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१८. वे प्रोपपातिक स्पर्श का प्रतिसंवेदन करते हैं ।
१६. क्रूर कर्मों में स्थित पुरुष उन स्थानों में ही स्थित होता है ।
२०. क्रूर कर्मों में स्थित पुरुष उन स्थानों में स्थित नहीं होता है ।
२१. यह और कोई कहता है या ज्ञानी भी ? ज्ञानी कहते हैं अथवा और कोई भी ?
२२. लोक में कुछेक श्रमरण और ब्राह्मण अलग-अलग विवाद करते हैं । वह मैंने देखा, मैंने सुना, मैंने मान्य किया और मैंने विज्ञात किया है । ऊर्ध्व, अधो, सभी दिशाओं में प्रतिलेखित किया है कि सभी प्राणी, सभी जीव, सभी भूत, सभी सत्त्वों का हनन करना चाहिये, ग्राज्ञापित करना चाहिये, परिघात करना चाहिये, परिताप करना चाहिये और विमोचन करना चाहिये । इसमें कोई दोष नहीं है, ऐसा समझें । यह ग्रनार्यो का वचन है ।
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२३. इनमें जो आर्य हैं उन्होंने ऐसा कहा - वह तुम्हारे लिए दुर्दिष्ट है, तुम्हारे लिए दु:श्रुत है, तुम्हारे लिए दुर्मान्य है और तुम्हारे लिए दुर्विज्ञात है । ऊर्ध्व, ध और तिर्यक् सभी दिशाओंों में तुम्हारे लिए दुष्प्रतिलेख है । यदि तुम ऐसा ग्राख्यान करते हो, ऐसा भाषण करते हो, ऐसा प्ररूपित करते हो, ऐसा प्रज्ञापित करते हो - सभी जीव, सभी भूत, सभी सत्त्व का हनन करना चाहिये, श्राज्ञापित करना चाहिये, परिघात करना चाहिये, परिताप करना चाहिये और विमोचन करना चाहिये । इसमें कोई दोष नही है ऐसा समझें | यह अनार्यो का वचन है ।
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२४. पुनः हम सब इस प्रकार प्राख्यान करते हैं, इस प्रकार भाप करते हैं, इस प्रकार प्ररूपण करते हैं, इस प्रकार प्रज्ञापित करते हैं कि सभी प्राणियों, सभी जीवों, सभी भूतों, सभी सत्त्वों का न हनन करना चाहिये, न श्राज्ञापिंत करना चाहिये, न परिघात करना चाहिये, न परिताप करना चाहिये । इसमें कोई दोष नहीं है, ऐसा समझें । यह श्रार्यवचन है ।
सम्यक्त्व
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