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के कारण, (वर्तमान में ) मरण - (भय) के कारण, तथा मोक्ष (परम - शान्ति) के लिए (और) दुःखों को दूर हटाने के लिए ।
6. सम्पूर्ण लोक (जगत) में ( मन-वचन-काय की ) क्रियाओं के इतने (उपर्युक्त) प्रारम्भ ( शरुत्रात) समझे जाने योग्य होते हैं ।
7.
जिसके द्वारा लोक में इन ( मन-वचन-काय संबंधी) क्रियाओं के प्रारंभ (शुरुआत) समझे हुए होते हैं, वह ही ज्ञानी (ऐसा ) है (जिसके द्वारा ) ( उपर्युक्त ) क्रिया - (समूह) (द्रष्टा भाव से ) जाना हुआ ( है ) । इस प्रकार ( मैं ) कहता हूँ ।
8. ( यह दुःख की बात है कि ) वह (कोई मनुष्य ) इस ही (वर्तमान) जीवन ( की रक्षा) के लिए, प्रशंसा, श्रादर तथा पूजा (पाने) के लिए, (भावी ) जन्म ( की उधेड़-बुन) के कारण, (वर्तमान में ) मरण - (भय) के कारण तथा मोक्ष ( परम शान्ति) के लिए (और) दुःखों को दूर हटाने के लिए स्वयं ही पृथ्वीकायिक जीव-समूह की हिंसा करता है या दूसरों के द्वारा पृथ्वीकायिक जीव-समूह की हिंसा करवाता है, या पृथ्वीकायिक जीव- समूह की हिंसा करते हुए (करने वाले) दूसरों का अनुमोदन करता है। वह (हिंसा कार्य ) उस (मनुष्य) के अहित के लिए (होता है), वह (हिंसाकार्य) उसके लिए अध्यात्महीन वने रहने का ( कारण ) (होता है) ।
9. ( यह दुःख की बात है कि ) वह (कोई मनुष्य ) इस ही (वर्तमान) जीवन ( की रक्षा) के लिए, प्रशंसा, आदर तथा
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