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३४. इस आयु के निरोध की संप्रेक्षा कर निकम्प होता हुआ क्रोध को छोड़
एवं अनागत दुःखों को जान ।
३५. विभिन्न फासों/जालों में फंसे हुए विस्पन्दमान/स्वच्छन्दी लोक को देख ।
३६. जो पापकर्मों से निवृत्त हैं, वे अनिदान कहे गये हैं। अतः प्रबुद्ध-पुरुप संज्वलित न हों।
-ऐसा मैं कहता हूँ।
चतुर्थ उद्देशक
३७. पूर्व संयोग को छोड़कर, उपशम को ग्रहण कर [शरीर को] पापीड़ित,
प्रप्रीडित तथा निप्पीड़ित करे।
३८. इसलिए अविमन वीर-पुरुप सदा सार तत्त्व में समिति-सहित विजयी बने ।
३६. अनिवृतगामियों के लिए वीरों का मार्ग दुप्चर है ।
४०. मांस एवं रुधिर को छोड़ ।
४१. यह पुरुप द्रविक/दयालु एवं वीर है ।
४२. जो ब्रह्मचर्य में वास करके शरीर को धुनता है, वह आज्ञापित कहा गया है ।
४३. नेत्र-विषयों में प्रासक्त एवं प्रागत स्रोतों में गृद्ध पुरुप बाल है ।
४४. वह बन्धन-मुक्त नहीं है, संयोग-रहित नहीं है।
सम्यक्त्व
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