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५३. जैसा भगवत्-प्रवेदित है, उसे जानकर सभी प्रकार से, सभी रूप से सम्यक्त्व/
समत्व को ही समझे।
५४. इस प्रकार पूर्व वर्षों में चिर काल तक विचरण करने वाले उन संयमित
महावीरों की सहनशीलता देख ।
५५. प्रज्ञापन्न की वाहुएँ कृश होती हैं और मांस-रक्त प्रतनिक/अल्प होता है ।
५६. परिज्ञात विश्रेणी (राग-द्वेपादि वन्धन) को काटकर यह मुनि तीर्ण, मुक्त एवं विरत कहलाता है।
-ऐसा मैं कहता हूँ।
५७. चिरकाल से संयम में विचरण करने वाले विरत भिक्षु को क्या अरति
विचलित कर पायेगी?
५८. संधिमान/अध्यवसायी समुपस्थित/जागृत है।
५६. जैसे द्वीप असंदीन/अनावृत है, इसी प्रकार वह आर्य-प्रवेदित धर्म है।
६०. वे अनाकांक्षी एवं अनतिपाती/अहिंसक मुनि प्राणियों के प्रति दयाशील,
मेधावी और पंडित हैं।
६१. इस प्रकार वे शिष्य भगवान् के अनुष्ठान में दिन-रात क्रमशः तल्लीन हैं, जिस प्रकार द्विज-पोत/विहग-शिशु ।
----ऐसा मैं कहता हूँ।
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