Book Title: Abhidhan Rajendra Kosh Part 07
Author(s): Vijayrajendrasuri
Publisher: Rajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan
View full book text
________________ हत्थिणार 1181 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 7 हम्म जिनास्त्रयोऽत्र जायन्ते, शान्तिः कुन्थुररस्तथा। हस्तिनं व्यापाद्याऽऽत्मनो बृत्तिं कल्पयत्सु बौद्धसाधुषु, सूत्र०२ श्रु० आहिमालूसार्वभौमा, द्विभुजस्ते महीभुजः।। 5 // 6 अ०। ('अद्दगकुमार' शब्दे प्रथमभागे 560 पृष्ठे हस्तितापसमतं मल्लिश्च समवासार्षी-तेन चैत्यचतुष्टयी। व्याख्यातम्) अत्र निर्मापिता श्राद्ध-वीक्ष्यते महिमाऽद्भुता॥६॥ हत्थिदीवपुं० (हस्तिद्वीप) राजगृहनगरबाहिरिकाया नालन्दाभिधानाया भासतेऽत्र जगन्नेत्र-पवित्रीकारकारणम्। उत्तरपूर्वस्यां दिशि खण्डे, स्था०६ ठा०३ उ०। भवनं चाम्बिकादेव्या, यात्रिकोपप्लवच्छिदः // 7 // हत्थिपाल पुं० (हस्तिपाल) पापायां मध्यमायां नगयाँ स्वनामख्याते जाह्नवी क्षालयत्येत-चैत्यभित्तीः स्ववारिभिः। राजनि, यस्य शालायां वीरजिनो निर्वृतः / स०५ सम०। ती०। कल्लोलोच्छालितैर्भूयो, भक्त्या स्नात्रचिकीरिव // 8 // हत्थिपिप्पली स्त्री० (हस्तिपिप्पली) गजपिप्पल्याम्, उत्त०३४ अ०। सनत्कुमारः सुभूओ, महापद्मश्च चक्रिणः। हत्थिबंधणखंभ पुं० (हस्तिबन्धनस्तम्भ) हस्तिनां बन्धनभूते स्तम्भे, अत्रासन् पाण्डवाः पञ्च, मुक्तिश्रीजीवितेश्वराः // 6 // पाइ० ना० 203 गाथा। गङ्गदत्तः कार्तिकश्च, श्रेष्ठिनौ सुव्रतप्रभोः। हत्थिभूइ पुं० (हस्तिभूति) हस्तिमित्रपुत्रे, उत्त०१अ०। शिष्यावभूतां विष्णुश्च, नमुचेरत्र शासिता॥१०॥ हत्थिमित्त पुं० (हस्तिमित्र) उज्जयिन्यां स्वनामख्याते गृहफ्तौ, उत्त० कलिदर्पहृतं स्फीत-सङ्गीतां सदसुव्ययाम्। 2 अ०1 यात्रामासूत्रयन्त्यत्र, भव्या निर्व्याजभक्तयः।।११।। हत्थिमुह पुं० (हस्तिमुख) लवणसमुद्रस्यान्तपि, स्था० 4 ठा०२ उ० / शान्तेः कुन्थोरथ चतुः-कल्याणीचात्रपत्तने। प्रज्ञा०।०।उत्त०। (सच'अंतरदीव' शब्दे प्रथमभागे 86 पृष्ठ विशेषतो जज्ञे जगज्जनानन्दा, सम्मेताऽद्रौ च निवृतिः / / 12 // व्याख्यातः।) भाद्रस्य सप्तमी श्यामा, नभसो नवमी शितिः। हत्थिरयण न० (हस्तिरत्न) उत्कृष्ट हस्तिनि, स्था०७ ठा०३ उ०। द्वितीया फाल्गुनस्यैषां, तिथ्योऽभूवन् दिवश्च्युतेः॥ 13 // हत्थिरायपुं० (हस्तिराज) हस्त्यनीकाधिपती, स्था० 4 ठा०२ उ०।स० / ज्येष्ठे त्रयोदशी कृष्णा, माधवे च चतुर्दशी। हत्थिलावय पुं० (हस्तिलावक) हस्ती च शालीनां लावकाश्च हस्तिमार्गे च दशमी शुक्ला, तिथयो जनुषस्तु वः // 14 / / लावकाः / करिणी व्रीहिच्छेदकेषु च व्याक्षेपे, व्य०६ उ०। शुक्ला चतुर्दशी श्यामा, राधे बहुलपञ्चमी / हत्थिवाउय पुं०(हस्तिव्यापृत) महामात्रे, औ०। साहस्यैकादशी शुभ्रा, जझुर्दीक्षादिनानि च॥ 15 // हत्थिवाहण पुं० (हस्तिवाहन) नन्दीश्वरद्वीपदेवे, सू० प्र०१६ पाहु०। पौषस्य नवमी श्वेता, तृतीया धवला मधोः। हत्थिसिक्खा स्त्री० (हस्तिशिक्षा) कलाविशेषे, स०७२ सम० / ऊर्जस्य द्वादशी श्वेता, ज्ञानोत्पत्तेरहानि वः // 16 // हस्तिदभने, औ०। शुक्ले त्रयोदशी कृष्णा, वैशाखे पक्षतिः शितिः। हत्थिसीसग न० (हस्तिशीर्षक) स्वनामख्याते नगरे, ज्ञा०१ श्रु०१७ मार्ग बलक्षा दशमी, मुक्तेर्वस्तिथयः क्रमात्॥१७॥ अ०। "इहास्ति भरतक्षेत्रे, नगरं हस्तिशीर्षकम् / सुवृत्तरङ्गमुक्तेदं, भवादृशानां पुरुष-रत्नानां जन्मभूरियम्। हस्तिशीर्षमिवोद्यतम्, "आ० क०१अ० आ० म०। ज्ञा०। 'हत्थिसीयं स्पृष्टाऽप्यनिष्टं शिष्टानां, पिनष्टि किमुत स्तुता // 18 // नगरं तत्थं दमयन्तो राया' आ० म० 1 अ०। तादृगविधैरतिशयैः पुरुषप्रणीतै हत्थिसुंडिया स्त्री० (हस्तिशुण्डिका) यत्र पुताभ्यामुपविष्टः सन् एकं विभाजितं जिनपरि(र)त्रितयैर्महैश्च। पादमुत्पाट्यास्ते सा हस्तिशुण्डिका। निषद्याभेदे, स्था० 5 ठा० 1 उ०। भागीरथीसलिलसङ्गपवित्रमेत हत्थिसोंडा स्त्री० (हस्तिशुण्डा) त्रीन्द्रियजीवभेदे, प्रज्ञा०१ पद। जी०। जीयाच्चिरं गजपुरं भुवि तीर्थरत्नम् // 16 // हत्थुत्तरा स्त्री० (हस्तोत्तरा) हस्तोपलक्षिता उत्तरायासांता हस्तोत्तराः / इष्टं पृथक्त्वविषयार्कमिते शकाब्दे, उत्तराफाल्गुनीषु, स्था०५ ठा०१ उ० आचा०। आ० म०। कल्प०। वैशाखमासि शितिपक्षगषष्ठतिथ्याम्। हत्थुल्ल पुं० (हस्त) "स्वार्थे कश्च वा" || 8 / 2 / 16 / / इति यात्रोत्सवोपनतसङ्घयुतो यतीन्द्रः, स्वार्थे उल्लप्रत्ययः। हत्थुल्लो। करे, प्रा०२ पाद। स्तोत्रं व्यधात् गजपुरस्य जिनप्रभाख्यः // 20 // " हदण पुं० (हदन) स्वनामख्याते स्त्रीवशवर्तिनि, (हदनव्याख्या माणर्पिड' श्रीहस्तिनापुरस्तवनकृतिः श्रीजिनप्रभसूरिणाम्॥ती०४८ कल्प०! ] शब्दे षष्ठ भागे गता।) स्था०ाज्ञा०। कल्प०। *हद्धी अव्य०"हद्धी, निर्वेदे"॥१२।१९२॥ हद्धी इत्यव्ययमत हत्थिणिया स्त्री० (हस्तिनिका) करेणुकायाम, आ० म०१ अ01 एव निर्देशात्, हाधिकशब्दादेशो वा निर्वेदे प्रयोक्तव्यम्। हद्धी। निर्वेद, हत्थितावसपुं० (हस्तितापस)तापसविशेषेषु, ये हस्तिनं मारयित्वा तेनैव | प्रा०२ पाद। बहुकालं भोजनतो यापयन्ति / भ० 11 श० ( उ० / औ० / नि०। हम्म धा० (हन्) हिंसायाम, "हन्खनोऽत्यस्य" ||8||

Page Navigation
1 ... 1203 1204 1205 1206 1207 1208 1209 1210 1211 1212 1213 1214 1215 1216 1217 1218 1219 1220 1221 1222 1223 1224 1225 1226 1227 1228 1229 1230 1231 1232 1233 1234 1235 1236 1237 1238 1239 1240 1241 1242 1243 1244 1245 1246 1247 1248 1249 1250 1251 1252 1253 1254 1255 1256 1257 1258 1259 1260 1261 1262 1263 1264 1265 1266 1267 1268 1269 1270 1271 1272 1273 1274 1275 1276