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१०. जिस भिक्षु के ऐसा भाव होता है - मैं अन्य भिक्षुत्रों को अशन, पान,
खाद्य ,या स्वाद्य लाकर नहीं दूंगा, परन्तु लाया हुआ उपभोग करूंगा।
६१. जिस भिक्षु के ऐसा भाव होता है - मैं अन्य भिक्षुओं को अशन, पान,
खाद्य या स्वाध लाकर न दूंगा और न लाया हुआ उपभोग करूंगा।
६२. मैं यथारिक्त/अवशिष्ट यथा-एपणीय, यथा-परिगृहीत अशन, पान, खाद्य,
स्वाद्य से अभिकांक्षित सावमिक का द्वारा किये जाने वाले वैयावृत्य करूंगा।
६३. मैं भी यथारिक्त, यथा-एपणीय, यथा-परिगृहीत, अशन, पान, खाद्य या
स्वाद्य से अमिकांक्षित सार्मिक द्वारा किये जाने वाले वैयावृत्य को स्वीकार करूंगा।
६४. लघुता का आगमन होने पर वह तप-समन्नागत होता है ।
६५. भगवान् ने जैसा प्रवेदित किया है, उसे उसी रूप में जानकर सब प्रकार से
सम्पूर्ण रूप से समत्व का ही पालन करे।
६६. जिस भिक्षु के ऐसा भाव होता है - मैं इस समय इस शरीर को अनुपूर्वक
परिवहन करने में ग्लान/असमर्थ हूँ। वह क्रमशः आहार का संवर्तन/संक्षेप करे । क्रमश: पाहार का संवर्तन कर, कपायों को प्रतनु/कृश कर समाधि में काष्ठ-फलकवत् निश्चल चने ।
६७. संयम उद्यत भिक्षु अभिनिवृत्त वने ।
विमोक्ष
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