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2. इसके विपरीत वह (कोई मनुष्य उपर्युक्त बातों को ) ( इन तरीकों से ) जान लेता है (1) स्वकीय स्मृति के द्वारा (2) दूसरों (प्रतीन्द्रिय ज्ञानियों) के कथन के द्वारा ( 3 ) अथवा दूसरों (प्रतीन्द्रिय ज्ञानियों के सम्पर्क से समझे हुए व्यक्तियों) के समीप सुनकर |
3. ( जो यह जान लेता है कि उसको श्रात्मा श्रमुक दिशा से आई है तथा वह पुनर्जन्म लेने वाली है)
4.
5.
वह (व्यक्ति) (ही) ग्रात्मा को मानने वाला (होता है), (प्रजीव - पुद्गलादि) लोक को मानने वाला (होता है), कर्म( बन्धन) को मानने वाला (होता है) (और) ( मन-वचनकाय की) क्रियाओं को मानने वाला (होता है) ।
सचमुच यह मनुष्य ( ऐसा है ) ( कि) (जिसके द्वारा ) ( मनवचन - काय की ) क्रिया समझी हुई नहीं (है), जो इन दिशाओं से या अनुदिशाओं (ईशान श्रादि कोणों) से (आकर ) ( संसार में) परिभ्रमरण करता है, (जो) सब दिशाओं से, सभी अनुदिशाओं से (दुःखों को) सहन करता है, (जो ) अनेक प्रकार को योनियों से (अपने को जोड़ता है, (तथा) (जो ) अनेक (मनोहर) रूपों (सुखों) को ( एवं ) स्पर्शो ( दुःखों) को अनुभव करता है ।
उस (मनुष्य) के लिए ही भगवान् के द्वारा ( इस प्रकार ) ज्ञान दिया हुग्रा ( है ) | ( मनुष्य के द्वारा मन-वचन-काय की क्रियाएँ इन बातों के लिए की जाती है) (1) इस ही ( वर्तमान) जीवन (की रक्षा) के लिए, ( 2 ) प्रशंसा, आदर तथा पूजा (पाने) के लिए, (3) (भावी) जन्म ( की उधेड़-बुन)
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चयनिका ]