Book Title: Abhidhan Rajendra Kosh Part 07
Author(s): Vijayrajendrasuri
Publisher: Rajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan
View full book text
________________ होरंभा १२५०-अभिधानराजेन्द्रः- भाग 7 होरंभा स्त्री०( होरम्भा) महाढक्कायाम्, रा०ा तं०। भ०। होरण-(देशी)-वस्त्रे, दे० ना० 8 वर्ग 72 गाथा। होरा स्त्री०(होरा) ज्योतिषोक्ते लग्ने राश्यर्द्धभागे होराज्ञापकशास्त्रभेदे, रेखायाञ्च / द० प०। सूत्र०।। होल-(देशी)- देशप्रसिद्ध नैष्ठुर्ये, दश०७ अ०। ज्ञा० / होल इतिवा बोल इति वा एतौ च देशान्तरे अवज्ञासंसूचकौ / आचा०२ श्रु०१चू०४ अ० १उ०॥ होलवायपुं०(होलवाद) होलेत्येवं वादो होलवाद: / होलेत्येवं पुरुषामन्त्रणे, सूत्र०१ श्रु०६ अ01 ह अव्य०(ह) वाक्याल.कारे, सूत्र०२ श्रु०७ अ०। हुसास्त्री०(स्नुषा) पुत्रवध्वाम्, सूत्र 2 श्रु०७ अ०। ह(देशी) ह्व-सांड्.केतिक: शब्द / चतुष्के, हशब्दोपादानात् नारकतिर्यग्नरदेवाश्चत्वारो ग्राह्या: / ग० 2 अधि० / नि० चू०। वासे पुण्णरसंकचन्दपमिए चित्तम्मि मासे वरे, हत्थे भे सुहतेरसीबुहजुए पक्खे य सुब्भे गए। सम्मं संकलिओ य सूरयपुरे संपुण्णयं संगओ, राइंदायरिएण देउ भुवणे राइंदकोसो सुहं // 1 // ************* अथ प्रशस्ति:-- शाखाप्रशाखा मिरतिप्रवृद्धे, वीरोक्तिविस्तार विधानदक्षे / सद्धय॑सौधर्मवृहत्तपाऽऽख्य-गच्छे जगत्यां जनितप्रतिष्ठे // 1 // श्रुतावगाहप्रवरा महान्त:, सच्छासनाऽशेषधुरं वहन्त: / श्रीसङ्घवाटी परिफुल्लयन्त:, सुरीन्द्रमुख्या बहवो बभूवुः // 2 // तदन्वयेऽभूद् वररत्नसूरिः, स्वब्रह्मतेजस्वितया करिष्णुः। भानु नभोगं हरिमब्धिवासं, त्रिषट्तमं पट्टमलड्.करिष्णुः / / 3 / / निरन्तराऽऽचाम्लकर: सुखेन, क्षमा-श्रुत-प्राज्यमतिप्रवृद्धः। वृद्धक्षमासूरिरलञ्चकार, तत्पट्टमेरुं सवितेव धीरः // 4 // स्वपरसमयवेदी षट्सु भाषासु दक्षो, विजितयवनवृन्दो मेदपाटीयभर्तुः। सदसि जनसमक्षं श्रीलदेवेन्द्रसूरिः, समभवदतितेजा: पट्टकेऽमुष्य जिष्णुः // 5 // शिश्राय तत्पट्टमशेषकाल-विन्मारजित्स्वाऽन्यशुभं करिष्णुः। नैमित्तिकानां प्रथमश्च लोके, कल्याणसूरिगणितप्रवीणः / / 6 // अन्वर्थनामा समभूत् प्रमोद-सूरिजगज्जीवसुमोदहेतुः / समाधिलीनो निजकर्मदक्ष-स्तदासनेऽखण्डितशीलशाली / / 7 // तत्पट्टमेरावुदियाय भानु-जैनागमाब्धिं परिमथ्य कोशम्।। राजेन्द्रसूरिजंगदर्चनीयो-ऽभिधानराजेन्द्रमसावकार्षीत् // 8 //

Page Navigation
1 ... 1272 1273 1274 1275 1276