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सुनकर कुछ (मनुष्यों) के द्वारा यहाँ (यह) सीखा हुआ होता है (कि) यह (हिंसा-कार्य) निश्चय ही वन्धन में (डालने वाला है), यह (हिंसा-कार्य) निश्चय ही मूर्छा में (पटकने वाला है), यह (हिंसा-कार्य) निश्चय ही अनिष्ट (अमंगल) में (धकेलने वाला है) (तथा) यह (हिंसा-कार्य) निश्चय ही नरक में (ले जाने वाला है)। उस (हिंसा-कार्य के परिणामों) को समझकर बुद्धिमान (मनुप्य) स्वयं छ:-जीव-समूह, प्राणी-समूह की कभी भी हिंसा नहीं करता है, (तथा) दूसरों के द्वारा छ:-जीव-समूह, प्राणी-समूह की हिंसा कभी भी नहीं करवाता है, (तथा) छः-जीव-समूह, प्राणी-समूह की हिंसा करते हुए (करने वाले) दूसरों का कभी भी अनुमोदन नहीं करता है। जिसके द्वारा (उपर्युक्त) इन छ:-जीव-समूह, प्राणी-समूह के हिंसा-कार्य समझे हुए होते हैं वह ही ज्ञानी (ऐसा) (है) (जिसके द्वारा) (उपर्युक्त) हिंसा-कार्य (द्रण्टा भाव से) जाना हुया है इस प्रकार (मैं) कहता हूँ।
18. (मूच्छित) मनुष्य (अशांति से) पीड़ित (होता है), (समता
भाव से) दरिद्र (होता है), (उसको) (अहिंसा पर आधारित मूल्यों का) ज्ञान देना कठिन होता है) (तथा) (वह) (अध्यात्म को) समझने वाला नहीं (होता है।। इस लोक में (मूच्छित मनुष्य) अति दुःखी (रहता है)। जिस प्रवल इच्छा से (मनुष्य) (अहिंसा-पथ पर) निकला हुया (है), उस (प्रवल इच्छा) को ही बनाए रखकर (तथा)
हिंसात्मक चिन्तन को छोड़कर (वह) (चलता जाय)। चयनिका ]
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