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७.
जिनके साथ रहता है - वे स्वजन ही सबसे पहले निन्दा करते हैं। बाद में वह उन स्वजनों की निन्दा करता है ।
ε.
वे तुम्हारे लिए प्राण या शरण देने में समर्थ नहीं हैं । तुम भी उनके लिए त्राण या शरण देने में समर्थ नहीं हो ।
८.
न तो वह हास्य के लिए है, न क्रीड़ा के लिए, न रति के लिए और न ही शृङ्गार के लिए ।
तः पुरुष ग्रहो विहार / संयम - सावना के लिए समुपस्थित हो जाए ।
१०. इस अंतर को देखकर घीर-पुरुष मुहूर्तभर भी प्रमाद न करे ।
११. वय और यौवन वीत रहा है ।
१२. जो इस संसार में जीवन के प्रति प्रमत्त है, वह हनन, छेदन, भेदन, चोरी, डकैती, उपद्रव एवं प्रतित्रास करनेवाला होता है ।
१३. मैं वह करूँगा, जो किसी ने न किया हो, ऐसा मानता हुआ वह हिंसा करता है ।
१४. जिनके साथ रहता है, वे स्वजन ही एकदा पोपण करते हैं । बाद में वह उन स्वजनों का पोषण करता है ।
१५. वे तुम्हारे लिए त्रारण या शरण देने में समर्थ नहीं हैं । तुम भी उनके लिए त्राण या शरण देने में समर्थ नहीं हो ।
१६. इस संसार में उन असंयत-पुरुषों के भोजन के लिए उपभुक्त सामग्री में से संग्रह और संचय किया जाता है ।
१७. पश्चात् उनके शरीर में कभी रोग के उत्पाद / उपद्रव उत्पन्न हो जाते हैं । शस्त्र - परिज्ञा
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