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यद्यपि इस लोक में जो स्त्रियाँ हैं, वे परम सुख देने वाली हैं, किन्तु वे [ स्त्री- ] जन मेरा क्या करेगी ?
८०. मुनियों के लिए यह प्ररूपित है ।
८१. कभी ग्राम धर्म / वासना से उबाधित होने पर निर्बल भोजन भी करे, नोदरि का भी करे ( कम खाए), ऊर्ध्वस्थान पर भी स्थित होए, ग्रामानुग्राम विहार भी करे, आहार का विच्छेद भी करे, स्त्रियों में मन का त्याग भी करे ।
८२. कभी पहले दंड और पीछे स्पर्श होता है, तो कभी पहले स्पर्श और पीछे दण्ड होता है ।
८३. ये कलह और ग्रासत्तिजनक होते हैं । इन [ काम भोग के परिणामों] को प्रतिलेख कर, जानकर [ प्राचार्य ] इनके अनासेवन की आज्ञा दे । - ऐसा मै कहता हूँ ।
८४. वे न तो [ कामभोगजन्य ] कथा करे, न दृष्टि करे, न प्रसारण करे, न ममत्व करे, न क्रिया करे, वचन - गुप्ति / मौन करे, आत्म-संवरण करे, सदा पाप का परिवर्जन करे ।
८५. इस मौन / ज्ञान में सम्यक् प्रकार से वास कर |
- ऐसा मैं कहता हूँ ।
पंचम उद्देशक
६. मैं कहता हूँ जैसे कि कोई हृद प्रतिपूर्ण है, समभूमि में स्थित है, उपशान्त, रज/पंक रहित है, सुरक्षित है और स्रोत के मध्य में स्थित है ।
लोकसार
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