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७३. जो एक को नमाता है, वह बहुतों को नमाता है।
जो बहुतों को नमाता है, वह एक को नमाता है ।
७४. धीर-पुरुप लोक के दुःख को जानकर, लोक के संयोग का वमन कर महा
यान को प्राप्त करते हैं।
७५. वे श्रेय से श्रेय की ओर जाते हैं ।
७६. वे जीवन की आकांक्षा नहीं करते ।
७७. एक (कर्म/कपाय) का क्षय करने वाला अनेक (कर्मो कपायों) का क्षय
करता है । अनेक का क्षय करने वाला एक का क्षय करता है।
७८. आज्ञा में श्रद्धा करने वाला मेधावी है ।
७६. आज्ञा से लोक को जानकर पुरुप भय-मुक्त हो जाता है ।
५०. शस्त्र तीक्ष्ण-से-तीक्ष्ण हैं । अशस्त्र तीक्ष्ण-से-तीक्ष्ण नहीं है ।
जो क्रोधदर्शी है, वह मानदर्शी है। जो मानदी है, वह मायादी है। जो मायादर्शी है, वह लोभदर्शी है । जो लोभदर्शी है, वह प्रेम/रागदर्शी है। जो प्रेम/रागदी है. वह द्वेषदर्शी है । जो द्वेपदी है, वह मोहदी है। जो मोहदर्शी है, वह गर्मदर्शी है । जो गर्भदर्शी है, वह जन्मदर्शी है । जो जन्मदर्शी है, वह मृत्युदर्शी है। जो मृत्युदर्शी है, वह नरकदर्शी है । जो नरकदर्शी है, वह तिर्यचदी है। जो तिर्यचदर्शी है, वह दुःखदर्शी है।
शीतोंप्णीय .
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