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कुछ जन्म से ठुड्डी तक, तो कुछ छेदन से ठुड्डी तक, कुछ जन्म से होठ तक, तो कुछ छेदन से होठ तक, कुछ जन्म से दांत तक, तो कुछ छेदन से दांत तक, कुछ जन्म से जीम तक, तो कुछ छेदन से जीम तक, कुछ जन्म मे तालु तक, तो कुछ छेदन से तालु तक, कुछ जन्म से गले तक, तो कुछ छेदन से गले तक, कुछ जन्म मे गाल तक, तो कुछ छेदन से गाल तक, कुछ जन्म से कान तक, तो कुछ छेदन से कान तक, कुछ जन्म से नाक तक, तो कुछ छेदन से नाक तक, कुछ जन्म से आँख तक, तो कुछ छेदन से आँख तक, कुछ जन्म से भौंह तक, तो कुछ छेदन से मौह तक, कुछ जन्म से ललाट तक, तो कुछ छेदन से ललाट तक, कुछ जन्म से शिर तक, तो कुछ छेदन से शिर तक,
२९. कोई मूछित कर दे, कोई वध कर दे ।
[ जिस प्रकार मनुष्य के उक्त अवययों का छेदन भेदन कप्टकर है, उसी प्रकार पृथ्वीकाय के अवययों का।]
३०. शस्त्र-समारम्भ करने वाले के लिए यह पृथ्वीकायिक वध-वंधन अज्ञात है।
३१. शस्त्र-समारम्भ न करने वाले के लिए यह पृथ्वीकायिक वध-बंधन ज्ञात है ।
३२. उस पृथ्वीकायिक हिंसा को जानकर मेधावी न तो स्वयं पृथ्वी-शस्त्र का
उपयोग करता है, न ही पृथ्वी-शस्त्र का उपयोग करवाता है और न ही पृथ्वी-शस्त्र के उपयोग करने वाले का समर्थन करता है ।
३३. जिसके लिए ये पृथ्वी कर्म की क्रियाएँ परिज्ञात हैं, वही परिज्ञात-कर्मी [हिंसा-त्यागी ] मुनि है।
--ऐसा मैं कहता हूँ।
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शस्त्र-परिजा