________________
४३. कुत्तों के काटने और भौंकने पर कुछ लोग उन्हें रोकते और कुछ लोग छू-छू करते, ताकि वे श्रमरण को काट ले ।
४४. जिस वज्रभूमि में बहुत से लोग रूक्षभोजी एवं कठोर स्वभावी थे, जहां लाठी और नालिका ग्रहण कर श्रमरण विचरण करते थे ।
४५. इस प्रकार वहाँ विहार करते हुए कुत्तों के द्वारा पीछा किया जाता । कुत्तों के द्वारा नोंच लिया जाता । उस लाढ़ वेश में विहार करना कठिन था ।
४६. अनगार प्राणियों के प्रति दण्ड / हिंसा का त्यागकर अपने शरीर को विसर्जन कर देते तथा ग्रामकण्टक / तीक्ष्ण वचन को समभावपूर्वक सहन करते थे ।
४७. इसी प्रकार उस लाढ देश में कभी-कभी ग्राम भी नहीं मिलता था। जैसे संग्रामणी में हाथी पारग / पारनामी होता है, वैसे ही महावीर थे ।
४८. उपसंक्रमण / विचरण करते हुए श्रप्रतिज्ञ भगवान् को ग्रामन्तिक होने पर या न होने पर भी वहाँ के लोग प्रतिनिष्क्रमरण कर मारते और कहते - अन्यत्र पलायन करो ।
४६. वहाँ दण्ड, मुष्टि, कुन्तफल / भाला, लोष्ट / मिट्टी के ढेले अथवा कपाल से प्रहार करते हुए 'हन्त ! हन्त !' चिल्लाते ।
५०. कुछ लोग मांस काट लेते, थूक देते, परीपह करते, नोंच लेते अथवा पांसु / धुली से श्रवकीर्ण / ढक देते ।
५१. कुछ लोग भगवान् को ऊँचा उठाकर नीचे पटक देते अथवा ग्रासन से स्खलित कर देते । किन्तु भगवान् काया का विसर्जन ( कायोत्सर्ग ) किए हुए प्रतिज्ञ भावना से समर्पित होकर दुःख सहन करते थे ।
५२. वे भगवान् महावीर संग्रामशीर्ष में संवृत शूरवीर की तरह थे । स्पर्शो / कष्टों का प्रतिसेवन करते हुए भगवान् श्रचल विचरण करते रहे ।
उपधान-श्रुत
२२५