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67 हे मनुष्य ! (तू) (अपने) मन को ही रोककर (जी) । इस
प्रकार (तू) दुख से (ही) छूट जायगा। 68 हे मनुष्य ! (तू) सत्य का ही निर्णय कर । (जो) सत्य की
आज्ञा में उपस्थित (है), वह मेधावी मृत्यु को जीत लेता है। सुन्दर चित्तवाला (संयम-युक्त) (व्यक्ति) धर्म (अध्यात्म) को ग्रहण करके श्रेष्ठतम को भलीभांति देखता (अनुभव करता है। दुःख की मात्रा से ग्रस्त (व्यक्ति) (जो) सुन्दर चित्तवाला (संयम-युक्त) (होता है) (वह) व्याकुलता में नहीं (फँसता
69 जो अनुपम (आत्मा) को जानता है, वह सब (विषमताओं)
को जानता है; जो सव (विषमताओं) को जानता है, वह अनुपम (आत्मा) को जानता है । प्रमादी (विषमताधारी) के लिए सब ओर से भय (होता है), अप्रमादी (समताधारी) के लिए किसी ओर से भय नहीं होता है)। जो एक (मोह) को झुकाता है, वह बहुत (कपायों) को झुकाता है। जो बहुत (कपायों) को झुकाता है, वह एक (मोह) को झुका देता है। प्राणी-समूह के दुःख को जानकर (तू) (समता का आचरण कर), संसार के प्रति ममत्व को (मन से) बाहर निकाल कर वीर (समतारूपी) महापथ पर चलते हैं। (व) आगे से आगे चलते जाते हैं, (और) (आसक्ति-युक्त) जीवन को नहीं चाहते हैं।
केवल मात्र (हिंसा-दोप) को दूर हटाता हुआ (व्यक्ति) एकचयनिका ]
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