Book Title: Abhidhan Rajendra Kosh Part 07
Author(s): Vijayrajendrasuri
Publisher: Rajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan
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________________ सेह 1152- अभिधानराजेन्द्रः - भाग 7 सेहभूमि वणं कुजा, अणुन्ना गणिवायए ' / / 26 / 872 / / द०५०। आचा०। लघुसाधौ, कल्प०३ अधि०६ क्षण / नि० चू० / अल्पपर्याये, दशा० 3 अ० प्रथमकल्पिके साधौ, ध०३ अधि०। शिक्षा साधौ, ध० 3 अधि० / ग०। बृ०॥ *णश् धा० अदर्शने, "णशेर्णिरिणास-णिवहावसेह-पडिसासेहावहराः ||4|178|| इति णश्धातोः सेह इत्यादेशः / सेहइ। नश्यति। प्रा०४ पाद।" सेहट्ठवणाकप्प पुं० (शैक्षस्थापनाकल्प) अभिनवशिष्यप्रव्राजनायाम्, सेहट्टवणाकप्पो नाम अट्ठारसपुरिसेसुं वीसुंइत्थीसुं पुव्वभणियजीवदवियकप्पे एए जो पव्वावेइ सो सेहट्ठवणाकप्पो। पं० चू०२ कल्प। सेहणन० (शिक्षण) ग्रहणासेवनाभ्यासे, सूत्र०१ श्रु०२ अ०१ उ०। सेहणिक्खमण न० (शैक्षनिष्क्रमण) शिष्यस्य प्रव्रजने, द०प०। पढमी पञ्चमी दसमी, पन्नरसिकारसीविय तहेव। एएसु य दिवसेसुं सेहे निक्खमणं करे। 8/954| द०प०। नंदे जएय पुन्ने, सेहनिक्खमणं करे। (1101855 द०प०१) तिहिं उत्तराहिँ,रोहिणीहिं, कुज्जा उसेहनिक्खमणं / सेहोवठ्ठावणं कुजा, अणुन्ना गणिवायए।२६।८७२द०प०। सेहणिप्फेडण न० (शैक्षनिष्फेटन) शिष्यापहारे, द०प०। पढमी पश्चमी दसमीए, पन्नरसिकारी दिय। तह एएसु दिवसेसुं, सेहणिप्फेडणं करे। द०प०। सेहणिप्फेडिया स्त्री० (शैक्षनिष्फेटिका) शैक्षकस्य दीक्षितुमिष्टस्य निष्फेटिका-अपहरणम्। तद्योगाद्यो मातापित्रादिभिरननुज्ञातोऽपहृत्य दीक्षितुमिष्यते सोऽपि शैक्षनिष्फेटिकः / ग०१ अधि०। दीक्षितुमिष्टस्यापहरणे, ध० 3 अधि० / नि० चू० / तदपहरणकर्तरि, त्रि० / ग०१ अधि०। इयाणिं सेहणिप्फेडिताततियव्वयाइयारे, निप्फेडगतेणियं वियाणाहि। अतिसेसियम्मि भयणा, अमूढलक्खे य पुरिसम्मि।। 43 // सेहणिप्फोडियं जो करेति से ततियं वयं अदिण्णादाणवेरमणं अतिचरति,तं केरिसं कहं वा णिप्फेडतो ततियव्वतं अतिचरति? गाहाअपडप्पण्णो वालो, वरिट्ठवरिसूणों अहव अणिविट्ठो।। अम्मापितुअविदिण्णो,ण कप्पती तत्थ वाऽण्णत्थ।। 435 // अपडुप्पन्नो अट्ठवरिसो किंवाऽधिको वा अट्ठवरिसूणं वा सोलसवरिसूणं वा अवंजणं जातं, अहवा–अणिविट्ठ अविवाहितं तहप्पगारं अम्मापितिअविदिन्नं तत्थ वा गामे अन्नत्थ वाण कम्पति पव्वावेतुं। अह निप्फेडितो तं निप्फेडगतेण वियाणाहि। इमो एत्थ तेणगविगप्पो। गाहातेणे य तेणयेणे, अपडिच्छग पडिच्छगे य णायव्वं / एते तु सेहणिप्फे-डियाएँ चत्तारि उ विगप्पा॥ 436 / / इमं वक्खाणं / गाहा जो तं उप्पासयए, से तेणे होति लोगउत्तरिते। भिक्खातिए गतंमि उ, हरमाणो तेणतेणो उ॥ 437 // अपडुप्पन्नं बालं हरंतो तेणो, से तेणो तं सेहं बाहिं गामादियाण ठवेत्ता अप्पणा भिक्खस्स पविट्ठो, एत्थंतरे जो तं सेहं अण्णो उप्पासेत्ता हरति सो तेणतेणो (नि० चू०) (प्रतिच्छकविषयः ‘पडिच्छग' शब्दे पञ्चमभागे गतः।) सेहनिप्फेडियं करेंतस्स चउगुरुं आणादिया य दोसा, इमे य। गाहाअम्मापियरो कस्स वि, विपुलं घेत्तूण अत्थसारं तु / रायादीणं कहिए, कढणम्मिय गिण्हणादीया।। 436 / / गाहाविपरिणमेजा सण्णी, केई संबंधिणो भवे तस्स। विपहिणताए धम्म,सुएज कुजा व गहणादी॥ 40 // णिप्फेडण सेहस्स उ, सुयधम्मो खलु विराहितो होति। सुयधम्मस्स व लोवा, चरित्तलोवं वियाणाहि॥४१॥ सेयमवहडं नाउं सन्नी विपरिणमेजा सेहस्सवा संबंधी ते य विपरिणता धम्म सुएज्जा, रायमादिएहिं वा गहणादि कारवेजा। गाहाआयरिय उवज्झाया, कुलगणसंघो य धम्मो य। सवेऽवि परिचत्ता, सेहं णिप्फेडयंतेण / / 442 / / रायादिरुट्ठीततेसिं कड़गम करेज तम्हा मातापियरेण अदत्ता सेहणिप्फेडिया ण कायव्वा / बितियपदेण वा करेजा। अतिसेसगंमि भयणेति अस्य व्याख्या। गाहाहोहिति जुगप्पहाणो, दोसा विन केवि तत्थ होहिंति। तेणऽतिसेसा दिक्खे, अमोहहत्थे य तत्थेव / / 43|| जो ओहिमादीअतिसएण जाणति एस नित्थारगो जुगप्पहाणो होहिति, दोसा य ण केऽवि भविस्संति तेण अतिसयी दिक्खति / अह जाणति होहिंति दोसा तो ण पव्वावेति। एस भयणा 'अमूढलक्खो व आयरिओ' अमोहहत्थो जं जं पव्वावेति सो अवस्सं णित्थरति न य केऽवि दोसा उप्पचंतितं च नान्यत्र नयंतीत्यर्थः / सेहणिप्फेडिता अट्ठारसपुरिसुत्ति गतं! नि० चू० 11 उ०। पं० भी०। पं० चळू तोसलिपुत्राऽऽचार्येणार्यरक्षिताचार्यश्वारित इति प्रथमशैक्षनिष्फेटितेति / आ० क 01 अ०॥ ('अणवठ्ठप्प' शब्दे प्रथमभागे शैक्षचौर्यमुक्तम्।) सेहभूमि स्त्री० (शैक्षभूमि) शिष्यस्य महाव्रतारोपणकाले, व्य०। तओ सेहभूमिओ पण्णत्ताओ, तं जहा-सत्तराईदिया, चाउम्मासिया, छम्मासियायाछम्मासिया उक्कोसिया, चाउम्मासिया मज्झिमिया, सत्तराईदिया जहन्निया।। (सू०१५) अस्य संबन्धमाह-- तुल्लाउ भूमिसंखा, ठिया व ठावेंति ते इमे हुंति। पडिवक्खतो व सुत्तं, परियाए दीहहस्से य॥५०॥ तुल्या भूमिसंख्या शैक्षकाणामिति कृत्वा, अथवा-पूर्व

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