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20. महापथ (अहिंसा-समता पथ) पर झुके हुए वीर (होते हैं)। 21. (अर्हत की) आज्ञा से प्राणी समूह को अच्छी तरह से जान
कर (मनुष्य) (उसको) निर्भय (वना दे) अर्थात् उसको अभय दान दे। मैं कहता हूं-(व्यक्ति) स्वयं प्राणी-समूह पर (उसके न होने का) झूठा आरोप कभी न लगाये, न ही निज पर (अपने न होने का) झूठा आरोप कभी लगाये । जो प्राणी-समूह पर (उसके न होने का) झूठा आरोप लगाता है, वह निज पर (अपने न होने का) झूठा आरोप लगाता है, जो निज पर (अपने न होने का) झूठा आरोप लगाता है, वह प्राणी-समूह पर (उसके न होने का) झूठा आरोप लगाता है । जो दुश्चरित्रता (है), वह (अशांति में) चक्कर काटना (है); जो (अशान्ति में) चक्कर काटना (है), वह (ही) दुश्चरित्रता (है)। (द्रष्टाभाव से) देखता हुआ (मनुष्य) ऊपर की ओर, नीचे की अोर, तिरछी दिशा में और सामने की ओर (स्थित) रूपों को (केवल) देखता है, (द्रष्टाभाव से) सुनता हुआ (मनुष्य) शब्दों को (केवल) सुनता है । (किन्तु) मूच्छित होता हुया (मनुष्य) ऊपर की ओर, नीचे की ओर. तिरछी दिशा में और सामने की ओर (स्थित) रूपों में मूच्छित होता है,
और शब्दों में भी (मूच्छित होता है)। यह (मूर्छा) (ही) संसार कहा गया (है) । यहाँ पर (जो) मूच्छित (मनुष्य) (है), (वह) (अर्हत-जीवन-मुक्त) की आज्ञा में नहीं (है)। (जो) बार-बार दुश्चरित्रता के स्वाद में
(लीन है) (जो) कुटिल पाचरण में (दक्ष है), जो प्रमादी चयनिका ]
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