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कुछ जन्म से अंगुली तक, तो कुछ छेदन से अंगुली तक, कुछ जन्म से नख तक, तो कुछ छेदन से नख तक, कुछ जन्म से गर्दन तक, तो कुछ छेदन से गर्दन तक, कुछ जन्म से ठुड्डी तक, तो कुछ छेदन से ठुड्डी तक, कुछ जन्म से होठ तक, तो कुछ छेदन से होठ तक, कुछ जन्म से दांत तक, तो कुछ छेदन से दांत तक, कुछ जन्म से जीम तक, तो कुछ छेदन से जीभ तक, कुछ जन्म से तालु तक, तो कुछ छेदन से तालु तक, कुछ जन्म से गले तक, तो कुछ छेदन से गले तक, कुछ जन्म से गाल तक, तो कुछ छेदन से गाल तक, कुछ जन्म से कान तक, तो कुछ छेदन से कान तक, कुछ जन्म से नाक तक, तो कुछ छेदन से नाक तक, कुछ जन्म से आँख तक, तो कुछ छेदन से आँख तक, कुछ जन्म से भौंह तक, तो कुछ छेदन से भौंह तक. कुछ जन्म से ललाट तक, तो कुछ छेदन से ललाट तक, कुछ जन्म से शिर तक, तो कुछ छेदन से शिर तक,
१५८. कोई मूछित कर दे, कोई वध कर दे ।
[ जिस प्रकार मनुष्य के उक्त अवयवों का छेदन-भेदन कष्टकर है, उसी प्रकार अग्निकाय के अवयवों का। ]
१५६. वही मैं कहता हूँ, संपातिम प्राणी नीचे आकर गिरते हैं और वायु का
स्पर्श पाकर कुछ संकुचित होते हैं । जो यहाँ संकुचित होते हैं, वे वहाँ परितप्त होते हैं और जो वहाँ परितप्त होते है, ये वहाँ मर जाते है।
१६०. शस्त्र-समारम्भ करने वाले के लिए यह वायुकायिक चध-बन्धन अज्ञात है ।
१६१. शस्त्र-समारम्भ न करने वाले के लिए यह वायुकायिक वध-वन्धन ज्ञात है। १६२. उस वायुकायिक हिंसा को जानकर मेघावी न तो स्वयं वायु-शस्त्र का
उपयोग करता है, न ही वायु-शस्त्र का उपयोग करवाता है और न ही वायु-शस्त्र के उपयोग करने वाले का समर्थन करता है ।
शस्त्र-परिज्ञा
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