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१६६. लोक-संजा सभी ओर से क्षण-क्षण परिजात है।
१६७. तत्त्वद्रप्टा के लिए कोई निर्देश नहीं है ।
१६८. परन्तु स्नेह और काम में आसक्त वाल/अजानी-पुरुप दुःख-शमन न करने से दुःखी हैं । वे दुःखों के प्रावर्त/चक्र में ही अनुपरिवर्तन करते हैं।
-~-ऐसा मैं कहता हूँ।
लोक-विजय