Book Title: Abhidhan Rajendra Kosh Part 07
Author(s): Vijayrajendrasuri
Publisher: Rajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan
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________________ सोरियदत्त 1167 - अमिधानराजेन्द्रः - भाग 7 सोल्लिय दत्तस्स णीहरणं करेंति लोइयमयाई किच्चाई करेंति, अन्नया गोयमा ! सोरियदत्ते पुरापोराणाणं जाव विहरति / सोरिए णं कयाइसयमेव मच्छंधम हत्तरगत्तं उवसंपज्जित्ताणं विहरति।तए मंते ! मच्छंधे इओ य कालमासे कालं किया कहिं गच्छिणं से सोरियए दारए मच्छंचे जाते अहम्मिए जाव दुप्पडि- हिति? कहिं उववजिहिति? गोयमा! सत्तरि वासाइं परमाउयं याणंदे। तते णं तस्स सोरियमच्छंधस्स बहवे पुरिसा दिनभति० पालइत्ता कालमासे कालं किया इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए कल्लाकल्लं एगट्ठियाहिं जउणामहानदिं ओगाहिंति बहूहिं संसारो तहेव पुडवीओ हत्थिणाउरे णगरे मच्छत्ताए उववने / दहगालणेहि य दहमलणेहि य दहमहणेहिं दहवहणेहिं दहपव सेणं ततो मच्छिएहिं जीवियाओ ववरोविए तत्थेव सेहिकुलंसि हणेहि य अयपुलेहि य पंचपुलेहि य मच्छंधलेहि य मच्छपुच्छेहि बोहिं सोहम्मे कप्पे महाविदेहे वासे सिज्झिहिति। निक्खेवो॥ यजंभाहि य तिसिराहिय मिसिराहिय घिसराहि स विसिराहि | (सू० 26) विपा०१ श्रु०८ अ०। य हिल्लिरीहिय झिल्लिरीहिय जालेहिय गलेहिय कूडेपासेहि स्वनामख्याते अध्ययने, विपा०१श्रु०८ अ०। य वक्कबंधणेहि य सुत्तबंधणे हि य बालबंधणे हि य बहवे | सोरियपुर न० (शौर्यापुर) कुशावर्तजनपदप्रधाननगरे, प्रव० 273 द्वार। सण्डमच्छे य जाव पडागातिपडागे य गिण्हंति एगट्ठियाओ सूत्र० / उत्त०। आ० क० / विपा०। नि० चू०। आव०। ती०। नावा भरंति कूलं गाहंति मच्छखलए करेंति आयवंसि दलयंति, सोलग पुं०(सोलक) तुरगचिन्ताभियुक्ते, बृ०१उ०२प्रक०। अन्ने य से बहवे पुरिसा दिनभइमत्तवेयणा आयवतत्तएहिं सोलेहि सोलस त्रि० (षोडशन) षडधिकदशसंख्यायाम, प्रज्ञा० 15 पद। रा०। य तलेहि य भजेहि य रायमगंसि वित्तिं कप्पेमाणा विहरंति। सूत्र० / आगमैकदेशत्वादस्य षोडशकस्यापि नामस्थापनाद्रव्यक्षेत्र कालभावभेदात् षोडा निक्षेपः। तत्र नामस्थापने क्षुण्णे / द्रव्यषोडशकं अप्पणा वि य णं सोरियदत्ते बहूहिं सण्हमच्छेहि य जाव ज्ञशरीभव्यशरीरविनिर्मुक्तं सचित्तादीनि षोडश द्रव्याणि। क्षेत्रषोडशक पडागा० सोलेहि य भजेहि य सुरं च०६ आसाएमाणे० 4 षोडशाकाप्रदेशाः, कालषोडशकं षोडश समया एतत्कालावस्थायि वा विहरति। तते णं तस्स सोरियदत्तस्स मच्छंधस्स अन्नया कयाई द्रव्यमिति, भावषोडशकमिदमेवाध्ययनषोडशकं क्षायोपशमिकभावते मच्छसोल्ले तले भने आहारेमाणस्स मच्छकंटए गलए लग्गे मृत्तित्वादिति। सूत्र०१ श्रु०१ अ०१3०। 'सोलसवीसइवासपरमाआवि होत्था।तएणं से सोरियमच्छंधे महयाए वेयणाए अभिभूते उस'' इह कदाचित्षोडशवर्षाणि कदाचिन्न विंशतिवर्षाणि परमायुर्येषां ते समाणे कोडुबियपुरिसे सद्दावेति 2 वेत्ता एवं वयासी-गच्छह तथा। भ०१श०५ उ०। णं तुम्हे देवाणुप्पिया ! सोरियपुरे नगरे सं घाडग जाव पहेसु * षोडश त्रि० षोडशसंख्यापूरणे, प्रज्ञा० 15 पद। य महया 2 सद्देणं उग्घोसेमाणा 2 एवं वयह, एवं खलु देवाणु सोलसखुत्तोअव्य० (षोडशकृत्वस्) षोडशभेदनाश्रित्येयर्थे,भ०३५ श० प्पिया ! सोरियस्स मच्छकंटए गले लग्गे तं जो णं इच्छति १उ०। विज्जो वा०६ सोरियमच्छियस्स मच्छकंटयं गलाओ नीहरित्तते सोलसम त्रि० (षोडश) षोडशसंख्यापूरणे, स्था० 3 ठा० 4 उ०। तस्स णं सोरियदत्ते विउलं अत्थसंपयाणं दलयति। तते णं ते सोलसिया स्त्री० (षोडशिका) माणिकाया एव षोडशभागवर्तित्वात् कोडुंबियपुरिसा जाव उग्धोसंति / तए णं ते बहवे विजा य० षोडशपलप्रमाणा षोडशिका / अनु०। षोडशभागमाने मानविशेषे, भ० ६इमेयारूवं उग्घोसणं उग्घोसिज्जमाणं निसाति 2 मित्ताजेणेव ७श०८ उ०। सोरियदत्ते गेहे जेणेव सोरियमच्छंधे तेणेव उवागच्छंति बहूहिं सोलहविह त्रि० (षोडशविध) षोडशप्रकारे, स्था० 10 ठा०३ उ०। उप्पत्तियाहिं०४ बुद्धीहिय परिणममाणा वमणेहिय छडणेहिय | मोल्ल घाल पिच ओटनाटिरन्धन विपा० 1 03 अ०। "पचे: उव्वीलणेहिय कवलग्गाहेहिय सल्लुद्धरणेहि य विसल्लकरणेहि | सोल्ल-पउल्लो"TEO || इति पचेः सोल्लादेशः / य इच्छंति सोरियमच्छंधे मच्छकंटयं गलाओ नीहरित्तए, नो सोल्लइ / पचति / प्रा० / विपा०। चेव णं संचाएंति नीहरित्तए वा विसोहित्तए वा ।.तते णं बहवे * क्षिप् धा० प्रेरणे, "क्षिपेर्गलत्थाजक्खसोल्ल-पेल्ल-गोल्लविजाय०६ जाहे नो संचाएंति सोरियस्स मच्छकंटगं गलाओ छुह-हुल परिघत्ताः"||||१४३।। इति क्षिपतेः सोल्लादेशः। नीहरित्तए ताहे सताजाव जामेव दिसिंपाउन्भूया तामेव दिसिं सोल्लइ / क्षिपति। प्रा०। मांसे, पुं। दे० ना०५ वर्ग 44 गाथा। पडिगया। तते णं से सोरिय० मच्छ० विज० पडियारनिविण्णे | सोल्लिय त्रि० (शौल्य) शूलसंस्कृते, शूलिभिश्च घृतादिनाऽनौ संस्कृते, तेणं दुक्खेणं महया अभिभूते सुके जाव विहरति / एवं खलु | उपा / शूलपक्के, विपा०१ श्रु०८ अ०। कुसुमविशेषे, नपुं०। औ०।

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