Book Title: Abhidhan Rajendra Kosh Part 07
Author(s): Vijayrajendrasuri
Publisher: Rajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan
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________________ हलप्प 1168 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 7 हसंत हलप्प (देशी) बहुभाषिणि, दे० ना० 8 वर्ग 61 गाथा / अच्छोडिया भग्गा, तत्थ एगम्मि कुंडलजुयलं एगम्मि वत्थजुयलं तुद्वाए हलबोल (देशी) कलकले, दे० ना०५ वर्ग 64 गाथा। गहियाणि / अन्नया अभओ सामि पुच्छइ-'को अपच्छिमो रायरिसि' हला अव्य० (हला) देशविशेषगौरवार्थं स्त्र्यामन्त्रवचने, दश०७ अ० | त्ति / सामिणा उदायणो वागरिओ, अओ परं बद्धमउडा न पव्वयंति। हले देशी (हले) सख्या आमन्त्रणे, "मामि-हला-हले सख्या वा" | ताहे अभएण रज्जं दिज्जमाणं न इच्छियं ति पच्छा सेणिओ चिंतेइ // 8/21 195 // एते सख्या आमन्त्रणे वा प्रयोक्तव्याः। “पणवह ... 'कोणियस्स दिजिहि 'त्ति हल्लस्स हत्थी दिनो सेयणगो विहल्लस्स माणस्स हला। हले हयासस्स "प्रा०। विशेषगौरवार्थ स्त्र्यामन्त्रणे, देवदिन्नो हारो, अभएण वि एव्वयंतेण सुनंदाए खोमजुयलं कुंडलजुयलं दश०७ अ०। (अत्रत्या व्याख्या 'भासा' शब्दे पञ्चमभागे गता।) चहल्लविहल्लाणं दिन्नाणि। महया विहवेण अभओ नियजणणीसमेओ त्रीन्द्रियजीवविशेषे, प्रज्ञा०१ पद। पव्वइओ। सेणियस्स चेल्ल्णादेवीअंगसमुभूया तिन्नि पुत्ता कूणिओ हलि स्त्री० (हली) पक्षिविशेषे, जं०७ वक्ष०। हल्लविहल्लाय।" नि०१ श्रु०१ वर्ग 1 अ०। आ०क०। आव०। हलिअ पुं०(हालिक) "वाऽव्ययोत्खातादावदातः" ||8|| आ०म० / गोवालिकातृणसमाकारे कीटविशेषे, भ० 15 श० / राजगृहे 67 / / इति आदेराकारस्य अद्धा। हलिओ। हालिओ। हलवाहके, श्रेणिकराज्ञोधारिण्यांजाते पुत्रे, ("जयंते दोन्नि" जयन्ते विमाने उपपद्य प्रज्ञा०१ पाद। सेत्स्यतीत्यादि 'महासीहसेण' शब्दे षष्ठे भागे व्याख्यातम्।) हलिवपत्तन० (हरिद्रपत्र) चतुरिन्द्रियजीवविशेषे, प्रज्ञा०१पदा जी01 | हल्लप्फलिअ (देशी) आकुलत्वे, दे० ना०५ वर्ग 56 गाथा। हलिहमच्छ पुं० (हरिद्रमत्स्य) मत्स्यविशेषे, प्रज्ञा०१ पद। विपा०। हल्लिअ (देशी) चलिते, दे० ना० 8 वर्ग 62 गाथा। हलिहमत्तिया स्त्री० (हरिद्रमृत्तिका) श्लक्ष्णबादरपृथिवीकायविशेषे, हल्लीस (देशी) रासे, दे० ना० 8 वर्ग 61 गाथा। प्रज्ञा० 1 पद। हल्लोहलिआ स्त्री० (हल्लोहलिका) सरट्याम्, "हल्लो हलिआ हलिद्दागुलिया स्त्री० (हरिद्रागुटिका) हरिद्रासारनिर्वर्तितायां गुटिका- | अहिलोडी सरडी कक्किंडी'' इत्येकार्थाः / कल्प०३ अधि०६ क्षण! याम्, जी०३ प्रति० 4 अधिo! हव धा० (भू) सत्तायाम्, "भुवे:-हुव-हवाः" / / 815 / 60 // हलिहाभेय पुं० (हरिद्राभेद) हरिद्राच्छेदे, जी०३ प्रति०४ अधिकारा०॥ इति भुवो धातोर्हो हुव हवा इत्येते आदेशा वा होइ / होन्ति। हुवइ / हलिहुग पुं० (हरिद्रुक) स्वनामख्याते नगरे / यत्र विहारक्रमेण स्वामी हुवन्ति / हवइ। हवन्ति भवति। भवन्ति। प्रा०४ पाद। गतः / आo चू०१०। हविअ अव्य० (भूत्वा) उत्पद्येत्यर्थे, "क्त्व इय-दूणौ" ||8|| हलिसागर पुं० (हरिसागर) मत्स्यविशेष, जी०१ प्रति० / प्रज्ञा०। २७१॥शौरसेन्यां क्त्वाप्रत्ययस्य इय दूण इत्यादेशौवा भवतः। हविअ / हलुअ न० (लधुक) "लघुके ल-होः" // 812 / 122 / / इति / होदूण / प्रा० / मक्षिते, 'हवि मेक्षित्तम्। दे० ना०५ वर्ग 62 गाथा / लघुकशब्दे घस्य हत्वे कृते लहोर्व्यत्ययो वा भवति / हलु। लहु। | हवै अव्य० (हवै) हवै इत्येतदपि निपातद्वयं हिशब्दार्थत्वाद्यस्माद्यर्थे, "न शीघ्र, प्रा०२ पाद। हवै सशरीरस्य प्रियाप्रिययोरपहतिरस्ति'' इति श्रुतिः। विशे०। हलूर (देशी) सतृष्णे, दे० ना० 8 वर्ग 62 गाथा। हव्व न० (हव्य) शीघ्र, अनु० / स्था० / आचा० / ज्ञा० / जी०। औ०। हल्ल पुं० (हल्ल) चम्पायां कूणिकराजभ्रातरि श्रेणिकस्य चेल्लणागर्भजे नं० भ०। विपा०नि०॥ पुत्रे, भ०७ श०६ उ०। हव्ववाह पुं० (हव्यवाह) अग्नौ, आचा०१ श्रु० 4 अ०३ उ०। "हल्लविहल्लनामाणो कूणियस्स चिल्लणादेवीअंगजाया दो भायरा हस धा० (हस) हासे, दन्तनिष्कासने, "व्यञ्जनाददन्ते"||1| अन्नेऽवि अत्थि। अहुणा हारस्स उप्पत्ती भन्नइ-इत्थ सक्को सेणियस्स 236 / / इति अन्तेऽकारः / हसइ / प्रा। "हसेर्गुजः" ||8|| भगवंतं पइ निचलभत्तिस्स पसंसं करेइ / तओ सेडुयस्स जीवदेवो 166 / / इति हसेर्गुञ्जादेशः / गुंजइ / हसति / प्रा० / "वर्तमानातब्भत्तिरंजिओ सेणियस्स तुट्ठो संतो अट्ठारसवंक हारं देइ, दोन्नि य पञ्चमी-शतृषु वा" |||3| 158 // इति अकारस्थाने एकारो वट्टगोलके देइ। सेणिएणं सो हारोचेल्लणाए दिन्नो पियत्तिकाउं, वट्टदुग वा / हसेइ। हसइ / प्रा०३ पाद। सुनंदाए अभयमंतिजणणीए / ताए रुहाए किं अहं चडरूवं ति काऊण | हसंत त्रि०(हसत्) परिहासं कुर्वति, भ०१३ श०६ उ०1"ईतः

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