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बंधन र मुक्ति के विकल्पों से परे होता है) । वह (कुशल) जिस (काम) को भी करता है, ( व्यक्ति व समाज उसको ही करे) । ( वह) जिस (काम) को बिल्कुल नहीं करता है, ( व्यक्ति व समाज ) ( कुशलपूर्वक ) नहीं किए हुए (काम) को बिल्कुल न करे ।
51. अज्ञानी (सदा ) सोए हुए अध्यात्ममार्ग को भूले हुए) ( हैं ), ज्ञानी सदा जागते हैं (अध्यात्ममार्ग में स्थित ) हैं ।
52. जिसके द्वारा ये शब्द, रूप, गंध, रस और स्पर्श (द्रष्टाभाव से) अच्छी तरह जाने गए होते हैं, वह आत्मवान्, ज्ञानवान्, वेदवान्, धर्मवान् (नौर) ब्रह्मवान् (होता है) ।
53. पीड़ित प्राणियों को देखकर (तू) श्रप्रमादी ( होकर) गमन कर । (यहाँ ) (प्राणी) ( पीड़ा में ) चीखते हुए ( दिखाई देते हैं) । हे बुद्धिमान् ! इसको (तू) देख ।
यह पीड़ा हिंसा से उत्पन्न होने वाली ( है ), (तथा) माया-युक्त और प्रमादी (व्यक्ति) गर्भ में बार-बार आता है, इस प्रकार जानकर (तू श्रप्रमादी वन) ।
शब्द श्रोर रूप की उपेक्षा करता हुआ (मनुष्य) संयम में तत्पर ( हो जाता है) (तथा) (वार-वार) मरण से डरने वाला मरण से छुटकारा पा जाता है ।
54 (जो ) इच्छात्रों में मूर्च्छा रहित (होता है ) (तथा) पापकर्मों से मुक्त (होता है), (वह) वीर (ऊर्ध्वगामी ऊर्जा वाला) (होता है), श्रात्म- रक्षित (तथा) जानने वाला (होता है) ।
(द्रष्टाभाव से )
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