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जो पर्यायों से उत्पन्न (दृष्टिरूपी) शस्त्र का जानने वाला (है) वह अशस्त्र (द्रव्य-दृष्टि) का जानने वाला है। जो अशस्त्र (द्रव्य-दृष्टि) का जानने वाला (है), वह पर्यायों से उत्पन्न (दृष्टिरूपी) शस्त्र का जानने वाला (है) [पर्यायदृष्टि, द्रव्य-दृष्टि की नाशक होती है, इसलिए पर्याय-दृष्टि को शस्त्र कहा है] । कर्मों से रहित (व्यक्ति) के लिए (कोई) सामान्य, लोक प्रचलित आचरण नहीं होता है । उपाधि (विभेदक गुण) कर्मो से उत्पन्न होती है/होता है। (जो मनुष्य) कर्म को ही देखकर तथा जो हिंसा कर्म का प्राधार (है) (उसको) देखकर पूर्ण (संयम) को ग्रहण करके (रहता है), (वह) दोनों अंतों (राग-द्वेष, शुभ-अशुभ) के द्वारा नहीं कहा जाता हुआ (होता है) अर्थात् वह दोनों अंतों से
परे हो जाता है। 57 हे धीर! (तू) (विषमता के) प्रतिफल और आधार का
निर्णय कर। (तथा) (उसका) छेदन करके कर्मों से रहित
(अवस्था) का अर्थात् समता का देखने वाला (वन)। 58 (जो) लोक में परम-तत्त्व को देखने वाला है, (वह) (वहाँ)
विवेक-युक्त जीने वाला (होता है), तनाव-मुक्त (होता है), समतावान् (होता है), कल्याण करने वाला (होता है), सदा जितेन्द्रिय (होता है), (कार्यों के लिए) उचित समय को चाहने वाला (होता है), (तथा) (वह) (अनासक्ति
पूर्वक) (वहाँ) गमन करता है। 59 (तुम सव) सत्य में धारणा करो। यहां पर (सत्य में) ठहरा
हुया मेधावी (शुद्ध वुद्धि वाला) सब पाप-कर्मों को क्षीण कर
देता है। चयनिका ]
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