Book Title: Abhidhan Rajendra Kosh Part 07
Author(s): Vijayrajendrasuri
Publisher: Rajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan

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Page 1166
________________ सेढी 1142 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 7 सेढी do प० ओ दव्याट्टयाए किंसंखेज्जाओ एवं चेव 3, एवं दाहिणुत्तरायताओ __ कडजुम्मिया जुत्ता // 3 // " विएवं उडमहायताओ वि। लोगागाससेढीओणं भंते ! दव्वट्ठयाए एवं च लोकवृत्तपर्यन्तश्रेणयः संयातप्रदेशात्मिका भवन्तीति 'नो अणं किं संखेजाओ असंखेज्जाओ अणंताओ ? गोयमा ! नो ताओ' त्ति लोकप्रदेशानामनन्तत्वाभावात्, "उड्ढमहाययाओ' 'नो संखेजाओ असंखेजाओ नो अणंताओ, पाईणपडीणायताओ | संखेज्जाओ असंखेज्जाओ त्ति यतस्ता पू० णं भंते! लोगागाससेढी ओ दवट्ठयाए किं संखेज्जाओ एवं चेव, सामुच्छितानामूर्ध्वलोकान्तादधोलो 00000 एवं दाहिणुत्तराययाओ वि, एवं उड्डमहायताओ वि। अलोयागा- कान्तेऽधोकान्तादूर्ध्वलोकान्ते 0000000 ससेढीओ णं भंते ! दव्वट्ठयाए किं असंखेज्जाओ, असंखेज्जाओ प्रतिघातोऽतस्ता असंख्यातप्रदेशा 00000000000 अणंताओ? गोयमा ! नो संखेज्जाओ, नो असंखेजाओ अणं- एवेति, या अप्यधोलोककोणता ब्रह्म 00000000000 00000000000 ताओ। एवं पाईणपडीणाययाओ वि एवं दाहिणुत्तराययाओ वि लोकतिर्यग्मध्यप्रान्ताद्वोत्तिष्ठन्ते ता | 00000000000 एवं उद्यमहायताओ वि / सेढीओ णं भंते ! पएसट्ठयाए किं अपिनसङ्ख्यातप्रदेशालभ्यन्ते, अत 0000000 00000 संखेजाओ जहा दव्वट्ठयाए तहा पएसट्टयाए वि०जाव उड्डमहा- एव सूत्रवचनादिति / 'अलोगागासययाओ वि सव्वाओ अणंताओ। लोयागाससेठीओ णं भंते ! सेढीओ णं भंते ! पएसट्टयाए' इत्यादि, पएसट्ठ० किं संखेज्जाओ पुच्छा गोयमा! सिय संखे० सिय असं० 'सिय संखेज्जाओ सि असंखेजाओ' ति यदुक्तं तत्सर्वं क्षुल्लकनो, अणंताओ, एवं पाईणपडीणायताओ दाहिणुत्तरायताओ वि प्रतरप्रत्यासन्ना ऊर्ध्वाधआयता अधोलोक श्रेणीराश्रित्येत्यवसेयं, ताहि एवं चेवं उड्ढमहायताओ वि नो संखेजाओ असंखे० नो आदिमाःसंख्यातप्रदेशास्ततोऽसंख्यातप्रदेशास्ततः परंत्वनन्तप्रदेशाः, अणंताओ।। अलोगागाससेढीओ णं भंते ! पएसट्ठयाए पुच्छा, तिर्यगायतास्त्वलोकश्रेणयः प्रदेशतोऽनन्तता एवेति। गोयमा! सियसंखेजाओ सिय असंखे० सिय अणंताओपाईण- सेढीओणं भंते! किसाइयाओ सपज्जवसियाओ-१,साईयाओ पडीणाययाओ णं भंते ! अलोया पुच्छा, गोयमा!नो संखेज्जाओ अपञ्जवसि०२ अणादीयाओ (अत्र दीर्घत्वं चिन्त्यम्।) सपज्जनो असंखेजाओ अणंताओ, एवं दाहिणुत्तरायताओ वि, उड्डम- वासियाओ३ अणादीयाओ अप०५,? गोयमा! नो सादीयाओ हायताओ पुच्छा, गोयमा! सिय संखेजाओ सिय असंखेजाओ सप० नो सादीयाओ अप०णो अणादीयाओसप० अणादीयाओ सिय अणंताओ। (सू०७२८)। अप० एवं जाव उड्डमहायताओ, लोयागाससेढीयाओ णं भंते ! 'सेढी' त्यादि, श्रेणीशब्देन च यद्यपि पङ्क्तिमात्रमुच्यते तथाऽपीहा- किं सादीयाओ सप० पुच्छा, गोयमा! सादीयाओ सपज्जवसिकाशप्रदेशपङ्क्तयः श्रेणयो ग्राह्याः, तत्र श्रेणयोऽविवक्षितलोका- याओनो सादीयाओ अपञ्जवसियाओ नो अणादीयाओ सपञ्जव० लोकभेदत्वेन सामान्याः 1 तथा ता एव पूर्वापरायताः२ दक्षिणोत्तरायताः नो अणादीयाओ अपज्ज० एवं जाव उडमहायताओ / ३ऊर्ध्वाधआयताः 4 एवं लोकसम्बन्धिन्योऽलोकसम्बधिन्यश्चेति, अलोयागाससेढीओ णं भंते ! किं सादीयाओ सप० पुच्छा, तत्र सामान्ये श्रेणीप्रश्ने 'अणंताओ' ति सामान्याकाशास्तिकायस्य गोयमा ! सिय साईयाओ सपज्जवसियाओ 1 सिय साईयाओ श्रेणीनां विवक्षितत्वादनन्तास्ताः, लोकाकाशश्रेणीप्रश्ने त्वसङ्ख्याता अपज्जवसियाओ 2 सिय अणादीयाओ सपज्जवसियाओ 3 सिय एवंताः, असङ्ख्यातप्रदेशात्मकत्वाल्लोकाकाशस्य, अलोकाकाश- अणाईयाओ अपज्जवसियाओ ,पाईणपडीणाययाओदाहिणुत्तश्रेणीप्रश्ने पुनरनन्तास्ताः, अनन्तप्रदेशात्मकत्वादलोकाकाशस्य।तथा रायताओ य, एवं चेव, नवरं नो सादीयाओ सपज्जवसियाओ 'लोगागाससेढीओणं भंते ! पएसट्टयाए' इत्यादौ 'सिय संखेज्जाओ सिय सिय साईयाओ अपजवसियाओ सेसं ते चेव, उड्डमहायताओ असंखेजाओ' त्ति अस्येयं चूर्णिकारव्याख्यालोकवृत्तान्निष्क्रान्तस्या- जाव ओहियाओ तेहेव चउमंगो। सेढीओ णं भंते !दव्वट्ठयाए लोके प्रविष्टस्य दन्तकस्य याः श्रेणयस्ता द्वित्रादिप्रदेशा अपि संभवन्ति किं कडजुम्माओ तेओयाओ ? पुच्छा, गोयमा! कडजुम्माओ तेन ताः सङ्ख्यातप्रदेशा लभ्यन्ते शेषा असङ्ख्यातप्रदेशा लभ्यन्त नो तेओयाओ नो दावरजुम्माओ नो कलियोगओ एवं जाव इति, टीकाकारस्तु साक्षेपपरिहारं चेह प्राह-"परिमंडलजहन्नं, भणियं उडमहायतयाओ,लोगागाससेठीओ एवं चेव, एवं अलोगागासकडजुम्मवट्टियं लोए। तिरियाययसेढीणं, संखेजपएसिया किह णु ? सेढीओ वि / सेठीओ णं मंते ! पएसद्वाए किं कडजुम्माओ // १॥दो दो दिसासु एक्के-क्कओय विदिसासु एस कडजुम्मे। पढमपरि- पुच्छा, एवं चेव एवं जाव उड्डमहायताओ। लोगागाससेढीओ मंडलाओ, बुड्डी किर जाव लोगंतो॥२॥" इत्याक्षेपः, परिहारस्तु- णं मंते ! पएसट्ठायाए पुच्छा, गोयमा ! सिय कडजुम्माओ "अढ सया पसज्जइ, एवं लोगस्सन परिमंडलया। वट्टालेहेण तओ, वुड्डी नो तेओयाओ सिय दावरजुम्माओ नो कलिओगाओ

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