Book Title: Abhidhan Rajendra Kosh Part 07
Author(s): Vijayrajendrasuri
Publisher: Rajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan
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________________ सोत्तिय 1158 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 7 सोमणस सोत्तिय त्रि० (सौत्रिक) सूत्रं पण्यमस्येति सौत्रिकः। सूत्रक्रयविक्रयकारिणि, | सोभित्ता अव्य० (शोभयित्वा) विधिवत्करणेन शोभां कृत्वेत्यर्थे, कल्प० अनु० जीवा०। 3 अधि०६ क्षण। *शौक्तिक पुं० द्वीन्द्रियभेदे, प्रज्ञा० 1 पद। सोभिय त्रि० (शोभित) तत्समाप्तौ गुर्वादिप्रदानशेषभोजनासेवनेन शोभां सोत्तियमई स्वी० (शौक्तिकवति) केकयार्द्धजनपदार्द्धराजधान्याम्, प्रापिते अतिचारवर्जनेन कृतशोधे, स्था० 7 ठा०३ उ० / रा०। प्रज्ञा० 1 पद। आ० चू०। सोत्थिय पुं०(स्वस्तिक) लोकप्रसिद्ध माङ्गलिके चिहभेदे, रा०। प्रश्न०। / सोम पुं० (सोम) चतुर्थबलदेववासुदेवयोः पितरि, आव०१०।स्था०। जं०। प्रज्ञा०।आ० म०। अष्टासीतिमहाग्रहेषु षष्टितमे ग्रहे, स्था०२ ठा० ति०। यज्ञेषु देवपेये लताविशेषे, 'अपाम सोमममृता अभूवम्' / आ० म० 3 उ० आ० म०। सू० प्र०। आ० चू०। चं० प्र०। 1 अ० / तद्रसे, विशे० / चन्द्रे, जं०७ वक्ष० ! ज्यो० / चं० प्र० / दो सोत्थिया। स्था०२ठा०३ उ01 मृगशिरोनक्षत्रस्याधिपः सोमः / ज्यो०६ पाहु० / सू० प्र० / अनु० / सोत्थियकूड न० (स्वस्तिककूट) जम्बूद्वीपे मन्दरस्य दक्षिणे रुचकवर- स्था०। अष्टाशीतिग्रहेषु द्वादशे महाग्रहे,जं०७ वक्ष०। सू०प्र०। कल्प० / पर्वतस्य प्रथमे कूटे, स्था०८ ठा०३ उ०। द्वी०। चं० प्र०। शक्रस्य देवेन्दस्येशानस्य चस्वनामख्याते उत्तरदिग्लोकपाले सोदयबंधिणी स्त्री० (स्वोदयबन्धिनी) स्वस्योदय एव बन्धो यासां चमरस्यासुरेन्द्रस्येन्दे, भ० 3 श०७ उ०। आ० म० / ग० / स्था०। तास्तथा। तथाविधासु कर्मप्रकृतिषु, पं० सं०३ द्वार। (वक्तव्यताऽस्य 'लोगपाल' शब्दे षष्ठे भागे गता।) (अस्याग्रभहिष्यः सोदर पुं०(सोदर) एकमातृके, उत्त०२२१०। 'अग्गमहिसी' शब्दे प्रथमभागे 171 पृष्ठे उक्ताः।) पार्श्वस्वामिनः पञ्चमे सोदामिन् पुं० (सौदामिन्) चमरस्यासुरेन्द्रस्याश्वानीकाधिपतौ, स्था० गणधरे, कल्प०१ अधि०७ क्षण / स्था०। शान्तदृष्टौ, प्रव०६५ द्वार। 5 ठा०१ उ०1 शान्ताकृती, व्य०६ उ० / सुभगे, जं०१ वक्ष०। रा०! अरौद्राकारे, सोदामिणी स्त्री० (सौदामिनी) विद्युति, औ० / विदिगुचक वास्तव्यायां रा०ासू०प्र०। विपा०।जंगानीरोगे च। भ०१२श०६ उ० उत्तमया दिक्कुमारीमहत्तरिकायाम्, जं०५ वक्ष०। कीर्त्या सहिते, कल्प०१ अधि०३क्षण। गुर्जरधरित्रीपण्डलीमहानगर्याः सोदासपुं० (सौदास) स्वनामख्याते मांसप्रिये राजनि, आ० चू०५अ० / श्रीमद्वीसलदेवराजस्य पुरोहिते, ती० 41 कल्प / चम्पावास्तव्ये आ० क० / आ० म० 1 जिह्वेन्द्रिये उदाहरणम् / आ० चू० 1 अ० / स्वनामख्याते ब्राह्मणे, ज्ञा०१ श्रु०१६ अ०। ('दुवई शब्दे चतुर्थभागे आचा० / आ० क०। 2577 पृष्ठे कथा गता। कोडीनगरवासिनि स्वनामख्याते ब्राह्मणे, ती० सोहपुं० (शौद्र) शुष्ककाष्ठे, बृ०२ उ०। 55 कल्प। ('कोहंडिदेव' शब्दे तृतीयभागे 684 पृष्ठे कथा।) सोपारग पुं० (सोपारक) स्वनामख्याते समुद्रतटीयनगरे, आ० म०१ | सोमंगलग पुं० (सौमङ्गलक) द्वीन्द्रियजीवभेदे, जी० 1 प्रति० / प्रज्ञा०| अ०। आ० क० / उज्जेणी नगरी, जितसत्तू राया , तस्स अट्टणो मल्लो, सोमकाइय पुं० (सोमकायिक) सोमस्य कायो निकायो येषामस्ति ते सव्वरज्जेसु अजेयो। इतोय समुद्दतडेसोपारगं नगरं तत्थसीयगिरी राया। सोमकायिकाः। सोमपरिवारभूतेषु देवेषु, भ०३ श०७ उ०। आ० चू० 4 अ०1 सोमचंदपुं० (सोमचन्द्र) भरतक्षेत्रजसुपार्श्वजिनकालिकैरवतजे तीर्थकरे, सोप्पासन० (सोत्प्रास) उत्प्रासयुक्ते गाने, स्था०७ ठा०३ उ०॥ ति०। प्रव०।स०। स्वनामख्याते शिवचन्द्रनृपपुत्रे, ध०२०। (अस्य सोभग्ग न० (सौभाग्य) सुभगत्वे, प्रज्ञा० 34 पद। वृत्तम् 'सिवभद्द' शब्देऽस्मिन्नेव भागे गतम्।) स्वनामख्याते पोतनपुरसोभग्गकरन० (शौभाग्यकर) एकचत्वारिंशे कलाभेदे, स०७२ समका राजे, आ० चू०१०॥ सोभग्गसुंदरी स्त्री० (सौभाग्यसुंदरी) इभ्यश्रेष्ठिनः पुत्रस्नुषायाम्, आ० | सोमचंदसूरि पुं० (सोमचन्द्रसूरि) तपागच्छीये श्रीरत्नशेखरसूरिशिष्ये, क०१ अ०॥ येन विक्रम-१५०४ वर्षे कथामहोदधिनामग्रन्थो रचितः / जै० इ० / सोभग्गसेवहि पुं० (सौभाग्यसेवधि) सौभाग्यनिधौ, कल्प०१ अधि०७ | सोमजसा स्त्री० (सोमयशस्) सौर्यपुरे यज्ञयशसस्तापसस्यपुत्रस्नुषायाम् क्षण। आव० 4 अ०। आ० क० आ० म०। आ० चू०। द्वी०। सोभण न० (शोभन) सुन्दरे, सूत्र०२ श्रु०१ अ०। जी०। कल्प०। सोमणतिय न० (स्वप्नान्तिक) स्वप्नस्य स्वप्नक्रियाया अन्ते अवसाने सोभद्दपुं० (सौभद्र) सुभद्रात्मजे चम्पानगरीवास्तव्यस्य कौशिकाचार्यस्य भवं स्वप्नान्तिकम् / स्वप्नविशेषे क्रियमाणे प्रतिक्रमणभेदे, स्था०६ शिष्ये, आ० चू० 4 अ०। ('अज्जव' शब्दे प्रथमभागेऽस्य कथा।) ठा०३ उ०॥ सोभावजण न० (शोभवर्जन) विभूषापरित्यागे, दश०६ अ०। सोमणस न० (सौमनस्य) शोभनं मनो यस्यासो समुनास्तस्य

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