Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharang Sutra
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 222
________________ महावीर ने स्वयं को शिगु जैसा बना लिया। उनको साधनात्मक जीवनचर्या यद्यपि चैतन्य-विकास के इतिहास में एक नये अध्याय का सूत्रपात थी, किन्तु भोली जनता ने उसे अपनी लोक-संस्कृति के लिए खौफनाक समझा। उन्हें माग, पोटा, दुत्कारा, औंधा लटकाया । जितनी अवहेलना, उपेक्षा, ताड़ना और तर्जना महावीर को भोगनी,झेलनी पड़ी, उसका साम्य कौन कर सकता है। ये सब तो साधन थे विश्व को गहराई से समझने के । आखिर उनका तप रङ्ग लाया । परमज्ञान ने सदा सदा के लिए उनके साथ वासा कर लिया। फिर तो उनकी पगध्वनि भी संसृति के लिए अध्यात्म की झंकृति वन गई। महावीर तो घवल हिमालय के उत्तुङ्ग शिखर हैं। उनकी अंगुलो थाम कर, चरणों में शोश नमाकर पता नहीं अब तक कितने-कितने लोगों ने स्वयं का सरगम सुना है। वे तो सर्वोदय-तीर्थ हैं। उनके घाट से क्षुद्र भी तिर गए। महावीर को जीवन-चर्या अस्तित्व को विरलतम घटना है। निष्कम्प, निधूम, चैतन्य-ज्योति ही महावीर का परिचय-पत्र है । ध्यान उनको कुंजी है और जागरूकता/अप्रमत्तता उनका व्यक्तित्व । वे श्रद्धा नहीं, अपितु शोध हैं। श्रद्धा खोजने से पहले मानना है और शोध तथ्य का उघाड़ना है। सत्यद्रष्टा के लिए शोध प्राथमिक होता है और श्रद्धा प्रानुपंगिक । सत्य को तथ्य के माध्यम से उद्घाटित करने के कारण ही वे तथागत हैं और सर्वोदयो नेतृत्व वहन करने की वजह से तीर्थङ्कर हैं। उनको वातें विज्ञान को प्रयोगशालाओं में भी प्रतिष्ठित होती जा रही हैं। महावीर, सचमुच विज्ञान और गणित की विजय के अद्भुत स्मारक हैं। प्रस्तुत अध्याय महावीर के माधनात्मक जीवन का महज वर्ण विज्ञान है। यहाँ उनका बढ़ा चढ़ाकर वखान नहीं है, अपिनु वास्तविकता का प्रामाणिक छायांकन है । इस अध्याय का अाकाश मुमुक्षा भिक्षु के सामने ज्यों-ज्यों खुलता जाएगा साधना के आदर्श मापदंड उभरते चले पाएंगे। यह सम्पूर्ण ग्रन्थ उन्हीं को विराट अस्मिता है । संन्यस्त जीवन की ऊँची से ऊँची प्राचार-संहिता का नाम पायार-सुत्तं है, जो सद्विचार को वर्णमाला में सदाचार का प्रवर्तन करता है।

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