Book Title: Abhidhan Rajendra Kosh Part 07
Author(s): Vijayrajendrasuri
Publisher: Rajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan
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________________ सोव 1168 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 7 सोव्वओ सोवधा० (स्वप) शयने, "स्वपावुच "||१|६४॥इति स्वपिते- 4 अधि० / रा० / स्था० / र्धातोरस्योत्। सोवइ / सुवइ / स्वपिति। प्रा०१ पाद। सोवत्थ (देशी) उपकारे, दे० ना०८ वर्ग 45 गाथा। सोवओगपुं० (सोपयोग) उपयोगसहिते, स्था०२ ठा०४ उ०1(उपयोग- | सोवत्थिय पुं० (सौवस्तिक) स्वस्तिवादके, औ०। मणिलक्षणविशेषे, वक्तव्यता 'उवओग' शब्दे द्वितीयभागे द्रष्टव्या।) रा००।द्वी०। जी०। पञ्चकमित्यन्ये। प्रासादविशेष इत्यपरे, ज्ञा० सोवक्कम न० (सोपक्रम) सहोपक्रमेणापवर्तनाकरणाख्येन वर्तत इति [.. १श्रु०१ अ०। त्रीन्द्रियभेदे, जी०१ प्रति०१अधि01 प्रज्ञा०। अङ्गारसोपक्रमः / कर्मभेदे, उत्त०५ अ०। आचा० / कर्मा द्विधा--सोपक्रम, कादिषु ग्रहेषु षष्टितमे महाग्रहे, चं० प्र०२०पाहु01 कल्प०। प्रश्न०। निरुपक्रमं च। तत्र यानि वैरादीनि सोपक्रमसाध्यानि तान्येव जिनाति दो सोवत्थिया। स्था०२ ठा०३ उ०। शयादुपशाम्यति सदौषधात्साध्यव्याधिवत्। विपा०१ श्रु०३ अ०। सोवत्थियकूड न० (सौवस्तिककूट) पूर्वरुचकपर्वतस्य षष्ठे कूटे, सोवक्कमाउस त्रि० (सोपक्रमायुष) अकालमरणधर्मसहिते, श्रा०। विद्युत्प्रभस्य वक्षस्कारपर्वतस्य तृतीये कूटे, स्था०६ ठा०३ उ०। सोपक्रमायुरिमाह सोवयार पुं०(सोपचार) वर्णाधुचितपरिणामे, विशे०1 अनिष्ठुराविरुद्धादेवा नेरझ्यावा, असंखवासाउआ अतिरिमणुया। लज्जनीयाभिधाने, स्था०७ ठा०३ उ०। अग्राम्याभिधानमितनियतउत्तमपुरिसा य तहा, चरमसरीराय निरुवकमा।। 75 // वर्णादिपरिणामे, आ० म०१अ०। अनु०। ग्राम्यभणितिरहिते, अनु०॥ देवानारकाश्चैते सामान्येनैव असंख्येयवर्षायुषश्च तिर्यड्यनुष्या एतेन सोवरी स्त्री० (शाम्बरी) शम्बरासुरीये विद्याभेदे, सूत्र०२ श्रु०२ अ01 सोवहि पुं० (सोपधि) मायाविनि परव्यंसके, दश०१ अ०। संख्येयवर्षायुषांव्यवच्छेदः। उत्तमपुरुषाश्चक्रवदियो गृह्यन्ते। चरम सोवहि त्रि० (सोपधिक) उपधीयते संगृह्यते इत्युपधिः, द्रव्यतो हिरण्यादि, शरीराश्चाविशेषेणैव तीर्थकरादयः निरुपक्रमा इत्येते निरुपक्रमायुष एव भावतो। माया सहोपधिना वर्तत इति सोपधिकः / आचा०१ श्रु० अकालमरणरहिता इति। 4 अ०१ उ०॥ द्रव्यभावोपधियुक्ते, आचा०१ श्रु०६ अ०१ उ०। पुष्ट, सेसा संसारत्था, भइया सोवक्कमा व इयरे वा। कल्प० 1 अधि० 6 क्षण। सोवकमनिरुवकम-भेओ भणिओ समासेणं / / 75 / सोवाग त्रि० (श्वपाक) चाण्डाले, स्था०४ ठा०४ उ०। व्य०॥ पं० चू०। शेषाः संसारस्थाअनन्तरोदितव्यतिरिक्ताः संख्येयवर्षायुषः अनुत्तम माजरि, आचा०१ श्रु०६ अ०४ उ०। पुरुषा अचरमशरीराश्च। एतेभाज्या-विकल्पनीयाः कथं सोपक्रमा वा सोवगकरंडय पुं० (श्वपाककरण्डक) चाण्डालपेट्याम्, स्था० 4 ठा० इतरेवा? कदाचित्सोपक्रमाः कदाचिन्निरुपक्रमाः, उभयमप्येतेषु संभव 4 उ०। तीति सोपक्रमनिरुपक्रमभेदो भणितः समासेन संक्षेपेण न तु कर्मभूम सोवागी स्त्री० (श्वपाकी) स्वपाकजातिप्रसिद्ध विद्याभेदे, सूत्र०२ श्रु० जादिविभागविस्तरेणेति / श्रा०। २अ०। सोवक्केस त्रि० (सोपक्लेश) सदुःखे गृहवासे, 'सोवक्केसे मिहिवासे | मोबाण नमोणन जन्नतारोहणमार्गविशेषे स०। निरुवक्केसे परिआए' उपक्लेशैः सह सोपक्लेशः-गृहाश्रमः।दश०१०। सोवीर न० (सौवीर) सिन्धुनदप्रतिबद्धेजनपदभेदे, सूत्र०१ श्रु०५ अ० सोवचलन० (सौवर्चल) लवणभेदे, सूत्र०१ श्रु०७ अ०। आचा० 1301 कल्प० / पज्ञा० / प्रव०। उत्त०। काञ्जिके, दर्श०४ तत्त्व। ग०। सोवट्ठाण त्रि० (सोपस्थान) सहोपस्थानेन धर्मचरणाभासोद्यमेन सह कल्प०1 पञ्चा० / पिं०। प्रव०। आरनाले, आचा०२ श्रु०१चू०१० वर्त्तन्ते इति सोपस्थानाः। वयमपि प्रव्रजिताः। सदसद्धर्मविशेषविकला 7 उ० / उत्त०। पा० / अम्ले, उत्त० 15 अ०। स्था० / मध्यमग्रमस्य इति सावद्यारम्भतया वर्तमानेषु, आचा०१ श्रु०५ अ०६ उ०। षष्ठ्या मूर्छनायाम्, स्त्री० स्था०७ ठा०३ उ०। सोवण (देशी) वासगृहे, दे० ना०५ वर्ग 58 गाथा। सोवीरगन० (सौवीरक) मद्यभेदे, “सोवीरयं पिट्टवजिय जाणे" पिष्टवसोवणिय त्रि० (शौवनिक) श्वभिश्चरतीतिशौवनिकः / क्रूरसारमेयपरिग्रहे र्जितं द्राक्षाखर्जूरादिभिर्द्रव्यैर्निष्पाद्यमानं सौवीरकं विजानीयात्। वृ०४ पुरुष, सूत्र०२ श्रु०२ अ०। श्वपाके, सूत्र०२२०२ अ०। उ० / सोवीरयं रसंजणं वा ते पुढविपरिणामा वणिया, जेण सुवण्णं सोवण्ण त्रि० (सौवर्ण) सुवर्णमये आभूषणादौ, स्था०६ ठा०३ उ०। वणिजति ! नि० चू०४ उ०। सोवण्णमक्खिय (देशी) मधुमक्षिकाभेदे, दे० ना०८ वर्ग 46 गाथा। सोवीरिणी स्त्री० (सौवीरिणी) रसिन्यां सुरायाम, बृ० 1 उ०२ प्रक० सोवण्णिय त्रि० (सौवर्णिक) सुवर्णमये आभूषणादौ, जी० 3 प्रति० | सोव्वओ (देशी) पतितदन्ते, दे० ना०८ वर्ग ४५गाथा।

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