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४४. वह स्वयं ही जल-शस्त्र का उपयोग करता है, दूसरों से जल-शस्त्र का
उपयोग करवाता है और जल-शस्त्र के उपयोग करने वालों का समर्थन करता है।
४५. वह हिंसा अहित के लिए है और वही अवोधि के लिए है।
४६. वह (साधु) उस हिंसा को जानता हुआ ग्राह्य-मार्ग पर उपस्थित होता है ।
४७. भगवान् या अनगार से सुनकर कुछ लोगों को यह ज्ञात हो जाता है
यही (हिंसा) ग्रन्थि है, यही मोह है, यही मृत्यु है, यही नरक है।
४८. यह आसक्ति हो लोक है ।
४९. जो नाना प्रकार के शस्त्रों द्वारा जल-कर्म की क्रिया में संलग्न होकर
जलकायिक जीवों की अनेक प्रकार से हिंसा करता है।
५०. वही मैं कहता हूँ---
कुछ जन्म से अन्चे होते हैं तो कुछ छेदन से अन्धे होते हैं कुछ जन्म से पंगु होते हैं तो कुछ छेदन से पंगु होते हैं, कुछ जन्म से घुटने तक, तो कुछ छेदन से घुटने तक, कुछ जन्म से जंघा तक, तो कुछ छेदन से जंघा तक, कुछ जन्म से जानु तक, तो कुछ छेदन से जानु तक, कुछ जन्म से उरु तक, तो कुछ छेदन से उरु तक, . कुछ जन्म से कटि तक, तो कुछ छेदन से कटि तक, कुछ जन्म से नाभि तक, तो कुछ छेदन से नाभि तक, कुछ जन्म से उदर तक, तो कुछ छेदन से उदर तक, कुछ जन्म से पसली तक, तो कुछ छेदन से पसली तक, कुछ जन्म से पीठ तक, तो कुछ छेदन से पीठ तक, कुछ जन्म से छाती तक, तो कुछ छेदन से छाती तक, कुछ जन्म से हृदय तक, तो कुछ छेदन से हृदय तक,
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शस्त्र-परिज्ञा