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५३. मतिमान माहन भगवान महावीर ने इस अनुक्रान्त/प्रतिपादित विधि का अप्रतिज्ञ होकर अनेक बार आचरण किया।
-ऐसा मैं कहता हूँ।
चतुर्थ उद्देशक
५४. भगवान् रोग से अस्पृष्ट होने पर अवमौदर्य (ऊनोदर अल्पाहार) करते थे।
वह रोग से स्पृष्ट या अस्पृष्ट होने पर चिकित्सा की अभिलापा नहीं करते थे।
५५. वे संशोधन/विरेचन, वमन, गात्र-अभ्यंगन/तैल-मर्दन, स्नान, संवावन/वैय्या
वृति और दन्त-प्रक्षालन को त्याज्य जानकर नहीं करते थे।
५६. माहन/भगवान् ग्रामधर्म से विरत होकर अ-बहुवादी/मौनपूर्वक विचरण
करते थे । कभी-कभी शिशिर में भगवान् छाया में ध्यान करते थे।
५७. ग्रीष्म में अभितापी होते हुए उत्कुट/ऊकडू वैठते और आताप लेते । अथवा
रूक्ष प्रोदन, मथु/सत्तु और कुल्माप/उड़द की कनी से जीवन-यापन करते थे।
५८. भगवान ने इन तीनों का आठ मास पर्यन्त सेवन किया। कभी-कभी
भगवान ने अर्धमास अथवा एक मास तक पानी नहीं पिया।
५६. कभी दो मास से अधिक अथवा छह मास तक भी पानी नहीं पिया । वे
रात-दिन अप्रतिज्ञ रहे । उन्होंने अन्न ग्लान/नीरस भोजन का आहार किया।
६०. उन्होंने कभी दो दिन, तीन दिन, चार दिन या पाँच दिन के बाद छठे दिन
भोजन लिया । वे समाधि के प्रेक्षक अप्रतिज्ञ रहे ।
उपधान-श्रुत
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