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१२. वह मेवावी क्रोध, मान, माया, लोभ, प्रेम/राग, द्वेप, मोह, गर्म, जन्म,
मार/मृत्यु, नरक, तिर्यच और दुःख से निवृत हो । ८३. यह शस्त्र-उपरत और कर्म-द्रष्टा का दर्शन है ।
८४. गृहीत को रोककर भेदन करे ।
५५. क्या द्रष्टा की कोई उपाधि है या नहीं ?
नहीं है।
-ऐसा मैं कहता हूँ।
शीतोष्णीय
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