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७२. तब वह किसी समय विविध, परिथेप्ठ प्रचुर एवं महा-उपकरण वाला हो
जाता है।
७३. उसकी उस सम्पत्ति को किसी समय सम्बन्धीजन वाँट लेते हैं, चोर चुरा
ले जाते हैं, राजा छीन लेता है, नप्ट हो जाता है, विनष्ट हो जाता है, अग्नि से जल जाता है।
७४. इस प्रकार वह दूसरे के अर्थ के लिए क्रूर कर्म करने वाला अज्ञानी है । उस
दुःख से मूढ़ व्यक्ति विपर्यास करता है।
७५. हे धीर ! आशा और स्वच्छन्दता को छोड़ ।
७६. तू ही उस शल्य का निर्माता है ।
७७. जिससे [ भोग ] है, उसीसे नहीं है ।
७८. जो जन मोह से आवृत हैं, वे इसे समझ नहीं पाते।
७९. स्त्रियों से लोक व्यथित है।
८०. वे कहते हैं, हे पुरुप ! ये [भोग] आयतन हैं ।
८१. वे दुःख, मोह, मृत्यु, नरक और नरकानन्तर तिर्यच के लिए हैं ।
६२. सतत मूढ़-पुरुप धर्म को नहीं जानता है ।
८३. महावीर ने कहा- महामोह में प्रमाद मत करो।
८४. कुशल-पुरुप के लिए प्रमाद से क्या प्रयोजन ?
८५. शान्ति और मरण को संप्रेक्षा करो।
शस्त्र-परिज्ञा
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