________________
93 (अध्यात्म में) प्रगति किए हुए (और) दृढ़ता-पूर्वक (उसमें)
लगे हुए (व्यक्ति) की अवस्था को (तुम) देखो। (और) (इसलिए) यहां अपने को मोहित (मूच्छित) अवस्था में
बिल्कुल मत दिखलाओ। 94 देख ! निस्सन्देह तू वह ही है जिसको (तू) मारे जाने योग्य
मानता है। देख ! निस्सन्देह तू वह ही है जिसको (तू) शासित किए जाने योग्य मानता है। देख ! निस्सन्देह तू वह ही है जिसको (तू) सताए जाने योग्य मानता है। देख ! निस्सन्देह तू वह ही है जिसको (तू) गुलाम बनाए जाने योग्य मानता है। इसी प्रकार (देख ! ) (निस्सन्देह) (तू) वह ही (है) जिसको (तू) अशान्त किए जाने योग्य मानता है। जागरूक (होकर) ही जीने वाला (व्यक्ति) सरल (होता है)। इसलिए (वह) (स्वयं) न हिंसा करने वाला (होता है) और न ही (वह) दूसरों से हिंसा करवाता है। अपने द्वारा (किए हुए कर्मों को) (अपने को) भोगना (पड़ता है), (इसलिए) जिसको (तू) (किसी भी कारण से) मारे जाने
योग्य (मानता है), (उसकी) (तू) इच्छा मत कर । 95 जो आत्मा (है), वह जानने वाला (है), जो जानने वाला
(है) वह आत्मा (है) । जिससे (मनुष्य) जानता है, वह
आत्मा (है) । उसको आधार बनाकर (ही) (प्रत्येक व्यक्ति) (आत्मा शब्द का) व्यवहार करता है। यह आत्मवादी समता का रूपान्तरण कहा गया (है)। इस प्रकार (मैं)
कहता हूँ। चयनिका ]
[ 59