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प्रथम उद्देशक
१. कुछ मनुष्य लोक में विपर्यास को प्राप्त होते हैं।
२. वे इन [जीव-निकायों में प्रयोजनवण या निष्प्रयोजन विपर्यात को प्राप्त
होते हैं।
३. उनकी कामनाएँ विस्तृत होती हैं ।
४. अतः वह मृत्यु के समीप है ।
५.
चूकि वह मृत्यु के समीप है, इसलिए वह [अमरत्व से] दूर है ।
६. वह [निष्काम-पुरुप] न ही [मृत्यु के] समीप है, न ही [अमरत्व से]
दूर है !
वह कुशाग्र-स्पशित ओसविन्दु को वायु-निवतित देखत्ता है, किन्तु मंद वाल/ अज्ञानी पुरुप इसे जान नहीं पाता ।
८. वाल/अज्ञानी-पुरुप क्रूर कर्म करता है।
६.
मूढ-पुरुप उससे उत्पन्न दुःख से विपर्यास करता है ।
१०. मोह के कारण गर्भ जन्म मरण प्राप्त करता है।
११. यहां मोह पुनः पुनः होता है ।
लोकसार
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