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एवं व्याकरणिक विश्लेपण जैसा भी वन पाया है पाठकों के समक्ष है। पाठकों के सुझाव मेरे लिए बहुत ही काम के होंगे।
आचारांग चयनिका का विपय ठीक प्रकार से समझ में आ सके, इसके लिए इस संस्करण में चार टिप्पण दिए गये हैं। वे इस प्रकार हैं :
(1) द्रव्य-पर्याय, (2) जीव अथवा प्रात्मा, (3) लोक और (4) कर्म-क्रिया ।
आचारांग चयनिका के सूत्रों को छह भागों में विभक्त किया गया है । पुस्तक के अन्त में प्रत्येक भाग की रूपरेखा सूत्रों सहित दी गई है । ये छह भाग इस प्रकार है:
1. प्राचारांग की दार्शनिक पृष्ठ भूमि और धर्म का स्वरूप । 2. मूच्छित मनुष्य की अवस्था । 3. मूर्छा कैसे टूट सकती है। 4. जीवन-विकास के सूत्र ।
5. जागृत मनुष्य की अवस्था। . 6. महावीर का साधनामय जीवन ।
प्राभार:
आचारांग-चयनिका के लिए मुनि जम्बूविजयजी द्वारा सम्पादित अाचारांग के संस्करण का उपयोग किया गया। इसके
चयनिका ]
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