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५५. शस्त्र अलग-अलग निरूपित हैं।
५६. अन्यथा अदत्तादान है।
[केवल हिंसा ही नहीं है, अपितु चोरी भी है।]
५७. कुछ लोगों के लिए जल पीने एवं नहाने के लिए स्वीकार्य है।
५८. वे पृथक-पृथक शस्त्रों से जलकाय की हिंसा करते हैं।
५६. यहाँ भी उनका कथन प्रामाणिक नहीं है।
६०. शस्त्र-समारम्भ करने वाले के लिए यह जलकायिक वध-बंधन अज्ञात है ।
६१. शस्त्र समारम्भ न करने वाले के लिए यह जलकायिक वध-बंधन ज्ञात है ।
६२. उस जलकायिक हिंसा को जानकर मेधावी न तो स्वयं जल-शस्त्र का
उपयोग करता है, न ही जल-शस्त्र का उपयोग करवाता है और न ही जल-शस्त्र के उपयोग करने वाले का समर्थन करता है।
६३. जिसके लिए ये जल-कर्म की क्रियाएँ परिज्ञात हैं, वही परिज्ञात-कर्मी [हिंसा-त्यागी ] मुनि है ।
-ऐसा मैं कहता हूँ।
चतुर्थ उद्देशक
६४. वही मैं कहता हूँ
[अग्निकायिक ] लोक को न तो स्वयं अस्वीकार करे और न ही अपनी आत्मा को अस्वीकार करे। जो [अग्निकायिक ] लोक को अस्वीकार करता है, वह आत्मा को अस्वीकार करता है, जो आत्मा को अस्वीकार करता है, वह [ जलकायिक ] लोक को अस्वीकार करता है।
सस्त्र-परिक्षर