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प्राचारांग-चयनिका
हे आयुष्मन् (चिरायु)! मेरे द्वारा (यह) सुना हुआ (है) (कि) उन भगवान् के द्वारा इस प्रकार (यह) कहा गया (है)-यहां कई (मनुष्यों) में (यह) होश नहीं होता है। जैसे
मैं पूरवी दिशा से आया हूँ, या मैं दक्षिण दिशा से आया हूँ, या मैं पश्चिमी दिशा से आया हूँ, या में उत्तर दिशा से पाया हैं, या मैं ऊपर की दिशा से आया हूँ, या मैं नीचे की दिशा से आया है, या (मैं) अन्य ही दिशाओं से (आया हूँ), या मैं ईशान कोण आदि दिशाओं से आया हूँ।
इसी प्रकार कई (मनुष्यों) के द्वारा (यह) समझा हुआ नहीं होता है (कि) मेरी (स्वयं की) आत्मा पुनर्जन्म लेने वाली है, (या) मेरी (स्वयं को) आत्मा पुनर्जन्म लेने वाली नहीं है, (पिछले जन्म में) मैं कौन था? या (जव) (मैं) (मरकर) इस लोक से अलग हुअा (हूँ), (तो) आगामी जन्म में (मैं) क्या होऊँगा?
चयनिका ]
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