Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 03 Sthanakvasi Gujarati
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनु. विषय
१० प्रश्र्चम सुत्रठा अवतरा, प्रश्र्चम सुत्र और छाया । ११ तुम भिसे हन्तव्य मानते हो, वह प्रो दूसरा नहीं है; अपि तु वह, तुम स्वयं ही हो। इसी प्रकार तुम सो आज्ञापयितव्य मानते हो, भिसे परितापयितव्य मानते हो, भिसे परिग्रहीतव्य मानते हो और भिसे अपद्रावयितव्य मानते हो, वह प्रो दूसरा नहीं; अपितु तुम्हीं हो। स प्रकार परिज्ञानवाला ऋणु-सरल होता है । इसलिये डिसी ली भुवा घात न डरो और न प्रवास | भे घात होता है उसे ली उसी प्रकार घाता अनुभव डरना पडता है। इसी लिये डिसी से भी हन्तव्य नहीं समझे ।
१२ छठा सुत्रा अवतरा, छठा सुत्र और छाया । १३ भे खात्मा है वही विज्ञाता है और भे विज्ञाता है वही आत्मा है । भिससे भना भता है वह आत्मा है । वह ज्ञानस्व३प आत्मा ली उस आत्मश से ही हा भता है, अर्थात् ज्ञान भी आत्म शज्हसे व्यवहत होता है । यह आत्मवाही सभ्य पर्याय हा भता है ।
॥ इति प्रश्र्चम उद्देश ॥
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૩
पाना नं.
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॥ अथ षष्ठ उद्देश ॥
१ प्रश्र्चम उहैशडे साथ छठे उहेशडा सम्जन्धऽथन, और प्रथम सुञा अवतरएा ।
२ प्रथम सूत्र और उसकी छाया
3 तिने लोग तीर्थंडरसे अनुपहिष्ट धर्मालास मार्ग में उधोगशाली होते हैं और अपने तीर्थऽरो पहिष्ट धर्मभार्ग संयमी समझते हैं निन्हित भार्गडे अनुयायी तिने लोग तीर्थऽरों से अनुपहिष्ट धर्ममार्ग में सर्वथा अनुधोगी होते हैं । हे शिष्य ! तुम जेसे मत जनो पूर्वोऽत होनों
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