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प्रथम उदेशक
१.
इस संसार में वही नर है, जो मनुष्योंके वीच बोधिपूर्वक आख्यान करता है ।
२.
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कुछ पुरुष वृक्ष के समान नियत स्थान को नहीं छोड़ते ।
इस प्रकार कुछ पुरुष अनेक प्रकार के कुलों में उत्पन्न होते हैं, रूपों / विषयों में ग्रासक्त होते हैं, करुण स्तनित / विलाप करते हैं, निदान के कारण वे मोक्ष को प्राप्त नहीं करते ।
अरे देख ! उन-उन कुलों/रूपों में तू बार-वार उत्पन्न हुआ है ।
१०. गण्डी—–— कण्ठरोगी, कोढ़ी, राजंसी / राजरो दमा, अपस्मार - मृगी, कारणा, कूरिणत्व हस्त-पंगुता,
सुन्नता -- लकवा,
कुब्जता - कुवड़ापन,
६.
जिसे वे जातियाँ सभी प्रकार से सुप्रते लेखित हैं, वह श्रनुपम ज्ञान का आख्यान करता है !
धुत
समुपस्थित, निक्षिप्तदण्ड, समाधियुक्त, प्रज्ञावन्त पुरुष के लिए ही इस संसार में मुक्ति-मार्ग प्रकीर्तित है ।
इस प्रकार कुछ महावीर पुरुष विशेष पराक्रम करते हैं ।
अवसाद करते हुए कुछ अनात्मप्रज्ञ पुरुष को देखो ।
वही कहता हूँ जैसे कि पलाश से प्रच्छन्न हृद में कोई विनिविष्ट / एकाग्रचित्त का उन्मार्ग को प्राप्त नहीं करता है ।
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