Book Title: Abhidhan Rajendra Kosh Part 07
Author(s): Vijayrajendrasuri
Publisher: Rajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan

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Page 1197
________________ हंस 1173 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 7 हढकारग पथ्याश्रमदेवकुलारामवासिनो भिक्षार्थं च ग्राम प्रविशन्ति। औ01 | हक्खुप्प धा० (उत्क्षिप) ऊर्ध्व प्रक्षेपे, "उत्क्षिपेर्गुलगुञ्छोत्थङ्हंसगब्भ पुं० (हंसगर्भ) हंसः-पतङ्गश्चतुरिन्द्रियो जीवविशेषः, गर्भस्तु घाल्ल-त्थोग्भुत्तोस्सिक-हक्खुप्पाः" ||4|144 // इति तन्निर्वर्तितः कोसिकारः, हंसस्य गर्भो हंसगर्भः। हंसनिर्वर्तिते कोसिकारे, उत्पूर्वस्य क्षिपेः हक्खुप्प इत्यादेशः। हक्खुप्पइ। उक्खिप्पइ / प्रा० / अनु०। जं०रत्नविशेषे। जी०३ प्रति०४ अधि०। सूत्र०। रत्नप्रभायाः | हगे त्रि० (अहम/वयम्) "अहं-वयमोहंगे" // 8 / 4 / 301 / / पृथिव्याः षष्ठे रत्नगर्भकाण्डे, आ०म०१०। ज्ञा० स्था०। प्रज्ञा०। मागध्यामहंवयमोः स्थाने हगे इत्यादेशः / अस्मच्छब्दस्यैकत्वे, बहुत्वे हंसगन्भमय न० (हंसगर्भमय) हंसगर्भाख्यरत्नमये, रा०। च। प्रा०४ पाद। हंसतेल्ल(ल)न० (हंसतैल) हंसपक्षिपाकतैले, "हंसो पक्खी भण्णति, हच्छंकर पुं० (हच्छङ्कर) वनस्पतिभेदे, आचा०२ श्रु०२चू०३ अ०॥ सोफाडेऊण मुत्तपुरीसाणिणीहरिजन्ति, ताहेसो हंसो दव्वाण भरिजति, | हट्ट पुं० (हट्ट) आपणे, नानागृहाध्यासिते त्रिकोणे भूभागविशेषे, अनु०। ताहे पुणरवि सोसीविज्जति। तेण तदवत्थेण तेल्लं पचति तं हंसतेल्लं पण्यशालायाम्, आचा०१ श्रु०६ चू०२ अ० आ०म०। भण्णति ! नि० चू०१ उ०। हट्ट त्रि०(हृष्ट) हर्षिते, उत्त०१८ अ०। विस्मयमापन्ने, यथा-अहो भगवान् हंसदीव पुं० (हंसद्वीप) स्वनामख्याते तीर्थभेदे, यत्र श्रीसुमतिनाथ तीर्थकरः समुत्पन्न इति / आ० म०१ अ० जी०भ० औ० / रा०1 देवपादुका। ती०४३ कल्प०। ज्ञा०ानीरोगे, प्रव०४ द्वार। भ०। नि० चू० स्था०। स०। तारुण्येन हंसलक्खण त्रि० (हंसलक्षण) हंसस्येव लक्षणं स्वरूपं शुक्लता हंसा वा समर्थे, तरुणा अपि केचिद्रागिणो निर्बलशरीराश्च भवन्ति। कल्प०३ लक्षणं चिहं यस्य सः। ज्ञा०१श्रु०१०। शुक्ले हंसचिह्ने, भ०६श० अधि०६ क्षण। हृष्टतुष्टानन्दिताः एकार्थाश्चैते, विपा० 1 श्रु०१ अ०। 33 उ०। हंसवद्विशदे, जं०२ वक्ष०। हतु त्रि० (हृष्टतुष्ट) अतितुष्टे, ज्ञा० 1 श्रु० 1 अ०। आ० म०१ अ०। हंससर त्रि० (हंसस्वर) हंसस्येद मधुरः स्वरो येषां ते ! हं ससदृश भ० / औ०। विपा०। दशा०। भ०। हट्ठतुट्ठचित्तमाणदिए हृष्टतुष्टोऽतीव मधुरस्वरयुक्तेषु, जं०२ वक्ष०ा तं०जी०। तुष्टः / अथवा-हृष्टो नाम विस्मयमापन्नो यथा अहो भगवानास्ते इति हंससरिसग्गइ त्रि० (हंससदृशगति) हंसस्य सदृशी गतिर्येषांते। हंसतुल्य तुष्टस्तोपं कृतवान् यथाभव्यमभूत्यन्मथा भगवानलोकितः तोषवशादेव गतिषु, जी०३ प्रति०४ अधि०। चित्तमानन्दितं-स्फीतीभूतं 'टुनदि' समृद्धाविति वचनात् यस्य स हंसासन न० (हंसासन) येषामासनानां मध्यभागे हंसा व्यवस्थितास्तानि चित्तानन्दितः सुखादिदर्शनात् पाक्षिको निष्ठान्तस्य परनिपातः। मकारः हंसासनानि। हंसाकृतिव्यवस्थितेषु आसनेषु, जं०१ वक्ष०ा जी०। प्राकृतत्वादलाक्षणिकस्तस्तः पदत्रयस्य पदद्वयमीलनेन कर्मधारयः। हंसासनसंठिय त्रि० (हंसासनसंस्थित) हंसासनवत्संस्थिते, जी० रा०। भ० / कल्प० / जी०। 3 प्रति०२ अधि०। हड (देशी) वनस्पतिविशेषे, उत्त०२२ अ०। हंहो अव्य० (हंहो) हमित्यव्यक्तं जहाति हा-डो। संबोधने, दर्प, दम्भे, प्रश्ने च / प्रा०। *हत त्रि० अपहृते, स्थानान्तरंगमिते च। कल्प०१अधि०४ क्षण! हक धा० (निषिध्) प्रतिषेधे, "निषेधेकः "||||१३५॥इति हडप्प (देशी) आभरणकरण्डके, ज्ञा०१ श्रु०१ अ०। इम्मादिभाजने, निषेधतेर्हक्क इत्यादेशः। हक्कइ। निसेहइ। प्रा०। कुमारेण स करी हक्कितः। ताम्बूलार्थ पूगफलादिभाजने, भ०६श०३३ उ०। औ०। उत्त०१३ अ०। हडाला पुं० (हडाला) स्वनामख्याते ग्रामे, यत्र वस्तुपालतेजःपालाभ्यां हक्कार पुं० (हाकार) हा इति हाकारलक्षणा या नीतिः-प्रवृत्तिः सा निधिलब्धः। ती०५१ कल्प०1 हाकारः / आ० म०१ अ०। प्रथमद्वितीयकुलकरदण्डनीतौ, "हक्कारे हडाहड न० (हृताहृत) अत्यर्थे, "फुट्टहडाहडसीसे'' विपा० 1 श्रु० . मक्कारे धिक्कारे चेव दंडनीतीओ" आ० म०१ अ० / दण्डनीतिस्तावत् | 1 अ०॥ज्ञा०। विमलवाहनचक्षुष्मत्कुलकरकाले अल्पापराधित्वेन हक्काररूपैवाभूत्। हडि पुं० (हडि) खोटके, औ० / विपा० / कर्म० / काष्ठधोटके, दशा० यशस्विनोऽभिचन्द्रस्य च काले अल्पेऽपराधे हक्काररूपा महतिच अपराधे / ६अ। काष्ठविशेषे, प्रश्न०३ आश्र० द्वार। मक्काररूपा, अथ प्रसेनजिन्मरुदेवनाभिलकुलकरकाले च जघन्य- हडिबंधण न० (हडिबन्धन) खोटकक्षेपके, प्रश्न० 5 संब० द्वार। सूत्र०। मध्यमोत्कृष्टापराधेषु क्रमेण हक्कारमकारधिक्काररूपा दण्डनीतयो- हा (देशी) अस्थनि, तं० ऽभूवन् / कल्प०१ अधि०७ क्षण। ति०। आ० म०। रा०। आ० चू०। हढ पुं०(हढ)जलरुहवनस्पतिविशेषे, प्रज्ञा०१पद। आचा०। हक्कोद्ध (देशी) अभिलषिते, दे० ना०८ वर्ग 60 गाथा। . हठकारग त्रि० (हठकारक) हठेन कुर्वन्ति येते हठकारकाः! हठपूर्वकहक्खुत्त (देशी) उत्पाटिते, दे०५ वर्ग 60 गाथा। कर्मकर्त्तरि, प्रश्न०३ आश्रद्वार।

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