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तृतीय उद्देशक
३४. वही मैं कहता हूँ
जिससे अनगार ऋजु-परिणामी, मोक्ष-मार्गी और आर्जवधारी कहा गया है।
३५. जिस श्रद्धा से निष्क्रमण किया, उसका शंका-रहित पालन करें।
३६. वीर-पुरुष महापथ पर समर्पित हैं ।
३७. लोक को जिन-आज्ञा से समझकर भयमुक्त हों।
३८. वही मैं कहता हूं
[ जलकायिक ] लोक को न तो स्वयं अस्वीकार करे और न ही अपनी आत्मा को अस्वीकार करे। जो [ जलकायिक ] लोक को अस्वीकार करता है. वह आत्मा को अस्वीकार करता है, जो आत्मा को अस्वीकार करता है, वह [ जलकायिक ] लोक को अस्वीकार करता है।
३९. तू उन्हें पृथक पृथक लज्जमान/हीनभावयुक्त देख । ४०. ऐसे कितने ही भिक्षुक स्वाभिमानपूर्वक कहते हैं 'हम अनगार हैं।'
४१. जो नाना प्रकार के शस्त्रों द्वारा जल-कर्म की त्रिया में संलग्न होकर जल
कायिक जीवों की अनेक प्रकार से हिंसा करते हैं ।
४२. निश्चय ही, इस विषय में भगवान् ने प्रज्ञापूर्वक समझाया है।
४३. और इस जीवन के लिए,
प्रशंसा, सम्मान एवं पूजा के लिए, जन्म, मरण एवं मुक्ति के लिए दुःखों से छूटने के लिए, [प्राणी कर्म-बन्धन की प्रवृत्ति करता है ]
शस्व-परिना
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