते थे, (फिर उनको ) महावीर के (पीछे) (लगा देते थे), जिससे (वे ) थक जाएँ और वहाँ से चले जाएँ) । 122 (कुछ लोगों द्वारा) वहाँ ( महावीर पर ) लाठी से अथवा मुक्के से अथवा चाकू, तलवार, भाला श्रादि से अथवा ईंट, पत्थर आदि के टुकड़ े से, (अथवा ) ठीकरे से पहले प्रहार किया गया (होता था ) ( बाद में ) ( वे ही कुछ लोग ) श्राश्रो ! देखो ! ( कहकर ) बहुतों को पुकारते थे ।
चयनिका
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