Book Title: Abhidhan Rajendra Kosh Part 07
Author(s): Vijayrajendrasuri
Publisher: Rajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan
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________________ सूरियाभ 1118 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 7 सूरियाम यणामई अच्छायणे, साणं पउमवरवेइया एगमेगेणं हेमजालेणं गवक्खजालेणं खिंखिणीजालेणं घंटाजालेणंमुत्ताजालेणं मणिजालेणं कणगजालेणं रयणजालेणं पउमजालेणं सव्वतो समंता संपरिक्खित्ता, ते णं दामा तवणिज्जलंबूसगा जाव चिट्ठति / तीसे णं पउमवरवेइयाए तत्थ तत्थ देसे दसे तहिं तहिं बहवे हयसंघाडा०जाव उसमसंघाडा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा पासादीया / जाव वीहितो पंतीतो मिहुणाणि लयाओ। से केणटेणं मंते ! एवं दुचति-पउमवरवेइया ? गोयमा ! पउमवरवेइया णं तत्थ तत्थ देसे 2 तहिं 2 वेइयासु वेइयाबाहासु य वेइयफलतेसु य वेइयपुंडतरेसु य खंभेसु खंभबाहासु खंभसीलेसु खंभपुडंतरेसु सूयीसु सूयीमुखेसु सूईफलएसु सूईपुंडतरेसु पक्खेसु पक्खबाहासु पक्खपेरंतेसु पक्खपुडंतरेसु बहुयाई उप्पलाई पउमाइं कुमुयाइं णलिणातिं सुभगाइं सोगंधियाइं पुंडरीयाई महापुंडरीयाई सयवत्ताई सहस्सवत्ताई सस्वरयणामयाइं अच्छाइं पडिरूवाई महया वासिक्कयछत्तसमणाई पण्णत्ताई समणाउसो ! से एएणं अटेणं गोयमा ! एवं दुचइपउमवरवेइया / पउमवरवेइया णं भंते ! किं सासयाकिं अ०? गोयमा! सिय, सासया सिय असासया। से केणढणं मंते ! एवं वुचइ-सिय सासया सिय असासया ? गोयमा ! दव्वट्ठयाए सासया, वचपज्जवेहिं धपज्जवेहिं रसपनवेहि फासपज्जवेहिं असासया, से तेणं टेणं गोयमा ! एवं वुचतिसिय सासया सियं असासया। पउमवरवेइयाणं भंते ! कालओ केव चिरं होइ? गोयमा!ण कयाविणासि ण कयावि णत्थिन कयाविन भविस्सइ, भुविंच हवइय भविस्सइय,धुवा णिइया सासया अक्खया अव्वया अवट्ठिया णिचा पउमवरवेइया। सेणं वणसंडे देसूणाई दो जोयणाई चकवालविक्खंभेणं उवयारियालेणसमे परिक्खेवेणं, वण्णसंडवण्णतो भाणितव्वे जाव विहरंति। तस्सणं उवयारियालेणस्सचउहिसिंचत्तारि तिसोवाणपडिरूवगा पण्णत्ता वण्णओ, तोरणाझया छत्ताइच्छत्ता,तस्स णं उवयारियालयणस्स उवरिं बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते जाव मणीणं फासो।(सू०-३५) तच एकया पद्मवरवेदिकया एकेन वनखण्डेन सर्वतः-सर्वासु दिक्षु समन्ततः-सामस्त्येन सम्यग् परिक्षिप्तं 'सा णं पउमवरवेइया' इत्यादि सा पद्मवरवेदिका अर्द्ध योजनमूर्ध्वमुस्त्वेन पञ्च धनुःशतानि विष्क.. म्भतः परिक्षेपेण उपकारिकालयनसमानाउपकारियकालयनपरिक्षेपपरिमाणा प्रज्ञप्ता, 'तीसे ण' मित्यादि, तस्याः-पद्मवरवदिकाया अयमेतद्रूपो वर्णावासोवर्णः-श्लाघा यथावस्थितस्वरूपकीर्तनं तस्यावासोनिवासो ग्रन्थपद्धतिरूपो वर्णावासो; वर्णकनिवेश इत्यर्थः, प्रज्ञप्तो मया | शेषतीर्थकरैश्च, तद्यथेत्यादिना तमेव दर्शयति-इह सूत्रपुस्तकेष्वन्यथाऽतिदेशबहुलः पाठो दृश्यते ततोमा भून्मतिसमोह इति विनेयजनानुग्रहाय पाठ उपदर्श्यते-'वयरामया णिम्मा रिट्ठामया पइट्ठाणा वेरुलियामया खंभा सुवन्नरुप्पमया फलया लोहियक्खमईओ सुईओ वइरामया संधी नानमणिमया कडेवरा णाणामणिमया कडेवर संघाडा नानामणिमया रूवा नानामणिमया रूवसंघाडा अंकामया पक्ख अंकामया पक्खबाहाओ जोईरसामया वंसा वंसकवेल्लुपुया रझ्यामईओ पट्टियाओ जायरूमई ओहाडणी वयरामई उवरिपुंछणी सव्वरयणामए आच्छायणे एतत् सर्व द्वारवत् भावनीयं, नवरं कलेवराणि-मनुष्यशरीराणि कलेवरसंघाटा मनुष्यशरीरयुग्मानि, रूपाणि-रूपकाणि रूपसंघाटा-रूपकयुग्मानि, 'सा णं पउमवरवेइया तत्थ 2 देसे 2 एगमेगेणं हेमजालेणं एगमेगेणं गवक्खजालेणं एगमेगेणं घंटाजालेणं एगमेगेणं खिंखिणीजालेणं एगमेगेणं मुत्ताजालेणं एगमेगेणं कणगजालेणं एगमेगेणंमणिजालेणं एगमेगेणं रययजालेणं एगमेगेणं सव्वरयणजालेणं एगमेगेणंपउमजालेणं सव्वतो समंता संपरिक्खित्ता, ते णं जाला तवणज्जलंबूसगा सुवण्णपयरमंडिया नानामणिरयणविविहहारद्धहारउवसोभियसमुद्धयरूवा इसिमन्नमन्नमसंपत्ता पुव्वावरदाहिणुत्त-रागएहिं वाएहिं मंदायं मंदायमेइज्जमाणा एइज्जमाणा पलंवमाणा 2 पझुंझमाणा पझुंझमाणा ओरालेण मणुन्नेणं मणहरेणं कण्णमण-णिव्वुइकरेणं सद्देणं तं पदेसे सव्वतो समंता आपूरेमाणा सिरीएउवसोभेमाणा चिट्ठति, तीसे पउमवरवेइयाएतत्थ 2 देसे तहिं 2 हयसंघाडा नरसंघाडा किंनरसंघाडा किंपुरिससंघाडा महोरगसंघाडा गंधव्वसंघाडा उसभसंघाडा सव्वरयमणामया अच्छा जावपडिरूवा, एवं पंतिओ वि वीहिओ वि मिहुणाई, तीसे णं पउमवरवेइयाए तत्थ 2 देसे तहिं 2 बहुयाओपउमलयाओणागलयाओ असोगलयाओ चंपगलयाओ वणलयाओ वांसतियलयाओ अइमुत्तगलयाओ कुंदलयाओ सामलयाओ निचं कुसुमियाओ निचं मउलियाओ निचं लवइयाओ निच्च थवइयाओ णिचं गुलइयाओ निचं गोच्छियाओ णिचं जमलियाओ निचं जुयलियाओ निचं विणमियाओ निचं पणमियाओ निश्चं सुविभत्तपडिमंजरीवडिंगसगधरीआ निचं कुसुमियमउलियलवइयथवइयगुलइयगोच्छियजमलियजुयलियविणमियपणमियपणमियसुविभत्तपङिमंजरिवडिंसगधरीओ सव्वरयणमईओ अच्छाओ०जाव पडिरूवाओ' इति अस्य व्याख्या-'सा' एवंस्वरूया 'ण' मिति वाक्यालङ्कारे पद्मवरवेदिका तत्र 2 प्रदेशे एकेकेन हेमजालेनसर्वात्मना हेममयोन लम्बमानेन दामसमूहेन एकैकेन गवाक्षजालेनगवाक्षाकृतिरत्नविशेषदामसमूहेन एकैकेन किङ्किणीजालेन, किङ्किण्यः-क्षुद्रघण्टिकाः, एकैकेन घण्टाजालेनकिङ्किण्यपेक्षया-किंचिन्यमहत्यो घण्टाघण्टाः, तथा एकै केन मुक्काजालेनमुक्ताफलमयेन दामसमूहेन एकैकेन मणिजालेनमणिमयेनदामसमूहेन एकैकेन कनकजालेन कनकः-पीतरूपः सुवर्णविशेषः तन्मयेन दामसमूहेन एवमेकैकेन रत्नजालेन एकैकेन पद्म

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