Book Title: Sramana 1998 10
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण ŚRAMANA (A Quarterly Research Journal of Jain Studies) ||आ साथ हारजा सहड विद्यापील पार्श्वनाथ सा विज्जा जा वाराणसी दुक्रवमायण Vol. 49 No. 10 - 12 OCTOBER - DECEMBER 1998 चमड शाशाख दादचा कण पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी PĀRSVANATHA VIDYAPITHA, VARANASI सच्चे खु भगव Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण - पार्श्वनाथ विद्यापीठ की त्रैमासिक शोध-पत्रिका अंक १०-१२ अक्टूबर- दिसम्बर १९९८ - प्रधान सम्पादक प्रोफेसर सागरमल जैन सम्पादक डॉ० शिवप्रसाद प्रकाशनार्थ लेख-सामग्री, समाचार, विज्ञापन एवं सदस्यता आदि के लिए सम्पर्क करें सम्पादक श्रमण पार्श्वनाथ विद्यापीठ आई० टी० आई० मार्ग, करौंदी _पो० आ०- बी० एच० यू० वाराणसी 221005 ( उ० प्र०) दूरभाष : 316521, 318046 फैक्स : 0542- 318046 ISSN 0972-1002 वार्षिक सदस्यता शुल्क संस्थाओं के लिए रु० 150.00 व्यक्तियों के लिए : रु० 100.00 इस अंक का मूल्य : रु० 50.00 आजीवन सदस्यता शुल्क संस्थाओं के लिए : रु० 1000.00 व्यक्तियों के लिए : रु० 500.00 नोट : सदस्यता शुल्क का चेक या ड्राफ्ट पार्श्वनाथ विद्यापीठ के नाम से ही भेजें। Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्पादकीय प्रथम वर्ग में लेखों को पार्श्वनाथ विद्यापीठ (पूर्व पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान) द्वारा गत ४९ वर्षों से निरन्तर श्रमण नामक शोध पत्रिका का प्रकाशन होता आ रहा है। इसमें जैनधर्म-दर्शन के विविध पक्षों के महत्त्वपूर्ण लेखों का विशाल संग्रह अब तक प्रकाशित हो चुका है। पहले यह शोध पत्रिका मासिक प्रकाशित होती रही परन्तु अब १९९० से यह त्रैमासिक रूप में प्रकाशित हो रही है। बहुत समय से सुधी पाठकों की मांग थी की श्रमण में प्रकाशित लेखों की सूची का प्रकाशन हो जिससे विद्वत्जन अपने अनुकूल विषयों के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त कर सकें। पार्श्वनाथ विद्यापीठ के पूर्व निदेशक और वर्तमान में मार्गदर्शक प्रो० सागरमल जैन की प्रेरणा से यह कार्य प्रारम्भ किया गया। वर्ष क्रमानुसार रखा गया है। द्वितीय वर्ग में लेखकों का करते हुए उनके लेखों की अकारादिक्रम से सूची दी गयी है जिसे श्रमण के अप्रैल-सितम्बर १९९८ के अंक में हम प्रकाशित कर चुके हैं। इस अंक में श्रमण में प्रकाशित लेखों को विषयानुक्रम से रखा गया है। इसके अन्तर्गत सात खण्ड हैं। प्रथम खण्ड में दर्शन - तत्त्वमीमांसा और ज्ञान मीमांसा; दूसरे खण्ड में धर्म, साधना, नीति एवं आचार, तीसरे खण्ड में आगम एवं साहित्य; चौथे खण्ड में इतिहास, जैन पुरातत्त्व एवं कला; पांचवें खण्ड में समाज एवं संस्कृति; छठे खण्ड में तुलनात्मक विषयों और अन्तिम खण्ड में शेष विविध विषयों को रखा गया है। वर्ण क्रमानुसार वर्गीकरण इस सूची को तैयार करने में मुझे विद्यापीठ के प्रवक्ता डॉ० विजय कुमार जैन, डॉ० सुधा जैन और डॉ० असीम कुमार मिश्र से सहयोग प्राप्त हुआ है। अक्षर सज्जा राजेश कम्प्यूटर्स एवं मुद्रण कार्य डिवाइन प्रिंटर्स ने पूर्ण किया है। मैं इन सभी का हृदय से आभारी हूँ । इस सूची को तैयार करने में जो भी त्रुटियां रह गयी हैं उनके लिए पाठक क्षमा करने की कृपा करेंगे ऐसी प्रार्थना है। शिव सम्पादक Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण विषयानुसार लेख सूची - - - - - Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण श्रमण अतीत के झरोखे मे संकलनकर्ता डॉ० शिवप्रसाद डॉ० विजय कुमार जैन डॉ० सुधा जैन डॉ० असीम कुमार मिश्र प्रस्तुत अङ्क में १. श्रमण : विषयानुसार लेख सूची (१) दर्शन-तत्त्व मीमांसा और ज्ञान मीमांसा (२) धर्म, साधना, नीति एवं आचार (३) आगम और साहित्य (४) इतिहास, पुरातत्त्व एवं कला (५) समाज एवं संस्कृति (६) तुलनात्मक (७) विविध २. साहित्य सत्कार ३. जैन जगत् ३४९-३६७ ३६८-३८९ ३९०-४१९ ४१९-४३९ ४३९-४७६ ४७७-४८२ ४८२-४९२ १-९ ९-१८ Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४२ श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक वर्ष अंक ई० सन् पृष्ठ २८ २२ ३१-३४ १७-२२ १९ ___ १. दर्शन-तत्त्व मीमांसा और ज्ञान मीमांसा अकलंकदेव की दार्शनिक कृतियाँ डॉ० मोहनलाल मेहता अजीवद्रव्य श्री हुकुमचन्द्र संगवे अध्यात्मवाद और भौतिकवाद डॉ० सागरमल जैन अध्यात्मवाद : एक अध्ययन श्री देवेन्द्रमुनि शास्त्री अध्यात्मवादियों से पं० उदय जैन अन्त: प्रज्ञाशक्ति दर्शनाचार्य मुनि योगेश कुमार अतयात्रा मुनि राजेन्द्रकुमार 'रत्नेश' अन्तरालगति डॉ० बशिष्ठनारायण सिन्हा अनेकान्त : अहिंसा डॉ० जगदीशचन्द्र जैन अनेकान्त अहिंसा का व्यापक रूप अनेकान्त एक दृष्टि श्री ऋषभचंद जैन ‘फौजदार' अनेकान्त दर्शन मुनिश्री नगराज जी अनेकान्तवाद डॉ० प्रतिभा जैन अनेकान्तवाद और उसकी व्यावहारिकता डॉ० विजय कुमार अनेकान्तवाद की व्यावहारिक जीवन में उपयोगिता शीतलचंद जैन ३९ २८ १९७७ १९७१ १९८० १९६७ १९७१ १९८५ १९८८ १९७७ १९६२ १९६२ १९८० १९८९ १९८३ १९९६ १९८० १४ ५४-६४ १८-२४ २-४ १९-२१ ८-१३ ७-८ ५१-५२ १०-१२ ९-१० २-९ १३-३५ २३-२७ a my ३४ ४७ ५ १०-१२ १० ३१ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५० वर्ष अंक श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक डॉ० सनत् कुमार जैन श्री देवेन्द्र कुमार श्री कस्तूरमल बांठिया श्री श्रीप्रकाश दुबे प्रो० कल्याणमल लोढ़ा s - 9 ई० सन् १९८१ १९५४ १९६८ १९६२ १९९१ पृष्ठ १८-१९ ३१-३३ ७-११ ६-८ १-१० १९८ ४-६ ४४ १०-१२ लेख अनेकान्तवाद की व्यावहारिक जीवन में उपयोगिता अपने को जानिये अभव्यजीव नवौवेयक तक कैसे जाता है ? अरविन्द का अनेकान्त दर्शन अहँ परमात्मने नमः अशोक के अभिलेखों में अनेकांतवादी चिन्तन : एक समीक्षा असंयत जीव का जीना चाहना राग है आकाश आगम साहित्य में कर्मवाद आचार्य दिवाकर का प्रमाण : एक अनुशीलन आचार्य हरिभद्रसूरि का दार्शनिक दृष्टिकोण आचारांग का दार्शनिक पक्ष आचारांग की दार्शनिक मान्यतायें आचारांग में उल्लेखित ‘परमत' आचारांग में सोऽहम् की अवधारणा का अर्थ । आत्म-अनात्म द्वन्द्वात्मिकी डा० अरुणप्रताप सिंह प्रो० दलसुख मालवणिया डॉ० मोहनलाल मेहता ८-१३ ३-६ ५-७ ४-१२ ३-६ mry ~ * * * * * * * * * * * १९९३ १९५३ १९६९ १९७१ १९६५ १९७१ १९८७ १९५३ १९६६ १९८४ १९८७ डॉ० श्रीरंजन सूरिदेव कु० सुशीला जैन स्व० डॉ० परमेष्ठी दास जैन डा० इन्द्र पं० बेचरदास दोशी मुनि योगेश कुमार संन्यासी राम १९-२३ १-११ २१-२४ ११ १९४० ९-१९ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ga » or my लेख आत्म परिमाण (विस्तार क्षेत्र) जैन दर्शन के सन्दर्भ में आत्मबोध का क्षण आत्म विज्ञान आत्मा और परमात्मा तु आत्मा का बल आत्मा की महिमा आधुनिक सन्दर्भ में जैन दर्शन आप सम्यग् दृष्टि हैं या मिथ्या दृष्टि आस्रव व बंध . आस्तिक और नास्तिक इन्द्रिय निग्रह से मोक्ष-प्राप्ति ईश्वर और आत्मा : जैन दृष्टि ईश्वरत्व: जैन और योग-एक तुलनात्मक अध्ययन उच्चगोत्र और नीचगोत्र उत्तराध्ययन का अनेकान्तिक पक्ष उत्तराध्ययन में मोक्ष की अवधारणा उपासकदशांगसूत्र का आलोचनात्मक अध्ययन श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक मुनि योगेश कुमार आचार्य आनन्द ऋषि ३४ श्री गोपीचन्द धारीवाल १६ डॉ० सागरमल जैन ३१ श्री किशोरीलाल मशरूवाला श्री जयभगवान जी एडवोकेट श्री बृजकिशोर पाण्डेय प्रो० इन्द्रचन्द्र शास्त्री २ श्री गोपीचन्द धारीवाल १७ डॉ० इन्द्र ५ श्री कृष्ण 'जुगनू' डॉ० श्रीरंजन सूरिदेव डॉ० ललितकिशोरलाल श्रीवास्तव ४१ डॉ० मोहनलाल मेहता २२ डॉ० श्रीरंजन सूरिदेव २८ डॉ० महेन्द्रनाथ सिंह डॉ० सुभाष कोठारी PM My Mar 212 ८ ई० सन् १९८४ . १९८३ १९६५ .१९८० १९५४ १९५२ १९७९ १९५१ . १९६५ १९५४ १९८६ १९८० १९९० १९७१ १९७७ १९८९ १९८६ . ३५१ पृष्ठ २८-३६ १०-११ ३१-३८ १ । १-२ ३० १८-२२ ३२-३६ १९-२५ २७-३० ५-७ १०-१४ ७१-८४ ३-४ ३-१० ३५-३८ ८-१३ १-२ ७ ११ ६ १०-१२ १२ १२ Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५२ लेख นี้ : * * * * * * अंक ७-८ ८ १०-१२ ३ ३ ७-९ श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक पं० सुखलाल जी श्री श्रीप्रकाश दुबे डॉ० नन्दलाल जैन डॉ० मोहनलाल मेहता श्री रवीन्द्रनाथ मिश्र डॉ० रत्ना श्रीवास्तव डॉ० मोहनलाल मेहता डॉ० लालचन्द जैन डॉ० प्रद्युम्नकुमार जैन पं० फूलचन्द्र सिद्धान्तशास्त्री डॉ० मोहनलाल मेहता डॉ० धूपनाथ . प्रो० इन्द्रचन्द्र शास्त्री डॉ० रत्नलाल जैन श्री रमेश मुनि डॉ० मोहनलाल मेहता प्रो० रामचन्द्र महेन्द्र श्री अभयकुमार जैन एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति कर्म और अनीश्वरवाद कर्म और कर्मबन्ध कर्म का स्वरूप कर्म का स्वरूप कर्म की नैतिकता का आधार-तत्त्वार्थसूत्र के प्रसंग में कर्मवाद व अन्यवाद क्या जैन दर्शन नास्तिक दर्शन है ? . क्या जैनधर्म रहस्यवादी है ? क्या धन-सम्पत्ति आदि कर्म के फल हैं काल कालचक्र केवलज्ञान सम्बन्धी कुछ बातें कर्म की विचित्रता- मनोविज्ञान की भाषा में षड्द्रव्य : एक परिचय गणधरवाद गाँधी सिद्धान्त गुणस्थान : मनोदशाओं का आध्यात्मिक विश्लेषण ४५ २२ ३० or n mb sw vara or x xara * * * * * * * * * * ई० सन् १९५३ १९६३ १९९४ १९७१ १९८४ १९९४ १९७१ १९७९ १९७७ १९५१ १९६९ १९९५ १९५२ १९८९ १९७२ १९५८ १९५८ १९७७ पृष्ठ ३-१० ९-१२ १०-२२ ३-११ ५-७ १-९ ११-२० ३-१५ ११-१७ ३०-३९ ७-९ ४२-४३ १९-२२ ३५-४१ १४-१५ ३-६ २८-२९ ३-१४ -१२ * Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक अंक " ४३ ४-६ गुणस्थान सिद्धान्त का उद्भव एवं विकास गुणस्थान सिद्धान्त का उद्भव एवं विकास गुरुत्वाकर्षण से परमाणु शक्ति तक छद्मस्थानां च मतिभ्रमः । २६ वाँ प्राच्यविद्या विश्व-सम्मेलन क्षत्रचूड़ामणि में उल्लिखित कतिपय नीतिवाक्य जगत् : सत्य या मिथ्या जीव और जगत् जैन अध्यात्मवाद : आधुनिक संदर्भ में जैन आगम और गुणस्थान सिद्धान्त जैन आगम साहित्य में प्रमाणवाद जैन आगमों में धर्म-अधर्म (द्रव्य) : एक ऐतिहासिक विवेचन जैन एवं न्यायदर्शन में कर्मसिद्धान्त जैन एवं बौद्ध धर्म में स्वहित एवं लोकहित का प्रश्न डॉ० सागरमल जैन डॉ० सागरमल जैन श्री दुलीचन्द जैन श्री कस्तूरमल बांठिया डॉ० नारायण हेमनदास सम्तानी श्री उदयचंद जैन 'प्रभाकर' श्री कन्हैयालाल सरावगी पं० बेचरदास दोशी डॉ० सागरमल जैन डॉ० श्रीप्रकाश पाण्डेय श्री गणेशमुनि शास्त्री ई० सन् १९७७ १९९२ १९९२ १९६० १९५८ १९६४ १९७३ १९८८ १९६० १९८३ १९९६ १९७९ ३५३ पृष्ठ ९-१८ २३-४३ १-२६ ३०-३४ २६-३० ३-८ १२-२१ ५-११ १३-१५ १-१७ ३-१४ २९-३४ २४३ ३९ ५ १२ ३४ ४८ डॉ. विजय कुमार श्री प्रेमकुमार अग्रवाल डॉ० सागरमल जैन २४ १०-१२ १ १२ १ ५ १९९७ १९७२ १९८० १९८० १९७४ ५३-७२ १२-१९ २-१० ५-१३ ३-९ " जैन कर्म-सिद्धान्त ३२ २५ डॉ. प्रमोद कुमार Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५४ वर्ष अंक कर्म सिद्धान्त: एक विश्लेषण जैन कर्म सिद्धान्त और मनोविज्ञान जैन कर्म सिद्धान्त का उद्भव एवं विकास कर्म सिद्धान्त का क्रमिक विकास तर्कशास्त्र में बौद्ध प्रत्यक्ष प्रमाणवाद श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक डॉ० सागरमल जैन डॉ० रत्नलाल जैन श्री रवीन्द्रनाथ मिश्र श्री लालचन्द जैन ई० सन् १९९४ १९९२ १९८५ १९८५ १९७६ १९७६ १९७६ १९७६ १९७२ १९५२ पृष्ठ ९४-१२७ ६५-७० १९-२६ १६-२१ ३-८ १०-१५ १५-१९ १२-२० ८-१५ ९-१५ २७ a garamy swam aa vax जैन तर्कशास्त्र में 'सन्निकर्स-प्रमाणवाद' जैनदर्शन जैनदर्शन और अरविन्द दर्शन में एकत्व और अनेकत्व सम्बन्धी विचार जैनदर्शन और भक्ति : एक थीसिस जैन दर्शन और मार्क्सवाद जैनदर्शन का शब्द विज्ञान जैनदर्शन का स्याद्वाद सिद्धान्त जैनदर्शन की देन सुश्री हीरा कुमारी कु० ममता गुप्ता डॉ० देवेन्द्र कुमार श्री हरिओम् सिंह श्री मनोहर मुनि जी श्री अभयकुमार जैन डॉ० मंगलदेव शास्त्री ३५ १६ ३२ १० १२८ २७ १ १९८४ १९६५ १९८१ १९६१ १९७५ १९५६ १६-२० ३-८ १६-२० २८-३१ ३-१४ १३-१४ Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लेख जैनदर्शन की पृष्ठभूमि में ईश्वर का अस्तित्त्व जैनदर्शन के अन्तर्गत जीव तत्त्व का स्वरूप जैनदर्शन में कर्म का स्वरूप जैनदर्शन के सन्दर्भ में भाषा की उत्पत्ति जैनदर्शन में अजीव तत्त्व का स्थान जैनदर्शन में अनेकान्तवाद का स्वरूप जैनदर्शन में आत्मस्वरूप जैनदर्शन में कथन की सत्यता जैनदर्शन में कर्मवाद की अवधारणा जैनदर्शन में ज्ञान का स्वरूप जैनदर्शन में नैतिकता की सापेक्षता जैन तत्त्वविद्या में 'पुद्गल' की अवधारणा जैन तर्क शास्त्र के सप्तभंगी नय की आगमिक व्याख्या जैन दर्शन जैन दर्शन में जन्म और मृत्यु की प्रक्रिया जैन दर्शन में जीव का स्वरूप जैन दर्शन में परीषह जय का स्वरूप एवं महत्त्व श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक डॉ० विनोदकुमार तिवारी "" डॉ० राधेश्याम श्रीवास्तव कु० अर्चना पाण्डेय डॉ० विनोदकुमार तिवारी श्री भिखारीराम यादव डॉ० उदयचन्द जैन सुश्री अर्चना पाण्डेय कु० प्रमिला पाण्डेय डॉ० रामजी सिंह डॉ० सागरमल जैन श्री अम्बिकादत्त शर्मा डॉ० भिखारीराम यादव श्री उदय मुनि श्री अम्बिकादत्त शर्मा श्री विजय कुमार कु० कमला जोशी वर्ष ३६ ३३ २४ ३७ ३४ ३२ ३६ www ३६ २३ २४ x w ४६ m m ३९ ३९ २९ ३८ ३७ ४० अंक १) १२ J J १० ॐ m m ४-६ १ १० ११ or ov ११ ३५५ ई० सन् १९८५ १९८२ १९७३ १९८६ १९८३ १९८१ १९८५ १९८५ १९७२ १९७३ १९९५ १९८७ १९८८ १९७७ १९८७ १९८६ १९८९ ४१-४५ पृष्ठ ९-११ १२-१५ ३१-३५ ११-१८ १८- २१ १-९ १-११ ६-९ २२-२७ २७-३२ १२३-१३३ ६-१५ १-२६ १४-१७ २-९ ९-१५ Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५६ लेख श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक डॉ० बशिष्ठनारायण सिन्हा जैन दर्शन में प्रत्यक्ष का स्वरूप (विशेष शोध निबन्ध) जैनदर्शन में प्रमाण (विशेष शोध निबन्ध) जैनदर्शन में पुद्गल द्रव्य जैनदर्शन में पुद्गल स्कन्ध जैनदर्शन में प्रमाण का स्वरूप ३२८ २५ डॉ० रमेशचन्द्र जैन श्री रमेशमुनि शास्त्री श्री रमेशमुनि शास्त्री O पृष्ठ १-२४ १-३४ ८-१५ १०-१२ ९-१३ ९-१३ १६-२२ / . mux or mx 5 w gux ई० सन् १९८२ १९८१ १९७४ १९७७ १९७५ १९७५ १९७५ १९७५ १९७५ १९७५ १९७६ १५-१८ २३-२९ २५-३० " श्री हरेराम सिंह । जैनदर्शन में बन्ध और मुक्ति जैनदर्शन में बन्ध का स्वरूप: वैज्ञानिक अवधारणाओं के सन्दर्भ में जैनदर्शन में बंधन मोक्ष जैन दर्शन में ब्रह्माद्वैतवाद जैन दर्शन में मुक्ति की अवधारणा जैन दर्शन में शब्दार्थ सम्बन्ध श्री अनिलकुमार गुप्त श्री विजय कुमार डॉ० लालचन्द जैन श्री पाण्डेय रामदास 'गंभीर' डॉ० सुदर्शनलाल जैन ३७६ ३०९ १९७५ १९८६ १९७९ १९८० १९९२ ३-९ १०-१९ ११-२६ २-१२ २७-३९ ४३ ४-६ é Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५७ श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक लख वर्ष अंक ई० सन् पृष्ठ श्री ललितकिशोरलाल श्रीवास्तव २५ श्री रामजी २३ १९७४ १९७२ २३-२८ १८-२२ १० ३० ४ १०-१२ जैन दर्शन में सर्वज्ञता का स्वरूप जैन दर्शन में स्याद्वाद और उसका महत्त्व जैन दार्शनिक साहित्य में अभाव प्रमाण : एक मीमांसा जैन दार्शनिक साहित्य में ईश्वरवाद की समालोचना जैन दृष्टि से ज्ञान-निरूपण जैनधर्म का लेश्या-सिद्धान्त : एक विमर्श जैनधर्म की प्रासंगिकता जैनधर्म-दर्शन का सारतत्त्व जैनधर्म : मानवतावादी दृष्टिकोण : एक मूल्याकंन जैनधर्म में आत्मतत्त्व निरूपण जैनधर्म में 'एकान्त नियतिवाद' और 'सम्यक् नियति' का भेद जैनधर्म में कर्मयोग का स्वरूप जैनधर्म में मानव जैनधर्म में मानवतावाद श्री रमेशमुनि शास्त्री श्रीमती मंजुला भट्टाचार्या श्री रमेशमुनि शास्त्री २९ डॉ० सागरमल जैन डॉ० निजामुद्दीन डॉ० सागरमल जैन ४५ डॉ० ललितकिशोरलाल श्रीवास्तव ४० प्रो० रामदेव राम १९७९ १९९२ १९७८ १९९५ १९८० १९९४ १९८९ १९८२ २३-३५ ६७-६९ २९-३५ १५०-१६५ १९-२५ १-१३ ३४-४५ १-९ ३१ १-३ ३३ ७-८ पं० फूलचन्द सिद्धान्तशास्त्री श्री कन्हैयालाल सरावगी ३० डॉ० रज्जन कुमार/डॉ० सुनीता कुमारी ४१ श्री कस्तूरमल बांठिया ६-८ १५-२० १०५-११२ २५-३२ P १९७९ १९९० १९६६ ३ Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५८ लेख की अवधारणा जैनधर्म में और शुभ अशुभ जैनधर्मानुसार जीव, प्राण और हिंसा जैन नीति- दर्शन एवं उसका व्यावहारिक पक्ष जैन न्यायदर्शन: समन्वय का मार्ग जैन पुराणों में पुनर्जन्म की कथायें - "" जैनभाषादर्शन की समस्याएँ जैन महाकवि पं० बनारसीदास का रहस्यवाद जैन मिस्टीसिज्म "" जैन वाङ्गमय में आयुर्वेद जैन श्रमण साधना: एक परिचय जैन संस्कृति और मिथ्यात्त्व जैन संस्कृति का दिव्य सन्देश - अनेकान्त जैन संस्कृति में सत्य की अवधारणा जैन सिद्धान्त श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक श्री सुभाषचन्द जैन डॉ० बशिष्ठनारायण सिन्हा डॉ० डी० आर० भंडारी डॉ० रमेशचन्द्र जैन श्री धन्यकुमार राजेश श्रीमती अर्चनारानी पाण्डेय श्री गणेशप्रसाद जैन प्रो० यू० ए० आसरानी वर्ष ३० १९ ३६ २६ २२ २२ ४२ २० २४ २४ "" डॉ० श्रीरंजन सूरिदेव डॉ० सुभाष कोठारी ४२ ५ पं० बेचरदास दोशी मुनि ज्योतिर्धर ३७ डॉ० राजदेव दुबे एवं प्रमोदकुमार सिंह ३५ डॉ० मोहनलाल मेहता २९ अंक २० ७ の O x x 0 x ar 5 J ฟ १-३ 2 น १) १-३ mov x ३ १ ४ ८ ई० सन् १९७९ १९६८ १९८५ १९७५ १९७१ १९७१ १९९१ १९६८ १९७३ १९७३ १९६८ १९९१ १९५४ १९८५ १९८४ १९७८ पृष्ठ २३-३२ १८-२२ १-८ २३-२७ २३-३१ १०-१५ ९३-९६ १८-२२ २७-३८ ३२-४१ १४- २२ ३३-५० ४० २-७ १२-१५ ३-१३ Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३ ३ ३३ .18 or a war ई० सन् १९५४ १९८१ १९५२ १९८२ १९५२ पृष्ठ ५-९ ७-११ १७-२१ ३४-३६ ५-११ or श्रमण : अतीत के झरोखे में लेख लेखक जैनागमों में ज्ञानवाद डॉ० मोहनलाल मेहता ज्ञान भी सम्पदा है मुनिश्री रामकृष्ण ज्ञान की खोज में मुनिश्री जयन्तीलाल जी ज्ञान-प्रमाण्य और जैन दर्शन श्री भिखारीराम यादव ज्ञान सापेक्ष है प्रो० विमलदास डॉ० गोविन्द त्रिगुणायक का “जैन दर्शन व संत-कवि" सम्बन्धी वक्तव्य श्री अगरचन्द नाहटा तत्त्वसूत्र संन्यासी राम तत्त्वार्थराजवार्तिक में वर्णित बौद्धादिमत डॉ० उदयचन्द जैन तर्क का क्षेत्र प्रो० विमलदास जैन तीर्थंकर और दु:खवाद डॉ० देवेन्द्रकुमार जैन तीर्थकरवाद श्री कस्तूरमल बांठिया त्याग का मनोविज्ञान श्री माँ अरविन्दाश्रम तीर्थकर, बुद्ध और अवतार की अवधारणा का श्री रमेशचन्द्र गुप्त तुलनात्मक अध्ययन द्वन्द्व और द्वन्द्व निवारण (जैन दर्शन के विशेष-प्रसंग में) डॉ० सुरेन्द्र वर्मा ३९ १९६४ १९८८ १९८४ १९५२ १९७३ १९५६ १९६५ १९८५ २८-३६ १-८ ३७-४८ ३१-३६ २६-२८ ९-१६ २९-३३ २७-३७ ९ ३ १० ४७ १०-१२ १९९६ १-१३ Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वर्ष अंक १६ १४ ३६० लेख दर्शन और धर्म दर्शन और ज्ञान जब चारित्र में आया दर्शन और धर्म दर्शन और विज्ञान : एक चिन्तन द्वादशारनयचक्र का दार्शनिक अध्ययन धर्म और दर्शन के क्षेत्र में हरिभद्र का अवदान धर्म और दर्शन के क्षेत्र में हरिभद्र का अवदान धर्म एवं दर्शन-एक गवेषणात्मक विवेचन धर्म और दर्शन श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक श्री देवेन्द्रमुनि शास्त्री श्री महेन्द्रसागर प्रचण्डिया पं० कैलाशचन्द्र शास्त्री श्री गणेशमुनि शास्त्री श्री जितेन्द्र बी० शाह डॉ० सागरमल जैन संगीता झा मुनि राजेन्द्रकुमार रत्नेश मुनिश्री सुशीलकुमार जी १६ ४३ ३७ ४० 99 r rMMA - MMA T ३६ ई० सन् __ पृष्ठ १९६५ ३-७ १९८५ १८-१९ १९६२ ९-१३ १९६५ ८-१२ १९९२ ५९-६३ १९८६ १-२० १९८९ ३०-४० १९८५ १६-१८ १९५६ २०-२३ १९५६ २३-२८ १९८१ ३५-४८ १९७८ १४-१८ १९७२ १३-१७ १९७४ १०-१५ १९५६ ५-१२ १९७४ ३-८ १९७४ ३-१० " ३२ २९ नय और निक्षेप-एक विश्लेषण नयवाद: एक दृष्टि निक्षेप में नय योजना निक्षेपवाद : एक परिदृष्टि निह्मववाद निश्चय और व्यवहार निश्चय और व्यवहार : पुण्य और पाप डॉ० कृपाशंकर व्यास श्री कन्हैयालाल सरावगी श्री उदयचंद जैन श्री रमेशमुनि शास्त्री श्री मोहनलाल मेहता पं० कैलाशचन्द्र शास्त्री पं० दलसुख मालवणिया 2 Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६१ श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक २ ___अंक १ १०-१२ ३६ ४ २० ४८ न्याय सम्पन्न विभव पंचकारण समवाय परमतत्त्व : आचार्य विनोबा भावे की दृष्टि में परमाणु परिग्रह मीमांसा पुद्गल पुद्गल : एक विवेचन पुनर्जन्म सिद्धान्त की व्यापकता प्रातिभज्ञानात्मक चिन्तन : सापेक्ष चिन्तन प्रत्येक आत्मा परमात्मा है प्रमाणवाद : एक पर्यवेक्षण - क्रमश: २० डॉ० रतनचन्द्र जैन डॉ० नरेन्द्र बहादुर डॉ०मोहनलाल मेहता श्री रघुवीरशरण दिवाकर डॉ० मोहनलाल मेहता मुनि बुद्धमल्ल जी श्री देवेन्द्रमुनि शास्त्री श्री पाण्डेय रामदास 'गंभीर' पं० कैलाशचन्द्र शास्त्री श्री देवेन्द्रमुनि शास्त्री ५ a x r so ar y or w a v २४ ई० सन् १९५० १९९७ १९८५ १९६९ १९५१ १९६९ १९७४ १९७३ १९८२ १९६३ १९७४ १९७४ १९७४ १९९७ १९७२ १९७३ १९७२ पृष्ठ । ९-१२ ७३-८० २२-२६ ५-७ ९-१४ २०-२२ १४-१८ ३-१० ५-१७ ३१-३२ ३-१३ ७-१८ १३-२२ १३३-१४० ३-१५ ३-११ ११-१४ ३४ १५ २५ प्रमाण-लक्षण-निरूपण में प्रमाण मीमांसा का अवदान प्रमाण स्वरूप विमर्श - क्रमश: २५ ४८ ४-६ डॉ० सागरमल जैन डॉ० सुदर्शनलाल जैन २४ ér mm प्रमेय : एक अनुचिन्तन २४ २३ डॉ० श्रीरंजन सूरिदेव Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६२ लेख प्रलय से एकलय की ओर प्रवर्तक एवं निवर्तक धर्मों का मनोवैज्ञानिक विकास एव उनके दार्शनिक एवं सांस्कृतिक प्रदेय प्राचीन जैन आगमों में चार्वाक दर्शन का प्रस्तुतीकरण प्राचीन जैन ग्रंथों में कर्म सिद्धान्त का विकासक्रम बंधन से अलंकार बन्ध के कार्य में मिथ्यात्त्व और कषाय की भूमिकाएं ब्रह्माद्वैतवाद का समालोचनात्मक परिशीलन "" भगवान् महावीर का अध्यात्म दर्शन भगवान् महावीर का ईश्वरवाद भगवान् महावीर का तत्त्वज्ञान भारतीय दर्शनों की आत्मा भारतीय दर्शनों की समन्वय परम्परा भारतीय दर्शनों में आत्मा भारतीय संस्कृति में दान का महत्त्व भारतीय समाज का आध्यात्मिक दर्शन श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक मुनि राजेन्द्र कुमार 'रत्नेश' डॉ० सागरमल जैन " डॉ० अशोक सिंह सुश्री मोहिनी शर्मा डॉ० रतनचन्द्र जैन डॉ० लालचन्द जैन "" उपाध्याय श्री अमरमुनि डॉ० बशिष्ठनारायण सिन्हा कु० मंजुला मेहता उपाध्याय श्री अमरमुनि जी डॉ० एन० के० देवराज श्री बशिष्ठनारायण सिन्हा श्री देवेन्द्रमुनि शास्त्री श्री देवेन्द्र कुमार वर्ष ३९ ३० ४६ ४३ ४ ३४ ३० ३१ १४ २६ २६ १२ १२ २० अंक J ८ १-३ १०-१२ ४ ६ १० २ ६-७ १० १-२ ९ ९ ४ ७ १२ ई० सन् १९८८ १९७९ १९९५ १९९३ १९५३ १९८३ १९७९ १९७९ १९६३ १९७५ १९७४ १९६१ १९६१ १९५९ १९६९ १९५० पृष्ठ २-४ १४-२० ४६-५८ १९-२८ ३-५ २-८ ३-१३ ९-२२ १-५ ९-१२ ६३-६७ ९-११ २१-२४ १९-२६ १०-२० २७-२९ Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लेख वर्ष १४ अंक २ श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक श्री छगनलाल शास्त्री डॉ० सागरमल जैन डॉ० केवलकृष्ण मित्तल श्री रमेशमुनि शास्त्री युवाचार्य श्री महाप्रज्ञ श्री अभयमुनि जी महाराज डॉ० सागरमल जैन डॉ० देवेन्द्रकुमार जैन ३६३ पृष्ठ । २६-२८ ३-११ १४-२० २५-२८ १८-२२ ३६-३७ ९७-१२२ ३-५ २८ ३४ ई० सन् १९६२ १९८० १९७८ १९७७ १९८२ १९५५ १९९५ १९७३ ९ २ ४६ २४ भेद में अभेद का सर्जक स्याद्वाद भेद विज्ञान : मुक्ति का सिंहद्वार भौतिकवाद एवं समयसार की सप्तभंगी व्याख्या मन और संज्ञा " मन की शक्ति बनाम सामायिक मन-निग्रह मन, शक्ति, स्वरूप और साधना : एक विश्लेषण महाकवि स्वयंभू का प्रकृति दर्शन महावीर के समकालीन विभिन्न आत्मवाद एवं उसमें जैन आत्मवाद का वैशिष्ट्य महावीर संदेश-दार्शनिक दृष्टि महापण्डित राहुल सांकृत्यायन के जैनधर्म सम्बन्धी मन्तव्यों की समालोचना मानव मानवतावादी समाज का आधार अहिंसा मानवव्यक्तित्त्व का वर्गीकरण मुनिराम सिंह का उग्र अध्यात्मवाद डॉ० सागरमल जैन श्री हरिओम् सिंह १९९५ १९८० ५९-६८ १८-२१ डॉ० सागरमल जैन पुष्पा धारीवाल मुनिश्री सुशीलकुमार जी डॉ० त्रिवेणीप्रसाद सिंह डॉ० देवेन्द्र कुमार १९९४ १९५५ १९५९ १९९० १९६८ २ ४-६ १७९-१८४ २४-३६ ७-११. ४१-५० १२-२२ ४१ Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वर्ष अंक ३६४ लेख मुनि वारिषेण का सम्यकत्त्व मूल्य और मूल्यबोध की सापेक्षता का सिद्धांत मूल्यों का संकट और आध्यात्मिकता मोक्ष मीमांसा में जैन दर्शन का योगदान यज्ञ : एक अनुचिन्तन - क्रमश: श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक डॉ० श्रीरंजन सूरिदेव डॉ० सागरमल जैन डॉ० देवेन्द्र कुमार श्री धन्यकुमार राजेश श्री सुदर्शनलाल जैन ४३ १६ २२ १७ १७ १२ २० डॉ० मोहनलाल मेहता पं० अम्बालाल प्रेमचन्द शाह १७ १७ २७ ई० सन् - १९६४ १९९२ १९६५ १९७१ १९६६ १९६६ १९६९ १९६६ १९६५ १९७६ १९६१ १९६१ १९६७ १९६९ १९६७ १९६० १९९३ पृष्ठ ४२-४७ १-२२ २०-२३ ३-९ ३१-३८ १५-२७ ५-७ २९-३९ ७३-८४ १४-१७ १२-१५ १०-११ ५-१७ २२-२५ ३२-३६ १६-१९ ११-१६ रूपी और अरूपी लब्धिफल लब्धियां लेश्या : एक विश्लेषण वनस्पति की गतिशीलता वनस्पति विज्ञान वास्तविकतावाद और जैन दर्शन विग्रहगति एवं अन्तराभव विश्व का निर्माण तत्त्व : द्रव्य विश्व विज्ञान वृत्ति : बोध और विरोध १-२ ८ १२ २ श्री रमेशमुनि शास्त्री श्री कोमलचन्द शास्त्री श्री पं० बेचरदास दोशी मुनिश्री महेन्द्रकुमार द्वितीय' डॉ० कोमलचंद जैन डॉ० श्रीरंजन सरिदेव पं० बेचरदास जी दोशी महोपाध्याय चन्द्रप्रभसागर २० १८ ४४ ४-९ Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६५ श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक श्री रमेशमुनि शास्त्री कु० अर्चना पाण्डेय श्री रमेशमुनि शास्त्री . wax ई० सन् १९७७ . १९८५ १९७७ पृष्ठ १७-२० ९-१३ २२-२६ ४-६ लेख व्युत्सर्ग आवश्यक शब्द का वाच्यार्थ जाति या व्यक्ति शब्दों की अर्थ मीमांसा षङ्जीवनिकाय में त्रस एवं स्थावर के वर्गीकरण की समस्या षड़ावश्यक में सामायिक श्रोतेन्द्रिय की प्राप्यकारिता : एक समीक्षा संवर और निर्जरा संसार का अन्तरंग प्रदेश संस्कृत साहित्य में कर्मवाद सत्य के आवरण या मूर्छाएं 'सत्यं स्वर्गस्य सोपानम्' सम्यग् ज्ञान और मिथ्या ज्ञान सम्यक् दृष्टि और मिथ्या दृष्टि डॉ० सागरमल जैन श्री हुकुमचंद संगवे श्री नंदलाल जैन श्री गोपीचंद धारीवाल १८ १९ ३८ १६ ९ १ १३-२१ ११-१६ २५-३२ १०-१७ २३-२५ १०-१६ १२-१९ डा० रत्नलाल जैन डॉ० इन्द्रचन्द्र शास्त्री डॉ० वासुदेवशरण अग्रवाल प्रो० इन्द्रचन्द्र शास्त्री डॉ० इन्द्रचन्द्र शास्त्री » or m 59 or or any mx & or १९९३ १९७१ १९८२ १९६७ १९६८ १९८७ १९६४ १९५४ १९५१ १९५४ १९५४ १९५१ १९७९ ३-४ २ ४ ११-१४ ३-१० ४-११ ९-१४ ११-२२ सबसे बड़ा प्रश्न - मैं कौन हूँ समन्तभद्र द्वारा क्षणिकवाद की समीक्षा मुनिश्री रामकृष्ण जी महाराज श्री नरेन्द्रकुमार जैन Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६६ लेख " समराइच्चकहा में चार्वाक दर्शन समयसार के अनुसार आत्मा का कर्तृत्व अकर्तृत्व एवं भोक्तृत्व-अभोक्तृत्व समयसार सप्तदशांगी टीका में गणितीय न्याय एवं दर्शन सम्यकत्व की कसौटी सम्यग्दर्शन सम्यक् दृष्टिकोण सत्य पारखी दृष्टि सर्वज्ञता - एक चिन्तन सूत्रकृतांग में वर्णित दार्शनिक विचार सूत्रकृतांग में वर्णित मत-मतांतर स्वप्न : एक मनोवैज्ञानिक विश्लेषण स्वरूप और पररूप स्याद्वाद स्याद्वाद - एक पर्यवेक्षण स्याद्वादःएक भाषायी पद्धति श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक >> श्री झिनकू यादव डॉ० श्रीप्रकाश पाण्डेय डॉ० लक्ष्मीचंद जैन डॉ० मोहनलाल मेहता श्री गोपीचंद धारीवाल मुनिश्री श्रीमल्लजी डॉ० मोहनलाल मेहता डॉ० श्रीप्रकाश पाण्डेय डॉ० इन्द्रचन्द्र शास्त्री श्री मोहनलाल मेहता पं० सुखलाल कु० कुसुम जैन श्री रमेशमुनि शास्त्री श्री भिखारीराम यादव जी संघवी वर्ष ३० २४ ४२ २९ १ १९ ११ २१ ४१ ५ ४ m ३० २५ ३३ अंक २ १ १-३ m १-२ ७-८ ७ ४-६ 5 O or ov ११ ११ १-२ ३ ई० सन् १९७९ १९७२ १९९१ १९७८ १९४९ १९६७ १९६० १९७० १९९० १९५४ १९५२ १९५२ १९८० १९७४ १९८२ पृष्ठ १७-२५ २४-२७ ५७-७० ६-१० २८-२९ २७-३१ २५-२९ ३४-३८ ५७-७६ ११-२० ११-१५ ५-१० २१-३३ २२-२८ ३३-३८ Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वव अंक लेख स्याद्वाद और अनेकान्तवाद स्याद्वाद और सप्तभंगी-एक चिन्तन स्याद्वाद एक परिशीलन -क्रमश: श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक पं० दरबारीलाल कोठिया प्रो० सागरमल जैन श्री देवेन्द्रमुनि शास्त्री ४ . १० ३६७ ई० सन् पृष्ठ १९६४ . १७-२० १९९० ३-४४ १९६९ १५-२० १९६९ ८-१५ १९६९ १३-२१ १९९७ १-१३ १९५२ ३-८ १९८४ १५-२३ १९५० २५-२८ १९५८ १७-२० १९५९ २४-२८ ४८ डॉ० सीताराम दुबे श्री चन्द्रशंकर शुक्ल श्रीमती मंजू सिंह डॉ० मोहनलाल मेहता श्री कस्तूरमल बांठिया मुनिश्री नेमिचन्द्र जी sa o ar y auror w स्याद्वाद की अवधारणा : उद्भव एवं विकास स्यावाद की सर्वप्रियता सूत्रकृतांग में प्रस्तुत तज्जीव तच्छरीवाद सौन्दर्य का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण हम अनेकान्तवादी हैं या एकान्तवादी ? है हर क्षेत्र में अनेकान्तवाद का प्रयोग हो हरिभद्र की क्रान्तदर्शी दृष्टि, धूर्ताख्यान के सन्दर्भ में हरिभद्र के धर्म-दर्शन में क्रान्तिकारी तत्त्व : सम्बोधप्रकरण के सन्दर्भ में हिन्दी जैन कवियों का आत्म-स्वातंत्र्य हिंसा-अहिंसा का जैन दर्शन प्रो० सागरमल जैन १९८८ २१-२५ ३९ ४ १४५ डॉ० श्रीरंजन सूरिदेव डॉ० मोहनलाल मेहता १९८८ १९६३ १९८० ९-२० २७-३० १२-१४ ३ Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक वर्ष अंक ई० सन् पृष्ठ ३६८ लेख २- धर्म, साधना, नीति एवं आचार अक्षय तृतीया : एक चिन्तन अतीत धर्म और साधु संस्था अधिमास और पर्युषणा अध्यात्म-आवास/पर्युषण अनासक्ति अर्धमागधी आगम साहित्य में समाधिमरण की अवधारणा अध्यात्म साधना कैसी हो अष्टपाहुड़ की प्राचीन टीकाएँ अस्वाद व्रत भी तप है अहिंसक शक्तियों का ऐक्य अहिंसा श्री देवेन्द्रमुनि शास्त्री बरट्रेन्ड रसल श्री कस्तूरमल बांठिया मुनि योगेशकुमार अजित शुकदेव शर्मा २ ७ ३५ २३ ८ ३ १ ११ १० १९६७ १९५१ १९५५ । १९८४ । १९७२ ७-१२ ३१-३४ १७-२३ ७-१६ २३-२६ डॉ० सागरमल जैन आचार्य विनोबा डॉ० महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज' श्री अगरचन्द नाहटा सतीश कुमार श्री मदनलाल जैन श्री राजकुमार जैन ‘अखिल' श्री गोपीचंद धारीवाल १-३ ११ १०-१२ १२ ९ ६-७ ९ ६ १९९४ १९६० १९९२ १९६१ १९५८ १९५५ १९५६ १९६५ १९६७ ८०-९३ १०-१२ ४५-४८ २५-३१ २०-२५ ५५-५६ २४-२९ २०-२८ १८-१९ अहिंसा अहिंसा : एक विश्लेषण १६ ७ १८८ " Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लेख अहिंसा : एक विश्लेषण "" "" अहिंसा और शस्त्रबल अहिंसा और शिशु अहिंसा का जैन दृष्टि से विश्लेषण अहिंसा का अर्थ विस्तार, संभावना और अहिंसा की कसौटी का क्षण सीमा क्षेत्र अहिंसा का व्यावहारिक रूप अहिंसा का महान् नियम अहिंसा का विराट रूप अहिंसा का व्यापक अर्थ अहिंसा की तीन धारायें अहिंसा की प्रतिष्ठा का मार्ग अहिंसा की महानता अहिंसा की युगवाणी श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक श्री बशिष्ठनारायण सिन्हा " श्री नन्दलाल मारु आचार्य विनोबा भावे श्री ए० एम० योस्तन श्री नन्दलाल मारु श्री लक्ष्मीनारायण 'भारतीय' डॉ० सागरमल जैन पं० श्री मल्ल जी श्री वासुदेवशरण अग्रवाल श्री उदय जैन श्री लालजी राम शुक्ल पं० मुनिश्री मल्लजी म०सा० श्री हस्तिमल जी 'साधक' श्री नारायण सक्सेना डॉ० वासुदेवशरण अग्रवाल वर्ष 10 1 0 10 10 0 १८ १८ १८ १ १८ १० å av ov ३१ ११ ४ २१ १० १६ ६ अंक १-२ ६ ११ २ ३-४ 5 w m w ३ W 10 10 ९ ९ ३ ७-८ १० ६-७ ई० सन् १९६६ १९६७ १९६७ १९४९ १९५७ १९६७ १९५९ १९८० १९६० १९५३ १९७० १९४९ १९५८ १९५९ १९६५ १९५५ ३६९ पृष्ठ ७३-७७ १०-१५ ३३-३७ २४-२६ ३-९ ११-१४ ७८, ४४-४६ ३-२१ २८-३१ १-२ २८-३१ ३३-३६ ३४-३७ ४३-४५ १२-१५ ३-४ Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७० लेख अहिंसा की परिणति-समन्वय और सत्याग्रह अहिंसा की लोकप्रियता अहिंसा की समस्याएँ अहिंसा की साधना अहिंसा की साधना अहिंसा की सार्थकता अहिंसा के इतिहास में निरामिषता अहिंसा के तीन क्षेत्र (क्रमश:) अहिंसा निउणा दिट्ठा अहिंसा परमोधर्मः अहिंसा, संयम और तप अहिंसा से कोई विरोध नहीं आगम मर्यादा और संतों के वर्षावास आचार्य हरिभद्र एवं उनका योग आचार्य हरिभद्र का योगदर्शन श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक काका कालेलकर श्री ज्ञानमुनि युवाचार्य महाप्रज्ञ काका कालेलकर श्री गोपीचंद धारीवाल श्री सौभाग्यमल जैन श्री गणेशमुनि शास्त्री काका कालेलकर ,, कस्तूरमल बांठिया श्री श्री रविशंकर मिश्र श्री जमनालाल जैन श्री शरदकुमार ‘साधक’ मुनिश्री आईदानजी डॉ० कमल जैन श्री धनंजय मिश्र वर्ष १७ १५ ३४ १ १८ ३५ १९ १५ १५ १४ ३३ m or x ११ १४ ८ ४४ ४१ अंक ९ १२ ९ 9 १-२ २ ११ ९ १० ६-७ wa १० १-३ ७-९ ई० सन् १९६६ १९६४ १९८३ १९५० १९६६ १९८३ १९६८ १९६४ १९६४ १९६३ १९८२ १९६० १९६३ १९५७ १९९३ १९९० पृष्ठ १८-२१ १९-२४ २-४ ११-१३ ४३-६० ८-१२ ९-१४ १६-१९ १६-१७ ३४-४३ १७-१९ ३५-३८ ३६-३९ २६-३३ ८-२७ ३५-४४ Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक वर्ष अंक ई० सन् ३७१ पृष्ठ । ३९ ४२ १२ ४-६ २९ १० १२ लेख आचारांग के शस्त्र परिज्ञा अध्ययन में प्रतिपादित षड्जीवनिकाय सम्बन्धी अहिंसा आचारांग में अनासक्ति आचेलक्य कल्प-एक चिन्तन आत्मशुद्धि और साधना का पर्व आत्मशुद्धि का पर्व - पर्युषण आत्मशोधन का महान् पर्व : पर्युषण आत्मोपलब्धि की कला : ध्यान आध्यात्मिक खोज आध्यात्मिक साधना और उसकी परम्पराएँ आहार दर्शन आहार-विहार में उत्सर्ग-अपवाद मार्ग का समन्वय आहार शुद्धि के लिए क्या करें ? ईर्यापथ-प्रतिक्रमण ईश्वरलालकृत “जैन निर्वाण : परम्परा और परिवृत' लेख में आत्मा की माप-जोख शीर्षकके अन्तर्गत उठाये गये प्रश्नों के उत्तर उतार-चढ़ाव के बीच उभरती अहिंसा डॉ० फूलचन्द जैन 'प्रेमी' डॉ० श्रीप्रकाश पाण्डेय श्री रमेशमुनि शास्त्री श्री माईदयाल जैन श्री सरदारमल जैन श्री अगरचन्द नाहटा महोपाध्याय मुनि चन्द्रप्रभसागर पं० श्री बेचरदास दोशी कुमारी इन्दुला डॉ० कस्तूरनाथ गोस्वामी डॉ० सुदर्शनलाल जैन मुनिश्री निर्मल कुमार श्री धीरजलाल टोकरशीशाह १९८८ १९९१ १९७७ १९५९ १९६५ १९५१ १९९३ १९६० १९५९ १९८७ १९८९ १९६० १९५० ८-१५ ७३-८८ १८-२० २०-२१ ३४-३५ ७-१३ १-७ १३-१५ ११ ११ १० १० ३८८ ४० ९ ११ १० ७ २१-२२ ११-१५ १९-२० ३४-३६ १ श्री पुखराज भण्डारी श्री शरदकुमार साधक ४४ ३१ १-३ ४ १९९३ २८-३४ १९८०१५-१८ Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७२ लेख वर्ष अंक उपशमन का आध्यात्मिक पर्व उदायन का पुर्यषण १४८ ४२ २५ २७ श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक पं० दलसुख मालवणिया उपाध्याय श्री अमरमुनि महात्मा भगवानदीन डॉ० प्रतिभा त्रिपाठी पं० दलसख मालवणिया श्री शिवकुमार नामदेव श्री प्रेमचन्द्र रांवका मुनिश्री नथमल जी आचार्य आनन्द ऋषि जी पं० रत्न श्री ज्ञानमुनि जी पं० श्री विजयमुनि शास्त्री मुनिश्री समदर्शी जी श्री लक्ष्मीनारायण भारतीय डॉ० कोमलचन्द जैन श्री सौभाग्यमल जैन श्री रामप्रवेश शास्त्री अनु० नरेन्द्र गुप्त ऋग्वेद में अहिंसा के सन्दर्भ एकान्तपाप और एकान्तपुण्य कलचुरी नरेश और जैन धर्म कालिदास के काव्यों में अहिंसा और जैनत्व कृतिकर्म के बारह प्रकार कीर्ति के शत्रु- क्रोध और कुशील क्षमा का आदर्श क्षमापना का आदर्श क्षमा का पर्व क्षमापना दिन क्षमा पहला धर्म है क्षमा से विश्व बन्धुत्व गांधीजी और अहिंसा गांधी जी की दृष्टि में अहिंसा का अर्थ २१ पृष्ठ ३-५ ७-११ २६-२९ ४४-६२ ११-१६ १९-२२ २३-२६ २६-३३ १-९ २९-३१ १५-१६ ३८-३९ ई० सन् १९५४ १९८० १९६३ १९९१ १९५५ १९७४ १९७६ १९६९ १९८१ १९५९ १९५७ १९५९ १९६२ १९५९ १९८५ १९६१ १९५२ ३२ :: ง เ 8 9 9 * * * * * * * * * १० १० १० ३२-३४ ३७ . २-४ १२ ९-१३ ११-१२ Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लेख वर्ष अंक गुजरात का जैनधर्म ___worr गुणव्रत ४६ ७-९ श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक स्व० मुनिश्री जिनविजय जी डॉ० मोहनलाल मेहता श्री कन्हैयालाल सरावगी श्री इन्द्र पं० दलसुख मालवणिया पं० कलानाथ शास्त्री श्री मारुतिनंदन प्रसाद तिवारी पं० बेचरदास जी दोशी श्री पी० एस० कुमारस्वामी राजा श्री प्रेमकुमार अग्रवाल कु० कमला जोशी श्री प्रेमकुमार अग्रवाल श्री सिद्धराज ढड्डा श्री दिनकर मुनिश्री नन्दीषेण विजय डॉ० मुकुलराज मेहता श्री प्रेमकुमार अग्रवाल १० ३७३ पृष्ठ १-३९ २२-२७ १८-२३ २१-२२ २८-३० ७०-७३ १९-२१ ४०-४५ ३३-३५ १३-२२ २७-३४ ८-१२ ६०-६३ १७-२३ १९-२१ ग्यारह प्रतिमा (व्रत) और एकादशी चरित्र के मापदण्ड चातुर्मास चातुर्मास: स्वरूप और परम्पराएँ * जैन साहित्य और शिल्प में रामकथा जैन त्यागी वर्ग के सामने एक विकट समस्या जैनधर्म की देन जैन दर्शन में अहिंसा जैन दर्शन में आवश्यक साधना जैन दर्शन में योग का प्रत्यय जैनधर्म जैनधर्म जैनधर्म का दृष्टिकोण जैनधर्म : निर्जरा एवं तप जैनधर्म में उपासना ११ ई० सन् १९८७ १९६६ १९७८ १९५० १९५० १९९५ १९७७ १९५९ १९५० १९७१ १९८९ १९७३ १९५८ १९६० १९६३ १९८७ १९७१ » » २२ ४० २४ ९ ११ १४ ८ ४ ७ ११-१२ ६ १० ४-८ 2 Mr २३ १२-१७ Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक श्री प्रेमकुमार अग्रवाल वर्ष २२ पृष्ठ ९-१२ २०-२८ २८-३३ १४-२० २३ २६ ३-७ ३७४ लेख जैनधर्म में शक्तिपूजा का स्वरूप जैनेतर दर्शनों में अहिंसा जैनधर्म में भक्ति का स्थान जैन दर्शन में मोक्ष का स्वरूप जैनधर्म एक सम्प्रदायातीत धर्म जैनधर्म में समाधिमरण की अवधारणा जैनधर्म विषयक भ्रान्तियां जैन साधना पद्धति में ध्यान योग जैन साधना में चैतन्य केन्द्रों का निरूपण जैन स्तोत्रों में नवधा भक्ति जैन आचार शास्त्र की गतिशीलता का समाजशास्त्रीय अध्ययन जैन परम्परा में ध्यान योग जैन और वैदिक साहित्य में पराविद्या जैनधर्म आस्तिक या नास्तिक (क्रमश:) ई० सन् १९७१ १९७१ १९७२ १९७५ १९८२ १९८८ १९५९ १९८६ कु० प्रमिला पाण्डेय डॉ० प्रमोद कुमार डॉ० निजामुद्दीन श्री रज्जन कुमार पं० बेचरदासजी दोशी साध्वी प्रियदर्शना जी युवाचार्य महाप्रज्ञ श्री धर्मचन्द्र जैन ३७ le a suora xa or womx & ३-८ १९-२७ १८-२७ २-५ २५-२९ ३८ १९८७ ३४ १९८३ श्री धन्यकुमार राजेश २१ २४ २१ श्री कन्हैयालाल सरावगी १९७० १९७३ १९७० १९७५ १९७५ १९७३ ३-१२ ९-१६ ५-१५ १९-२५ २१-२५ १२-१७ २६ २४ जैनधर्म में भावना डॉ० अजित शुकदेव Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक आचार्य अनन्तप्रसाद जैन श्री अगरचंद नाहटा श्री गुलाबचन्द जैन २५ ३ ४७ लेख जैन सिद्धान्त में योग और आस्रव है जिनधर्म का तमाशा जैनधर्म और भक्ति जैनधर्म दर्शन में आराधना का महत्त्व " जैनधर्म एवं बौद्धधर्म-परस्पर पूरक जैनधर्म : एक अवलोकन जैनधर्म और प्रयाग जिनमार्ग जैन दर्शन में मोक्षोपाय जैनधर्म में मोक्ष का स्वरूप जैनधर्म का वैशिष्ट्य जीवन की अंतिम साधना जैन साधना के मनोवैज्ञानिक आधार जैनधर्म में अचेलकत्व और सचेलकत्व का प्रश्न जैनधर्म में आध्यात्मिक विकास जैनधर्म में तीर्थ की अवधारणा जैनधर्म में भक्ति का स्थान डॉ० कोमलचन्द्र जैन डॉ० के० एच० त्रिवेदी डॉ० कृष्णलाल त्रिपाठी श्री कस्तूरमल बांठिया डॉ० रामजी सिंह श्री विनोदकुमार तिवारी प्रो० विमलदास कोंदिया श्री सत्यदेव विद्यालंकार डॉ० सागरमल जैन “: ก ก ก F * * * * 5 9 ก * * * * ई० सन् १९७४ १९५४ १९७९ १९८४ १९७६ १९७२ १९९६ १९७० १९७३ १९८२ १९५४ १९५५ १९७९ १९९७ १९९७ १९९० १९८० ३७५ पृष्ठ ११-१९ ९-११ २४-३१ ११-१४ ८-११ २४-२८ १५-२२ ३-१५ ३२-३६ ७-१० ३-१० ३१-३३ ८-१४ ७७-११२ १५७१६० १-२८ १४-१७ ० ३० ४८ ४-६ ४८ ४-६ ४१ ४-६ Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७६ लेख जैनधर्म में भक्ति की अवधारणा जैनधर्म में स्वाध्याय का अर्थ एवं स्थान जैन साधना में ध्यान जैन साधु की भिक्षा विधि जैन दर्शन में पुरुषार्थ चतुष्टय जैन साधना जैन दर्शन में मोक्ष का स्वरूप : भारतीय दर्शनों के परिपेक्ष्य में जैन आचार पद्धति में अहिंसा चारित्र निर्माण में आचार पद्धति का योगदान जैन साधना पद्धति में सम्यग्दर्शन 11 जैनधर्म में अहिंसा जैनागमों में वर्णित नागपूजा जैनधर्म की आचार संहिता जैनधर्म में तांत्रिक साधना का प्रवेश जैनधर्म में तप का स्वरूप और महत्त्व श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक डॉ० सागरमल जैन "" "" श्री सतीश कुमार प्रो० सुरेन्द्र वर्मा पं० सुखलाल जी संघवी डॉ० सुदर्शनलाल जैन डॉ० राजदेव दुबे " श्री रमेशमुनि शास्त्री 11 श्री रामदेव यादव श्री रामहंस चतुर्वेदी श्री रिखबचंद लहरी डॉ० रतिलाल म० शाह श्री रामजी सिंह ढेने ने ने के वर्ष ४५ ४५ ३५ ३५ ३४ २६ २६ ३३ ३७ १६ २४ २५ अंक १-३ १-३ १-३ ११-१२ १-३ ८ oro २ ७ २ १० २ १२ ११ ई० सन् १९९४ १९९४ १९९४ १९५८ १९९६ १९५० १९८३ १९८३ १९८३ १९७५ १९७५ १९८१ १९८६ १९६४ १९७३ १९७४ पृष्ठ १८-३६ ३७-४३ ४४-७९ ६४-६५ २१-४६ ९-११ १८-२४ १३-२० २६-३२ ९-१२ ३-६ १६-२२ १-७ २६-२८ २५-३० २२-२७ Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लेख जैनधर्म में नीतिधर्म और साधना जैनधर्म में भक्ति का स्वरूप जैनधर्म भगवान् महावीर की कसौटी पर जैन दृष्टि में चारित्र जैनधर्म : एक निर्वचन जैनधर्म और बिहार जैन आचार में इन्द्रियदमन की मनोवैज्ञानिकता जैनधर्म में अरिहन्त और तीर्थंकर की अवधारणा जैन दृष्टि से चारित्र विकास-क्रमशः "" जैन श्रावकाचार "" क्रमश: "" जैनों में साध्वी प्रतिमा की प्रतिष्ठा-पूजा व वन्दनं ज्ञानीजनों का मरण: भक्त प्रत्याख्यान मरण तनाव: कारण एवं निवारण तप का उपादेय : कर्मों की निर्जरा श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक श्री रामजी सिंह मुनि ललितप्रभ सागर श्री लक्ष्मीनारायण 'भारतीय' डॉ० श्रीरंजन सूरिदेव "" ,, श्री रतनचन्द जैन श्री रमेशचन्द्र गुप्त डॉ० मोहनलाल मेहता " 77 "" "" श्री महेन्द्रकुमार जैन 'मस्त' श्री रज्जन कुमार जैन डॉ० सुधा डॉ० आदित्य प्रचण्डिया 'दीति' & 2 x x * 9 वर्ष २५ ३४ १४ ३४ ७ २० ३२ ३४ १५ १५ or m ३० ३० ३० ४८ ३८ ४८ ३५ अंक J vo ६-७ ४ r ८ ४ ११ १२ ८ ७-९ ७ १-३ ११ ई० सन् १९७४ १९८३ १९६३ १९८३ १९५५ १९६९ १९८१ १९८३ १९६४ १९६४ १९७९ १९७९ १९७९ १९९७ १९८७ १९९७ १९८४ ३७७ पृष्ठ २५-३० ५-७ ६-८ १७-२१ ३-६ ५-१९ १-१६ ५-९ १७-२३ १३-१८ १६-२२ १६-२३ २१-३२ ८२-८५ १४- १९ १-२० १९-२० Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2 ई० सन् १९५२ १९६७ ३५ १९८४ श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक ___ वर्ष डॉ० वासुदेवशरण अग्रवाल पं० बेचरदास दोशी १९ श्री चिमनलाल चकुभाई शाह श्री वृजनन्दन मिश्र श्री ज्ञानमुनि जी महाराज डॉ० बी० सी० जैन ३२ डॉ० श्रीरंजन सरिदेव २४ उपाध्याय श्री अमरमुनि ३२ श्री अर्हद्दास दिगे १९ डॉ० सागरमल जैन ३४ लेख तप के प्रतीक महावीर तप क्या है ? तपश्चर्या-उपवास तपोधन महावीर तृष्णा और उसका अंत तीर्थंकर त्रिरत्न : मोक्ष के सोपान दयामूर्ति : धर्मरुचि अनगार दशधर्म योग साधना है दशलक्षण/दशलक्षण धर्म के । दान, शील, तप, भाव के रचयिता और दानकुलक का पाठ दिगम्बर परम्परा में श्रावक के गुण और भेद दिवाभोजन ही क्यों ? धर्म और अधर्म धर्म और धार्मिक धर्म और पुरुषार्थ धर्म और सहिष्णुता sra are my or 9 24 पृष्ठ ८ १४-१९ २०-२२ ५६-५७ १९-२० ८-१० २२-२६ ५-७ ३१-३६ १३-२८ १९६१ १९५६ १९८१ १९७३ १९८१ १९६८ १९८३ श्री अगरचंद नाहटा. श्री कस्तुरमल बांठिया डॉ० महेशदान सिंह चौहान डॉ० मोहनलाल मेहता डॉ० आदित्य प्रचण्डिया पं० सुखलाल जी डॉ० ज्योतिप्रसाद जैन २० १९७३ १९६५ १९५५ १९६९ १९८३ १९६० १९६४ १८-२४ ५६-६६ ३३-३४ ५-७ २०-२१ १४-१७ ३३-३४ ३४ १५ ५-६ Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंक वर्ष ९ २ १२ लेख धर्म-कल्याण का मार्ग धर्म का बीज और उसका विकास धर्म का तत्त्व धर्म का बहिष्कार या परिष्कार धर्म का मूल आधार-अहिंसा धर्म का मर्म धर्म का स्वरूप धर्म क्या है ? श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक पं० मुनिश्री रामकृष्ण जी महाराज पं० सुखलालजी संघवी टॉलस्टॉय श्री अजातशत्रु श्री शिवनारायण सक्सेना श्री सुबोधकुमार जैन भंडारी सरदारचंद जैन डॉ० सागरमल जैन ३७९ पृष्ठ १६-१९ ९-१४ । २२-२६ १९-२२ २०-२३ २४-२९ ५-७ १६ १२ orn » 39 » १-८ ई० सन् १९५७ १९५१ १९५२ १९६० १९६५ १९५३ १९८४ १९८० १९८० १९८० १९८३ १९५२ १९५२ १९७७ १९६३ १९५७ १९८२ १९६७ " » धर्म करते पाप तो होता ही है! धर्म की उत्पत्ति और उसका अर्थ धर्म को छानने की आवश्यकता धर्म क्षेत्रे-हिम क्षेत्रे धर्म निरपेक्ष या ईश्वर निरपेक्ष धर्म परिवर्तन-श्रमण धर्मों की भूमिका और निदान धर्म : मेरी दृष्टि में २८ २-५ २-७ २-४ ३५-३७ ९-१४ २९-३५ १९-२८ ४-८ ५-११ २४-२८ श्री प्रवाही श्री मोहनलाल मेहता श्री रतिलाल म० शाह श्री कानजी भाई पटेल श्री प्रभाकर गुप्त श्री महेन्द्रकुमार फुसकेले मुनिश्री नेमिचंद १४ ८ ३३ १८ १० ७ ४ Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८० लेख धार्मिक एकता धार्मिक जीवन की प्रेरणा ध्यान योग की जैन परम्परा नैतिक आचरण विधि : सोरेन कर्केगार्ड और जैन दर्शन ध्यान साधना का दिशाबोध नई पीढ़ी और धर्म निर्वाण : उपनिषद् से जैन दर्शन तक निःशस्त्रीकरण नैतिकता का आधार पंचयाम धर्म - एक पर्यवेक्षण पंचपरमेष्ठि मंत्र का कर्तृत्व और दशवैकालिक पर्युषण पर्युषण: आत्म चिन्तन से सामाजिक चिन्तन की ओर पर्युषण : आत्म संक्रान्ति का अद्वितीय अध्याय पर्युषण : आत्मा की उपासना का पर्व पर्युषण और नई प्रतिमाएँ श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक "" उपाध्याय अमरमुनि श्री सूरजचन्द्र 'सत्यप्रेमी' पाण्डेय रामदास 'गम्भीर' श्री सौभाग्य मुनि जी 'कुमुद' श्री सागरमल जैन 'साथी' डॉ० शान्ति जैन मुनि आईदान श्री जगदीश सहाय श्री व्रजनन्दन साध्वी (डॉ०) सुरेखाश्री श्री मधुकर मुि डॉ० देवेन्द्रकुमार जैन डॉ० नरेन्द्र भानावत मुनिश्री रामकृष्ण श्री लक्ष्मीनारायण वर्ष १५ ११ १० m s m z ♡ m 2 ♡ ♡ ३३ ३५ २७ ३३ १५ ४२ ३१ १२ ३२ ३२ १२ अंक ५-६ १० vo ७ १ ११ ६-७ oro o or ७-१२ ११ ov ov or ov ११ ११ ई० सन् १९६४ १९५९ १९५८ १९८१ १९८४ १९६१ १९७६ १९५८ १९८१ १९६४ १९९१ १९८० १९६१ १९८१ १९८१ १९६१ पृष्ठ ६५-६८ ९-१२ १७-१८ ३-१२ ११-१४ ३१-३४ २५-२९ १७-२२ १-१८ २०-२३ १-१० २-६ १५-१७ २-५ २६-३० २४-२५ Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लेख पर्युषण और पश्चाताप पर्युषण और बौद्ध धर्म पर्युषण और सामाजिक शुद्धि पर्युषण और हमारा कर्तव्य "" पर्युषण एक चिन्तन पर्युषण पर्युषण : परिचय और व्याख्या की सही आराधना पर्युषण : दस लक्षण पर्युषण पर्व पर्युषण का पावन संदेश पर्युषण पर्व का मतलब "" पर्युषण पर्व : क्या, कब और कैसे पर्युषण : संभावनाओं की खोज पर्वराज-दस लक्षणी पर्युषण पर्व परिनिर्वाण श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक मुनिश्री कन्हैयालाल जी 'कमल' श्री उदयचन्द जैन मुनिश्री नेमिचन्द जी श्री अगरचन्द नाहटा " श्री लक्ष्मीनारायण भारतीय श्री हीराचन्द्र सूरि विद्यालंकार सुश्री शरबती जैन श्री गुलाबचंद जैन श्री विमलदास जैन श्री अगरचंद नाहटा भाई बंशीधर " डॉ० सागरमल जैन डॉ० नेमिचंद जैन श्री गणेशप्रसाद जैन श्री जय भिक्खु वर्ष १२ १२ १२ ८ ३६ १० १० १२ १२ १ no mo १२ १० ३३ ३० ३१ ३ अंक ११ ११ ११ ११ ११ ११ ११ ११ १२ ११ ११ ११ ११ १० ११ ११ १२ ई० सन् १९६१ १९६१ १९६१ १९५७ १९८५ १९५९ १९५९ १९६१ १९६१ १९५० १९५९ १९६१ १९८९ १९८२ १९७९ १९८० १९५२ ३८१ पृष्ठ २८ २७-३० १९-२२ ९-१४ ६-१२ ९-१० ६-८ ९-११ १४-१५ ३१-४० २५-२६ १३-१४ ४-५ १-१९ ३-७ १९-२५ १७-२१ Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८२ लेख पर्व की आराधना पर्वराज पर्युषण पर्वाराधन की एक रूपता का प्रश्न पाश्चाताप "" पार्श्वकालीन जैनधर्म पुण्य और पाप पुराण प्रतिपादित शीलव्रत प्रतिक्रमण प्रत्यालोचना - महावीर का अन्तस्तल जैनागम परम्परा में गृहस्थाचार तथा प्राकृत उसकी पारिभाषिक शब्दावली प्राणातिपात विरमण: अहिंसा की उपादेयता प्राचीन में जैन धर्म का वैभव मथुरा प्राचीन भारतीय श्रमण एवं श्रमणचर्या प्रेम की सरिता प्रवाहित करने वाला पर्व बारहभावना : एक अनुशीलन श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक उपाध्याय अमरमुनि पं० अमृतलाल शास्त्री श्री सौभाग्य मुनि 'कुमुद' श्री भंवरलाल नाहटा 22 डॉ० विनोदकुमार तिवारी डॉ० मोहनलाल मेहता श्री सनतकुमार जैन स्वामी सत्यभक्त जी श्री कस्तूरमल बांठिया डॉ० कमलेश जैन डॉ० ब्रजनारायण शर्मा डॉ० वासुदेवशरण अग्रवाल डॉ० झिनकू यादव मुनि मणिप्रभ सागर डॉ० कमलेशकुमार जैन वर्ष १० ३६ ३९ ३९ ४० २२ ३० ६ که ی ४३ ३८ ४ २४ ३५ ४५ अंक १२ ११ १२ ८ ११ ४-६ १० १२ ११ ७-९ ई० सन् १९५९ १९५९ १९८५ १९८८ १९८८ १९८९ १९७१ १९७९ १९५५ १९५५ १९९२ १९८७ १९५३ १९७३ १९८४ १९९४ पृष्ठ १७-१९ १५-१६ १४-१५ २३-२४ २२-२४ ३-९ ३-७ १५-१ ३-१२ ३३-३६ ४७-६८ ६-१५ ७-११ ६-१२ ४-६ ५६-६१ Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लख अ ई० सन् १९५६ १९८१ ९ ७-८ १९५७ ६-७ . बाल संन्यास दीक्षा प्रतिबन्धक बिल उचित है ! बौद्ध एवं जैन अहिंसा का तुलनात्मक अध्ययन बौद्ध ग्रन्थों में जैन धर्म बौद्धधर्म बौद्ध धर्म का छठां संगायन ब्रह्मचर्य की गुप्ति भगवान् महावीर और अहिंसा भगवान् महावीर और उनके द्वारा प्रतिपादित धर्म भगवान् महावीर और धर्मक्रांति भगवान् महावीर का अचेलधर्म भगवान् महावीर का मार्ग भगवान महावीर की अहिंसा भगवान् महावीर की जीवन साधना भगवान् महावीर की धर्म क्रांति भगवान् महावीर की साधना भगवान् महावीर की साधना एवं देशना भक्तामरस्तोत्र के पादपूर्तिरूप स्तवकाव्य # 9 : ง 3 2 9 7 8 ” แ7 : wง : : : श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक श्री प्रभुदास बालूभाई पटावरी डॉ० भागचन्द जैन ___३२ डॉ० गुलाबचंद जैन ८ पं० दलसुख मालवणिया भिक्षु धर्मरक्षित उपाध्याय श्री हस्तिमल जी सुश्री शरबती जैन श्री ऋषभचन्द 'फौजदार' मुनिश्री नेमिचन्द जी पं० कैलाशचन्द्र शास्त्री पं० दलसुख मालवणिया श्री नरेन्द्र जैन १५ प्रो० देवेन्द्रकुमार जैन ६ प्रो० पृथ्वीराज जैन उपाध्याय अमरमुनि ३५ श्री भूरचंद जैन २९ श्री अगरचंद नाहटा २१ ३८३ पृष्ठ १८-२३ १-१६ १८-२८ १९-२२ १२-१८ ७-१३ ४०-४५ २-४ २१-२५ ३-१० २०-२२ २४-२६ ६२-६४ २६-३० १९५० १९५४ १९६५ १९५६ १९८१ १९६३ १९७७ १९५५ १९६४ १९५५ १९५७ १९८४ १९७८ १९७० १४ __ २८ ११ ६-७ १२ ७ ११ २१-२७ २५-२९ Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८४ लेख भक्तिमार्ग का सिंहावलोकन भारतीय दर्शनों में अहिंसा भारतीय दर्शन में मोक्ष की अवधारणा भारतीय चिन्तन में मोक्ष और मोक्षमार्ग -क्रमशः श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक पं० दलसख मालवणिया श्री रत्नलाल जैन डॉ० राजीव प्रचण्डिया श्री देवेन्द्रमुनि शास्त्री १०-१२ ४५ २७ ई० सन् १९५१ १९८५ १९९४ १९७६ १९७६ १९७६ १९८७ १९७६ पृष्ठ ९-१५ २३-३१ १-९ ३-१० ३-७ ३-८ २५-३१ ९-१४ १० २७ श्री रज्जन कुमार डॉ० देवेन्द्रकुमार जैन ३८ २७ मरण के विविध प्रकार महाकवि पुष्पदन्त की भक्ति चेतना महापर्व पर्युषण का पावन सन्देश : अपने आप को परखें महाभारत का आचार दर्शन महापर्व संवत्सरी महाभिनिष्क्रमण महावीर का तप: कर्म महावीर का धर्म : सर्वोदय तीर्थ महावीर का संयम और उनका साधनामय जीवन १४ १९८५ १९६२ आचार्य आनन्दऋषि जी - श्री बशिष्ठनारायण सिन्हा ज्ञान मनि महाराज रसिक त्रिवेदी डॉ० मोहनलाल मेहता आचार्य राजकुमार जैन कु० सविता जैन our m AMMA-33 vy r ~ १५ १४-१५ २७-३६ २४-२८ १९-२२ ३७-४१ १६-२० २७-३० १९-२३ २४-२६ १३-१५ ३२ १९५२ १९६४ १९७४ १९८१ १९८२ १९६१ १९५८ महावीर की साधना और सिद्धान्त महावीर स्तुति कु० विजया जैन श्री अगरचंद नाहटा Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ २६ अंक १-२ १२ लेख महावीरोपदिष्ट परिग्रह परिमाण व्रत मानतुंगसूरिरचित पंचपरमेष्ठिस्तोत्र मानव साध्य है या साधन मनियों का आदर्श त्याग मूलाचार में मुनि की आहार-चर्या मूलाधार की समाधिमरण मैं मुक्ति चाहता हूँ मोक्ष मृत्यु एवं सल्लेखना यशस्तिलक चम्पू और जैन धर्म युवाचित्त धर्म से विमुख क्यों योग और भोग योग का जनतन्त्रीकरण लेश्या-एक विश्लेषण वर्षा ऋतु का आहार-विहार श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक श्री जमनालाल जैन श्री अगरचन्द नाहटा प्रो० नेमिचरण मित्तल मुनिश्री आईदान जी महाराज डॉ० फूलचन्द जैन 'प्रेमी' श्री उदयचंद जैन श्री भंवरमल सिंघी श्री गोपीचंद धारीवाल डॉ० हुकुमचन्द संगवे डॉ० (कु०) सत्यभामा दर्शनाचार्य मुनि योगेश विजयमुनि शास्त्री प्रो० श्रीरंजन सूरिदेव कुमारी सुशीला जैन वैद्यराज पं० सुन्दरलाल जैन ३८५ ई० सन् पृष्ठ । १९७४ - ५७-६२ १९७५ १४-१७ १९६० ९-११ १९५२ ७-८ १९७५ ३-१३ १९७१ २१-३० १९५५ १९६६ १४-१९ १९७४ ३२-३९ १९८४ १५-२८ १९८७ २०-२२ १९५८ ७-८ १९७८ ३-७ १९७२ २०-२४ १९५४ १६-१९ १९५६ २३-२५ १९५५ १९-२० १९६२ २९-३४ १९६२ २६-३० da ag an rw mmg x x s roxo a m m mm or 1 39 २९ २३ वसन्त ऋतु का आहार-विहार व्रत का मूल्य वीतराग की उपासना डॉ० नेमिचन्द शास्त्री श्री ज्ञानमुनि जी १३ १३ Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८६ लेख वीर हनुमान: स्वयंभू कवि की दृष्टि में वीरों का श्रृंगार : अहिंसा वैराग्य क्या है ? वैदिक धर्म तथा जैन धर्म शांति का अमोघ अस्त्र-क्षमा शीतऋतु का आहार-विहार शीलव्रत: एक विवेचन शीलव्रत ग्रहण शुद्ध-अशुद्ध भावधारा शुद्धि, चिकित्सा और सिद्धि का महान् पर्व-संवत्सरी शुद्धि प्रयोग का झांकी शुद्ध व्यवहार का आन्दोलन श्वेताम्बर पण्डित परम्परा श्वेताम्बर-परम्परा में श्रावक के गुण और भेद । श्रद्धा का क्षेत्र श्रमण-आचार : एक परिचय श्रमण : एक व्याख्या श्रमण जीवन का बदलता हुआ इतिहास श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक श्रीरंजन सूरिदेव श्रीनारायण सक्सेना स्व० छोटालाल हरजीवन सुशील पं० के० भुजबली शास्त्री मुनि ललितप्रभ सागर वैद्यराज पं० सुंदरलाल जैन श्री सनतकुमार जैन श्री रघुवीरशरण दिवाकर युवाचार्य महाप्रज्ञ युवाचार्य महाप्रज्ञ मुनिश्री नेमिचन्द्र जी श्री किशोरीलाल मशरूवाला श्री अगरचन्द नाहटा श्री कस्तूरमल बांठिया पं० दलसख मालवणिया श्री रमेशमनि शास्त्री श्री महेन्द्रकुमार जैन मुनिश्री आईदान जी If a war or arm uma ag oo w na ई० सन् १९७४ १९६५ १९६४ १९७८ १९८३ १९५४ १९७९ १९५१ १९८७ १९८४ १९६४ १९५१ १९८७ १९६६ १९५२ १९७६ १९६१ १९५६ पृष्ठ ९-१५ ३-८ २२-२९ ९-१३ २९-३१ १९-२० १०-१८ १२-१३ २-६ २-३ ९-१३ १४-१८ १०-१३ ३-१४ ९-१२ ३-७ ११-१३ २९-३४ १३ Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८७ लेख श्रमण-धर्म श्रमण-धर्म : एक विश्लेषण श्रमण परम्परा में धर्म और उसका महत्त्व श्रमण संस्कृति में अहिंसा के प्राचीन संदर्भ-क्रमश: श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक डॉ० मोहनलाल मेहता श्री रमेशमुनि शास्त्री श्री कानजीभाई पटेल डॉ० भागचंद जैन 'भास्कर' २५ २७ पृष्ठ ३३-३८ १५-१८ २३-२७ ३-९ १०-१७ ६ २१ 8 9 my v ur m ur 9 २१८ २३ ३-९ श्रमण संस्कृति में मोक्ष की अवधारणा श्रमणों का युगधर्म श्रावक के गुण एवं भेद- क्रमशः श्री प्रेमकुमार अग्रवाल मुनिश्री नेमिचन्द्र जी श्री कस्तूरमल बांठिया १२ ८-९ ३-११ १७ १७ ई० सन् १९७४ १९७६ १९६४ १९७० १९७० १९७२ १९६१ १९६६ १९६६ १९६६ १९७५ १९६२ १९५१ १९५९ १९५३ १९८० १९६१ १९८९ १९८५ ३-११ श्रावक में षट्कर्म संथारा आत्महत्या नहीं संन्यास का आधार अन्तर्मुखी प्रवृत्ति संन्यास की मर्यादा संन्यासमार्ग और महावीर संयम जीवन का सम्यक् दृष्टिकोण संवत्सरी संवत्सरी संवत्सरी की सर्वमान्य तारीख oww ३-१० ७-१३ ३५-३९ २३-२६ १३-१४ ७-११ २-१३ ३१-३५ डॉ० रमेशचन्द्र जैन श्री दलसुख मालवणिया डॉ०मोहनलाल मेहता आचार्य विनोबा पं० दलसुख मालवणिया डॉ० सागरमल जैन श्री समीर मुनि ‘सुधाकर' डॉ० गोकुलचन्द जैन दिलीप सुराणा ११ ३१ १२ ४० ३६ १६-२२ Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंक 3३ श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक मुनि नगराज जी डॉ० सागरमल जैन श्री राजाराम जैन मुनि दुलहराज आचार्य आनन्द ऋषि डॉ० सागरमल जैन ३३ ४६ ११ १-३ WWW ई० सन् १९८२ १९९५ १९५३ १९६५ १९८३ १९९५ १९८१ १९८३ १९८८ ३८८ लेख संवत्सरी महापर्व : स्वरूप और अपेक्षाएं सकारात्मक अहिंसा की भूमिका सच्ची साधना का प्रभाव सचेल-अचेल सदाचार का महत्त्व सदाचार के शाश्वत मानदण्ड सदाचार-मानदण्ड और जैनधर्म समाधिमरण समाधिमरण का स्वरूप समाधिमरण की अवधारणा: उत्तराध्ययनसूत्र के परिप्रेक्ष्य में समाधिमरण की अवधारणा की आधुनिक परिप्रेक्ष्य में समीक्षा साधना की अमर ज्योति साधना में श्रद्धा का स्थान | साधु मर्यादा क्या? कितनी ? साधु समाज और निवृत्ति साधुओं का शिथिलाचार सामायिक का मूल्य पृष्ठ ६-९ ६९-८६ २८-२९ ११-१५ ११-१२ १३४-१४९ २२-२७ ९-१३ १२-१७ ३४ श्री गणेशप्रसाद जैन श्री रज्जन कुमार ३९ ३८ ३ ... . . . . . . . . . . . १९८७ १४ डॉ० सागरमल जैन मुनि समदर्शी आचार्य श्री आनन्द ऋषि जी श्री सौभाग्यमल जैन पं० दलसुख मालवणिया श्री सौभाग्यमल जैन उपाध्याय श्री अमरमुनि W० ० ३३ १९९१ १९६३ १९८० १९८२ १९५१ १९६४ १९८० ९९-१०१ ४१-४७ १२-१८ १५-१८ ९-१२ ९-१३ ६-८ ३ २ Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक __वर्ष अंक महासती उज्जवल कुमारी १ १२ श्री कन्हैयालाल सरावगी। २९५ ई० सन् १९५० १९७८ ३८९ पृष्ठ । २६ । १०-१७ लेख सामायिक की सार्थकता सामायिक : सौ सयाने एकमत सिद्धर्षिगणिकृत उपमितिभवप्रपंचाकथा से संकलित "धर्म की महिमा" सिद्धि का पथ : आर्जवधर्म सिद्धि योग का महत्त्व सिरोही जिले में जैनधर्म सेवा : स्वरूप और दर्शन सोमदेवकृत उपासकाध्ययन में शीलव्रत(क्रमश:) १८ ११ श्री गोपीचंद धारीवाल श्रीमती अलका प्रचण्डिया 'दीति' पं० के० भुजबली शास्त्री डॉ० सोहनलाल पाटनी श्री रमेशमुनि शास्त्री श्री सनतकुमार जैन १९६७ १९८४ १९७८ १९८२ ३३ १९७६ १८-२३ १७-१८ २८-२९ ३२-३७ ३-४ ३४-३८ २३-२८ ३५-३६ २५-३१ ८-९ ११ ३० ३० ३२ १२ " श्री राजकुमार छाजेड पृथ्वीराज जैन श्री अगरचंद नाहटा १९७९ १९७९ १९८१ १९५० १९५५ ६ १० स्वाध्याय : एक आत्म चिन्तन हजरत मुहम्मद और इस्लाम हमारी भक्ति निष्ठा कैसी हो ? हरिभद्र की श्रावकप्रज्ञप्ति में वर्णित अहिंसा: - आधुनिक संदर्भ में हिंसक और अहिंसक युद्ध हिंसा का बोलबाला Ahimsa in the Ancient East ५७-७० ३८ डॉ० अरुणप्रताप सिंह अशोक कुमार सिंह श्री ताराचन्द्र मेहता Shri Ram Chandra Jain १०-१२ ११ १-३ १९९० १९८७ १९६२ १९६५ ori ६-७ २३-३८ Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक वर्ष अंक ई० सन् पृष्ठ १६ २१ ३. आगम और साहित्य अंग ग्रंथों का बाह्य रूप अंगविज्जा अखिल भारतीय प्राच्यविद्या महासम्मेलन अज्ञात कविकृत शीलसंधि अणगार वन्दना बत्तीसी अद्धमागहाए भाषाए भासंति अरिहा अपने को परखिए अपभ्रंश और देशी तत्त्व अपभ्रंश कथाकाव्यों का हिन्दी प्रेमाख्यानों के शिल्प पर प्रभाव अपभ्रंश का काव्य सौन्दर्य अपभ्रंश का विकास कार्य तथा जैन साहित्यकारों की देन अपभ्रंश की शोध कहानी अपभ्रंश के जैनपुराण और पुराणकार पं० बेचरदास दोशी श्री नारायण शास्त्री श्री गुलाबचन्द्र चौधरी डॉ० सनत्कुमार रंगाटिया डॉ० (श्रीमती) मुन्नी जैन श्री नंदलाल मारु मुनिश्री सुरेशचन्द्र जी शास्त्री डॉ० देवेन्द्रकुमार जैन * * * * w : roorgaa a aa १९६४ १९७० १९५१ १९६९ १९९७ १९७३ १९५५ १९७४ १५-२२ २८-३२ ३८-४४ २१-२६ ६०-७० १३-१५ ३९-४१ ३-८ ६ ११ : a श्री प्रेमचंद जैन प्रो० सुरेशचन्द्र गुप्त १९६७ १९५४ ४३-५३ २३-३० 3 २३ श्रीमती मीना भारती डॉ० देवेन्द्रकुमार जैन रीता विश्वनोई ८ १-२ ७-१२ १९७२ १९६६ १९९१ २९-३४ ३-७ ४५-५६ ४२ Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लेख अपभ्रंश के जैन साहित्य का महत्त्व अपभ्रंश चरितकाव्य तथा कथाकाव्य अपभ्रंश जैन साहित्य "" अपभ्रंश साहित्य : उपलब्धियाँ और प्रभाव अभयकुमार श्रेणिकरास "" अर्धमागधी आगम साहित्य अर्धमागधी भाषा में सम्बोधन का एक विस्मृत शब्द- प्रयोग 'आउसन्ते' अललित जैन साहित्य का अनुवाद-कुछ समस्याएँ अष्टलक्षी: संसार का एक अद्भुत ग्रन्थ अष्टलक्षी में उल्लिखित अप्राप्य रचनायें असाम्प्रदायिक जैन साहित्य चौथी आगमवाचना का सवाल आगम साहित्य में प्रकीर्णकों का स्थान, महत्त्व, रचना - काल एवं रचयिता श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक डॉ० हजारीप्रसाद द्विवेदी डॉ० देवेन्द्र कुमार श्री देवेन्द्रमुनि शास्त्री "" डॉ० देवेन्द्र कुमार डॉ० सनतकुमार रंगाटिया "" डॉ० सागरमल जैन डॉ० के० आर० चन्द्र डॉ० नंदलाल जैन महोपाध्याय चन्द्रप्रभ सागर श्री अगरचंद नाहटा डॉ० पी० एल० वैद्य श्री कस्तूरमल बांठिया डॉ० सागरमल जैन वर्ष ४ २३ २२ 2 a α a w २२ १२ १९ १९ ४६ w n o 2 x o ४६ ३२ ४० १८ ४ ४८ अंक ११ mo १ १० ११ १-३ ७-९ १२ ३ ७ ७-८ ११-१२ ४-६ ई० सन् १९५३ १९७२ १९७१ १९७१ १९६० १९६८ १९६८ १९९५ १९९५ १९८१ १९८९ १९६७ १९५३ १९५८ १९९७ ३९१ पृष्ठ १-३ ३-१० १८-१२ १२-१७ २१-२५ २५-३० २२-२८ १-४५ ६६-६९ २१-२६ २-८ ९-११ १७-२४ ६८-७० १४७१५६ Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९२ लेख वर्ष २९ ३० अंक २ १२ ई० सन् १९७७ १९७९ १९६२ १९५३ १९६८ श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक डॉ० मोहनलाल मेहता डॉ० मोहनलाल मेहता मुनि श्री कन्हैयालाल 'कमल' पं० बेचरदास दोशी डॉ० बशिष्ठ नारायण सिन्हा श्री अगरचन्द नाहटा राजमल पवैया डॉ० श्रीरंजन सूरिदेव श्री देवेन्द्रमुनि शास्त्री डॉ० कमल जैन डॉ० सुदर्शनलाल जैन आगमिक प्रकरण आगमिक व्याख्याएँ आगमों का आनुयोगिक-वर्गीकरण आगमों के सम्पादन में कुछ विचार योग्य प्रश्न आचार्य कुन्दकुन्द और उनका साहित्य आचार्य भद्रबाहु और हरिभद्र की अज्ञात रचनाएँ आचार्य मानतुंगसूरिविरचित भक्तामरकाव्य आचार्य वादिराजसूरि आचार्य सिद्धसेन दिवाकर की साहित्य साधना आचार्य हरिभद्र और उनका साहित्य । आचार्य हरिभद्र और धर्मसंग्रहणी - क्रमश: पृष्ठ ३-१३ ३-१७ ९-१२ २५-२९ १५-२१ २५-३१ १-४ २६-२९ ५-१४ १-१२ २१-२९ १६-२२ ३-१० १९७४ १९८२ १९६८ १९६८ १९९३ १९६९ १९६८ १९७१ २० २० श्री उदयचंद जैन २२ आचार्य हेमचन्द्र और कुमारपालचरित आचार्य हेमचन्द्र के पट्टधर आचार्य रामचद्र के अनुपलब्ध नाटकों की खोज अत्यावश्यक आचार्य हेमचन्द्र के योगशास्त्र पर एक प्राचीन टीका ११ ४ श्री अगरचंद नाहटा १८ १९६७ २१-२५ श्री जुगलकिशोर मुख्तार १८ ११ १९६७ २-१७ Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंक लेख आचारांग का परिचय आचारांग के कुछ महत्त्वपूर्ण शब्द आचारांगसूत्र -क्रमश: श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक मुनिश्री कन्हैयालाल जी 'कमल' साध्वी श्री कनकप्रभा पं० दलसुख मालवणिया । वर्ष १२ १८ ८ a avaa aa aa aa a r or a a a så ro ou rom x su var arvamu ३९३ ई० सन् पृष्ठ । १९६१ , २७-३५ १९६६ ६१-६४ १९५७ - ४-७ १९५७ ७-९ १९५७ १०-२ १९५८ २३-२५ १९५८ ३-६ १९५८ ३-६ १९५८ ३४-३७ १९५८ ९-१५ १९५८ २६-२९ १९५८ २५-२७ १९८७ १-१९ १९६६ १९-२६ १९६६ १२-१४ १९६७ २९-३१ १९६७ आचारांगसूत्र- एक विश्लेषण आर्षप्राकृत का व्याकरण -क्रमश: डॉ० सागरमल जैन पं० बेचरदास दोशी ३९ १७ १७ ܙ ܐ Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वर्ष अंक श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक श्री अगरचंद नाहटा श्री अगरचन्द नाहटा १२ १० १२५ ई० सन् १९६१ १९६१ १९७१ १९५५ १९७८ १९८४ १९६४ १९९१ १९७० २९ ३९४ लेख एक अज्ञात ग्रन्थ की उपलब्धि एक अज्ञात जैनमुनि का संस्कृत दूत काव्य “हंसदूत” एक अप्रकाशित प्राचीन प्राकृत सूत्र का अध्ययन एक आश्चर्यमय ग्रन्थ उत्तराध्ययन: नामकरण व कर्तृत्व उत्तराध्ययनसूत्र उत्तराध्ययनसूत्र : धार्मिक काव्य उपदेशमाला (धर्मदासगणि) एक समीक्षा उपा० भक्तिलाभरचित न्यायसारअवचूर्णि ऋग्वेद में अर्हत् और ऋषभवाची ऋचायें : एक- अध्ययन ऋषिभाषित का अन्तस्तल ऋषिभाषित का परीक्षण ऋषिभाषित का सामाजिक दर्शन कर्मप्राभृत अथवा षटखण्डागम: एक परिचय कर्मयोगी कृष्ण के आगामी भव कतिपय जैनेतर ग्रथों की अज्ञात जैन टीकाएं पृष्ठ २९-३० १७-२१ २३-२५ २९-३२ ३-११ २-२६ ४८-५७ ९७१०० १९-२१ ३५ डॉ० सूर्यदेव शर्मा श्री देवेन्द्रमुनि शास्त्री श्री मिश्रीलाल जैन प्रो० कानजी भाई पटेल दीनानाथ शर्मा श्री अगरचंद नाहटा १-३ ४२ २१ ४५ डॉ० सागरमल जैन श्री मनोहर मुनि १ १५ ४३ १-३ साध्वी (डॉ०) प्रमोद कुमारी डॉ० मोहनलाल मेहता श्री देवेन्द्रमुनि शास्त्री श्री अगरचंद नाहटा ० ० Wm W U १९९४ १९६० १९६४ १९९२ १९६४ १९७२ १९७८ १८५-२०२ ७-८ २६-३१ ६९-७९ २०-२७ ३-९ २६-३१ mare ३० Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक पं० के० भुजबली शास्त्री वर्ष अंक ७ ई० सन् १९७३ . पृष्ठ १३-२० 9 ४३ ७-९ लेख कन्नड़ में जैन साहित्य कवि छल्लकृत अरडकमल्ल का चार भाषाओं में वर्णन कवि देपाल की अन्य रचनायें कवि रत्नाकर और रत्नाकरशतक कविवीर और उनका जंबूसामिचरिउ कल्पसूत्र का हिन्दी पद्यानुवाद कल्याणसागरसूरि को प्रेषित सचित्र विज्ञप्तिलेख कषायप्राभृत श्री भँवरलाल नाहटा श्री अगरचंद नाहटा डॉ० श्रीरंजन सूरिदेव डॉ० देवेन्द्र कुमार श्री अगरचंद नाहटा १९९२ १९८२ १९६८ १९६९ १९५५ १९६५ १९६५ १९६५ १९६७ ५३-५८ २९-३३ १७-२४ ८-१७ २-८ २९-३० १६-२१ २२-२६ १५-२२ डॉ० मोहनलाल मेहता y or a ora a ao morona कषायप्राभृत की व्याख्यायें क्या ‘सपकमाला' नामक रचनाँए अलंकार शास्त्र सम्बन्धी है? क्या व्याख्याप्रज्ञप्ति का १५वां शतक प्रक्षिप्त है? काव्यकल्पलतावृत्ति कीर्तिवर्द्धनकृत सदयवत्स-सावलिंगाचउपई कुन्दकुन्दाचार्य की साहित्यिक उद्भावनाएँ श्री अगरचन्द नाहटा १९७८ १९७० १९५८ १९७६ १९७६ १२-१७ १२-१९ १२-१५ २२-२६ ३०-३२ श्री अशोककुमार मिश्र श्री रमेशमुनि शास्त्री Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९६ लेख कुंभारियाके जैन अभिलेखों का सांस्कृतिक-अध्ययन श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक डॉ० हरिहर सिंह पृष्ठ वर्ष २८ ई० सन् १९७७ १९७७ १९७१ १९६७ श्री फूलचंद जैन 'प्रेमी' श्री प्रेमसुमन जैन ३०-३६ २५-३८ २४-२९ ३-८ कुरलकाव्य कुवलयमालाकहा का कथा-स्थापत्य-संयोजन कुवलयमाला की मुख्य कथा और अवान्तर - कथाएँ (क्रमश:) डॉ० के० आर० चन्द्र E ao ar ar mx w ovo x १९७५ १९७५ १९७५ १९७५ १९७५ १९७५ ३-८ ३-८ १०-११ १९-२१ १९-२२ २१-२५ श्री कस्तूरमल बांठिया १९६७ २-१७ "कुवलयमाला' मध्ययुग के आदिकाल की एक - जैन कथा कुवलयमालाकहा में उल्लिखित कडंग, चन्द्र - और तार द्वीप गीतासंज्ञक जैन रचनाएं क्षेत्रज्ञ शब्द का स्वीकार्य प्राचीनतम अर्धमागधी रूप श्री प्रेमसुमन जैन श्री अगरचन्द नाहटा डॉ० के० आर० चन्द्र va १९७२ १९५१ १९९२ १३-८ २५-२७ ४१-४४ १०-१२ Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक वर्ष ३९७ पृष्ठ अंक ई० सन् श्री अगरचंद नाहटा ४१ २२ १०-१२ १२ ६ १९९० १९७१ १९५४ ४९-५६ १३-१७ १६-१७ लेख क्षेत्रज्ञ शब्द के विविध रूपों की कथा और उसकाअर्धमागधी रूपान्तर चतुर्विंशतिस्तव का पाठ भेद और एक अतिरिक्त गाथा चन्द्रवेध्यक आदि-सूत्र अनुपलब्ध नहीं हैं। चन्द्रवेध्यक (प्रकीर्णक) एक आलोचनात्मक - परिचय चन्दन-मलयागिरि चूर्णियां और चूर्णिकार छीहल की एक दुर्लभं प्रबन्ध कृति जयप्रभसूरिरचित कुमारसंभवटीका जयसिंहसूरिरचित अप्रसिद्ध ऋषभदेव और वीरचरित्र युगल काव्य जिनचन्द्रसूरिकृत क्षपक शिक्षा का विषय जिनराजसूरिकृत नैषधमहाकाव्यवृत्ति । जिनसेन का पार्श्वभ्युदय : मेघदूत का माखौल जीवित साहित्य की वाणी जैकोबी और वासी-चन्दन-कल्प -क्रमश: श्री सुरेश सिसोदिया श्री अशोक कुमार मिश्र डॉ० मोहनलाल मेहता श्री अशोककुमार मिश्र श्री अगरचंद नाहटा २७ ६ २७ ruirym or vari १९९२ १९७६ १९५५ १९७६ १९७० ४५-५३ २०-२५ १०-१४ २२-२८ ३१-३३ श्री अगरचंद भंवरलाल नाहटा २०८ श्री श्रीरंजन सूरिदेव श्री विजय मुनि मुनिश्री महेन्द्रकुमार जी 'द्वितीय' * * * * * * १९७९ १९७१ १९६९ १९६७ १९५१ १९६६ १९-२३ ३४-३५ १५-१८ २८-३२ ३६-३७ २७-३४ Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९८ श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक ई० सन् #222 w 9 v पृष्ठ २३-२८ १४-२० १३-१८ १९६६ १९६६ जैन अभिलेखों की भाषाओं का स्वरूप एवं - विविधताएँ जैन आगम और विज्ञान जैन आगमों का मन्थन -क्रमशः श्रीनारायण दुबे श्री कस्तूरमल बांठिया डॉ० इन्द्र श्री अगरचन्द नाहटा डॉ० सागरमल जैन श्री सौभाग्यमल जैन श्री मोहनलाल मेहता My » ~ My १२ ९ १०-१२ ८ १९९१ १९६१ १९५३ १९५३ १९५० १९९७ १९८४ १९५६ ८९-९२ ३६-४० ३५-३७ २९-३० ९-१४ १-२८ ६-९ ९-१२ जैन आगमों का महत्त्व और कर्त्तव्य जैन आगमों की मूल भाषा : अर्धमागधी या शौरसेनी जैन आगमों में विद्वत् गोष्ठी जैन आगमों में नियुक्तियाँ जैन आगमों में हुआ भाषिक स्वरूप परिवर्तन - एक विमर्श जैन आलंकारिकों की रसविषयक मन्यताएँ जैन कला विषयक साहित्य जैन कन्नड़ वाङ्गमय ४५ डॉ० सागरमल जैन डॉ० कमलेशकुमार जैन डॉ० ज्योतिप्रसाद जैन श्री के० भुजबली शास्त्री Mry x w no १९७८ १९७८ १९५३ २३९-२५३ १४-२४ १८-२१ ४७-५१ Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ न वर्ष अंक जैन कवि जटमलकृत प्रेमविलासकथा जैन कवि विक्रम और उनका नेमिदूत काव्य जैन कृष्ण साहित्य -क्रमशः श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक श्री अशोककुमार मिश्र श्री रविशंकर मिश्र श्री देवेन्द्रमुनि शास्त्री ३२ २२ १० ३९९ ई० सन् पृष्ठ १९७५ . २०-२३ १९८१ ९-१४ । १९७१ १०-१६ १९७१ १४-१९ १९९७ ७१-७५ १९७८ ३-१४ १९५३ ३५-३८ डॉ० रामप्रवेश कुमार डॉ० मोहनलाल मेहता पं० फूलचन्द्र सिद्धान्तशास्त्री ४८ ३० १-३ ५ ७-८८ श्री देवेन्द्रमुनि शास्त्री डॉ० कुमुद गिरि पं० अम्बालाल प्रेमचंद शाह ५ १०-१२ "जैनचम्पूकाव्य"- एक परिचय जैन धर्म दर्शन का स्त्रोत-साहित्य जैन पुराण साहित्य जैन, बौद्ध और वैदिक साहित्य-एक तुलनात्मक - अध्ययन जैन महापुराण : एक कलापरक अध्ययन जैनरत्नशास्त्र जैन रास की दुर्लभ हस्तलिखित प्रति : विक्रम - लीलावतीचौपाई जैन रास साहित्य जैन लोककथा साहित्य : एक अध्ययन जैन विद्या के अध्ययन एवं संशोधन केन्द्रों की स्थापना १९८१ १९९४ १९७० १-२८ ३३-३६ २९-३२ डॉ० सुरेन्द्रकुमार आर्य श्री अगरचंद नाहटा श्री महेन्द्र राजा १९७५ १९५६ १९५३ १३-१४ १५-१६ १३-२८ ४ ११ डॉ० के० ऋषभचन्द्र ३४ ७ १९८३ २२-२५ Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वर्ष अंक ३० ४०० लेख जैन विद्वानों के कुछ हिन्दी वैद्यक ग्रन्थ जैन व्याकरणशास्त्रों में शोध की संभावनाएँ जैन व्याख्या और विचार जैन व्याख्या पद्धति जैन शास्त्रों में वर्णित १८ श्रेणियों का उल्लेख जैन साहित्य और अनुसंधान की दिशा जैन साहित्य और सांस्कृतिक संवेदना जैन साहित्य का इतिहास और इसकी प्रगति साहित्य का नवीन अनुशीलन जैन साहित्य का नवीन संस्करण जैन साहित्य का सिंहावलोकन जैन कथा साहित्य का सार्वजनीन महत्त्व जैन साहित्य का विहंगावलोकन जैन साहित्य का बृहद इतिहास, भाग ५ के कतिपय संशोधन जैन साहित्य की प्रतिष्ठा जैन साहित्य के विषय में अजैन विद्वानों की दृष्टियाँ श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक आचार्य राजकुमार जैन श्री रामकृष्ण पुरोहित डॉ० बशिष्ठनारायण सिन्हा पं० सुखलाल जी श्री ज्ञानचन्द श्री गोकुलचंद श्री गुरुचरणसिंह मोंगिया पं० दलसुख मालवणिया डॉ० वासुदेवशरण अग्रवाल वाल्टर शूबिंग पं० दलसुख मालवणिया मुनि जिनविजय जी डॉ० इन्द्र २७ ई० सन् १९७६ १९७९ १९६० १९५३ १९७५ १९५९ १९७६ १९५४ १९५३ १९५३ १९५८ १९५४ १९५३ xroronarny yoon aw or पृष्ठ १५-२४ १३-२२ २१-२४ ७१-७३ १८-२१ ३३-३५ ११-२१ ३०-३९ ११-१२ १३-१४ ३०-४० २९-३८ ८-१४ २१ श्री अगरचंद नाहटा श्री गोकुलचंद्र जैन डॉ० इन्द्र १९७० १९६० १९५३ २०-२३ ३२-३४ २५-२८ Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लेख वर्ष अंक पृष्ठ ण अग्रवाल जैन साहित्य निर्माण की नवीन योजना जैन साहित्य के संकेत चिन्ह जैन साहित्य में कृष्ण-कथा जैन साहित्य सेवा जैन हरिवंशपुराण-एक सांस्कृतिक अध्ययन जैनागम-पदानुक्रम -क्रमशः श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल डॉ० इन्द्र श्रीमती रीता सिंह डॉ० इन्द्र लल्लू पाठक डॉ० मोहनलाल मेहता श्री जमनालाल जैन o ra ar an ई० सन् १९५२ १९५३ १९८८ १९५८ १९८२ . १९७५ ३०-३८ २७-३२ १३-१५ १५-२२ २६-३३ x 5 w a vor of my s १९७५ १९७५ १९७५ १९७५ १९७५ १९७५ १९७५ १९७६ १९७६ १९७६ २६-३० २८-३१ २१-२५ २२-२६ ३०-३२ २९-३१ २४-२७ २७-३० ३१-३३ ३१-३४ Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २ श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक वर्ष अंक २७६ ई० सन् १९७६ १९७६ १९७ १९७६ १९७५ १९७६ १९७६ १९५३ १९८१ १९७२ १९७८ १९६० पृष्ठ २९-३१ २७-३० २९-३० ३७-३८ २९-३१ ३०-३२ ३३-३४ ११-१२ ७८-८६ २०-२१ ३-११ ५९-६२ २७ डॉ० वासुदेवशरण अग्रवाल आचार्य राजकुमार जैन श्री चम्पालाल सिंघई डॉ० भूपसिंह राजपूत श्री अगरचंद नाहटा ३२ २३ जैन साहित्य का नवीन अनुशीलन जैनाचार्यों द्वारा आयुर्वेद साहित्य में योगदान जैनों में सती प्रथा ज्योतिषशास्त्र और सन्मति वर्धमान महावीर ज्ञानार्णव (ग्रन्थ परिचय) तरंगलोला और उसके रचयिता से सम्बन्धित - भ्रान्तियों का निवारण तीर्थंकर प्रतिमाओं का उद्भव और विकास तित्थोगाली (तिर्थोद्गालिक) प्रकीर्णक की गाथा - संख्या का निर्धारण Tr पं० विश्वनाथ पाठक - डॉ० हरिहर सिंह ४६ १०-१२ १-२ १९९५ १९७३ १५-२३ ४३-५२ अतुलकुमार प्रसाद सिंह ४७ १०-१२ १९९६ ५३-६४ Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लेख तेरापंथ सम्प्रदाय के हस्तलिखित ग्रन्थ संग्रहालय थुल्लवंश की एक अपूर्ण प्रशस्ति तेलगू भाषा के अवधानी विद्वानों की परम्परा दशरूपक एक अपभ्रंश दोहा : कुछ तथ्य दशरूपक की एक अव्याख्यात्मक गाथा दशरूपकावलोक में उद्धृत अपभ्रंश उदाहरण दशाश्रुतस्कन्ध की बृहद् टीका और टीकाकार मतिकीर्ति दशाश्रुतस्कन्ध के विविध संस्करण एवं टीकाएँ दशाश्रुतस्वन्ध निर्युक्ति : अन्तरावलोकन दशाश्रुतस्कन्ध निर्युक्ति में इंङ्गित दृष्टांत द्वीपसागरप्रज्ञप्ति धम्मपद और उत्तराध्ययन का एक तुलनात्मक अध्ययन ध्वन्यालोक एवं दशरूपक की दो प्राकृत गाथाएंएक चिन्तन धूमावली-प्रकरणम् नन्दीसूत्र की एक जैनेतर टीका निर्युक्ति साहित्य : एक पुनर्चिन्तन श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक श्री अगरचंद नाहटा श्री भँवरलाल नाहटा श्री अगरचंद नाहटा डॉ० देवेन्द्रकुमार जैन पं० विश्वनाथ पाठक डॉ० हरिवल्लभ भयाणी श्री अगरचंद नाहटा "" डॉ० अशोककुमार सिंह 33 श्री अगरचंद नाहटा महेन्द्रनाथ सिंह श्री विश्वनाथ पाठक साध्वी अतुलप्रभा श्री अगरचंद नाहटा डॉ० सागरमल जैन वर्ष ११ १८ ११ ३३ ३३ ३३ २९ २९ ४८ ४८ १६ ३७ ३० ४७ १६ ४५ अंक १-२ २ த J १० 2 १०-१२ १-३ ३ ८-९ ७ १-३ ७ ४-६ ई० सन् १९६० १९६६ १९५९ १९८२ १९८२ १९८२ १९७८ १९७७ १९९७ १९९७ १९६५ १९८६ १९७९ १९९६ १९६५ १९९४ ४०३ पृष्ठ २३-२५ २१-१५ २४-२७ २४-२६ २०-२१ ३८ ३-९ २१-२४ ३१-४४ ४७-५९ १८-१९ १-९ ३२-३६ ६०-६४ १३-१४ २०३-२३३ Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०४ लेख निर्युक्तियाँ और नियुक्तिकार निशीथचूर्णि पर एक दृष्टि नेमिचन्द्रजी शास्त्री और 'अरिहा' शब्द पंचास्तिकाय के टीकाकार और टीकाएं पंचेन्द्रिय संवाद : एक आध्यात्मिक रूपक काव्य पंजाबी में जैन साहित्य की आवश्यकता >> "" पं० जोधराज कासलीवाल और उनका सुखविलास डॉ० रमेशचन्द्र जैन पं० मुनि विनयचन्द्रकृत ग्रहदीपिका पं० रामचंद्र गणिरचित सुमुखनृपतिकाव्य पउमचरिउ - परम्परा, संदर्भ और शिल्प श्री अगरचंद नाहटा पउमचरियं : संक्षिप्त कथावस्तु "" पउमसिरीचरिउ के मूल स्त्रोत श्रमण : अतीत के झरोखे में पच्चीसवीं निर्वाण-शताब्दी के आयोजनों में - आगम-वाचना भी हो लेखक श्री मोहनलाल मेहता श्री विजय मुनि पं० बेचरदास दोशी डॉ० लालचन्द जैन डॉ० मन्त्री जैन श्री माईदयाल जैन "" डॉ० देवेन्द्रकुमार जैन डॉ० के० ऋषभ चन्द्र "" "" "" "" 17 श्री नन्दलाल मारु वर्ष ११ २० ३० ४८ १२ २५ २१ १९ २३ १७ १७ १७ 222 १७ १७ २५ अंक ११ ६ ४ ७-९ w m ु 100 10 0 ११ १२ m Xx ३ ४ ६ ई० सन् १९५४ १९६० १९६९ १९७९ १९९७ १९६१ १९७४ १९७० १९६८ १९७२ १९६६ १९६६ १९६६ १९६६ १९६६ १९६६ १९७४ पृष्ठ ९-१५ ५४-५८ ३२-३६ ३-१२ ५१-६७ २२-२३ १४-१७ १५-१७ ३०-३१ ३-७ ८-११ २२-२७ २६-३० ३-८ ३-८ १६-२३ ३२-३५ Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक डॉ० रमेशचन्द्र जैन ४०५ पृष्ठ ३-६ १०-१८ ई० सन् १९७४ १९७२ २५ २३ श्री अगरचन्द नाहटा श्री अभयकुमार जैन श्री प्रेमसुमन जैन १९७० १९७७ १९७३ ३०-३१ १३-१७ ३-१६ लेख पद्मचरित : एक महाकाव्य पद्मचरित की भाषा और शैली पद्ममंदिररचित बालावबोध प्रवचनसार का नहीं प्रवचनसारोद्धार का है। परमानन्दविलास : एक परिचय पश्चिम भारत का जैन संस्कृत साहित्य को योगदान पाणिनीय व्याकरण का सरलीकरण और आचार्य हेमचन्द्र पालि क्या बोलचाल की भाषा थी ? पार्श्वभ्युदय में श्रृंगाररस पार्वाभ्युदय में प्रकृति-चित्रण पिण्डनियुक्ति पुण्डरीक का दृष्टात पुराणों में ऋषभदेव पुरुदेवचम्पू का आलोचनात्मक परिशीलन पुष्पदन्त और सूर का कृष्ण लीलाचित्रण पुष्पदन्त का कृष्ण काव्य श्री श्यामधर शुक्ल डॉ० कोमलचंद जैन डॉ० रमेशचन्द्र जैन २८ २८ " डॉ० जगदीशचन्द्र जैन श्री श्रीप्रकाश दुबे डॉ० मनोहरलाल दलाल डॉ० कपूरचन्द जैन डॉ० देवेन्द्रकुमार जैन १९९६ १९६९ १९७७ १९७७ १९६६ १९६४ १९७४ १९८७ १९७० १९६७ १७ १५ ५-६ २५ ९ ३८८ २२ ११ १९ १-२ ३-१० १७-२१ ९-१५ २५-३० २८-३१ १२-१४ ११-१४ ७-१३ ३-११ ३-१३ Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०६ लेख पुष्पदन्त का कृष्ण-काव्य : एक अनुशीलन "" पुष्पदन्त की रामकथा पुष्पदन्त की रामकथा की विशेषताएँ पैंतालीस और बत्तीस सूत्रों की मान्यता पर विचार ४५ आगम और मूलसूत्र की मान्यता पर विचार प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक वैभव प्रसिद्धिप्राप्त श्वेताम्बर जैनों की कुछ कृत्रिम कृतियों प्राकृत का अध्ययन प्राकृत और उसका विकास स्त्रोत प्राकृत और उसका साहित्य प्राकृत की बृहत्कथा “वसुदेवहिण्डी” में वर्णित कृष्ण प्राकृत के विकास में बिहार की देन - क्रमशः प्राकृत जैन कथा साहित्य-क्रमशः 77 प्राकृत 'पउमचरिय' रामचरित श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक कु० प्रेमलता जैन "" डॉ० देवेन्द्रकुमार जैन कु० प्रेमलता जैन श्री अगरचन्द नाहटा " डॉ० प्रवेश भारद्वाज श्री कस्तूरमल बांठिया डॉ० सुनीतकुमार चाटुर्ज्या श्री श्रीरंजन सूरिदेव श्री अगरचन्द नाहटा डॉ० श्रीरंजन सूरिदेव "" श्री देवेन्द्रमुनि शास्त्री "" डॉ० श्रीरंजन सूरिदेव वर्ष 2 2 2 2 २७ २७ १७ २८ १ ३३ ४१ १९ १९ a ago x x x x २२ १० ४५ २१ २१ २२ २२ २२ अंक ४ J १-२ or on ११ ६ ४-६ ४ ९ out m ६ ३ ७-९ j wor ६ ई० सन् १९७६ १९७६ १९६५ १४-१८ १९७६ ५- १२ १९५० २४-२९ १९८२ ६१-६३ १९९० ८९-१०० १९६८ ९-३० १९६८ १०-१२ १९७१ ३-९ १९५९ १३-१९ १९९४ २३-३० १९७० ४-१४ १९७० २०-३६ १९७१ ३-१० १९७१ १६-२१ १९७० १४-१९ पृष्ठ ३-९ ३-९ Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण : अतीत के झरोखे में ४०५ लेख लेखक श्री अगरचन्द नाहटा ई० सन् १९७६ पृष्ठ १०-१४ २७ ५ प्राकृत भद्रबाहुसंहिता का अर्धकाण्ड प्राकृत भाषा के कुछ ध्वनि-परिवर्तनों की ध्वनि - वैज्ञानिक व्याख्या प्राकृत भाषा और जैन आगम प्राकृत भाषा के चार कर्मग्रन्थ प्राकृत व्याकरण और भोजपुरी का 'केर' प्रत्यय-क्रमश: डॉ० देवेन्द्रकुमार जैन डॉ० रमेशचन्द्र जैन श्री अगरचन्द नाहटा पं० कपिलदेव गिरि १९७७ १९८७ १९६२ १९७१ १९७१ ३-७ १६-२२ २४-२५ २९-३८ २४-३८ डॉ० के० आर० चन्द्र १९९१ ११-१९ प्राकृत व्याकरण : वररुचि बनाम हेमचन्द्र - अंधानुकरण या विशिष्ट प्रदान प्राकृत साहित्य के इतिहास के प्रकाशन की - आवश्यकता प्राकृत साहित्य में श्रीदेवी की लोक-परम्परा पार्श्वभ्युदयकाव्य : विचार-वितर्क प्रज्ञाचक्षु राजकवि श्रीपाल की एक अज्ञात रचना-शतार्थी प्रद्युम्नचरित में प्रयुक्त छन्द-एक अध्ययन प्राचीन जैन कथा साहित्य का उद्भव, विकास - और वसुदेवहिंडी श्री अगरचन्द नाहटा श्री रमेश जैन डॉ० श्रीरंजन सूरिदेव श्री अगरचंद नाहटा कु० भारती ur - १९ १९५३ १९७७ १९६७ १९६७ १९९७ २१-२७ २१-२५ ३९-४२ ६-८ ६८-८० ७-९ डॉ० (श्रीमती) कमल जैन ४६ १०-१२ १९९५ ५२-६३ Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०८ लेख प्राचीन जैन राजस्थानी गद्य साहित्य प्राचीन जैन साहित्य के प्रारम्भिक निष्ठासूत्र प्राचीन पांडुलिपियों का संपादन : कुछ प्रश्न और हल प्राचीन भारतीय वाङ्मय में पार्श्वचरित प्राणप्रिय काव्य का रचनाकाल, श्लोक संख्या और सम्प्रदाय बंगला आदि भाषाओं के सम्बन्धवाची प्रत्यय ब्राह्मी लिपि और ऋषभनाथ बुन्देलखण्डी भाषा में प्राकृत के देशीशब्द बीसवीं शती का जैन इतिहास भक्तामर की एक और सचित्र प्रति भक्तामरस्त्रोत की सचित्रप्रतियाँ ? भक्तामरस्त्रोत के श्लोकों की संख्या ४४ या ४८ भगवान् महावीर की २५वीं निवार्णशती कैसे मनायें भगवान् महावीर की मंगल विरासत भट्टअकलंककृत लघीयस्त्रय: एक दार्शनिक अध्ययन भट्टारक सकलकीर्ति और उनकी सद्भाषितावली श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक श्री अगरचंद नाहटा पं० दलसुखभाई मालवणिया डॉ० देवेन्द्रकुमार जैन डॉ० जयकुमार जैन श्री अगरचंद नाहटा पं० कपिलदेव गिरि डॉ० देवेन्द्रकुमार जैन डॉ० कोमलचंद जैन श्री अगरचन्द नाहटा "" " "" श्री नन्दलाल मारु पं० सुखलाल संघवी हेमन्तकुमार जैन डॉ० रमेशचन्द्र जैन वर्ष ७ ४० २९ ३२ ३३ २२ २७ २१ ५ २४ २२ २१ १९ ४० ४१ २५ अंक I 10 10 10 १० ११ ११ ७ १२ ७ ७ ४ १० १-२ ६ ७-९ १-२ ई० सन् १९५६ १९८९ १९७८ १९८० पृष्ठ ११-१८ ११-२० १९-२३ २९-४५ १९८२ २७-२९ १९७१ १८-२९ १९७५ २५-२८ १९७० २०-२३ १९५४ २०-२४ १९७३ २१-२४ १९७१ १३-१९ १९७० २७-३१ १९६७ ३२-३६ १९८९ १-८ १९९० ८३-९० १९७३ २९-३४ Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०९ ___ अंक १ ई० सन् १९५४ . पृष्ठ । ६-८ ६ १९९१ ७१-७४ श्रमण : अतीत के झरोखे में लेख लेखक भद्रबाहु का कालमान मुनिश्री फूलचन्द जी भरतमुनि द्वारा प्राकृत को संस्कृत के साथ प्रदत्तसम्मान और गौरवपूर्ण स्थान डॉ० के०आर०चन्द्र भविसयत्तकहा तथा अपभ्रंश कथाकाव्य; कुछ - प्रतिस्थापनायें डॉ० देवेन्द्रकुमार जैन भारतीय आर्यभाषा और अपभ्रंश भारतीय आचार्यों की दृष्टि में काव्य के हेतु डॉ० गंगासागर राय भारतीय कथा साहित्य में पद्मचरित का स्थान श्री रमेशचन्द्र जैन भारतीय प्रतीक परम्परा में जैन साहित्य का योगदान डॉ० प्रेमचंद जैन भारतीय वाङ्मय में प्राकृत भाषा का महत्त्व पं० बेचरदास दोशी भारतीय साहित्य की रमणीय काव्य रचना : - गउडवहो डॉ० श्रीरंजन सूरिदेव भाषा और साहित्य श्री कन्हैयालाल सरावगी भाष्य और भाष्यकार श्री मोहनलाल मेहता मंगलकलशकथा श्री भँवरलाल नाहटा मल्लिषेण और उनकी स्याद्वादमंजरी डॉ० बशिष्ठनारायण सिन्हा १९७१ १९७६ १९६३ १९७३ १९७० १९६८ ६-११ ९-१२ २४-२७ ३-११ ३२-३७ ६-१६ २४ २१ a roa osor or x 9 w १९ २४ १९७३ १९७६ १९५५ १९६८ १९७५ ३-७ ३-१४ ४-१२ २६-३४ ३-६ १९ २६६ Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१० लेख महाकथा कुवलयमाला के रचनाकार का उद्देश्य - और पात्रों का आयोजन महाकवि बनारसीदास का रसदर्शन महाकवि जिनहर्ष और उनकी कविता महाकवि स्वयंभू के काव्यविचार महान् साहित्यकार आचार्य हरिभद्रसूरि महाराष्ट्री प्राकृ महावीर - सम्बन्धी एक अज्ञात संस्कृत चरित्र महावीर - सम्बन्धी साहित्य महावीर से पहले का जैन इतिहास महेन्द्रकुमार 'न्यायाचार्य' द्वारा सम्पादित एवं - अनूदित षड्दर्शनसमुच्चय की समीक्षा महो० समयसुंदर का एक संग्रहग्रंथ 'गाथासहस्त्री' महोपाध्याय समयसुन्दर-रचित कथाकोश माणिक्यनन्दीविरचित परीक्षामुख मानवमूल्यों की काव्यकथा भविसयत्तकहा मुनिमेघकुमाररचित किरातमहाकाव्य की अवचूरि श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक डॉ० के० आर० चन्द्र श्री गणेशप्रसाद जैन श्री मोहन 'रत्नेश' डॉ० देवेन्द्रकुमार जैन डॉ० ज्योतिप्रसाद जैन पं० बेचरदास दोशी श्री अगरचन्द नाहटा कु० मंजुला मेहता डॉ० इन्दु डॉ० सागरमल जैन श्री अगरचंद नाहटा श्री भँवरलाल नाहटा डॉ० मोहनलाल मेहता डॉ० देवेन्द्र कुमार श्री अगरचंद नाहटा वर्ष २४ २३ २९ २४ १७ १९ २६ २५ ४ V m x y a 8 ४८ २३ २८ २८ १९ २० अंक ११ w 5 o 1 or 1 १० १-२ ११ १-२ ४ ७-८ ४-६ ११ १ ९ ई० सन् १९७३ १९७२ १९७८ १९७३ १९६५ १९६८ १९७४ १९७४ १९५३ १९९७ १९७२ १९७६ १९७७ १९६८ १९६८ पृष्ठ १०- १३ ३१-४१ २४-२६ २५-२७ ५३-५५ ५-८ ५२-५६ २७-३२ ३०-३४ १४१-१४६ २३-२८ २४-२७ २३-२४ ५-९ १५-१७ Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लेख वर्ष अंक १८६ ४२ २१ ७-१२ ३ ७-८ श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक श्री प्रेमचंद जैन श्री माईदयाल जैन डॉ० के० आर० चन्द्र श्री प्रेमचंद जैन श्री अगरचंद नाहटा श्री श्रेयांसकुमार जैन श्री रविशंकर मिश्र डॉ० कमलेश कुमार जैन श्री अगरचन्द नाहटा श्री कुन्दनलाल जैन श्री अगरचंद नाहटा ई० सन् १९६७ १९५३ १९९१ १९७० १९६४ १९७७ ४११ पृष्ठ २-९ ७-११ ११-१५ ९८-२४ ६३-६४ १७-२२ ७०-७७ " २९ मुनिरामसिंहकृत ‘पाहुडदोहा' एक अध्ययन मूक साहित्यसेवी : श्री पन्नालालजी मूलअर्धमागधी के स्वरूप की पुनर्रचना मूलाचार मेघदूत की एक अज्ञात बालबोधिका पंजिका मेघविजय के समस्यापूर्ति काव्य मेरुतुंग के जैनमेघदूत का एक समीक्षात्मक अध्ययन मेवाड़ में चित्रित कल्पसूत्र की एक विशिष्ट प्रति योगनिधान रघुवंश की अज्ञात जैन टीका रस-विवेचन : अनुयोगद्वार सूत्र में रहस्यवादी जैन अपभ्रंशकाव्य का हिन्दी साहित्य पर प्रभाव -क्रमशः v ४८ १-३ १६ १६ १६ १९७७ १९९७ १९६३ १९७६ १९६५ १९६५ १९६५ १९६५ १९६९ १२ ४ ५ ६ श्री प्रेमचन्द्र जैन २४-२६ २१-३२ ३१-३२ २३-२९ २६-३१ १२-१७ १२-१७ १५-१९ २३-३१ x 9 राजस्थानी के विकास में अपभ्रंश का योगदान श्री रमेशचन्द्र जैन m Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१२ लेख राजस्थानी जैन साहित्य "" राजस्थानी एवं हिन्दी जैन साहित्य राजस्थानी लोक कथाओं सम्बन्धी साहित्य - निर्माण में जैनों का योगदान रामचन्द्रसूरि और उनका साहित्य रायपसेणइ उपांग और उसका रचनाकाल - क्रमशः "" "" "" "" 'रायपसेणियउपांग और उसका रचनाकाल की समीक्षा लंदन में कतिपय अप्राप्य जैन ग्रन्थ लोक साहित्य के आदिसर्जक-जैन विद्वान् लोंकागच्छीय विद्वानों के तीन संस्कृत ग्रन्थ वचन- कोष वज्जालग्ग की कुछ पुनर्विचार (क्रमश:) गाथाओं के अर्थ पर श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक श्री अगरचन्द्र नाहटा "" श्री भँवरलाल नाहटा श्री अगरचन्द्र नाहटा डॉ० कृष्णपाल त्रिपाठी श्री कस्तूरमल बांठिया >> "" "" "" मुनि कल्याणविजय श्री अगरचन्द्र नाहटा "" "" श्री भागचन्द्र जैन पं० विश्वनाथ पाठक वर्ष ww ६ ३९ १० ४५ १५ १५ १५ १६ १६ १६ २ ७ ११ १२ ३१ अंक ८ ६-७ V ७-९ १० ११ १२ १ मि ४ J når m १० ३ ७ ई० सन् १९५५ १९५५ १९८८ १९५९ १९९४ १९६४ १९६४ १९६४ १९६४ १९६४ १९६५ १९५१ १९५५ १९६० १९६१ १९८० पृष्ठ १५-२२ ४-९ २-४ २९-३१ १०-२२ ९-१६ २-८ ३-१० ३-११ ३-११ ३८ २७-२९ ९-१२ २४-२८ ३४-३६ ३-७ Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक लेख " वर्ष ३१ ४४ ४७ अंक २ ४-६ ४-६ वसन्तविलासमहाकाव्य का काव्य-सौन्दर्य वसुदेवहिण्डी का समीक्षात्मक अध्ययन वसुदेवहिण्डी में रामकथा वसुमतीमहाकाव्य वाग्भट्टालंकार डॉ० केशवप्रसाद गुप्त डॉ० कमल जैन श्री गणेशप्रसाद जैन श्री अगरचन्द नाहटा पं० अमृतलाल शास्त्री ई० सन् १९७९ . १९९३ १९९६ १९८५ १९६१ १९५६ १९७० ४१३ पृष्ठ ३-८ ३६-५८ ११-३५ ७-१३ १७-२० ४-७ २०-२८ 35 १२८ २ वाचक श्रीवल्लभरचित 'विदग्धमुखमण्डन' की दर्पण टीका की पूरी प्रति अन्वेषणीय है वासुपूज्यचरितम् : एक अध्ययन - क्रमश: स्व० अगरचन्द नाहटा श्री उदयचंद प्रभाकर १९९५ १९७२ . २३ १९७२ २७ १९ ३३ १९७५ १९६८ १९८२ विक्रमलीलावतीचौपाईविषयक विशेष ज्ञातव्य विद्याविलासरास विदेशों में जैन साहित्य : अध्ययन और अनुसंधान विनयप्रभकृत जैन व्याकरण ग्रंथ शब्ददीपिका विपाकसूत्र की कथायें विपाकसूत्र के आख्यान : एक विहंगावलोकन ७४-७५ ३-१० १०-१७ २२-२३ १२-२५ १६-२८ १७-२१ १७-२० ९-१४ श्री अगरचन्द नाहटा श्री सनत्कुमार रंगाटिया डॉ० भागचन्द भास्कर श्री अगरचंद नाहटा डॉ० श्रीरंजन सूरिदेव श्री जमनालाल जैन १९७९ १९५८ १९७७ Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१४ लेख विलासकीर्तिरचित प्रक्रियासारकौमुदी विश्वेश्वरकृत श्रृंगारमंजरीसट्टक का अनुवाद-क्रमश: श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक श्री अगरचंद नाहटा डॉ० के० ऋषभचन्द्र वर्ष २९ अंक ११ OM ar an n m x 5 w ई० सन् १९७८ १९७२ १९७२ १९७२ १९७२ १९७३ १९७३ १९७३ १९७३ १९७३ १९७३ १९७३ १९६६ १९८३ १९८३ १९६० १९५४ पृष्ठ २४-२८ ३४-३८ २०-२३ २८-३२ ३०-३४ ३३-३५ ३२-३७ ३६-३८ २२-२६ २५-३० २९-३४ १६-१९ १८-२५ २५-२८ १४-२४ ३२-३३ १४-२३ a v वीरनन्दी और उनका चन्द्रप्रभचरित वीरवर्धमानचरित में शान्तरस विमर्श वैराग्यमूलक एक ऐतिहासिक प्रेमकाव्य : तरंगवती वैराग्यशतक वैशाली और भगवान् महावीर का दिव्य संदेश पं० अमृतलाल शास्त्री श्रीमती उर्मिला जैन श्री गणेशप्रसाद जैन श्री अगरचन्द नाहटा श्री महावीरप्रसाद प्रेमी or or or w rox Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लेख शब्दरत्न- महोदधि नामक संस्कृत गुजराती जैन कोश शम्बूक आख्यान (जैन तथा जैनेतर) सामग्री का तुलनात्मक अध्ययन शान्त रस : मान्यता और स्थान शान्त रस : जैन काव्यों का प्रमुख रस शास्त्र की मर्यादा शास्त्र रचना का उद्देश्य शास्त्र वाचना की आज फिर आवश्यकता शास्त्रों की प्रामाणिकता शिवशर्मसूरिकृत कर्मप्रकृति श्वेताम्बर साहित्य में रामकथा श्वेताम्बर साहित्य में रामकथा का स्वरूप श्रमण भगवान् महावीर श्रमण-साहित्य में वर्णित विविध सम्प्रदाय श्रावकप्रज्ञप्ति के रचयिता कौन ? श्री आत्मारामजी और हिन्दी भाषा श्री किशनदास जी कृत - 'उपदेशबावनी' - श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक श्री अगरचन्द नाहटा श्री विमलचन्द्र शुक्ल श्री जयकुमार जैन डॉ० मंगलप्रकाश मेहता पं० महेन्द्रकुमार न्यायाचार्य पं० सुखलाल जी श्री कस्तूरमल बांठिया डॉ० मोहनलाल मेहता "" डॉ० सागरमल जैन पं० बेचरदास दोशी डॉ० भागचन्द्र जैन 'भास्कर' पं० बालचन्द्र शास्त्री श्री पृथ्वीराज जैन श्री अम्बाशंकर नागर वर्ष २८ m m ३२ २९ ३६ ५ २१ १५ ३२ ३६ २३ २६ १६ w ov ५ ११ अंक १२ ४ २ १२ १२ ११ ८ ७ १० ११ ई० सन् १९७७ १९८० १९७८ १९८४ १९५२ १९५३ १९५७ १९७० १९६४ १९८१ १९८५ १९७२ १९७५ १९६५ १९५४ १९६० ४१५ पृष्ठ २२-२४ ४६-५१ ८-१२ १-३ २५-२९ २४ ४-७ ३८-४० ७-१५ ७-११ २-६ ३-९ ३-१३ ३-७ ११-१५ २८-३२ Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१६ पृष्ठ वर्ष १९ अंक १२ श्रमण : अतीत के झरोखे में लेख लेखक श्री जयभिक्खू के ग्रन्थों का हिन्दी अनुवाद श्री कस्तूरमल बांठिया श्रीमद्देवचन्द्ररचित कर्म साहित्य श्री अगरचन्द नाहटा श्रीपालचरित की कथा डॉ० देवेन्द्र कुमार जैन षट्दर्शनसमुच्चय के लघुटीकाकार सोमतिलकसूरि श्री अगरचंद नाहटा षट्प्राभृत के रचनाकार और उसका रचनाकाल डॉ० के० आर० चन्द्र संडेरगच्छीय ईश्वरसूरि की प्राप्त एवं अप्राप्त-रचनायें श्री अगरचन्द नाहटा संदेशरासक में उल्लिखित (वनस्पतियों के नाम) पर्यावरण के तत्त्व श्री श्रीरंजन सूरिदेव ई० सन् १९६८ १९६५ १९७१ १९७२ १९९७ १९७४ २५-३४ ३३-३७ ३-७ २०-२३ ४५-५२ २९-३२ ~ 29 ०-१२ ७ १०-१२ संवेगरंगशाला-एक स्पष्टीकरण प्रो० हीरालाल रसिकलाल कापड़िया संयुक्तनिकाय में जैन सन्दर्भ विजयकुमार जैन संवेगरंगशाला देवभद्रसूरि रचित और अनुपलब्ध है ? श्री अगरचन्द नाहटा संवेगरंगशाला नामक दो ग्रन्थ नहीं एक ही है संस्कृत काव्य शास्त्र के विकास में प्राकृत की भूमिका श्री धनीराम अवस्थी संस्कृत दूत काव्यों के निर्माण में जैन कवियों का योगदान श्री रविशंकर मिश्र संस्कृत व्याकरण शास्त्र में जैनाचार्यों का योगदान श्रीराम यादव संस्कृत साहित्य के इतिहास के जैन संम्बन्धित संशोधन श्री अगरचन्द नाहटा MMMrr wr १९७६ १९९५ १९६९ १९८१ १९६९ १९६९ १९८६ २७-२९ २४-२७ ३२ १६-२३ २३-२६ ३४ २-९ १९८२ १९८२ १-१५ ११-२० २२-२६ Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लेख संस्कृत साहित्य में अभ्युदय नामान्त जैन काव्य सन्दर्भ एवं भाषायी दृष्टि से आचारांग के उपोद्घात में प्रयुक्त प्रथम वाक्य के पाठ की प्राचीनता पर कुछ विचार सप्तक्षेत्रिरासु सप्तसन्धानमहाकाव्य में ज्योतिष समयसार समणसुत्त समयसार : आचार-मीमांसा समयसार सप्तदशांगी टीका: एक साहित्यिक-मूल्यांकन समराइच्चकहा का अविकलगुर्जरानुवाद समराइच्चकहा की संक्षिप्त कथावस्तु और उसका सांस्कृतिक महत्त्व समवायांगसूत्र में विसंगति सर्वांगसुन्दरी-कथानक सात लाख श्लोक परिमित संस्कृत साहित्य के निर्माता जैनाचार्य विजयलावण्यसूरि साधुवन्दना के रचयिता सावयपण्णत्ति : एक तुलनात्मक अध्ययन - क्रमश : श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक श्री जयकुमार जैन डॉ० के० आर० चन्द्र डॉ० सनत्कुमार रंगाटिया श्री श्रेयांसकुमार जैन श्री मिश्रीलाल जैन "" डॉ० दयानन्द भार्गव डॉ० नेमिचन्द जैन श्री कस्तूरमल बांठिया डॉ० झिनकू यादव श्री नंदलाल मारु डॉ० के० आर० चन्द्र श्री अगरचन्द नाहटा "" पं० बालचंद सिद्धान्तशास्त्री वर्ष २९ * a * * * ara a ४५ १९ २८ ३५ ३५ २९ २९ १९ २५ १९ २४ २३ २२ २१ अंक १ ov ७-९ ६ १२ ५ ७ १० १-२ ގ ގ 122 ८ २ २ ई० सन् १९७७ १९९४ १९६८ १९७७ १९८४ १९८४ १९७८ १९७८ १९६८ १९७३ १९६८ १९७३ १९७२ १९७० १९६९ ४१७ पृष्ठ ३-८ ५२-५९ २३-२८ १७-२१ ४२-५९ २७-४१ ३-११. ३-८ ६-१७ ३५-४२ ३२-३४ १६-२१ १९-२३ २९-३२ ५-११ Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक लेख वर्ष ३ ४ * * * * * * १५ संत विनोबा श्री सतीश कुमार डॉ० देवेन्द्र कुमार जैन .8 m x 5 w or mor v org x 5 o ई० सन् १९७० १९७० १९७० १९७० १९६९ १९६४ १९५९ १९७१ १९६९ १९६७ १९५४ १९७९ १९६५ १९७३ साहित्य और साहित्यिक साहित्य भवन के निर्माण का शुभारंभ सिरिपालचरिउ : एक मूल्याकंन सिरिपालचरिउ : संदर्भ और शिल्प सिद्धर्षिगणिकृत उपमितिभवप्रपंचाकथा सिद्धिविनिश्चय और अकलंक सिंहदेव रचित एक विलक्षण महावीरस्तोत्र सोमदेवकृत यशस्तिलक स्वयंभू और उनका पउमचरिउ स्वयंभू का कृष्णकाव्य और सूरकाव्य के अध्ययन - की समस्याएँ त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित में गणधरवाद त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित में महावीर चरित त्रिषष्टिशलाकापरुषचरित में रसोद भावना पृष्ठ ५-१३ २२-२८ २४-२९ २०-२७ ५-१३ १५-२८ २४-२७ ३-७ ५-१४ २६-३१ ३१-३२ २०-२५ २-७ ३-१३ * * * * १८ श्री गोपीचंद धारीवाल पं० दलसुख मालवणिया श्री अगरचंद नाहटा श्री गोकुलचंद जैन डॉ० देवेन्द्रकुमार जैन ३० १६ २५ ९ १-२ डॉ० मंजुला मेहता * * * * d uw on १९७९ १९७७ १९७६ १९७७ ३३-३५ ११-१६ १६-२२ १५-२० " Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लेख हरिकलशरचित दिल्ली - मेवात देश चैत्यपरिपाटी हरिभद्र के धूर्ताख्यान का मूल स्रोतः एक चिन्तन हर्षकीर्तिसूरि रचित धातुतरंगिणी हर्षकुलचरित कमलपंचशतिका हिन्दी काव्यों में महावीर हीराणंदसूरि का विद्याविलास और उस पर - आधारित रचनाएं हेमचन्द्र और भारतीय काव्यालोचना विजयगणि और विजयप्रशस्तिमहाकाव्य Metrical Studies of Daśāśrutaskandha Niryukti in the light of its parallels ४. इतिहास, पुरातत्त्व एवं कला अकबर और जैनधर्म 'अगस्त' की ऐतिहासिकता अज्ञात प्राचीन जैनतीर्थ: कसरावद अड्डालिजीयगच्छ अतिशय क्षेत्र पपौरा श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक श्री अगरचंद नाहटा प्रो० सागरमल जैन श्री अगरचंद नाहटा "" श्री प्रेमचन्द रांवका श्री अशोककुमार मिश्र डॉ० देवेन्द्रकुमार श्री उदयचंद जैन Dr. Ashok Kumar Singh डॉ० ओमप्रकाश सिंह श्री शरदचन्द्र मुखर्जी श्री लक्ष्मीचंद जैन डॉ० शिवप्रसाद पं० अमृतलाल शास्त्री वर्ष २७ ३९ 싱생생 ३० २० २६ २६ १७ २२ ४७ ३३ 38 23 २९ ४८ १६ अंक ८ ४ १२ 5 १२ ९ ७-९ १० ६ १०-१२ ६ ई० सन् १९७६ १९८८ १९७९ १९६९ १९७५ १९७५ १९६६ १९७१ १९९६ १९८२ १९५४ १९७८ १९९७ १९६५ ४१९ पृष्ठ १८- २१ २६-२८ ३५-३८ २०-२२ १४-२० २१-२६ २-७ २३-२४ ५९-७६ ५६-६० ३०-३२ २५-२७ ८१-८२ १८-२२ Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वर्ष अंक ई० सन् पृष्ठ * * १९६७ १९५३ १९६० १९८८ ४२० श्रमण : अतीत के झरोखे में लेख लेखक अष्टालक्षी में उल्लेखित जयसुन्दरसूरि की - शतार्थी की खोज आवश्यक श्री अगरचंद नाहटा अहमदाबाद के भामाशाह श्री जयभिक्खु अहिंसा का क्रमिक विकास पं० सुखलाल जी आचार्य अमितगति: व्यक्तित्व और कृतित्व डॉ० कुसुम जैन आचार्य : एक मधुर शास्ता उपाध्याय अमरमुनि आचार्य चण्डरुद्र मुनिश्री लक्ष्मीचन्द्र जी आचार्य शाकटायन (पाल्यकीर्ति) और पाणिनि श्री रामकृष्ण पुरोहित आचार्य सोमदेवसूरि श्री गोकुलचन्द जैन आचार्य हेमचन्द्र श्री गुलाबचन्द्र चौधरी आचार्य हेमचन्द्र और उनकी साहित्यिक मान्यताएं ___ डॉ० देवेन्द्रकुमार आचार्य हेमचन्द्र : एक महान् वैयाकरण श्री अभयकुमार जैन आचार्य हेमचन्द्र : एक युगपुरुष प्रो० सागरमल जैन १९५७ * * * * * * * * * * 3 : Mark Twim Mirro १९६० १९८१ १९६० १९५१ १९६१ १९७६ १९८९ १९९७ १९७५ १९८९ १९५६ १९५० २७-२८ २१-२४ ९-१५ १७-२३ १२-१६ १८-१९ ५२-६१ ३१-३३ १६-२४ २२-२६ ८-१३ ३-१५ ६०-७० १३-१८ २-१२ १९-२२ १३-१९ आचार्य हेमचन्द्र : जीवन, व्यक्तित्व एवं कृतित्व आनन्दघन जी खरतरगच्छ में दीक्षित थे आर्यरक्षित आर्यों से पहले की संस्कृति श्री अभयकुमार जैन श्री भंवरलाल नाहटा डॉ० इन्द्रचन्द्र शास्त्री डॉ० गुलाबचन्द्र चौधरी Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२१ वर्ष २९ ई० सन् १९७८ . पृष्ठ । २३-२४ ९ १९७३ १९५१ १९५१ १९५९ १९५७ १५-१९ ३१-३२ ३४-३६ ११-१६ ४३-४८ & rmou om श्रमण : अतीत के झरोखे में लेख लेखक आष्टा की परमारकालीन अप्रकाशित जैन प्रतिमाएँ डॉ० मायारानी आर्य आषुतोष म्यूजियम में नागौर का एक सचित्रविज्ञप्तिपत्र श्री अगरचन्द भंवरलाल नाहटा इतिहास की पुनरावृत्ति : एक भ्रामक धारणा श्री गुलाबचन्द्र चौधरी इतिहास की पुनरावृत्तिःयथार्थ दर्शन प्रो० देवेन्द्रकुमार जैन इतिहास बोलता है श्री सत्यदेव विद्यालंकार इन्द्रभूति गौतम श्री विजयमुनि शास्त्री उच्चैर्नागर शाखा की उत्पत्ति स्थान एवं उमास्वाति - के जन्मस्थल की पहचान डॉ० सागरमल जैन उज्जयिनी श्री अमरचन्द्र उड़ीसा में जैन कला एवं प्रतिमा-विज्ञान की - राजनैतिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि डॉ० मारुतिनन्दन प्रसाद तिवारी उड़ीसी नृत्य और जैन सम्राट खारवेल श्री सुबोधकुमार जैन उत्तर प्रदेश में मध्ययुगीन जैन शिल्पकला का-विकास डॉ० शिवकुमार नामदेव उत्तर भारतीय शिल्प में महावीर श्री मारुतिनंदन तिवारी उपकेशगच्छ का संक्षिप्त इतिहास डॉ० शिवप्रसाद उपासक प्रतिमायें डॉ० मोहनलाल मेहता उपरियाली का विख्यात जैन तीर्थ श्री भूरचन्द जैन ७-१२ १० . १९९१ १९५२ १७-२४ २७-३३ ___ २५ २८ २८७ २१ १२ ७-१२ १९७३ १९७१ १९७७ १९७० १९९१ १४-२१ २१-२२ १६-२० १८-२३ ६१-१८२ ८९-९२ २६-२८ १९६५ ८ १९८१ Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२२ श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक श्री भूरचन्द जैन वर्ष ३२ अंक ८ ई० सन् १९८१ पृष्ठ २६-२८ डॉ० असीमकुमार मिश्र श्री भूरचन्द जैन १०-१२ १९९५ १९७६ ४४-५१ २७-२९ लेख उपरियाली का विख्यात जैन तीर्थ ऐतिहासिक अध्ययन के जैन स्रोत और उनकी प्रामाणिकता: एक अध्ययन ऐतिहासिक जैन तीर्थ नांदिया ओसवंश-स्थापना के समय संबन्धी महत्त्वपूर्ण - उल्लेख ओसवाल और पापित्य सम्बन्धों पर टिप्पणी ऋषभपुत्र भरत और भारत कर्म की मर्यादा कर्णाटक में जैन शिल्पकला का विकास कलचुरि-कला में जैन शासन देवियों की मूर्तियाँ कलचुरिकालीन जैन शिल्प-संपदा कल्पप्रदीप में उल्लिखित 'खेड़ा' गुजरात का नही राजस्थान का है कल्पप्रदीप में उल्लिखित भगवान् महावीर के कतिपय तीर्थक्षेत्र कारीतलाई की जैन द्विमूर्तिका प्रतिमाएं श्री अगरचंद नाहटा श्री भँवरलाल नाहटा श्री गणेशप्रसाद जैन डॉ० मोहनलाल मेहता श्री शिवकुमार नामदेव १९५२ १९८९ १९७० १९७१ १९७६ १९७४ १९७८ २७-३३ ८-१३ २४-३२ ३-५ १४-१८ २४-२६ २३-३२ श्री भंवरलाल नाहटा ४० ११ १९८९ २५-२८ डॉ. शिवप्रसाद श्री शिवकुमार नामदेव १९८९ १९८९ १९७५ २०-२९ १५-१९ Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२३ पृष्ठ वर्ष ५ ३९ २६ २८ २५ अंक १० १२ १-२ श्रमण : अतीत के झरोखे में लेख लेखक कालकाचार्य श्री इलाचन्द जोशी काशी के कतिपय ऐतिहासिक तथ्य पं० अमृतलाल शास्त्री कुम्भारिया का महावीर मन्दिर डॉ० हरिहर सिंह कुम्भारिया जैनतीर्थ श्री भूरचन्द जैन कुम्भारिया तीर्थ का कलापूर्ण महावीर मंदिर श्री अगरचन्द नाहटा कुषाणकालीन मथुरा की जैन सभ्यता डॉ० एस० सी० उपाध्याय केशी ने पूछा श्री गोकुलचन्द जैन कोरंटगच्छ डॉ० शिवप्रसाद क्या लोकाशाह विद्वान् नहीं थे ? श्री नन्दलाल मारु क्रान्तिदर्शी महावीर उपाध्याय अमरमुनि क्रोध आदि वृत्तियों पर विजय कैसे ? अरविंद क्या कृष्ण गच्छ की स्थापना सम्वत् १३९१ - में हुई थी ? श्री अगरचन्द नाहटा कोटिशिला तीर्थ का भौगोलिक अभिज्ञान डॉ० कस्तूरचन्द जैन खजुराहो की कला और जैनाचार्यों की समन्वयात्मक - एवं सहिष्णु दृष्टि डॉ० सागरमल जैन गीता के राजस्थानी अनुवादक जैन कवि थिरपाल श्री अगरचन्द नाहटा ई० सन् १९५४ . १९८८ १९७४ १९७७ १९७४ १९५५ १९६० १९८९ १९६६ ।। १९८२ १९५३ २३-२९ १६-१८ ४७-५२ २५-२८ २८-३१ १७-१८ ११-१३ १५-४३ ७८-८० २८-३८ ८-१० १२ ४० १८ १८ १-२ ३ २४ २ ७-१२ १९७२ १९९१ २८-२९ ५१-६० २६ ४-६ १० १९९४ १९७४ १७३-१७८ १९-२३ Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्ठ अंक ५ १० or w १० २३६ w २४३ m ४२४ लेख ग्यारह गणधर सम्बंधी ज्ञातव्य बातें ग्वालियर के तोमरकालीन दानवीर ग्वालियर के तोमरवंशीय राजा गुप्तकाल में जैन-धर्म गुप्त सम्राटों का धर्म समभाव गोम्मट आइडोल्स ऑफ कर्णाटक चंदनबाला और मृगावती चण्डकौशिक का उपसर्ग स्थान योगी पहाड़ी चन्द्रावती की जैन प्रतिमाएँ ; एक परिचयात्मक सर्वेक्षण चित्तौड़ का जैन कीर्तिस्तम्भ २४ तीर्थंकरों के नामों में नाथ शब्द का प्रयोग कब से जंगम आगम संशोधन मंदिर जैन इतिहास की एक झलक आचार्य हेमचन्द्र : एक युगपुरुष जैनधर्म की प्राचीनता और विशेषता जमाली का मतभेद जालिहरगच्छ का संक्षिप्त इतिहास श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक श्री अगरचन्द नाहटा श्री चम्पालाल सिंघई डॉ० राजाराम जैन डॉ० अमरचन्द मित्तल श्री चम्पालाल सिंघई पं० के० भुजबली शास्त्री श्री जयचन्द्र बाफणा श्री भंवरलाल नाहटा श्री विनोद राय श्री भूरचन्द जैन श्री अगरचंद नाहटा . पं० दलसुख मालवणिया पं० महेन्द्रकुमार न्यायाचार्य प्रो० सागरमल जैन कुमारी मंजुला मेहता श्री मनोहर मुनि डॉ० शिवप्रसाद * * * * * * * * * * * * * * * * * * ३७ २२ १२ ई० सन् | १९७३ १९७२ १९६८ १९५९ १९७२ १९७३ १९५२ १९७१ १९७७ १९७७ १९७० १९५१ १९५६ १९८९ १९७३ १९५८ १९९२ ११ १ २२-२६ १०-१३ ६-१३ १६-२२ १८-२० ३६-३८ ३१-३२ ५-८ ३६-३८ ३४-३५ १८-२२ २८-३२ ३-८ ३-१५ ८-१५ ६६-६८ ४१-४६ o २ १२ ५ ६-७ ४-६ Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२५ वर्ष अंक ई० सन् पृष्ठ । २७ १९७५ ९-१७ १९ १९६८ ३२-३५ २३-३३ ६ श्रमण : अतीत के झरोखे में लेख लेखक जालौर में महावीर-मन्दिर की शिल्प सामाग्री - का मूर्ति-वैज्ञानिक अध्ययन डॉ० मारुति नन्दन प्र० तिवारी जिनचन्द्रसूरिरचित श्रावकसामाचारी की पूरी - प्रति की खोज श्री अगरचंद नाहटा जीरापल्लीगच्छ का इतिहास डॉ० शिवप्रसाद जैन इतिहास लेखकों का आवाहान श्री कस्तूरमल बांठिया जैनकला एवं स्थापत्य डॉ० मोहनलाल मेहता जैन कलातीर्थ : खजुराहो श्री शिवकुमार नामदेव जैन कला प्रदर्शनी श्री अगरचंद नाहटा जैन तीर्थ रातामहावीरजी श्री भूरचन्द जैन जैन तीर्थ शंखेश्वरपार्श्वनाथ जैन तीर्थंकर और भिल्ल प्रजाति डॉ० देवेन्द्रकुमार जैन जैन धर्म एवं गुरु मन्दिर जसवन्तलाल मेहता जैनधर्म का एक विलुप्त सम्प्रदाय यापनीय क्रमश: प्रो० सागरमल जैन १२ OM n xom na svoooaaa w १९६१ १९७९ १९७४ १९५७ १९७६ १९७८ १९७२ १९८५ १९८८ १९८८ १९६८ १९६९ २२-२७ ३६-३८ २६-२८ २५-२९ २५-२७ १९-२६ १-१६ १-१८ १८-२४ २२-२९ ३६ ७ ३९ ९ ३९ ११ १९ १२ २०६ जैनधर्म की प्राचीनता जैनधर्म की प्राचीनता -क्रमश: श्री शांतिलाल मांडलिक डॉ० बशिष्ठनारायण सिन्हा Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२६ श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक वर्ष अंक " जैनधर्म की प्राचीनता तथा इतिहास जैनधर्म के धार्मिक अनुष्ठान एवं कला तत्त्व जैनधर्म में सरस्वती जैन परम्परा जैन परम्परा जैन परम्परा का आदिकाल -क्रमशः डॉ० मोहनलाल मेहता डॉ० सागरमल जैन श्रीमती सुधा जैन डॉ० मोहनलाल मेहता डॉ० इन्द्रचन्द्र शास्त्री ई० सन् १९६९ १९६९ १९६९ १९७८ १९९१ १९७५ १९५२ १९५९ 9 vrry AM » पृष्ठ २७-३२ १९-२७ २३-२७ ३-१६ १-३९ १३-१४ १३-१७ ९-११ ९-१७ ९-१७ १२-१८ १-१६ १९-२१ १३-१९ १८-२१ १६-१९ २९-३६ जैन परम्परा का ऐतिहासिक विश्लेषण जैन मूर्तिकला जैन मूर्तिकला जैनमूर्तियों का क्रमिक विकास जैन मंदिर व स्तूप जैन यक्ष गोमुख का प्रतिमा निरूपण १९६३ १९६३ १९९० १९५० १९५३ १९७२ १९७३ १९७६ प्रो० सागरमल जैन श्री अवधकिशोर नारायण डॉ० विनयतोष भट्टाचार्य श्री प्रेमकुमार अग्रवाल कु० सुधा जैन श्री मारुतिनन्दन प्रसाद तिवारी ४ २३ २४ १० ४ १२ Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ # & ४ २ १२ १२ १२ लेख जैन लेखों का सांस्कृतिक अध्ययन जैन वास्तुकला : संक्षिप्त विवेचन जैन शिल्पकला और मथुरा जैनशिल्प का एक विशिष्ट प्रकार : सहस्त्रकूट जैन सरस्वती हंसवाहना या मयूरवाहना जैन साहित्य और शिल्प में वाग्देवी सरस्वती जैन साहित्य के इतिहास की पूर्व पीठिका साहित्य के इतिहास-निर्माण सूत्र जैन साहित्य में कलिङ्ग जैन साहित्य में गोम्मटेश्वर बाहुबलि जैन साहित्य में स्तूपनिर्माण की प्रथा जैन संस्कृति के प्रतीक मौर्यकालीन अभिलेख जैनागम वर्णित तीर्थंकरों की भिक्षुणी जैनाचार्य श्री कांशीराम जी जैनों में मूर्ति और उसकी पूजा पद्धतियों में - विकास और विकार जौनपुर की बड़ी मस्जिद क्या जैन मंदिर है? श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक श्री नारायण दुबे ४० डॉ० शिवकुमार नामदेव २८ कु० सुधा जैन २३ श्री अगरचंद नाहटा २५ श्री शिवकुमार नामदेव २६ डॉ० मारुतिनन्दन प्रसाद तिवारी श्री कस्तूरमल बांठिया २० डॉ० वासुदेवशरण अग्रवाल श्री अमरचन्द्र डॉ० सागरमल जैन डॉ० हरिहर सिंह २१ डॉ० पुष्पमित्र जैन ___ २४ डॉ० अशोककुमार सिंह ४० श्री सुमन मुनि ___ ११ ई० सन् १९८९ . १९७६ १९७२ १९७४ १९७५ १९७६ १९६९ १९५३ १९५६ १९८१ १९७० १९७३ १९८९ १९६० ४२७ पृष्ठ । १८-२६ १६-२१ १६-१९ १६-२१ १८-२० ३०-३४ १८-२४ ११-१६ ३-६ १-९ १६-२२ १७-२५ १७-३० ३०-३३ ११ ८ ९ ९ 9 श्री कस्तूरमल बांठिया श्री अगरचंद नाहटा * * १९६८ १९७९ ६-१७ ३३-३५ v Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२८ लेख झारडा की जैन देवियों की अप्रकाशित प्रतिमाएं तर्कप्रधान संस्कृत वाङ्मय के आदि प्रेरक : सिद्धसेन दिवाकर तारंगा का अजितनाथ मंदिर तीर्थक्षेत्र शत्रुंजय तीर्थंकर प्रतिमाओं की विशेषताएँ तीर्थंकर महावीर की जन्म भूमि : विदेह का - कुण्डपुर तीर्थंकर महावीर की निर्वाण भूमि 'पावा' तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ तीर्थंकर पार्श्वनाथः प्रामाणिकता और ऐतिहासिकता दक्षिण भारत में जैनधर्म और संस्कृति दक्षिण भारत में जैनधर्म, साहित्य और तीर्थक्षेत्र दक्षिण भारतीय शिल्प में महावीर दर्शाण में जैनधर्म दानवीरता का कीर्तिमान- वस्तुपाल दिगम्बर आर्या जिनमती की मूर्ति धार्मिक एवं पर्यटन स्थल गिरनार श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक डॉ० सुरेन्द्रकुमार आर्य श्री मोहन रत्नेश डॉ० हरिहर सिंह " श्री शिवकुमार नामदेव श्री गणेशप्रसाद जैन >> "" डॉ० विनोदकुमार तिवारी श्री गणेशप्रसाद जैन "" श्री मारुतिनंदन तिवारी श्री मोहनलाल दलाल श्री चम्पालाल सिंघई श्री अगरचन्द नाहटा श्री भूरचन्द जैन वर्ष २७ २९ २९ २२ २५ ३६ ३८ ३५ ३८ Aw २१ x x x m o o २४ २२ २४ २३ १० ३० अंक ११ ७ ४ ७ ११ १ १२ १२ ई० सन् १९७६ १९७७ १९७८ १९७१ १९७४ १९८५ १९८६ १९८३ १९८६ १९६९ १९७३ १९७० १९७३ १९७१ १९५९ १९७९ पृष्ठ १३-१४ १५-२६ ३-१३ १९-२५ २४-२६ २-११ ५-११ २-५ २-७ १५-२५ १४-१८ १२-१७ २०-२४ १७-२० ३१-३२ २६-२९ Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लेखक वर्ष ___४१ ५ २५ ४६ अंक १-३ ११ ३४ २५ श्रमण : अतीत के झरोखे में लेख धर्मघोषगच्छ का संक्षिप्त इतिहास डॉ० शिवप्रसाद धर्मबन्धु हर्बर्ट वारन अनु० कृष्णचन्द्राचार्य धुबेला संग्रहालय की अद्वितीय जैन प्रतिमाएं श्री शिवकुमार नामदेव नागेन्द्रगच्छ का इतिहास डॉ० शिवप्रसाद नन्दीसेन मुनि महेन्द्रकुमार 'प्रथम' नाणकीय गच्छ डॉ० शिवप्रसाद नालन्दा या नागलन्दा पं० बेचरदास दोशी नेपाल का शाहवंश और उनके पूर्वज मुनि कनकविजय परम्परागत पावा ही भगवान् महावीर की निर्वाण भूमि श्री बलवन्तसिंह मेहता पल्लीवालगच्छीय शांतिसूरि का समय एवं प्रतिष्ठा श्री अगरचन्द नाहटा पश्चिमी भारत के जैन तीर्थ डॉ० शिवप्रसाद पहले महावीर निर्वाण या बुद्धनिर्वाण श्री कस्तूरमल बांठिया श्रीरंजन सूरिदेव पालनपुर का प्राचीन प्रहलविया जैन मन्दिर श्री भूरचंद जैन पावा: कसौटी पर श्री कन्हैयालाल सरावगी पावा कहाँ ? गंगा के उत्तर या दक्षिण में मुनिश्री महेन्द्रकुमार जी 'प्रथम' पावापुर श्री जिनवरप्रसाद जैन » 9 » * * * * * * * * * * * 15 * * * * ई० सन् १९९० १९५४ १९७४ १९९५ १९८३ १९८९ १९७४ १९५१ १९७२ १९५२ १९९० १९५९ १९५५ १९७८ १९७४ १९७० १९७२ ४२९ पृष्ठ ४५-१०४ १६-२२ २४-२७ २०-६५ १२-१६ २-३४ ११-१३ ३४-३८ २१-३० ३१-३३ ४५-७८ १०-२१ ३-५ २४-२७ १६-२३ २३-२४ ११-१९ ७-९ पारसनाथ २९ १२ » Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३० लेख श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक श्री अमिताभ वर्ष अंक २ ई० सन् १९६० पार्श्वनाथ के दो पट्टधर पार्श्वनाथ जन्मभूमि मंदिर, वाराणसी की पुरातत्त्वीय पृष्ठ २०-२१ वैभव ४१ प्रो० सागरमल जैन डॉ० शिवप्रसाद पिप्पलगच्छ का इतिहास ४७ " ७७-८८ ६५-८२ ८३-११७ ४८ ४-६ १०-१२ १-३ ९ १० ७-९ १९९० १९९६ १९९७ १९६६ १९५६ १९९२ १५ श्री अजित मुनि प्रो० देवेन्द्र कुमार डॉ० शिवप्रसाद १७ ७ ३-५ २९-५१ ४३ पुष्कर के सम्बन्ध में शोध पुष्पदंत क्या पुष्पभाट थे ? पूर्णिमागच्छ का संक्षिप्त इतिहास पूर्णिमागच्छ-प्रधान शाखा अपरनाम ढंढेरिया - शाखा का संक्षिप्त इतिहास पूर्णिमापक्ष-भीमपल्लीयाशाखा का इतिहास पेथड़रास के कर्ता कौन प्रबन्धकोश में उपलब्ध आर्थिक विवरण प्रज्ञाचक्षु पं० सुखलाल संघवी प्रयाग-एक महान् जैन क्षेत्र प्राचीन ऐतिहासिक नगरी : जूना (बाड़मेर) प्राचीन जैन तीर्थ ओसियाँ १०-१२ ४-६ ४४ १९ ३८ श्री सनत्कुमार रंगाटिया श्री अशोककुमार सिंह श्री धनपति टुंकलिया श्री सुबोधकुमार जैन श्री भूरचंद जैन १९९२ १९९३ १९६८ १९८६ १९५६ १९७१ १९७४ १९७७ ४९-६६ २२-३५ १६-२० १७-२६ ३७-३९ १७-१९ १७-२१ ३०-३२ Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण : अतीत के झरोखे में | लेखक लेख २८ ३० अंक ६ १० श्री भूरचंद जैन ई० सन् १९७७ १९७९ १९७७ १९७४ १९५० ४३१ पृष्ठ २६-२९ ३०-३४ २१-२३ ३१-३४ ३३-३४ कु० सुधा जैन आ० चन्द्रशेखर शास्त्री २५ प्राचीन जैन तीर्थ : करेड़ा पार्श्वनाथ प्राचीन जैन तीर्थ : करेड़ा पार्श्वनाथ प्राचीन जैनतीर्थ श्री गंगाणी प्राचीन भारत में जैन चित्रकला प्राचीन भारत में संस्कृतियों का संघर्ष प्राचीन भारतीय सैन्य विज्ञान एवं युद्ध नीतिजैन स्रोतों के आधार पर फलवर्द्धिका पार्श्वनाथ तीर्थ : एक ऐतिहासिक दृष्टि बनारस से जैनों का सम्बन्ध १२वीं शताब्दी की एक तीर्थमाला ब्रह्माणगच्छ का इतिहास बाहुबलि : चक्रवर्ती का विजेता बीकानेरी चित्र-शैली का सर्वाधिक चित्रों वाला - ३९ ३२ २ श्री इन्द्रेशचन्द्र सिंह श्री शिवप्रसाद पं० दलसुख मालवणिया श्री अगरचन्द नाहटा डॉ० शिवप्रसाद उपाध्याय श्री अमरमुनि १९८८ १९८१ १९५१ १९७६ १९९७ १९८१ ९-१७ २७-३१ १५-१८ १९-२३ १४-५० २१-२६ २७ ४८ ३ २ ३२ कल्पसूत्र २८ श्री अगरचन्द नाहटा श्री भूरचन्द जैन ३४ बैंगलोर का आदिनाथ जैन मन्दिर भगवान् श्री अजितनाथ भगवान् अरिष्टनेमि की ऐतिहासिकता १९७७ १९८३ १९८२ १९७१ २०-२४ २२-२३ १७-२० १३-१८ श्री देवेन्द्रमुनि शास्त्री Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३२ w many श्रमण : अतीत के झरोखे में । लेख लेखक वर्ष अंक भगवान् नेमिनाथ का समय-एक विचारणीय-समस्या श्री अगरचन्द नाहटा २३ ३ भगवान् नेमिनाथ के समय सम्बन्धी संशोधन श्री अगरचन्द नाहटा भगवान् बाहुबलि के प्रति श्री दिलीप सुराणा ___३५ ३ भगवान् महावीर और हरिकेशी श्री समीरमुनि 'सुधाकर' १४ ६-७ भगवान् महावीर का जन्म और निर्वाणभूमि श्री गुलाबचन्द्र चौधरी भगवान् महावीर का जन्म स्थान श्री नरेशचन्द्र मिश्र भगवान् महावीर का निर्वाण श्री महेन्द्रकुमार शास्त्री भगवान् महावीरकालीन वैशाली में जैन धर्म श्री शांतिलाल मांडलिक भगवान् महावीर की जन्मभूमि श्री भगवानदास केसरी २ भगवान् महावीर की निर्वाण तिथि पर पुनर्विचार डॉ० सागरमल जैन ४५ ४-६ भगवान् महावीर की निर्वाण तिथि : एक पुनर्विचार डॉ० अरुणप्रताप सिंह १०-१२ भगवान् महावीर की निर्वाण-भूमि : कौन सी-पावा श्री रतिलाल म० शाह २६८ भगवान् महावीर की निर्वाण-स्थली श्री अनन्तप्रसाद जैन भगवान् महावीर की प्रमुख आर्यिकाएं डॉ० अशोककुमार सिंह ४० ६ भगवान् महावीर के गणधर पं० दलसुख मालवणिया ५ ५ भगवान् महावीर के बाद श्री समीर मुनि 'सुधाकर' १५ ५-६ भगवान् महावीर के समसामयिक आचार्य श्री भागचन्द जैन ___१४ ९ ई० सन् पृष्ठ १९७२ १९७२ १५-१९ १९६९ १२-१३ १९८४ ८-१० १९६२ २९-३१ १९५१ ९-१२ १९६८ ३-१५ १९६२ ९-१३ १९६८ ६-८ १९५२ २८-३५ १९९४ २५४-२६८ १९९५ १-४ १९७५ १४-१८ १९८५ १४-१६ १९८९ ३०-३३ १९५४ १-१० १९६४ ।। ७२-७५ १९६३ ९-१६ Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंक ९ १० १ लेख भगवान् महावीर के युग का जैन सम्राट महाराज चेटक भांडवा जैन तीर्थ भारत का प्राचीन जैन केन्द्र : कसरावद भारत का सर्वप्राचीन संवत् भारत में प्राचीन जैन गुफाएँ भारतवर्ष के मूल निवासी श्रमण भारतीय पुरातत्त्व तथा कला में भगवान महावीर भारतीय विचार प्रवाह की दो धाराएँ भारतीय विद्याविद् डॉ० जॉन ज्यार्ज बुहलर भावडारगच्छ का संक्षिप्त इतिहास मगध साम्राज्य का प्रथम सम्राट श्रेणिक मध्यप्रदेश के गुना जिले का जैन पुरातत्त्व मडाहडागच्छ का इतिहास : एक अध्ययन मरुधरा का ऐतिहासिक जैनतीर्थ : नाकोड़ा महाकवि पुष्पदंत : एक परिचय मलधारी अभयदेव और हेमचन्द्राचार्य महाकवि पुष्पदन्त और गोम्मटेश्वर बाहुबलि श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक वर्ष श्री देवेन्द्रमुनि शास्त्री श्री भूरचन्द जैन २८ डॉ० मनोहरलाल दलाल २४ पं० भुजबली शास्त्री ३१ डॉ० शिवकुमार नामदेव २७ श्री गणेशप्रसाद जैन २१ श्री शिवकुमार नामदेव २६ डॉ० मोहनलाल मेहता ११ श्री कस्तूरमल बांठिया १८ डॉ० शिवप्रसाद ४० श्री गणेशप्रसाद जैन १९ डॉ० शिवप्रसाद ४५ श्री भूरचन्द जैन ___२६ श्री गणेशप्रसाद जैन २१ पं० दलसुख मालवणिया डॉ० देवेन्द्रकुमार ३२ ४३३ ई० सन् पृष्ठ १९७४ . २०-२४ १९७७ २९-३२ १९७३ २८-३१ १९७९ ३५ १९७६ १५-२२ १९७० ३२-३७ १९७४ ३८-४६ १९६० १३-१९ १९६६ १३-२० १९८९ १५-३३ १९६८ २५-३४ १९८२ १९-२३ १९९४ ३१-५१ १९७५ १०-१५ १९७० १५-१९ १९५३ १-१० १९८१ १३-१६ ४० * 400 ७-९ ५ ६ or ४ Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३४ ई० सन् १९८९ १९८९ । १९६० १९५४ १९८१ १९७० १९७१ १९८२ १९६६ श्रमण : अतीत के झरोखे में लेख लेखक महाकवि माघ ओसवाल थे? श्री मांगीलाल भूतोड़िया ४० महाकवि हस्तिमल्ल श्री भागचन्द जैन महात्मा हुसेन बसराई डॉ० इन्द्र महावीरकालीन वैशाली डॉ० श्रीरंजन सूरिदेव ३३ महावीर की निर्वाण भूमि पावा की स्थिति पं० कपिलदेव गिरि २२ महावीर की निर्वाण-भूमि पावा की वर्तमान स्थिति श्री कन्हैयालाल सरावगी २३ महावीर की विहार भूमि-मगध और उसकी संस्कृति श्री गणेशप्रसाद जैन ३३ ‘महावीरचर्या' ग्रंथ सम्बन्धी महापंडित राहुल जी के-दो पत्र श्री अगरचंद नाहटा महावीर निर्वाण भूमि पावा- एक विमर्श श्री भगवतीप्रसाद खेतान महावीर निर्वाण भूमि पावा : एक समीक्षा डॉ० जगदीशचन्द्र जैन महावीर निर्वाण सम्वत् में शताब्दियों की भूल श्री धन्यकुमार राजेश २१ महावीर के समकालीन आचार्य श्री गोकुलचन्द जैन १२ महावैयाकरण आचार्य हेमचन्द्र डॉ० श्रीरंजन सूरिदेव २२ मांडव : एक प्राचीन जैन तीर्थ -क्रमश: श्री शांतिलाल मांडलिक २१ मांडव : एक प्राचीन तीर्थ श्री तेजसिंह गौड़ ___ २२ मालपुरा की विख्यात जैन दादावाड़ी श्री भूरचन्द जैन २९ 797 ~ ~ ~422 . पृष्ठ १०-१४ ४७-४९ २१-२५ २०-२५ २७-३३ ३०-३१ २३-२७ ९-१० ९३-९८ २३-२५ १४-२१ ६५-६९ ८-१३ ५-१४ २४-३० ८-१२ २२-२३ १०-१२ २ ६-७ १० १९९४ १९६९ १९६१ १९७१ १९७० १९७० u or agus १९७१ १९७८ Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३५ श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक लेख वर्ष ३० अंक २ श्री सुशील श्री भूरचंद जैन आचार्य सर्वे श्री अगरचन्द नाहटा ११-१२ मांडली का गुरुमन्दिर मिथिलापति नमिराज मेड़ता-फलौदी पार्श्वनाथ तीर्थ यह नई परम्परा करवट ले रही है राजस्थान में महावीर के दो उपसर्ग स्थल राजस्थान में महावीर मंदिर राजस्थान में मध्ययुगीन जैन प्रतिमाएँ राजा डूंगर सिंह तोमर राणकपुर के जैन मन्दिर राष्ट्रीय एकता और साहित्य लंका में जैनधर्म लोद्रवा का कलात्मक कल्पवृक्ष लोद्रवा-जैसलमेर तीर्थ पर श्री घण्टाकर्ण महावीर मन्दिर वज्रस्वामी वडगच्छ के युगप्रधान दादा मुनिशेखरसूरि वर्धमान जैन आगम-मन्दिर वहावी विद्रोह २६ २७ २८ २० २७ ३६ डॉ० शिवकुमार नामदेव डॉ० राजाराम जैन श्री भूरचन्द जैन डॉ० नगेन्द्र श्री डी० जी० महाजन श्री भूरचन्द जैन ई० सन् १९७८ १९५५ १९७५ १९५८ १९७५ १९७६ १९७७ १९६९ १९७६ १९८५ १९६८ १९८२ १९८१ no a or w war or go w mor or a ori पृष्ठ । ३२-३६ ३६-३७ २९-३३ ३०-३२ १७-२० २६-२८ २०-२४ ३०-३६ १३-१५ २०-२५ ५-११ १०-१३ २४-२६ ८-११ ३६-३९ २१-२३ ३१-३४ १९५६ डॉ० इन्द्रचंद्र शास्त्री श्री अगरचंद नाहटा श्री भूरचन्द जैन श्री महेन्द्रराजा १९७३ १९७६ १९५७ ८ Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३६ श्रमण : अतीत के झरोखे में लेख लेखक विख्यात जैन तीर्थः प्रभास पाटन श्री भूरचन्द जैन विगत हजार वर्ष के जैन इतिहास का सिंहावलोकन-क्रमश: श्री कस्तूरमलबांठिया वर्ष २७ __१६ अंक ३ १० ई० सन् १९७६ १९६५ १९६५ १९६५ पृष्ठ २३-२६ ३-११ ३-१४ ३-१९ " श्री अगरचन्द नाहटा श्री अजितमुनि 'निर्मल' १९५६ १९६६ १७-१८ २५-३१ विद्वद्वर विनयसागर आद्यपक्षीय नहीं, पिप्पलकशाखा के थे - विश्व-व्यवस्था और सिद्धान्तत्रयी विदिशा से प्राप्त जैन प्रतिमाएँ और रामगुप्त की ऐतिहासिकता वीरावतार वैदिक परम्परा का प्रभाव वैदिक वाङ्मय और पुरातत्त्व में तीर्थंकर ऋषभदेव वैशाली और दीर्घप्रज्ञ महावीर वैशाली का सन्त राजकुमार शाजापुर का पुरातात्त्विक महत्त्व शिल्प कला एवं प्राकृतिक वैभव का प्रतीक - जैसलमेर का अमरसागर श्री शिवकुमार नामदेव श्री समन्तभद्र पं० बेचरदास दोशी डॉ० राजदेव दुबे प्रो० वासुदेवशरण अग्रवाल श्री कन्हैयालाल सरावगी प्रो० कृष्णदत्त बाजपेयी २५ ३७६ १२ ४ ३८८ १९७४ १९८६ १९६१ १९८७ १९५६ १९७६ १९९० १८-२३ १-६ ९-१४ २-६ २६-३५ ३-७ १११-१११ - ७ १०-१२ श्री भूरचन्द जैन १९७५ २४-२७ Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लेख शिल्प में गोम्मटेश्वर बाहुबलि शुंग-कुषाणकालीन जैन शिल्पकला श्वेताम्बर जैनों के पूजाविधियों का इतिहास 11 श्रमण जीवन का बदलता हुआ इतिहास श्रमण परम्परा : एक विवेचन श्रमण संस्कृति की प्राचीनता श्रमण भगवान् महावीर का दीक्षा दर्शन श्रवणबेलगोला के शिलालेख, दक्षिण भारत - में जैनधर्म और गोम्मटेश्वर श्रावस्ती का जैन राजा सुहलदेव श्रीमद्भागवत में ऋषभदेव श्रीमालपुराण में भगवान् महावीर और गणधर - गौतम का विकृत वर्णन संप्रतिकालीन आहाड़ के मंदिर का जीर्णोद्धार स्तवन संसार का इतिहास - तीन शब्दों में सम्राट और साम्राज्य श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक डॉ० मारुतिनंदन प्रसाद तिवारी श्री शिवकुमार नामदेव श्री कस्तूरमल बांठिया "" मुनिश्री आईदान जी श्री रमेशमुनि शास्त्री श्री देवेन्द्रमुनि शास्त्री पं० श्री मल्लजी श्री गणेशप्रसाद जैन "" श्री रमाकान्त झा श्री अगरचन्द नाहटा श्री भँवरलाल नाहटा श्री महेन्द्र राजा डॉ० आदित्य प्रचण्डिया 'दीति' वर्ष 7 2 2 2 2 2 2 2 X ३२ १७ ७ ३० २१ १४ १९ २८ १२ २६ २९ ३ ३२ अंक ३ १० ११ १२ ६-७ ६-७ ९ ४ ९ ८ ई० सन् १९८१ १९७६ १९६६ १९६६ १९५६ १९७८ १९७० १९६३ १९६८ १९७७ १९६१ १९७५ १९७८ १९५२ १९८१ ४३७ पृष्ठ १०-२० २२-२५ ४-१५ २-१४ ३०-३५ ३-१० ३-१२ ४४-४८ १३-२१ १४- १८ ७३-७५ २६-२८ २३-३० २२-२४ १७-२३ Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक __ वर्ष प्रो० चन्द्रिकासिंह ‘उपासक' ४३८ लेख सारनाथ-काशी की तपोभूमि सारनाथ के भग्नावशेष सरस्वती का मंदिर सार्धपूर्णिमागच्छ का इतिहास सिद्धक्षेत्र बावनगजा जी सिद्धसेन दिवाकर ई० सन् १९५० १९५० १९५९ १९९३ १९८६ डॉ० वासुदेवशरण अग्रवाल डॉ० शिव प्रसाद श्री नेमिचन्द जैन डॉ० इन्द्रचन्द्र शास्त्री 'इन्दु' १९५३ १९५३ १९७५ १९५१ १९७६ सिरोही के प्राचीन जैन मन्दिर सोमनाथ सौराष्ट्र का प्राचीन जैनतीर्थ तालध्वजगिरि सोलंकी-काल के जैन मन्दिरों में जैनेतर चित्रण स्थूलभद्र स्था० जैन साध्वीसंघ का पारम्परिक इतिहास स्वयंभू की गणधर परम्परा स्वामी समन्तभद्र जी हरिभद्रसूरि का समय-निर्णय Prrore » » rd 2m 88 श्री भूरचन्द जैन श्री किशोरीलाल मशरूवाला श्री भूरचन्द जैन डॉ० हरिहर सिंह डॉ० इन्द्रचन्द्र जैन श्री अजित मुनि डॉ० देवेन्द्रकुमार जैन प्रो० पद्मनाभ जैनी स्व० मुनि श्री जिनविजय जी .8 x or an amor ao ro w or on an १९७७ पृष्ठ २५-२८ २६-३१ ५-९ ४२-५९ २-४ २५-३१ २९-३५ ९-१२ १८-२३ २४-२८ ३०-३२ ९-११ ३१-३२ ३१ १७-२३ १-३२ १-३० १९५६ १९७३ १९७३ १९५२ १९८८ १९८८ ४० " Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंक ई० सन् श्रमण : अतीत के झरोखे में लेख लेखक __ वर्ष हर्षपुरीयगच्छ अपरनाम मलधारीगच्छ का संक्षिप्त इतिहास डॉ० शिवप्रसाद हुबली का अचलगच्छ जैन देरासर श्री भूरचन्द जैन हुबली का श्री शान्तिनाथ मंदिर ३४ हारीजगच्छ डॉ० शिवप्रसाद Origin and Development of Tirthankara Dr. Harihar Singh Images Panis and Jainas Dr. S.P. Naranga ५ ३ १०-१२ ३ १९८५ १९८३ १९९५ १९७८ ४३९ पृष्ठ । ३६-६७ २६-२८ ४३-४५ २८-३३ २२-३० १०-१२ १९९५ ८७-८९ ८ ५. समाज एवं संस्कृति अक्षय तृतीया अद्भुत अद्भुत भिखारी एवं महान् दाता अधूरा समाजवाद अनन्य साथी का वियोग अनमोल वाणी-संकलन अर्न्तद्रष्टा महावीर श्रीमती कलादेवी जैन श्री विद्याभिक्षु श्री राजदेव त्रिपाठी श्री सतीश कुमार पं० बेचरदास दोशी महात्मा चेतनदास जी श्री मनोहर मुनि जी १० ३२ ३२ १९५७ १९६५ १९६२ १९५९ १९८१ १९८० o aumšori ४०-४३ १५-१६ २९-३१ ५९-६१ __५४ १९ ३८-४० Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४० वर्ष अंक श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक मुनिश्री महेन्द्रकुमार जी (प्रथम) महात्मा भगवानदीन जी श्रीकृष्ण ‘जुगनू श्री रघुवीरशरण दिवाकर लेख अपना और पराया अपने को पहचानिये अपराध की औषधि : क्षमा अपरिग्रहवाद -क्रमश: ३५ पृष्ठ १०-१४ १-६ ३२ avoro o o om x x w or a w ई० सन् १९८४ १९८१ १९८५ १९५१ १९५१ १९५१ १९५२ १९५२ १९५२ १९५३ १९५३ १९६१ १९६० १९५८ १९८१ १९५५ ९-१४ १२-१४ १८-२० ३४-३६ २५-२९ ३-८ ८-१२ ११-१५ २३-२५ ४१-४३ २२-२५ २-६ ३५-३६ ४७-५० १२ on अपरिग्रह अथवा अकर्मण्यता अपरिग्रह और आज का जैन समाज अपरिग्रह के तीन उपदेष्टा अपनी परमात्म शक्ति को पहचानो अपने व्यक्तित्व की परख कीजिये अपरिग्रह की नई दशा श्री गोपीचन्द धारीवाल मुनिश्री समदर्शी डॉ० गुलाबचन्द्र चौधरी श्री सौभाग्यमल जैन श्री जे० एन० भारती श्री जमनालाल जैन १० ३३ m m १९५८ Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४१ पृष्ठ । १०-११ २१-२२ ८-१० ४-७ २१-२२ १०-१३ लेख अपरिग्रह ही क्यों अपरिग्रहवाद अपरिग्रहवाद का यह उपहास क्यों अपरिग्रही महावीर अब साधु समाज सँभले अभी तो सबेरा ही है ? अमरवाणी अमृत जीता, विष हारा असमता मिटाने का उपाय असली दुकान/नकली दुकान अस्पृश्यता और जैनधर्म अस्पृश्यता का पाप अहिंसक भारत हिंसा की ओर अहिंसक महावीर आगम प्रकाशन में सहयोग कौन और कैसे करे ? आगम-साहित्य में क्षेत्र प्रमाण प्रणाली आगमिक साहित्य में महावीर चरित्र श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक वर्ष अंक कुमारी पुष्पा मुनिश्री रामकृष्णजी म.सा० ७ १२ पं० श्री मृगेन्द्रमुनि जी “वैनतेय” १० श्री जमनालाल जैन १३६ श्री शादीलाल जैन ११-१२ मुनि महेन्द्रकुमार जी 'प्रथम' श्री अमरचंद जी महाराज उपाध्याय अमरमुनि ३३ १० श्री उमेश मुनि डॉ० सागरमल जैन श्री बेचरदास दोशी श्री रामकृष्ण जैन श्रीमती राजलक्ष्मी १० ७-८ पं० कैलाशचन्द्र शास्त्री ७६-७ श्री कस्तूरमल बांठिया १८ ६ श्री रमेशमुनि शास्त्री ५ डॉ० कोमलचन्द जैन २६ १-२ ई० सन् १९५९ १९५६ १९५९ १९६२ १९५८ १९८३ १९५४ १९८२ १९६० १९८२ १९५५ १९५७ १९५९ १९५६ १९६७ १९७८ १९७४ २५-२९ २२-२३ २०-२१ ३४-३८ ५४-५५ ५१-५५ ४८-५० १६-२५ १८-२१ २८-३३ Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४२ लेख आचार्य हेमचन्द्र : एक महान् काव्यकार आचारांग में समाज और संस्कृति आज का युग महावीर का युग है आज का युवक धर्म से विमुख क्यों ? आज के सन्दर्भ में जैन पंचव्रतों की उपयोगिता श्रमण : अतीत के झरोखे में आगमों में राजा एवं राजनीति पर स्त्रियों का - प्रभाव आचार्यश्री आत्माराम जी की आगम सेवा आचार्य कालक और ‘हंसमयूर' आचार्य विद्यानन्द आचार्य सम्राट पूज्य श्री आत्माराम जी महाराज एक अंशुमाली श्री हीरालाल जैन कु० मीनाक्षी शर्मा आचार्य सोमदेव : व्यक्तित्व तथा कर्तृत्व : स्वरूप और दर्शन आचार्य श्री रमेशमुनि शास्त्री आचार्य हरिभद्रसूरि : प्राकृत के एक सशक्त रचनाकार श्री प्रेमसुमन जैन आचार्य हेमचन्द्र और जैन संस्कृति 11 लेखक डॉ० प्रमोदमोहन पाण्डेय श्री अगरचंद नाहटा पृथ्वीराज जैन श्री गुलाबचन्द्र चौधरी डॉ० इन्द्रचन्द्र शास्त्री श्री अभयकुमार जैन स्व० डॉ० परमेष्ठीदास जैन डॉ० ओमप्रकाश श्री माणकचंद पींचा "भारती" डॉ० विनोदकुमार तिवारी ,, वर्ष x m n o २४ १३ १ ४५ ३७ २८ VO ~ * ~ * ~♡ १८ १९ २८ ३८ ९ ३४ ३८ ३८ अंक १० १०-१२ x 2 2 ४ १२ १२ ४ ११ ४ ३ ७ ई० सन् १९७३ १९६२ १९५० १९५० १९९४ १९८६ १९७७ १९६७ १९६८ १९७७ १९८७ १९५७ १९८२ १९८७ १९८७ पृष्ठ ३-८ ४० ३९-४० २४-२७ २६-३२ ३-८ ११-१६ १९-२६ ३-६ ३-१३ २०-३२ ३०-३४ २६-२८ ८-१२ २-६ Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४.३ ON लेख आडम्बर प्रिय नहीं धर्म प्रिय बनो आत्म सुख सभी सुखों का राजा आत्मनित बनाम परहित आदिपुराण में राजनीति आदीश जिन अधूरी जोड़ी आनन्द आभूषण भार स्वरूप है आरोग्य आर्यारत्न श्री विचक्षण श्रीजी म० सा० आलोचक आत्म निरीक्षण ईसाइयों का महापर्व-क्रिसमस उत्तरभारत की सामाजिक-आर्थिक संरचना : जैन आगम साहित्य के सन्दर्भ में उपजीवी समाज एकता ? एकता ? एकता ? .& in or mux uguxo xorn श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक वर्ष अंक श्री सौभाग्यमुनि जी 'कुमुद' ३६ ३ आचार्य आनन्दऋषि जी ३३ ११ पं० दलसुख मालवणिया डॉ० रमेशचन्द्र जैन २७ ८ डॉ० प्रकाशचन्द्र जैन २८ ४ उपाध्याय श्री अमरमुनि ३१ ८ मुनि महेन्द्रकुमार ३४ ७ श्री सौभाग्यमुनि जी ३६८ पं० सुन्दरलाल जैन वैद्यरत्न श्री गुलाबचंद जैन __३१ ७ श्री विजय मुनि ४ ४ सुश्री शरबतीदेवी जैन सुश्री निर्मला प्रीतिप्रेम पृष्ठ । २-४ ३-५ ९-११ ३-१३ ३-८ १४-१८ १२-१७ ई० सन् १९८५ १९८२ १९५१ १९७६ १९७७ १९८० १९८३ १९८५ १९५३ १९८० १९५३ १९५५ १९५५ २-४ १ my w w २३-२५ १६-२३ ६-७ २०-२३ १२-१६ उमेशचन्द्र सिंह श्री भ्रमरजी सोनी श्री राजेन्द्रकुमार श्रीमाल ३८ ११ १२ ११ १९८७ १९६० १९८५ १२-२४ ३३-३५ २२-२६ Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४४ लेख एकता की ओर एक कदम एक नया पुरोहितवाद एक महान् विरासत की सहमति में उठा हाथ एलाचार्य मुनिश्री विद्यानन्द जी का सामाजिक दर्शन उपाध्याय श्री अमरमुनि जी : एक ज्योर्तिमय-व्यक्तित्व ओसवाल और पार्थापत्य सम्बन्ध कन्नड़ संस्कृति को जैनों की देन कर्मों का फल कला का कौल कल्पना का स्वर्ग या स्वर्ग की कल्पना कवि पुष्पदन्त की रामकथा कविरत्न श्री अमरमुनि जी कविवर देवीदास : जीवन, व्यक्तित्व एवं कृतित्व कवि-स्वरूप : जैन आलंकारिकों की दृष्टि में कर्मशास्त्रविद् रामदेवगणि और उनकी रचनाएँ क्या अणुव्रत आन्दोलन असाम्प्रदायिक है ? क्या जातिस्मरण भी नहीं रहा or w uronun xaoar o orar श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक अंक श्री ऋषभदास रांका मुनि सुरेशचन्द्र शास्त्री ७ ६-७ श्रीमहेन्द्रकुमार फुसकुले ३६ ८ श्री रत्नेश कुसुमाकर ३१ २ मुनि समदर्शी श्री मांगीलाल भूतोड़िया ४०८ प्रो० के० एस० धरणेन्द्रैया डॉ० आदित्य प्रचण्डिया श्री मनुभाई पंचोली श्री सौभाग्यमल जैन ३२ ४ श्री गणेशप्रसाद जैन २१ ९ मुनिश्री कांतिसागर जी ८ ५ श्री अभयकुमार जैन २८ १० डॉ० कमलेशकुमार जैन २७ ७ श्री अगरचंद नाहटा ___२९ ९ मुनि समदर्शी १० ९ श्री कस्तूरमल बांठिया ई० सन् १९५९ १९५६ १९८५ १९७९ १९८२ १९८९ १९५३ १९८१ १९५४ १९८१ १९७० १९५७ १९७७ १९७६ १९७८ १९५९ १९६० पृष्ठ २२-२४ २७-३१ ११-१४ २३-२७ २१-२५ २४-२५ ३९-४६ २०-२१ १-३ १७-२१ २४-२७ ८-१० १२-१९ ८-१२ ११-१९ २३-२४ २९-३४ Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४५ श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक श्री गोपीचन्द धाड़ीवाल श्री कस्तूरमल बांठिया वर्ष १६ अंक ४ ई० सन् १९६५ - १९६५ .. १९६० पृष्ठ । २२-२५ १७-२१ लेख क्या जैनधर्म जीवित रह सकता है? क्या थे? क्या हैं? क्या होना है ? क्या भगवान् महावीर के विचारों से विश्वशांति-संभव है? क्या महावीर सामाजिक पुरुष थे ? क्या मैं जैन हूँ? क्या यही शिक्षा है? क्या राम कथा का वर्तमान रूप कल्पित है। डॉ० (कु०) मंजुला मेहता डॉ० मोहनलाल मेहता प्रो० दलसुख मालवणिया श्री राजाराम जैन श्री धन्यकुमार राजेश ३ क्या स्त्रियाँ तीर्थंकर के सामने बैठती नहीं ? क्या हम अपराधी नहीं कानों सुनी सो झूठ सब क्रांतिकारी महावीर श्री नंदलाल मारु श्री जिनेन्द्र कुमार डॉ० रतनकुमार जैन पं० बेचरदास दोशी श्री रत्नचंद जैन शास्त्री डॉ. देवेन्द्रकुमार जैन श्री समीर मुनि मुनिश्री चन्द्रप्रभसागर २१ २१ २४ ___३५ ३३ १२ १५ १६ १५ ३४ or w or on gusano wa w or a १९८० १९६० १९५२ १९५२ १९७० १९७० १९७३ १९८३ १९८१ १९६१ १९६४ १९६५ १९६४ १९८३ १७-२२ १५-१६ ९-१२ ३०-३२ १०-१९ १८-२७ २७-३० ७-८ १२-१५ ४१-४४ १३-१६ ९-११ १८-२१ क्रांतिदर्शी महावीर क्रोध और क्षमा क्षमा-वाणी Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंक १०-१२ १०५ ४४६ लेख गर्भापहरण-एक समस्या गर्भापहरण सम्बन्धी कुछ बातें गर्भापहरण-सम्बन्धी स्पष्टीकरण गाँधी जी के मित्र और मार्गदर्शक : श्रीमद्राजचन्द्र ग्रामदान से ग्राम-स्वराज्य ग्रीष्म ऋतु का आहार-विहार गुरु नानक गुणों के आगार गृहस्थ के अष्टमूल गुण-तुलनात्मक अध्ययन चक्षुष्मान पं० सुखलाल जी चक्रवर्तियों के चक्रवर्ती श्रमण महावीर चमत्कार को नमस्कार चारित्र की दृढ़ता चिन्तन : सम्यक् जीवन दृष्टि चौबीसवें जैन तीर्थंकर भगवान् महावीर का जन्म स्थान जनजागरण और जैन महिलायें जनतंत्र के महान् उपासक भगवान् महावीर श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक श्री रतिलाल म० शाह श्री अगरचंद नाहटा श्री रतिलाल म० शाह प्रो० सुरेन्द्र वर्मा श्री नेमिशरण मित्तल वैद्यराज पं० सुन्दरलाल जैन डॉ० इन्द्र श्री यशपाल जैन श्री अशोक पराशर उपाध्याय श्री महेन्द्रकुमार जी श्री वेदप्रकाश सी० त्रिपाठी डॉ० रतनकुमार जैन श्री केवलमुनि जी डॉ० हुकुमचंद संगवे डॉ० सीताराम राय डॉ० श्रीरंजन सूरिदेव डॉ० इन्द्रचंद्र शास्त्री HMMMy TTMMMMMM 4. words 93 - ई० सन् १९७२ १९७२ १९७२ १९९५ १९५९ १९५४ १९५४ १९८१ १९७९ १९८१ १९८१ १९८१ १९८६ १९८२ १९८९ १९६१ १९५७ पृष्ठ २१-२५ २७-२८ २४-२७ १-४ २०-२४ ३४-३६ १२-२५ ४१-४३ २०-२४ १४-१५ ३१ ११-१४ २६-३३ २८-३१ १-७ २७-३१ ३-७ ३२५ ३२ ६ ३२७ ३७ ८-९ , 42 Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४७ अंक १०-१२ लेख जर्मन जैन श्राविका डॉ० शार्लोटे क्राउझे जिनवल्लभसूरि की प्राकृत साहित्य सेवा जीवन और विवेक जीवन का सत्य जीवन की कला जीवन के दो रूप-धन और धर्म जीवनदर्शन जीवन रहस्य जीवन दृष्टि जीवन दृष्टि जीवन में अनेकान्त जीवन संग्राम जीवन विकास की प्रेरणा: सहयोग जैन अनुसंधान का दृष्टिकोण जैन आगम साहित्य में जनपद जैन आगम साहित्य में वर्णित दास-प्रथा जैन आगमों में जननी एवं दीक्षा श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक · श्री हजारीमल बांठिया श्री अगरचंद नाहटा श्री डोंगरे महाराज डॉ० रतनकुमार जैन उपाध्याय अमरमुनि पं० मुनिश्री आईदान जी उपाध्याय अमरमुनि श्री भगवानलाल मांकड पं० बेचरदास दोशी उपाध्याय अमरमुनि श्री मनोहरमुनि जी श्री भागचन्द जैन श्री प्रकाश मुनि जी डॉ० महेन्द्रकुमार न्यायाचार्य श्री रमेशमुनि शास्त्री डॉ० इन्द्रेशचन्द्र सिंह डॉ० कोमलचन्द जैन 2. 9ar rrrrrr or ई० सन् पृष्ठ । १९९७ - ८३-९२ १९६३ ३२-३५ १९८०१ १९८१ २१-२५ १९५६ ३-६ १९५६ १६-१८ १९८० ७-९ १९५४ ३१-३४ १९६० १८-२० १९८२ ८-१० १९५९ २६-२८ १९५८ २६-२७ १९६१ ३६-३८ १९५३ १५-१६ २०-२२ १९९० ८५-९२ १९७६ १९-२२ ७-८ १९७८ ४१ २७ १०-१२ ३ Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४८ लेख वर्ष ४५ ४२ ३८ १७ १० ३४ अंक ४-६ ४-६ १० ११ श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक डॉ० सागरमल जैन डॉ० इन्द्रेशचन्द्र सिंह श्री सुभाषमुनि 'सुमन' श्री कृष्णलाल शर्मा श्री भंवरमल सिंघी डॉ० सागरमल जैन स्व० श्री अगरचन्द नाहटा मुनि रूपचन्द श्री जसकरण डागा डॉ० अरुणप्रताप सिंह मुनि पुण्यविजय जी श्री कोमलचन्द जैन श्री गणेशप्रसाद जैन जैन आगमों में मूल्यात्मक शिक्षा और वर्तमान सन्दर्भ ॐ जैन आगमों में वर्णित जातिगत समता जैन और बौद्ध दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन जैन उपाश्रय व्यवस्था और कर्मचारी तंत्र ' जैन एकता एकता का प्रश्न एकता का स्वरूप व उसके उपाय एकता संभव कैसे? जैन एकता : सूत्र व सुझाव जैन एवं बौद्ध धर्म में भिक्षुणी संघ की स्थापना जैन ज्ञान भण्डारों पर एक दृष्टिपात जैन और बौद्ध आगमों में विवाह पद्धति जैन तीर्थंकरों का जन्म क्षत्रियकुल में ही क्यों ? ३४ ई० सन् __ १९९४ १९९१ १९८७ १९६६ १९५९ १९८३ १९८३ १९८३ १९८३ १९८४ १९५३ १९६३ १९७८ १९८० १९८३ १९५१ १९७५ mr or r » v u 9 3 me पृष्ठ १६२-१७२ ६३-७२ ६-१७ २७-३३ ३५-३७ १-२७ १-२१ २८-३२ २२-४१ १-१६ १-७ १८-२२ २१-२५ १५-१८ २-५ २१-२६ १४-१८ * , * * * * ๒ जैनत्व का गौरव और हम जैनत्व या जैन चेतना जैन दर्शन में नारी मुक्ति श्री हर्षचन्द प्रो० विमलदास जैन कु० चन्द्रलेखा पंत २६ Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * ४४९ पृष्ठ २३-३३ लेख जैन दर्शन में समता जैन दिवाकर मुनिश्री चौथमल जी म० के जैन दृष्टि में नारी की अवधारणा जैन धर्म और आज की दुनियाँ जैनधर्म और उसका सामाजिक दृष्टिकोण " जैनधर्म और दर्शन की प्रासंगिकता-वर्तमान परिपेक्ष्य में जैनधर्म और नारी जैनधर्म और युवावर्ग जैनधर्म और वर्ण व्यवस्था * * * * * श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक ____ अंक श्री अभयकुमार जैन १ श्री विपिन जारोली २ डॉ० श्रीरंजन सूरिदेव श्री ऋषभचन्द्र श्री लक्ष्मीनारायण 'भारतीय' डॉ० इन्द्र ४३ ७-९ श्री लक्ष्मीनारायण 'भारतीय' श्री प्यारेलाल श्रीमाल 'सरस पंडित' ३४ पं० फूलचन्द्र सिद्धान्तशास्त्री २ ६ २५-२८ ३५-३६ ९-१८ rora re marry * १-८ ई० सन् १९७७ १९८५ १९९२ १९६४ १९६३ १९९२ १९६७ १९८३ १९५१ १९५१ १९९४ १९७२ १९९० १९६७ १९९७ १९७२ १९८५ ४५ २३ ४१ ४-६ ५ १०-१२ जैनधर्म और सामाजिक समता जैनधर्म भौगोलिक सीमा में आबद्ध क्यों ? जैनधर्म में नारी की भूमिका जैनधर्म में सामाजिक प्रवृत्ति की प्रेरणा जैनधर्म में सामाजिक चिन्तन जैन पदों में रागों का प्रयोग जैन पर्व दीपावली : उत्पत्ति एवं महत्त्व डॉ० सागरमल जैन श्री कन्हैयालाल सरावगी डॉ० सागरमल जैन मुनिश्री नथमल डॉ० सागरमल जैन श्री प्यारेलाल श्रीमाल डॉ. विनोदकुमार तिवारी ३-९ ३५-३९ १५-२३ २०-२६ १४४-१६१ ३४-३८ १-४८ २०-२३ १-१९ ११-१४ २-५ ४८ ४-६ ३७ २ Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५० ४४ अंक १०-१२ १० पृष्ठ १-७ १४-१९ २३-२५ १२-१७ श्रमण : अतीत के झरोखे में लेख लेखक वर्ष जैन परम्परा के विकास में स्त्रियों का योगदान डॉ० अरुणप्रताप सिंह जैन परम्परा में महाभारत कथा डॉ० कल्याणीदेवी जायसवाल जैन पुराणों में राम कथा श्री गणेशप्रसाद जैन जैन पुराणों में समता श्री देवीप्रसाद मिश्र जैन पौराणिक साहित्य में युद्ध श्री धन्यकुमार राजेश जैन भिक्षुणी-संघ और उसमें नारियों के प्रवेश के कारण। __ श्री अरुणप्रताप सिंह जैन भौगोलिक स्थानों की पहचान डॉ० प्रेमसुमन जैन जैन मन्दिर और हरिजन प्रो० महेन्द्रकुमार जैन 'न्यायाचार्य' जैन मुनि और माँसाहार परिहार श्री कस्तूरमल बांठिया जैन मुनि क्या कुछ कर सकता है ? श्री मन्नूलाल जैन जैन रक्षापर्व : वात्सल्य पूर्णिमा श्री भूरचंद जैन . जैन राजनीति में दूतों और गुप्तचरों का स्वरूप डॉ० रमेशचन्द्र जैन जैन रासरासक-परिभाषा, विकास और काव्यरूप डॉ० प्रेमचंद जैन जैन वाङ्मय का संगीत पक्ष । श्री प्यारेलाल श्रीमाल सरस पंडित' ३१ जैन विद्या के निष्काम सेवक : लाला हरजसराय जैन डॉ० सागरमल जैन जैन शिक्षण संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा श्री धनदेव कुमार जैन शिक्षा : उद्देश्य एवं पद्धतियाँ डॉ० श्रीरंजन सूरिदेव 24 » » » My or ई० सन् १९९३ १९८९ १९६८ १९७८ १९७० १९८२ १९८३ १९५१ १९६७ १९८२ १९७८ १९७६ १९७० १९७९ १९८६ १९५३ १९६८ १२-१६ ६-११ २५-३० १४-२५ १५-१८ १९-२२ १६-२४ ३-९ २५-२७ २१-२४ १३-१६ १९-२३ v rs33 Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ न अंक ५ जैन संस्कृति जैन संस्कृति और परिवार व्यवस्था जैन संस्कृति और प्रचार : एक चिन्तन संस्कृति और महावीर संस्कृति और राजनीति जैन संस्कृति और विवाह जैन संस्कृति का विस्तार समाज और वैशाली जैन समाज और सर्वोदय जैन समाज का धर्म प्रचार जैन समाज के लिये नई दिशा जैन समाज द्वारा काव्य सेवा जैन समाज व्यवस्था जैन साधु और हरिजन जैन साधुओं का संस्थारूपी परिग्रह जैन साहित्य और संस्कृति का जनजीवन पर प्रभाव जैन साहित्य में जनपद श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक वर्ष पं० महेन्द्रकुमार न्यायाचार्य श्री प्रेमसुमन जैन १७ श्री गजेन्द्र मुनि १८ श्री विजयमुनि शास्त्री श्री देवेन्द्रमुनि शास्त्री __ १९ श्री गोकुलचंद जैन श्री देवेन्द्रमुनि शास्त्री १८ पं० पन्नालाल धर्मालंकार ३ सन्त विनोबा श्री समीर मुनि 'सुधाकर' साहू शांतिप्रसाद जी श्री रूपचंद जैन श्री बशिष्ठनारायण सिन्हा १७ श्री माईदयाल जैन १२ कु० सुधा जैन २५ डॉ० अच्छेलाल a daw 5 x xo so 5 w ga voor ई० सन् १९५४ - १९६५ १९६७ १९६२ १९६८ १९६२ १९६७ १९५२ १९५९ १९६६ ४५१ पृष्ठ ३-१३ ३८-५१ ३०-३६ ३३-४२ २४-३१ ८-२१ ३१-३७ ३६-३८ ३८-३९ १२-१४ ३-७ २०-२२ ३२-३६ १४-१६ ९-१० १५-१८ १५-२४ १९५२ १९६६ १९६६ १९५२ १९६१ १९७४ १९७५ २७ Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंक ॐ ६ -७ १०-१२ ७-८ ४ पृष्ठ २२-२९ २६-३० ३४-३८ ९३-११० ६३-७० १०-११ २६-३२ ३४-३८ श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक श्री उदयचंद जैन - मनि नेमिचन्द्र श्री अगरचंद नाहटा ७ डॉ० अशोककुमार सिंह मुनि पुण्यविजय जी डॉ० आदित्य प्रचण्डिया 'दीति' | देवेन्द्रमुनि शास्त्री श्री रतिलाल दीपचंद देसाई श्री राजमल पवैया उपाध्याय श्री अमरमुनि डॉ० श्रीरंजन सूरिदेव श्री डी० जी० महाजन डॉ० देवेन्द्रकुमार जैन श्री महेन्द्रकुमार शास्त्री श्रीसौभाग्यमल जैन श्री गणेशप्रसाद जैन १७ ४५२ लेख जैन साहित्य में शिशु जैन सिद्धान्तों का समाजव्यापी प्रयोग जैनागमों में महावीर के जीवनवृत्त की सामग्री जैनाचार्य राजशेखरसूरि : व्यक्तित्व एवं कृतित्व जैसलमेर भण्डार का उद्धार जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि ज्योतिर्धर महावीर ज्ञान तपस्वी मुनिश्री पुण्यविजय जी ज्ञानद्वीप की शिखा ढंढ़ण ऋषि की तितिक्षा णायकुमारचरिउ की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि तमिलक्षेत्रीय जैन योगदान तीर्थंकर महावीर तीर्थंकर और उनकी शिक्षायें तीर्थंकर महावीर जन्मना ब्राह्मण या क्षत्रिय तीर्थंकर महावीर का निर्वाणदिवस 'दीपावली' तीर्थंकर महावीर का निर्वाण पर्व 'दीपावली' - एक समीक्षा १-२ ई० सन् १९७१ १९६७ १९५५ १९९० १९५३ १९८२ १९६५ १९६७ १९८१ १९८२ १९७१ १९६९ १९७९ १९६४ ३३ १९ ३० १० ११-१४ १४-१८ ५-१० १४-१६ ७-१० ५१-५५ २०-२३ १९८१ yor. १९८२ १५-२० Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 923 ई० सन् १९७७ . १९८५ १९८० ४५३ पृष्ठ । २१-२६ १२-१४ ९-११ श्रमण : अतीत के झरोखे में लेख लेखक वर्ष अंक तीर्थंकरों की निश्चित संख्या क्यों ? श्री रतिलाल म० शाह तीर्थंकर महावीर की शिक्षाओं का सामाजिक महत्त्व डॉ० विनोदकुमार तिवारी त्याग का मूल्य उपाध्याय अमरमुनि त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित में प्रतिपादित सांस्कृतिक - जीवन डॉ० उमेशचन्द्र श्रीवास्तव ४३ ४-६ ४-६ दक्षिण हिन्दुस्तान और जैनधर्म पं० दलसुख मालवणिया दया-दान की मान्यता श्री सतीशकुमार 'भैरव' २ दान की आत्मकथा श्री भग्न हृदय ११-१२ दान सम्बन्धी मान्यता पर विचार श्री अगरचंद नाहटा दार्शनिक पुरुष मुनिश्री रामकृष्ण ३२ ५ दार्शनिक क्षितिज का दीप्तिमान नक्षत्र उपाध्याय श्री अमरमुनि ३२ दिगम्बर रहना क्या महावीर का आचार था ? । श्री रतिलाल म० शाह २७ द्विसन्धानमहाकाव्य में राज्य और राजा का स्वरूप डॉ० रमेशचन्द्र जैन २५८ दीपमाला : एक अध्यात्मिक पर्व पं० श्री ज्ञानमुनि जी महाराज दीपावली : एक साधना पर्व डॉ० श्रीरंजन सूरिदेव ८ १ दुःख का जनक लोभ आचार्य श्री आनन्दऋषि ३२ २ दुर्दान्त दस्यु दया का देवता बना श्री वीरेन्द्रकुमार जैन ___३३६ ६९-८४ १७-१९ ३३-३६ ३३-३६ ३-१० ३४ rur 333 vor or or w १९९२ १९५० १९५६ १९५८ १९५५ १९८१ १९८१ १९७६ १९७४ १९५५ १९५६ १९८० १९८२ ११-१३ २६-३० ३-१२ २५-२८ ३३-३५ ५-१२ ३९-४० Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५४ श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक लेख वर्ष अंक ३६ ४ १३ २ पृष्ठ २-४ १५-२१ २८-२९ ३२-३६ ७-८ २८-३० ९-१३ १७-१८ दुर्बल को सताना क्षत्रिय धर्म नहीं दृढ़ प्रतिज्ञ केशव देवचन्द्रकृत यंत्रप्रकृति का वस्त्र टिप्पणक धर्ममय समाज रचना की आधारशिला-क्षमापना धर्म और युवा पीढ़ी धर्म एक आधार : स्वस्थ समाज रचना का पुनरुद्धार और संस्कृति का नवनिर्माण धर्म का मान धर्म का सर्वोदय स्वरूप धर्म के स्थान पर संस्कृति धर्म को समाज सेवा से जोड़ा जाय धर्म पुरुष और कर्म पुरुष ध्यान योगी महावीर नई समाज व्यवस्था नमस्कारमंत्र का मौलिक परम अर्थ नया विहान-नया समाज नर्क का प्रश्न 18 xuan & a novux or w ar ३५ ई० सन् १९८५ १९८५ १९७९ १९६२ १९८२ १९६६ १९५० १९८४ १९६३ १९५१ १९८५ १९५५ १९६१ १९५८ १९५५ १९५९ १९८१ मुनिश्री महेन्द्रकुमार 'प्रथम' श्री अगरचन्द नाहटा मुनिश्री नेमिचन्दजी श्रीमती बीना निर्मल साध्वी श्री मंजुला पं० दलसुख मालवणिया डॉ० आदित्य प्रचण्डिया पं० चैनसुखदास जैन काका कालेलकर श्री जिनेन्द्र कुमार पं० फूलचंदजी 'श्रमण' मुनिश्री नथमल जी कुमार प्रियदर्शी पं० सूरजचंद्र ‘सत्यप्रेमी' श्री बद्रीप्रसाद स्वामी श्री सौभाग्यमल जैन १४ १-२ ६ ur ६ ३६ ६-८ २१-२२ २८-३० ४२-५६ १८-२० ३२-३५ २६-२९ ९ ६ aan ३३ Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लेख नागदत्त नाथ कौन ? नारी और त्याग मार्ग नारी उत्क्रान्ति के मसीहा भगवान् महावीर नारी का महत्त्व नारी का स्थान घर है या बाहर? नारी की प्रतिष्ठा नारी के अतीत की झांकी - सतीप्रथा नारी जागरण नारी जीवन का आदर्श निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थी संघ नैतिक उत्थान और शिक्षण संस्थायें पंजाब में स्त्री शिक्षा पंडित कौन ? पंडितरत्न सुखलाल जी पं० सुखलाल जी - एक संस्मरण पं० सुखलाल जी के तीन व्याख्यान मालाओं के पठनीय ग्रंथ : एक सुखद संस्मरण श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक मुनि महेन्द्रकुमार उपाध्याय श्री अमरमुनि श्री पृथ्वीराज जैन दर्शनाचार्य मुनि योगेशकुमार श्री आईदान जी महाराज सत्यवती जैन श्री किशोरीलाल मशरूवाला श्री गुलाबचन्द्र चौधरी सुश्री प्रेमकुमारी दिवाकर डॉ॰ सन्तोषकुमार ‘चन्द्र’ मुनिश्री पुण्यविजय जी प्रो० पृथ्वीराज जैन श्री रामस्वरूप जैन महात्मा भगवानदीन पं० के० भुजबलि शास्त्री श्री देवेन्द्रमुनि शास्त्री श्री अगरचन्द नाहटा वर्ष ३६ ३१ ३५ २ 2 orm m 000 ३२ ३२ ३२ ३२ अंक ov १२ १० ११ १२ १ ५. ५. ५ ई० सन् १९८४ १९८० १९५१ १९८४ १९५४ १९५४ १९५१ १९५० १९५१ १९५२ १९६६ १९५२ १९५० १९८० १९८१ १९८१ १९८० ४५५ पृष्ठ २-७ १२-१६ १४-२० २४-२६ ३०-३६ ३५ ४-८ ११-१८ २६-३१ ३१-३४ ३२-३७ २७-३० ३८-४० १-४ ४७ २८-३२ ५७ Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५६ लेख भौगोलिक स्थल पउमचरिउ की अवान्तर कथाओं में भौगोलिक सामाग्री पउमचरियं के कुछ पउमचरियं में अनार्य जातियाँ पउमचरिउ में नारी पउमचरियं में वर्णित राम की वनयात्रा 11 पद्मचरित में वस्त्र और आभूषण पद्मचरित में शकुनविद्या पर्यावरण एवं अहिंसा पर्यावरण के प्रदूषण की समस्या और जैनधर्म पर्युषण पर्व और आज की नारी पर्युषण का सामाजिक महत्त्व पर्युषण पर्व पर एक ऐतिहासिक दृष्टिपात पर्युषण पर्व की आराधना पर्युषण पर्व पर दो महत्त्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान पर्येषण मीमांसा पर्व और धर्म चर्या पल्लवनरेश महेन्द्रवर्मन "प्रथम" कृत मत्तविलासप्रहसन में वर्णित धर्म और समाज श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक डॉ० के० ऋषभचन्द्र "" 32 डॉ० देवेन्द्रकुमार जैन डॉ० के० ऋषभचन्द्र " डॉ० रमेशचन्द्र जैन "" डॉ० डी०आर० भण्डारी डॉ० सागरमल जैन सुश्री शरबतीदेवी जैन श्री जयन्त मुनि पं० मुनिश्री रामकृष्ण जी महाराज पं० मुनिश्री फूलचन्द्र जी 'श्रमण' श्री अगरचंद नाहटा मुनिश्री कन्हैयालाल जी 'कमल' श्री जयभगवान जैन श्री दिनेशचन्द्र चौबीसा वर्ष १८ १६ १८ २५ १६ १६ २५ २४ ४३ ४५ ७ ७ ७ ६ ७ ६ ७ ४४ अंक १२ ११ ६ ८ ९ ९ ११ १-३ ४-६ ११ ११ ११ ११ ११ ११ १२ १-३ ई० सन् १९६७ १९६५ १९६७ १९७४ १९६५ १९६५ १९७४ १९७३ १९९२ १९९४ १९५६ १९५६ १९५६ १९५५ १९५६ १९५५ १९५६ १९९३ पृष्ठ ३-१६ १७-२१ २-५ २४-२७ ३-८ १३-१८ ३-१० २९-३५ ८१-९० १३५-१४३ ३४-३५ १०-१५ १७-२१ १४-१६ ३७-३९ १७-२१ ३-९ ३५-४१ Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वर्ष अंक ई० सन् १९५० . ४२ ३६ २८ २९ I am a orm oor s श्रमण : अतीत के झरोखे में लेख लेखक पारिवारिक जीवन सुखी कैसे हो? श्रीमती यमुनादेवी पाठक पाण्डवपुराण में राजनैतिक स्थिति सुश्री रीता विश्वनोई पाप का घट मुनि महेन्द्रकुमार पार्श्वनाथचरित में प्रतिपादित समाज श्री जयकुमार जैन पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान के मार्गदर्शक श्री गुलाबचन्द जैन पं० सुखलाल जी पितृहीन डॉ० इन्द्र पुरुषार्थ के प्रतीक पं० सुखलाल जी साहू श्रेयांसप्रसाद जैन पौराणिक साहित्य में राजनीति श्री धन्यकुमार राजेश प्रज्ञाचक्षु पं० सुखलाल जी : एक परिचय श्री गुलाबचन्द जैन प्रज्ञापुरुष पं० जगन्नाथ जी उपाध्याय की दृष्टि में - बुद्ध व्यक्ति नहीं प्रक्रिया डॉ० सागरमल जैन प्रतिक्रिया है दु:ख युवाचार्य महाप्रज्ञ प्रज्ञापुरुष साध्वीरत्न श्री विचक्षण श्री जी प्रज्ञामूर्ति श्री रमेशमनि शास्त्री प्रभावशाली व्यक्तित्व (मनोवैज्ञानिक लेख) श्री कोमल जैन प्राकृत हिन्दी कोश के महान् प्रणेता : पं० हरगोविन्ददास श्री अगरचन्द नाहटा प्रागैतिहासिक भारत में सामाजिक मूल्य एवं परम्पराएँ डॉ. जगदीशचन्द्र जैन प्राचीन जैन आगमों में राजस्व व्यवस्था डॉ० अनिलकुमार सिंह प्राचीन जैन ग्रंथों में कृषि डॉ० अच्छेलाल यादव ४५७ पृष्ठ । २९-३३ ७५-८६ ११-१३ ३-९ ३-५ २५-२९ ४८-४९ ३-१३ ५५ ।। १९८५ १९७७ १९७८ १९५४ १९८२ १९७१ १९८१ २३ . ४६ ४-६ ३३ १६६-१६९ २-६ १९९५ १९८२ १९८१ १९८१ १९५७ ३५ ३३ ३२ ě or soos or a x २८ १९७७ ५ १०-१२ १-३ १९९२ १९९६ १९७३ . १२-१४ १९-२२ १३-१९ ११-१९ २४-२७ Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५८ लेख पर्व और धर्म चर्या पल्लवनरेश महेन्द्रवर्मन " प्रथम" कृत मत्तविलासप्रहसन में वर्णित धर्म और समाज पारिवारिक जीवन सुखी कैसे हो ? पाण्डवपुराण में राजनैतिक स्थिति पाप का घट पार्श्वनाथचरित में प्रतिपादित समाज पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान के मार्गदर्शक पं०सुखलाल जी पितृहीन पुरुषार्थ के प्रतीक पं० सुखलाल जी पौराणिक साहित्य में राजनीति प्रज्ञाचक्षु पं० सुखलाल जी : एक परिचय प्रज्ञापुरुष पं० जगन्नाथ जी उपाध्याय की दृष्टि में बुद्ध व्यक्ति नहीं प्रक्रिया प्रतिक्रिया है दुःख प्रज्ञा पुरुष श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक श्री जयभगवान जैन श्री दिनेशचन्द्र चौबीसा श्रीमती यमुनादेवी पाठक रीता बिश्वनोई मुनि महेन्द्रकुमार श्री जयकुमार जैन श्री गुलाबचन्द्र जैन डॉ० इन्द्र साहू श्री धन्यकुमार राजेश श्रेयांसप्रसाद जैन श्री गुलाबचन्द्र जैन डॉ० सागरमल जैन युवाचार्य महाप्रज्ञ साध्वी रत्न श्री विचक्षण श्री जी वर्ष ७ X or ♡ w v ४४ ४२ ३६ २८ ♡ 5 m m x २९ ३२ २३ ३२ www m ४६ ३३ ३२ अंक १२ १-३ ७ १-३ ३ ११ ३ g v ४-६ ई० सन् १९५५ १९९३ १९५० १९९१ १९८५ १९७७ १९७८ १९५४ १९८१ १९७१ १९८१ पृष्ठ ३-९ ३५-४१ २९-३३ ७५-८६ ११-१३ ३-९ ३-५ २५-२९ ४८-४९ ३-१३ ५५ १९९५ १६६-१६९ १९८२ १९८१ २-६ ३५ Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लेख वर्ष ३२ ८ २८ .& 555 or a x a ई० सन् १९८१ . १९५७ १९७७ १९९२ १९९६ १९७३ १९७२ ४५९ पृष्ठ । ३३ १२-१४ १९-२२ १३-१९ ११-१९ २४-२७ २९-३३ ४३ १०-१२ ४७ २४ २३ ११ श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक प्रज्ञामूर्ति श्री रमेशमुनि जी शास्त्री प्रभावशाली व्यक्तित्व (मनोवैज्ञानिक लेख) श्री कोमल जैन प्राकृत हिन्दी कोश के महान् प्रणेता : पं०हरगोविन्ददास श्री अगरचन्द नाहटा प्रागैतिहासिक भारत में सामाजिक मूल्य एवं परम्पराएँ डॉ० जगदीशचन्द्र जैन प्राचीन जैन आगमों में राजस्व व्यवस्था डॉ० अनिलकुमार सिंह प्राचीन जैन ग्रंथों में कृषि डॉ० अच्छेलाल यादव प्राचीन जैन साहित्य में उत्सव-महोत्सव डॉ० झिनकू यादव प्राचीन जैन साहित्य में वर्णित आर्थिक जीवन : एक अध्ययन श्रीमती कमलप्रभा जैन प्राचीन जैन साहित्य में शिक्षा का स्वरूप डॉ० राजदेव दुबे प्राचीन प्राकृत ग्रंथों में उपलब्ध भगवान् महावीर का जीवन चरित डॉ० के० ऋषभचन्द्र प्राचीन भारत में अपराध और दंड डॉ० प्रमोदमोहन पाण्डेय प्राचीन भारतवर्ष में गणतंत्र का आदर्श श्री कन्हैयालाल सरावगी प्राणप्रिय काव्य के रचयिता व रचनाकाल श्री अगरचंद नाहटा प्राणीमात्र के विकास का आधार जैनधर्म डॉ० महेन्द्रसागर प्रचंडिया बलभद्र और हरिण उपाध्याय अमरमुनि ३७ ३६ १९८६ १९८५ १०-१९ १६-२४ २८ २४ üa w w rara २४ १९७७ १९७३ १९७३ १९७२ १९८० १९८२ ३-१० १७-२१ ९-१२ १७-२० १६-१८ २३ ३२ Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६० लेख वर्ष श्रमण : अतीत के झरोखे में : लेखक डॉ० वासुदेवशरण अग्रवाल मुनि महेन्द्रकुमार उपाध्याय श्री अमरमुनि अंक १० ई० सन् १९५४ १९८४ १९८१ पृष्ठ ३-९ ८-१० १७-२३ ३२ ९ डॉ० यदुनाथप्रसाद दुबे ४-६ १९९१ २१-३२ ३ ३१ ___३३ बत्तीस प्रकार की नाट्यविधि बन्दर का रोना बलिदान की अमर गाथा वसन्तविलासकार बालचन्द्र सूरिः व्यक्तित्व एवं कृतित्व बालकों के संस्कार निर्माण में अभिभावक, शिक्षक एवं समाज की भूमिका बिना विचारे जो करै बुद्ध और महावीर बह्मदत्त भक्तामरस्तोत्र : एक अध्ययन भरतेशवैभव में प्रतिपादित सामाजिक एवं आर्थिक व्यवस्था भगवान् महावीर भगवान् महावीर भगवान् महावीर और उनका शांति संदेश भगवान् महावीर और जातिभेद डॉ० सागरमल जैन उपाध्याय अमरमुनि डॉ० देवसहाय त्रिवेद मुनिश्री महेन्द्रकुमार जी 'प्रथम' डॉ० हरिशंकर पाण्डेय १९८० १९८१ १९७९ १९८३ १९९५ २६-३८ १२-१४ ३०-३४ ४०-४२ ७-९ १० w w श्री सुपार्श्वकुमार जैन श्री मदनलाल जैन श्री महेन्द्रराजा जैन पं० श्री ज्ञानमुनि जी श्री पृथ्वीराज जैन १९७५ १९५६ १९६२ १९५५ १९५० ३-८ ५५-५६ ४७-५३ ५-१७ ११-१६ w ६-७ w Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लेख भगवान् महावीर और नारी जाति भगवान् महावीर और उनका उपदेश अध्यात्म भगवान् महावीर और युवा भगवान् महावीर और विश्वशांति भगवान् महावीर और समता का आचरण भगवान् महावीर भगवान् महावीर उनके जीवन की विविध भूमिकाएं भगवान् महावीर का आदर्श और हम भगवान् महावीर का आदर्श जीवन भगवान् महावीर का उपदेश और आधुनिक समाज भगवान् महावीर का जीवन और दर्शन भगवान् महावीर का निर्वाण कल्याणक भगवान् महावीर का विचार तथा कृतित्व समस्त विश्व के लिए अनुपम धरोहर भगवान् महावीर का व्यक्तित्व श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक श्री विमल जैन डॉ० गुलाबचन्द्र चौधरी श्री जमनालाल जैन डॉ० निजामुद्दीन मुनि नेमिचंद उपाध्याय अमरमुनि पं० सुखलाल संघवी श्रीमती कांता जैन श्री पूनमचन्द मुणोत जैन पं० दलसुखभाई मालवणिया डॉ० सागरमल जैन उपाध्याय अमरमुनि डॉ० रामकुमार वर्मा डॉ० गुलाबचन्द्र चौधरी वर्ष f 2 x m 2 2 x १५ १४ ३३ ३५ १५ ३४ ♡ २ ३६ ३२ ४५ ३५ ३१ m w ६ अंक १२ ८ or or o १० १ www 9) ६ ७ 115 ६ १-३ १ १ ६-७ ई० सन् १९६४ १९६३ १९८२ १९८३ १९६४ १९८२ १९५२ १९५१ १९८५ १९८१ १९९४ १९८३ १९७९ १९५५ ४६१ पृष्ठ ३५-३८ १५-१७ ५१-५५ १०- १३ ३०-३४ ५-१४ ९-१६ ३३-३६ २२-२३ १७-२२ १४-१७ २-६ ३६-३७ ४१-४६ Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंक प ६ ई० सन् १९५७ १९५९ १९६२ ७-८ श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक वर्ष मुनि कन्हैयालाल जी 'कमल' ८ श्री वशिष्ठनारायण सिन्हा १० डॉ० श्रीरंजन सूरिदेव १३ मुनिश्री नगराज जी ३८ पं० अमृतलाल शास्त्री मुनि वसन्तविजय पं० सुखलाल जी २६ डॉ० मंगलदेव शास्त्री श्यामवृक्ष मौर्य श्री ज्ञानमुनि १९८६ ४६२ लेख भगवान महावीर का व्यक्तित्व भगवान् महावीर का समन्यवाद भगवान् महावीर की जन्मकालीन परिस्थितियाँ भगवान् महावीर की तलस्पर्शिनी अहिंसा दृष्टि भगवान् महावीर की दिव्य देशना भगवान् महावीर की देन भगवान् महावीर की मंगल विरासत भगवान् महावीर की महामानवता भगवान् महावीर की व्यापक दृष्टि भगवान् महावीर के आठ संदेश भगवान् महावीर के आदर्श और यथार्थ की पृष्ठभूमि भगवान् महावीर के जीवन का एक भ्रान्त दृश्य भगवान् महावीर के निर्वाण का २५००वां वर्ष भगवान् महावीर-जीवन और सिद्धान्त भगवान् महावीर : जीवन सम्बन्धी प्रमुख घटनाएं भगवान् महावीर : समताधर्म के प्ररूपक १९५७ १९६४ १९७४ १९६३ १९८४ १९६४ १७-२३ ४६-५० २२-२६ २-४ ३३-३४ ३७-४० ३-९ । ९-११ २९-३१ २८-३२ १४ ६ १५ मुनि श्री नगराज जी डॉ० ज्योतिप्रसाद जैन श्री गोपीचंद धारीवाल श्री धर्मचन्द्र ‘मुखर' डॉ० मंगलप्रकाश मेहता पं० दलसुख मालवणिया २३ ६ ३६ १९८४ १९६४ १९७२ १९५५ १९८५ १९७४ २०-२२ ३३-४६ २६-३१ ३६-४० १२-१५ १८-२७ ६-७ १-२ Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ P श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक श्री लक्ष्मीनारायण 'भारतीय' श्री कस्तूरमल बांठिया लेख भगवान् या सामाजिक क्रांतिकारी भगवान् महावीर के जीवन चरित्र वर्ष ११ अंक ई० सन् १९६० . १९६४ १९६९ ४६३ पृष्ठ । २५-२७ ४९-६३ ५-२२ २०३ ३-८ १४-१६ भरतेशवैभव में प्रतिपादित सामाजिक एवं आर्थिक व्यवस्था भाग्यवान अन्धा पुरुष भाग्य बनाम पुरुषार्थ भारत की अहिंसक संस्कृति भारतीय चिकित्सा शास्त्र .. भारत की अहिंसक संस्कृति भारतीय दर्शनों का समन्वयवादी स्थितप्रज्ञ पुरुष भारतीय मनीषा के उज्ज्वलतम प्रतीक पं० सुखलाल जी भारतीय संस्कृति भारतीय संस्कृति का दृष्टिकोण भारतीय संस्कृति का प्रहरी भारतीय संस्कृति में दान का महत्व श्री सुपार्श्वकुमार जैन मुनि महेन्द्र कुमार डॉ० सागरमल जैन मुनिश्री रामकृष्णजी म० सा० श्री अत्रिदेव विद्यालंकार मुनिश्री रामकृष्णजी म० सा० पं० श्री विजयमुनि जी aw) » Mur ur ure a ora a mus __ १९७५ १९८३ १९८५ १९५६ १९५३ १९५६ १९८१ २०-२३ २९-३४ २१-२५ १७-२७ ५। डॉ० रामजी सिंह डॉ० मंगलदेव शास्त्री s mor or w १९८१ १९५५ १९५५ १९५५ १९६९ ४४-४६ १८-३१ ३-१६ २६-२८ ८-१६ कविरत्न श्री अमरमुनिजी श्री देवेन्द्रमुनि शास्त्री ६ १२ २०६ Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१ अंक ७-९ ४-६ १२ ४ ३३ ४६४ श्रमण : अतीत के झरोखे में .. लेख लेखक वर्ष भारतीय राजनीति में जैन संस्कृति का योगदान श्री इन्द्रेशचन्द्र सिंह ४१ भारतीय संस्कृति का समन्वित रूप डॉ० सागरमल जैन ४-५ भारतीय संस्कृति के विकास में श्रमण धारा का महत्व डॉ० कोमलचन्द जैन ३५ भिगमंगा मन डॉ० रतनकुमार जैन भिक्षुणी संघ की उत्पत्ति एवं विकास डॉ० अरुणप्रताप सिंह भिक्षु संघ और समाजसेवा भिक्षु जगदीश काश्यप मंगलमय महावीर प्रो० महेन्द्रकुमार न्यायाचार्य मंदिरों के झगड़े और जैन समाज श्री ऋषभदास रांका २ मन की लड़ाई उपाध्याय अमरमुनि ३१ मनुष्य प्रकृति से शाकहारी डॉ० महेन्द्रसागर प्रचण्डिया ममता महात्मा भगवानदीन. ३२ मनुष्य की परिभाषा श्री महावीरप्रसाद गैरोला मनुष्य की प्रगति के प्रति भयंकर विद्रोह मुनिश्री आईदान जी महाराज महत्वपूर्ण जैन कला के प्रति जैन समाज की उपेक्षा वृत्ति श्री अगरचंद नाहटा ___३१ महाकवि स्वयंभू और नारी डॉ० देवेन्द्रकुमार जैन महाकवि रत्नाकर के कतिपय अध्यात्म गीत पं० के० भुजबली शास्त्री ई० सन् १९९० । १९९४ १९८४ १९८२ १९८० १९५० १९५२ १९५१ । १९८० १९८१ १९८० १९८० १९५४ पृष्ठ २७-३४ १२९-१३४ १५-२४ २१-२८ १७-२० १३-१६ २३-२४ २८-३२ १३-१६ ३२-३४ ३-४ १४-१६ १८-१९ ६ - Gm m mm_. <3 १० २ १९८० १९७४ १९६८ १३-१४ ३-७ २३-२५ २० Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६५ श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक श्री महेशशरण सक्सेना वर्ष अंक ई० सन् १९५५ . पृष्ठ १४-१७ ४७ __४७ ३६ २५ २४ डॉ० ऊषा सिंह डॉ० आदित्य प्रचण्डिया श्री जमनालाल जैन श्री देवेन्द्रमुनि शास्त्री श्री भूपराज जैन श्री सुभाषमुनि सुमन उपाध्यायश्री अमरमुनि जी लेख महात्मा कन्फ्यूशियस महात्मा गाँधी का मानवतावादी राजनीतिक चिन्तन और जैनदर्शन एक समीक्षात्मक अध्ययन महामानव महावीर का जीवन प्रदेय महावीर और उनकी देशना महावीर और उनके सिद्धान्त महावीर और क्षमा महावीर और बुद्ध महावीर का अखण्ड व्यक्तित्त्व महावीर का जीवन दर्शन महावीर का जीवन दर्शन महावीर का दर्शन, सामाजिक परिपेक्ष्य में महावीर का मंगल उपदेश महावीर का वीरत्व महावीर का संदेश महावीर का साम्यवाद महावीर की जय ३७ ३२ 99 3ur 39 ur sr wori. १९९६ १९८५ १९७४ १९७३ १९५३ १९८६ १९८१ १९८४ १९८६ १९८१ १९६२ १९६८ १९५५ १९५४ १९५४ ५५-५९ ५५-५९ ७-९ २१-२४ ३-८ ३०-३४ १२-१६ ११-१६ ३-१४ ७-९ २-९ ४९-५० २२-२७ २४-३४ २८-३१ ३१-३३ डॉ० सागरमल जैन mr ow । or १९ डॉ० हरिशंकर वर्मा डॉ० भानीराम वर्मा श्री रघुवीरशरण दिवाकर श्री सुन्दरलाल जैन डॉ० इन्द्र w ६ ५ ६ ९ 3 3 Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६६ वर्ष अंक ३२६ & श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक श्री कपूरचन्द जैन डॉ० मोहनलाल मेहता मुनि सुरेशचन्द्र शास्त्री श्री कस्तूरमल बांठिया डॉ० सागरमल जैन स्व० श्री जिनेन्द्रवर्णी श्री कस्तूरमल बांठिया लेख महावीर की वाणी महावीर क्षत्रिय पुत्र थे या ब्राह्मणपुत्र ? महावीर के ये उत्तराधिकारी महावीर के जीवन पर नया प्रकाश महावीर के सिद्धान्त-युगीन संदर्भ में महावीर जयन्ती महावीर भूले ? w १२ or ३३६ w m E - * แต่ ๕ * 9 ง 9 ง * * * * * 9 % महावीर भूले ! महावीर महान् थे महावीर विवाहित थे या अविवाहित महिलाओं की मर्यादा मानव जाति के अभ्युदय का पर्व 'दीपावली' मानव जीवन का आधार मानव धर्म का सार मानव संस्कृति और महावीर ई० सन् __ पृष्ठ १९८१ २३-२६ १९७४ ३४-३८ १९५५ ५७-६० १९६१ ३१-३३ १९८२ ३-२७ १९८४ १५-१९ १९५६ २२-२९ १९५६ ४-१५ १९५६ ५१-५४ १९५७ ५०-५२ १९७५ १२-१६ १९६१ ३२-३३ १९८४ ११-१४ १९५० २५-२७ १९८१ ६-१५ १९५६ २२-२५ १९६० २१-२३ प्रो० दलसुखभाई मालवणिया प्रो० विमलदास कोंदिया श्री रतिलाल म० शाह श्रीमती शकुन्तला मोहन दर्शनाचार्य मुनि योगेशकुमार श्री पृथ्वीराज जैन श्री जगदीशसहाय प्रो० देवेन्द्रकुमार जैन o w w w x Mur ur » May a १ ३२ Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक श्री कन्हैयालाल सरावगी श्री ए० एम० योस्तन वर्ष २८ अंक २ ३-४ ३-४ ३-४ ३० ३ लेख मानव संस्कृति का विकास मॉन्तेसरि आन्दोलन मॉन्तेसरि शिक्षा के ५० वर्ष मॉन्तेसरि शिक्षा-पद्धति माँस का मूल्य मुनिश्री चौथमल जी की जन्म शताब्दी मुनिश्री देशपाल : जीवन और कृतित्व मुलाकात महावीर से मूर्त-अंकनों में तीर्थंकर महावीर के जीवन-दृश्य मेघकुमार का आध्यात्मिक जागरण मेरी कुछ अनुभूतियाँ मोक्ष मौलिक चिन्तन की आवश्यकता यह धर्म प्राण देश है युगपुरुष आचार्यसम्राट आन्नदऋषि जी म० युगपुरुष भगवान् महावीर युगीनपरिवेश में महावीर स्वामी के सिद्धान्त कु० ऊषा मेहरा उपाध्याय अमरमुनि जी श्री गुलाबचन्द जी डॉ० सनत्कुमार रंगाटिया श्री शरदकुमार साधक डॉ० मारुतिनन्दनप्रसाद तिवारी श्री विजय मुनि श्री शादीलाल जैन mmmmm 3 ruro ४६७ पृष्ठ । ३-१५ ६७-७९ ६१-६६ ३८-४८ २२-२५ २४-२७ ६२-६९ २-६ ।। २१-२५ २५-२७ ८८-९१ १८ २०-२३ २८-३० १०३-१०५ २४-२७ ३६ ई० सन् १९७६ . १९५७ १९५७ १९५७ १९८० १९७९ १९८१ १९८५ १९७६ १९५७ १९६३ १९५८ १९६३ १९५१ १९९२ १९५१ १९९५ ६ १४ -१२ ११-१२ १४ श्री अगरचंद नाहटा श्री रघुवीरशरण दिवाकर उपाचार्य श्री देवेन्द्रमुनिजी महाराज श्री पृथ्वीराज जैन डॉ० सागरमल जैन २६ ७-९ Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६८ लेख वर्ष श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक श्री इन्द्रेशचन्द्र सिंह डॉ० के० ऋषभचन्द्र अंक a १८ १८ १६ २४ १-२ १० १२ २ & ar ar nor ई० सन् १९८९ १९६६ १९६७ १९६५ १९७२ १९८३ १९८० पृष्ठ २६-३६ ८-१२ ९-१२ ३२-३४ १६-२७ १४-१९ १३-१५ श्री गणेशप्रसाद जैन श्री गणेश ललवानी उपाध्यायश्री अमरमुनि ३४ ___३२ युद्ध और युद्धनीति राक्षस : एक मानव वंश रामकथा के वानर : एक मानव जाति रामकथाविषयक कतिपय भ्रांत धारणायें राजगृह राज्य का त्याग : त्यागी से भय राजा मेघरथ का बलिदान रामसनेही सम्प्रदाय के रेणशाखा के दो सरावगी आचार्य राष्ट्रनिर्माण और जैन राष्ट्रभाषा के आद्यजनक भगवान् महावीर राष्ट्रीय विकास यात्रा में जैन धर्म एवं जैन पत्रकारों का योगदान रूढ़िच्छेदक महावीर लवण एवं अंकुश की देवविजय का भौगोलिक परिचय लोक कल्याण के लिए श्रमण संस्कृति वर्ण और जातिवाद : जैन दृष्टि 9 w श्री अगरचंद नाहटा श्री माईदयाल जैन डॉ० रतिलाल म० शाह २९ ११ २४ ६ ४ १९७८ १९६० १९७३ १२-१६ ४९-५६ २८-३१ ३६ ३ n w ३ ६ श्री जिनेन्द्र कुमार पं० बेचरदास दोशी डॉ० के० ऋषभचंद्र भिक्षु जगदीश काश्यप श्री कन्हैयालाल सरावगी १६ n १९८५ १९५२ १९६५ १९४९ १९७८ ६-१० ३२-३७ ३-१५ १९-२१ १७-२० or a Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लेख वर्ण विचार वर्तमान अशान्ति का एकमात्र समाधान अहिंसा वर्तमान युग के सन्दर्भ में भगवान् महावीर के उपदेश वर्तमान सन्दर्भ और भगवान् महावीर की अहिंसा लेखक श्री रमेशचंद्र जैन श्री कस्तूरीनाथ गोस्वामी श्री कन्हैयालाल सरावगी डॉ० आदित्य प्रचण्डिया श्री नरेशचन्द्र मिश्र श्री जिनविजयसेनसूरि वरांङ्गचरित में अठारह श्रेणियों के प्रधान : एक विश्लेषण डॉ० रमेशचन्द्र जैन वराङ्गचरित में राजनीति वर्धमान : चिन्तन खण्ड वर्धमान से महावीर कैसे बने ? श्रमण : अतीत के झरोखे में वसुराजा वादिराज सूरि : व्यक्तित्व एवं कृतित्व विद्वत् रत्नमाला का एक अमूल्य रत्न विद्याधर : एक मानव जाति विद्यामूर्ति पं० सुखलाल जी विद्यावारिधि एवं प्रज्ञापुत्र विमलसूरि के पउमचरिउ का भौगोलिक अध्ययन विवाह और कन्या का अधिकार विवाह - भारतीयेत्तर परम्परायें " मुनि महेन्द्रकुमार श्री उदयचन्द 'प्रभाकर' विद्यानन्द मुनि डॉ० के० ऋषभचन्द्र पं० दलसुख मालवणिया मुनिश्री नगराज जी डॉ० कामताप्रसाद मिश्र सुश्री प्रेमकुमारी दिवाकर डॉ० बशिष्ठनारायण सिन्हा वर्ष 7 2 2 2 2 2 2 * Z * I m २४ ३४ २५ ३५ १९ १५ २६ २५ ३५ २८ ३२ १८ a m ३२ ३२ २ १६ अंक ५ ८ ur ६ ६ ५-६ ७ ११ ४ ७ ५ ४ ४ ५. १२ १२ ८ ई० सन् १९७२ १९८३ १९७४ १९८४ १९६८ १९६४ १९७५ १९७४ १९८४ १९७७ १९८१ १९६७ १९५२ १९८१ १९८१ १९५१ १९६५ ४६९ पृष्ठ ७-११ १३-१६ २८-३४ २७-२८ १-४ ६९-७५ ३-८ ८-१६ ३-८ ५३ १८-२० १५-१८ १६ १२-२० २५-३० २४-३२ Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७० लेख १४ ४३ विश्वशांति का आधार-गाँधीवाद विश्व अहिंसा संघ और प्रवृत्तियाँ वीतराग महावीर की दृष्टि वीरसंघ और गणधर वैदिक साहित्य में जैन परम्परा वैशाली के गणतंत्र की एक झाँकी व्यक्ति और समाज व्यक्ति और समाज व्यक्ति पहले या समाज शान्ति की खोज में शांति के अग्रदूत-भगवान् महावीर शासनप्रभावक आचार्य जिनप्रभसूरि शास्त्र और सामाजिक क्रान्ति शिक्षा और उसका उद्देश्य शिक्षा का जहर शिक्षा के दो रूप श्रमण : अतीत के झरोखे में ... लेखक १६ श्री नरेन्द्रकुमार जैन ५ डॉ० बूलचन्द जैन १४ श्री ज्ञान मुनि १० श्री श्रीरंजन सूरिदेव प्रो० दयानन्द भार्गव डॉ० इन्द्र श्री रतन पहाड़ी डॉ० सागरमल जैन श्री कन्हैयालाल सरावगी श्री प्रवीणऋषि जी सुश्री शशिप्रभा जैन १४ श्री अगरचन्द नाहटा पं० सुखलाल जी १२ श्री एस० आर० शास्त्री श्री उमाशंकर त्रिपाठी .18 om uw w o xura a w or some ई० सन् १९६५ १९५४ १९६३ १९५९ १९५७ १९९२ १९५४ १९५० १९८२ १९७४ १९८० १९६३ १९७६ १९६१ १९५७ १९५६ १९५५ पृष्ठ १९-२८ ३७-४० ६-८ । ११-१३ ३५-३८ ९-१३ २८-३० २०-२४ ३-४ २८-३१ १७-१९ ४.९-५२ १३-२० ९-१२ ३४ २५ ३१ २८ ४-७ ३० २७ Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण : अतीत के झरोखे में लेख लेखक शिक्षा के साधन शिशु और संस्कृति श्री एस० आर० स्वामी शुभकामना प्रो० देवेन्द्रकुमार जैन श्रमण कुमारी सत्य जैन श्रमण और श्रमणोपासक श्री कस्तूरमल बांठिया श्रमण जीवन में अधिकरण का उपशमन पं० मुनि कन्हैयालालजी म० 'कमल' श्रमण भगवान् महावीर पं० बेचरदास दोशी श्रमण भगवान् महावीर की शिष्य संपदा मुनि फूलचन्दजी 'श्रमण' श्रमण भगवान् महावीर के चारित्रिक अलंकरण-क्रमश: रविशंकर मिश्र PM w m * My Marr Mry or rur r - 9 ई० सन् १९५१ - १९५७ १९५४ १९५२ १९६७ १९५६ १९७४ १९५५ १९८२ १९८४ १९७७ १९५६ १९५० १९७२ १९५८ १९५० ४७१ पृष्ठ । १३-१७ १०-१४ ३१-३३ २३ २५-२९ २३-२७ १०-१७ ३० १-२ १-२ १८-२९ १६-१७ ९-१५ ६-१० ७३-७४ १५-२२ ३३ श्रमण-संघ श्रमण संघ की शिक्षा-दीक्षा का प्रश्न श्रमण संस्कृति और नया संविधान श्रमण संस्कृति और नारी श्रमण संस्कृति का भावी विकास श्रमण संस्कृति का केन्द्र-विपुलाचल और उसका पड़ोस डॉ० मोहनलाल मेहता पं० मुनिश्री सुरेशचन्द्र जी महाराज | श्री पृथ्वीराज जैन १ डॉ० कोमलचंद जैन पं० कृष्णचन्द्राचार्य श्री गुलाबचन्द्र चौधरी २ ५ ७ ११-१२ १ Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७२ लेख श्रमण संस्कृति का सार श्रमण संस्कृति का हार्द श्रमण संस्कृति की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि श्रमण संस्कृति की मूल संवेदना श्रमण संस्कृति की पृष्ठभूमि श्रमण संस्कृति के मौलिक उपादान श्रमण संस्कृति में क्षमा श्रमरस का स्त्रोत : श्रावक श्रावक किसे कहा जाय श्रावक के मूलगुण श्रावक गंगदत्त श्रीकृष्ण : एक समीक्षात्मक अध्ययन "" श्री तारण स्वामी संवेदनहीनता से सुलगती सभ्यता संवत्सरी और आचार्य श्री सोहनलाल जी म० श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक श्री देवेन्द्रमुनि शास्त्री श्री लक्ष्मीनारायण 'भारतीय' श्री मनोहर मुनिजी डॉ० देवेन्द्रकुमार जैन श्रीमती उर्मिला जैन श्री वसन्तकुमार चट्टोपाध्याय श्री कानजी भाई पटेल श्री जमनालाल जैन श्री कस्तूरमल बांठिया श्री सनत्कुमार जैन मुनिश्री महेन्द्रकुमार 'प्रथम' श्री धन्यकुमार राजेश "" श्री देवेन्द्र कुमार मुनि राजेन्द्रकुमार 'रत्नेश' श्री विज्ञ वर्ष २० १६ ८ २३ ३३ १३ २९ १८ २९ ३६ २० २० ३६ ६ अंक J 5 ७-८ १० १२ ४ ११ ४ ११ ११ १२ ४ ११ ई० सन् १९६९ १९६५ १९५७ १९७२ १९८२ १९५८ १९६२ १९७८ १९६७ १९७८ १९८५ १९६९ १९६९ १९५० १९८५ १९५५ पृष्ठ ८-१७ २-११ ३५-३८ १६-१७ ३-५ ९-२१ ९-१३ १३-२२ १०-२३ ३-१८ १४-१५ २७-३४ २६-३१ २९-३२ १४-१९ ३०-३३ Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ई० सन् १९५० . १९५० १९५० लेख संस्कृति-एक विश्लेषण संस्कृति का अर्थ संस्कृति का आधार-व्यक्ति स्वातंत्र्य संस्कृति का प्रश्न संस्कृति का स्वरूप संस्कृति क्या है? संस्कृति की दुहाई सच्ची क्षमा सच्ची सनाथता सत्ता का दर्प सद्विचार हेतु मौलिक प्रक्रिया सदा जाग्रत नरवीर सनत्कुमार का सौन्दर्य सन्त एकनाथ के जीवन प्रसंग सन्मति महावीर और 'सर्वोदय' सफल हुआ सम्यकत्त्व पराक्रम श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक वर्ष श्री गुलाबचन्द्र चौधरी १ पं० फूलचन्दजी सिद्धान्तशास्त्री प्रो० महेन्द्रकुमार जी 'न्यायाचार्य' प्रो० विमलदास जैन श्री देवेन्द्रमुनि शास्त्री १५ डॉ० नामवर सिंह १२ श्री ऋषभदास रांका साध्वीश्री कानकुमारी जी डॉ० रविशंकर मिश्र ३६ उपाध्याय अमरमुनि जी श्री सौभाग्यमुनि 'कुमुद' ३५ साध्वीश्री मृगावती एवं साध्वी सुव्रता श्रीजी उपाध्याय अमरमुनि जी ___३३ डॉ० इन्द्रचन्द्र शास्त्री ५ श्री महावीरप्रसाद प्रेमी श्री राजमल पवैया ३२ ~ ~ ~ MMMMMMMy we lo a varor rar sox sa mw a १९५० १९६४ १९६१ १९५७ १९८१ १९८५ १९८२ १९८४ १९८१ १९८२ १९५४ १९५५ १९८१ ४७३ पृष्ठ १३-१६ ३३-३४ ३३-३६ २३-२७ ३३-३४ ३४-३९ १५-१८ ३१-३२ १०-१२ १३-१६ १०-११ ३६ १०-१४ ११-१९ ५१-५३ १ Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७४ लेख ____अंक ४६ १०-१२ ६ १० श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक डॉ० प्रतिभा जैन डॉ० मोहनलाल मेहता श्री ऋषभदास रांका श्री लक्ष्मीनारायण 'भारतीय' मुनि महेन्द्रकुमार 'प्रथम' श्री चिमनलाल चकुभाई शाह प्रो० देवेन्द्रकुमार जैन पृष्ठ ३४-४१ ३९-४४ ६९-७२ २५-२८ २७-३० ३० ५२ समकालीन जैन समाज में नारी समता और समन्वय की भावना समता के प्रतीक महावीर समता के संदेशदाता : भगवान् महावीर समताशील भगवान महावीर समदर्शी दार्शनिक समन्वय या सफाई समाज का धर्म समाज में महिलाओं की उपेक्षा-एक विचारणीय विषय समाजशास्त्र की पृष्ठभूमि में जैनों के सम्प्रदाय । सरस्वती पुत्र सर्वधर्म समभाव और स्याद्वाद सर्वधर्मसमानत्व की कुंजी सर्वोदय और राजनीति सर्वोदय और हृदय परिवर्तन साधु संस्था और लोकशिक्षण १३ ३१ १७ ३२ ३७ ११ १०. ई० सन् १९९५ १९५९ १९५८ १९६४ १९७९ १९८१ १९५२ १९६१ १९७९ १९६६ १९८१ १९८६ १९६० १९५८ १९५८ १९६१ डॉ० प्रेमचन्द्र जैन श्री लक्ष्मीनारायण 'भारतीय' श्रेष्ठी श्री अचलसिंह जी श्री सुभाषमुनि 'सुमन' श्री अमरमुनि जी श्री सतीशकुमार श्री बशिष्ठनारायण सिन्हा मुनिश्री नेमिचन्द जी u ya oro or m oor xosa ७-१० २१-२३ ८-१९ ११-१९ ५० १०-१५ १८ । २९-३१ ३२-३४ ३५-४० ३७ Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लेख साधु समाज की प्रतिष्ठा साध्वी समाज से सामायिक और ध्यान साम्प्रदायिक कदाग्रह सांस्कृतिक पर्व की सामाजिक उपयोगिता सिर्फ फैशन की खातिर सुबुद्धि और दुर्बुद्धि सुख का सागर सुख- दु:ख सुमन रख भरोसा महावीर का सूडा-सहेली की प्रेमकथा सेवा : एक विश्लेषण सेवाव्रती नंदीषेण सोने की चमक सोमदेवसूरि और जैनाभिमत वर्ण व्यवस्था सोमदेवसूरि की अर्थनीति- एक समाजवादी दृष्टिकोण श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक पं० कृष्णचन्द्राचार्य मुनिश्री आईदानजी डॉ० आदित्य प्रचण्डिया श्री पृथ्वीराज जैन साध्वीश्री अर्णिमा श्रीजी श्री प्रकाश मेहता मुनि महेन्द्रकुमार 'प्रथम' डॉ० आदित्य प्रचण्डिया 'दीति' श्री कन्हैयालाल सरावगी श्री उत्सवलाल तिवारी श्री भँवरलाल नाहटा श्री देवेन्द्रमुनि शास्त्री उपाध्याय अमर मुनि उपाध्यायश्री अमर मुनि श्री गोकुलचंद जैन श्री कृष्णमुरारी पाण्डेय वर्ष mo ४ ३५ १ ३२ ३३ ३६ ३३ ३१ ३६ ४२ १८ ३२ ३१ १३ ३२ अंक ७-८ ४ ४ Cr ११ २ ४ १) ७-१२ १-२ ७ १ ८ ई० सन् १९५२ १९५३ १९८४ १९४९ १९८१ १९८१ १९८५ १९८२ १९८० १९८५ १९९१ १९६६ १९८० १९८० १९६१ १९८१ ४७५ पृष्ठ ६१-६३ २१-२२ ४-८ २७-३० १६-२० २३-२४ ७-१३ २२-२४ ९-१३ १०-११ २५-३४ २६-४२ १४-१७ ८-९ ९-१४ २४-२५ Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ m m m ३२ m ur 26 " " n w m m ४७६ श्रमण : अतीत के झरोखे में लेख लेखक स्नेह के धागे श्री अमरमुनि जी स्मृति नन्दन श्री जिनेन्द्र कुमार स्वभाव परिवर्तन युवाचार्य महाप्रज्ञ स्वामी केशवानन्द स्वामी सत्यस्वरूपजी स्वामी विवेकानन्द श्री शीतलचन्द्र चटर्जी स्वप्न और विचार मुनि सुखलाल स्व० पण्डित जी एक चलते फिरते विश्वकोश श्री शादीलाल जैन स्त्रीमुक्ति, अन्यतैर्थिक मुक्ति एवं सवस्त्रमुक्ति का प्रश्न डॉ० सागरमल जैन स्त्रिीशिक्षा सुश्री कांता जैन हमारी प्रवृत्तियाँ और उनका मूल्यांकन डॉ० इन्द्रचन्द्र शास्त्री _हमारे पतन का मुख्य कारण : हिंसा श्री नारायण सक्सेना हमारे समाज की भावी पीढ़ी श्री उदय जैन हमें सामाजिक मूल्यों को बदलना है श्री जमनालाल जैन हरिजन मंदिर प्रवेश श्री भगतराम जैन हरिवंशपुराणकालीन समाज और संस्कृति श्री धन्यकुमार राजेश हिन्दी जैन कवि छत्रपति : व्यक्तित्व तथा कृतित्व डॉ० आदित्य प्रचण्डिया दीति' हिन्दी जैन साहित्य का विस्मृत बुन्देली कवि : देवीदास डॉ० (श्रीमती) विद्यावती जैन हेमचन्द्राचार्य की साहित्य साधना डॉ० मोहनलाल मेहता ई० सन् १९८२ १९८१ १९८५ १९५१ १९५५ १९८३ १९८१ १९९७ १९५० १९६५ १९६५ १९५२ १९५७ १९५६ १९७० १९८४ १९९२ १९७७ पृष्ठ २-७ ३९-४० १२-१८ २६-३१ ३४-३५ २०-२१ ५१ ११३-१३२ २३-२६ ३२-३६ १६-१९ १६-१८ १३-१७ ५८-६१ ३-१३ १-५ २९-३९ २७-३१ ७ ३५ ६-७ २ ८ १०-१२ ७ Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लेख ६. तुलनात्मक अध्यात्म और विज्ञान - क्रमशः "" अन्य प्रमुख भारतीय दर्शनों एवं जैन दर्शन में - कर्मबन्ध का तुलनात्मक स्वरूप आत्मा : बौद्ध एवं जैन दृष्टि आधुनिक विज्ञान और अहिंसा आधुनिक विज्ञान, ध्यान एवं सामायिक इषुकारीय अध्ययन (उत्तराध्ययन) एवं शांतिपर्व - (महाभारत) का पिता-पुत्र संवाद उज्जयिनी और जैनधर्म "" "" "" श्रमण : अतीत के झरोखे में "" लेखक प्रो० सागरमल जैन डॉ० अरुणप्रताप सिंह श्री तेजसिंह गौड़ कर्मप्राभृत अथवा षट्खंडागम : एक परिचय- क्रमश: डॉ० मोहनलाल मेहता "" कु० कमला जोशी श्री कन्हैयालाल सरावगी श्री ज्ञानमुनि जी महाराज डॉ० पारसमल अग्रवाल "" >> "" "" वर्ष ४० ४८ ४२ २४ ८ ४७ x m w w w w w ४२ १६ अंक ६ ४-६ ४-६ ११ ६ ७-९ १-३ ४ ३ ४ ५ ६ ई० सन् १९८९ १९९७ १९९१ १९७३ १९५७ १९९६ १९९१ १९७२ १९६४ १९६५ १९६५ १९६५ १९६५ ४७७ पृष्ठ ९-१९ २०- २९ ३३-४३ ३-९ १०-१४ ३४-४३ ८७-९२ ३-१२ २९-३२ २३-२८ ३२-३७ १९-२२ २३-२९ Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण : अतीत के झरोखे में . लेखक वर्ष अंक ई० सन् पृष्ठ श्री अगरचन्द नाहटा श्री रामदयाल जैन श्री कोमलचन्द जैन १७ १-२ ___ १८६ सौ० सुधा राखे डॉ० कोमलचन्द जैन ४७८ लेख जिनदत्तसूरि का शकुनशास्त्र एवं हरिभद्रसूरि का व्यवहारकल्प जैन और वैष्णव काव्य परम्परा में राम जैन और बौद्ध आगमों में गणिका बौद्ध और जैन आगमों में जननी जैन और बौद्ध आगमों में जननी : एक पहलू बौद्ध और जैन आगमों में जननी : एक स्पष्टीकरण बौद्ध और जैन आगमों में नारी जीवन : एक और स्पष्टीकरण जैन और हिन्दू जैन ग्रन्थों और पुराणों के भौगोलिक वर्णन कातुलनात्मक अध्ययन जैन, बौद्ध और हिन्दू धर्म का पारस्परिक प्रभाव जैन एवं बौद्ध दर्शन में प्रमाण विवेचन जैन एवं बौद्ध पारिभाषिक शब्दों के अर्थ निर्धारण और अनुवाद की समस्यायें जैन तत्वों पर शूब्रिग के विचार जैन तथा अन्य भारतीय दर्शनों में सर्वज्ञता विचार (क्रमश:) १८८ १८१० १९ १९७९ १९७२ १९६५ १९६७ १९६७ १९६७ १९६८ १९५० ३१-३३ १९-२२ ७३-८४ २६-३३ १४-१७ १५-१९ २३-२४ १६-१७ पं० दलसुख मालवणिया २३ श्री अगरचंद नाहटा डॉ० सागरमल जैन डॉ० धर्मचन्द्र जैन ७ ४-६ १०-१२ १९७२ १९९७ १९९२ १५-२० ३०-५९ २१-४० ४-६ डॉ० सागरमल जैन श्री कस्तूरमल बांठिया श्री नरेन्द्रकुमार जैन १९९४ १९७० १९७९ २३४-२३८ १६-२३ ३-१३ Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लेख "" जैनधर्म और आधुनिक विज्ञान जैनधर्म और बौद्धधर्म जैनधर्म और व्यावसायिक पूँजीवाद: वेबर की अनुदृष्टि जैनधर्म और हिन्दू धर्म (सनातन धर्म) का पारस्परिक सम्बन्ध जैनधर्म : वैदिक धर्म के संदर्भ में जैन-बौद्ध सम्मत कर्म सिद्धांत जैन संस्कृति और श्रमण परम्परा जैन सम्मत आत्मस्वरूप का अन्य भारतीय दर्शनों से तर्क और भावना तुलनात्मक विवेचन तीर्थंकर और ईश्वर के सम्प्रत्ययों का तुलनात्मकविवेचन तुलनात्मक दर्शन पर दो दृष्टियाँ त्रिरत्न, सर्वोदय और सम्पूर्ण क्रान्ति द्रौपदी कथानक का जैन और हिन्दू स्रोतों के आधार पर तुलनात्मक अध्ययन श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक "" डॉ० सागरमल जैन डॉ० रमेशचन्द्र जैन श्री कृष्णलाल शर्मा डॉ० सागरमल जैन डॉ० श्रीरंजन सूरिदेव श्री रामप्रसाद त्रिपाठी डॉ० शान्ताराम भालचन्द्र देव डॉ० (श्रीमती) कमला पंत काका कालेलकर डॉ० सागरमल जैन श्री श्रीप्रकाश दूबे डॉ० धूपनाथ प्रसाद श्रीमती शीला सिंह वर्ष ३० m ४३ २८ १८ ४७ २३ २२ ४१ ४२ or ४६ १५ ४७ ४६ अंक ९ १०-१२ १० १-२ १-३ ८ १ ४-६ ७-१२ १-३ ७-८ ७-९ ७-९ ई० सन् १९७९ १९९२ १९७७ १९६६ १९९६ १९७२ १९७० १९९० १९९१ १९४९ १९९५ १९६४ १९९६ १९९५ ४७९ पृष्ठ ३-१० १-१२ ३-११ ६५-७२ ३-१० ८-१२ २३-३६ २९-४० ३५-४३ ३१-३२ ८७-९२ १७-२१ ४४-४८ ७६-८२ Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक डॉ० देवेन्द्रकुमार जैन श्री रमेशचन्द्र जैन २४ ४ २४ ४८० लेख पउमचरिउ और रामचरितमानस : एक तुलनात्मक अध्ययन पद्मचरित और पउमचरिउ पद्मचरित और हरिवंशपुराण पातंजल तथा जैन योग : स्वरूप एवं प्रकार पुराण बनाम कथा साहित्य : एक प्रश्न चिन्ह प्रवृत्ति मार्ग और निवृत्ति मार्ग | प्रसाद और तीर्थंकर प्राकृत के प्रबन्ध काव्य : संस्कृति प्रबन्ध काव्यों के सन्दर्भ में बुद्ध और महावीर का परिनिर्वाण ई० सन् १९७३ १९७३ १९७२ १९७९ १९७० १९७० १९७२ पृष्ठ ११-१४ ३-७ ३-७ ३-१५ १३-९ ३४-३६ २१-२४ कु० मंगला सांड डॉ० प्रेमचंद जैन श्री सुबोधकुमार जैन डॉ० देवेन्द्रकुमार जैन s: 3 92 - 9 murg डॉ० श्रीरंजन सूरिदेव श्री कस्तूरमल बांठिया १३ ३-१० ८-१६ २५-३६ २०-२६ २४-३३ बौद्ध और जैन आगमों में जननी बौद्ध और जैन आगमों में पुत्रवधू भगवान् अरिष्टनेमि और कर्मयोगी कृष्ण भगवान् बुद्ध और भगवान् महावीर भागवद्गीता और जैनधर्म भारतीय साहित्य और आयुर्वेद mmm No F5 सौ० सुधा राखे डॉ० कोमलचन्द जैन श्री देवेन्द्रमुनि शास्त्री पं० दलसुख मालवणिया श्री अगरचंद नाहटा श्री देवेन्द्रमुनि शास्त्री १९७४ १९६२ १९६२ १९६७ १९६७ १९७२ १९६५ १९६४ १९६७ १९ १-२ १८८ २४ १ १६४ r42 ९-२१ ११-१२ २०-२३ Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८१ लेख श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक वर्ष श्री गोपीचंद धारीवाल १६ पं० दलसुख मालवणिया श्री लक्ष्मीचन्द्र जैन __ १७ अंक १० ई० सन् १९६५ १९५३ पृष्ठ २२-२९ ३-४ २८-३१ १० १९६६ डॉ० सागरमल जैन श्री प्रेमसुमन जैन ७-९ १९९३ १९६७ १-१० ३-१४ १८ १९६९ भौतिकवाद व अध्यात्मवाद भौतिकता और अध्यात्म का समन्वय महर्षि अरविन्द : जैन दर्शन की दृष्टि में महायान सम्प्रदाय की समन्वयात्मक दृष्टि : भगवद् गीता और जैनधर्म के परिपेक्ष्य में महाकवि स्वयंभू और तुलसीदास महावीर और गाँधी का अहिंसा दर्शन जनजीवन के संदर्भ में महावीर और बुद्ध : कैवल्य और बोधि मिथ्यात्व इन जैनिज्म एण्ड शंकर : ए कम्परेटिव स्टडी वर्धमान और हनुमान वेदोत्तरकालीन आत्मविद्या और जैनधर्म वैदिक एवं श्रमण परम्परा में ध्यान शास्त्र और शस्त्र श्वेताम्बर मूलसंघ एवं माथुरसंघ-एक विमर्श श्रमण और ब्राह्मण डॉ० श्रीरंजन सूरिदेव मुनिश्री नगराज जी १९६७ ५-१२ ३-६ ६-७ डॉ० ललितकिशोर लाल श्रीवास्तव २४ श्री सूरजचंद्र ‘सत्यप्रेमी' डॉ० अजित शुकदेव डॉ० रज्जन कुमार पं० सुखलाल जी डॉ० सागरमल जैन प्रो० इन्द्र १९७२ १९५५ १९७२ १९९६ १९४९ १९९२ १९५० w in San Seba ar ३५-४१ २३ १०-१६ ४७-५९ १३-१५ १५-२३ २९-३२ Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८२ लेख श्रमण और वैदिक साहित्य में स्वर्ग और नरक श्रमण एवं ब्राह्मण परम्परा में परमेष्ठी पद संस्कृत और प्राकृत का समानान्तर अध्ययन संस्कृत शब्द और प्राकृत अपभ्रंश सम्राट अकबर और जैनधर्म सर्वोदय और जैन दृष्टिकोण सांख्य और जैन दर्शन साम्यवाद और श्रमण विचारधारा स्थानाङ्ग और समवायाङ्ग - क्रमशः "" स्थानाङ्ग एवं समवायाङ्ग में पुनरावृत्ति की समस्या स्यादवाद एवं शून्यवाद की समन्वयात्मक दृष्टि हिन्दू एवं जैन परम्परा में समाधिमरण : एक समीक्षा हिन्दू-बनाम जैन हेल्मुथफोन ग्लासनप और जैनधर्म ७- विविध अध्ययन : एक सुझाव श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक श्री धन्यकुमार राजेश साध्वी (डॉ०) सुरेखा जी श्री श्रीरंजन सूरिदेव डॉ० देवेन्द्रकुमार जैन डॉ० सागरमल जैन श्री महावीरचंद धारीवाल डॉ० रमेशचन्द्र जैन श्री पृथ्वीराज जैन पं० बेचरदास दोशी 33 डॉ० अशोककुमार सिंह डॉ० (कु० ) रत्ना श्रीवास्तव डॉ० अरुणप्रताप सिंह प्रो० महेन्द्रकुमार न्यायाचार्य श्री सुबोधकुमार जैन श्री महेन्द्र राजा वर्ष २३ ४३ २७ २८ ४८ 62 १५ २८ १५ १५ ४७ ४३ ४४ ६ २१ ८ अंक १० १-३ २ ८ ४-६ ९ vor o १० १०-१२ १-३ १०-१२ ४ १२ १ ई० सन् १९७२ १९९२ १९७५ १९७७ १९९७ १९६४ १९७७ १९४९ १९६४ १९६४ १९९६ १९९२ १९९३ १९५५ १९७० १९५६ पृष्ठ ३-९ ५५-६७ ३-८ १८-२० ७१-७६ ३३-३६ १४-१९ २२-२७ २-६ २-८ ३६-५२ ९१-१०२ १४-१८ ३८-४० १३-१७ १२-१४ Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लेख अन्तरायकर्म अपने व्यक्तित्व की परख कीजिये अपभ्रंश की पूर्व स्वयंभू युगीनकविता अपूर्वरक्षा अब कहाँ तक अभय का आराधक अविद पद शतार्थी असुर आगम झूठे हैं क्या ? आगरा में श्री रत्नमुनि शताब्दी समारोह आत्म निरीक्षण आत्मबली साधक और दैवीतत्त्व आधुनिक पुस्तकालय आधुनिक पुस्तकालयों में पुस्तकसूची उद्भट विद्वान् पं० बेचरदास दोशी उत्सर्ग और अपवाद उपवास से लाभ " แม่ :: 9 5 5 8 9 : : : แร 9 : : 1 or 5 w or w w or wo oro no wa श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक वर्ष अंक डॉ० मोहनलाल मेहता श्री महेन्द्र राजा डॉ० देवेन्द्रकुमार १८५ श्री विद्या भिक्षु १७६ पं० बेचरदास दोशी ७ १ डॉ० इन्द्र ५ ६ महो० विनयसागर श्री गणेशप्रसाद जैन २२ ९ पं० दलसुख मालवणिंया श्रीकृष्णचन्द्राचार्य ___ १५ ८ ७-८ श्री पारसमल 'प्रसून' १८ ५ मुनिश्री संतबाल १५. श्री महेन्द्र राजा ई० सन् १९७२ १९५४ १९६७ १९६६ १९५५ १९५४ १९५४ १९७१ १९५७ १९६४ १९६७ १९६४ १९५५ ४८३ पृष्ठ ३-५ २७-२९ ५-९ १२-१३ ८-१४ १-८ २६-३० ३०-३३ ५६-५९ १२-१६ ९-१० ९-१२ ३७-४० ३७-३८ ३७-३८ ३०-३३ २७-३० १९५५ श्री गुलाबचन्द्र जैन मुनिश्री पुण्यविजय जी श्री अत्रिदेव गुप्त ___ १५ १७ ५ १९६४ १९६६ १९५४ Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८४ लेख वर्ष अंक श्रमण : अतीत के झरोखे में . लेखक श्री एस० एस० गुप्त श्री कैलाशचन्द्र जैन डॉ० देवेन्द्रकुमार पं० कैलाशचन्द्र जी श्री धनदेवकुमार 'सुमन' एक दुनियाँ और एक धर्म एक पत्र एक प्रतिक्रिया एक समस्या ऐसा क्यों ? कलकत्ता विश्वविद्यालय में संस्कृत का उच्च-शिक्षण क्रमशः or o २० १९३ १ ई० सन् १९५७ १९६९ १९६८ १९५० १९५४ or » m or ४-७ २५ ३५ । २१-२५ २१-२६ ur म० म० विधुशेखर भट्टाचार्य mr mm कल्चुरीकालीन भगवान् शांतिनाथ की प्रतिमाएँ कश्मीर की सैर श्री शिवकुमार नामदेव पं० कैलाशचन्द्र शास्त्री ३६ २३ १० 3 w° 2 AMur 3 १९५२ १९५२ १९७२ १९५४ १९५४ १९५४ १९७१ १९६२ १९६२ १९७८ १९५३ २४-३२ २७-३१ १४-१५ ३३-३६ २९-३० २५-२७ ३०-३२ २५-२७ ४२-४४ २६-३१ २९-३२ 3 प्रो० जी० आर० जैन श्री गंगासागर राय कर्मों का फल देनेवाला कम्प्यूटर काव्य का प्रयोजन : एक विमर्श काव्य में लोक मंगल काव्यशास्त्रियों की दृष्टि में श्लेष काश ! मैं अध्यापिका होती ! २२ १३ १३ श्री श्रेयांसकुमार जैन सुश्री शरबती जैन Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८५ लेख # ६ १ १८ ९ २८ किसकी जय कौन भूखे मरेंगे क्या आप असुन्दर हैं? क्या रावण के दस मुख थे ? खोज सम्बन्धी कुछ अनुभव और समस्यायें गंगा का जल लेय अरघ गंगा को दीना गजेटियर ऑफ इंडिया में जैनी और जैनधर्म घरों में बच्चे चलिए और खूब चलिए चातुर्मास व्यवस्था में सुधार कीजिये जब आप घर से अकेली निकलें जिन्दगी किसे कहते हैं? 'जी' की आत्मकथा जीवन चरित्र ग्रन्थ जीवन की सच्ची क्रान्ति जीवन धर्म जीवित धर्म श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक प्रो० इन्द्रचंद्र शास्त्री श्री पीटर फ्रीमैन कुमारी रेणुका चक्रवर्ती डॉ० के० ऋषभ चन्द्र डॉ० धीरेन्द्र वर्मा पं० जमनालाल जैन श्री सुबोधकुमार जैन श्रीमती ब्रजेशकुमारी याज्ञिक वैद्यराज पं० सुन्दरलाल जैन श्री अन्नराज जैन कु० रूपलेखा वर्मा प्रिंस क्रोपाटकिन प्रो० देवेन्द्रकुमार जैन श्री अगरचंद नाहटा मुनिश्री पद्मविजय जी श्री बशिष्ठनारायण सिन्हा डॉ० राधाकृष्णन् ๓ แ แ7 ๙ ง 6 ง แต่ : 9 แ7 ง 8 * * ) .18 or or a vow in orar or w x na ई० सन् १९५२ १९५४ १९५४ १९६७ १९५१ १९५७ १९७० १९५७ १९५५ १९६३ १९५६ १९५५ १९५६ १९५९ १९६२ १९६० १९५७ पृष्ठ ३३-३७ १४-१७ ३४-३८ २२-२४ ९-१२ २३-२८ २८-३५ ५४-६० २७-२९ २१-२३ १९-२० १७ ४ १५-१७ ३५-३८ २५-२७ २३-२६ ८ ३४ Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंक ४ ४८६ लेख जैन गीतों की परम्परा जैन ज्योतिष तिथि पत्रिका जैन ज्ञान भण्डारों के प्रकाशित सूची ग्रन्थ जैनत्व की कसौटी जैनों ने भी युग का आह्वान सुना ज्योर्तिधर दो जैन विद्वान् टमाटर डॉक्टर अलबर्ट स्वीट्जर डॉ० भयांणी के व्याख्यान डॉ० मारीआ मॉन्तेसरि ७-८ १२ श्रमण : अतीत के झरोखे में . लेखक श्री प्यारेलाल श्रीमाल श्री विज्ञ श्री अगरचन्द नाहटा श्री कृष्णचन्द्राचार्य श्री कस्तूरमल बांठिया श्री अगरचंद नाहटा आयुर्वेदाचार्य श्री सुन्दरलाल जैन श्री माईदलाल जैन श्री श्रीप्रकाश दुबे श्री महेन्द्र राजा श्री पृथ्वीराज जैन . श्री गणेशप्रसाद जैन पृष्ठ ९-११ ११-१५ ७३-७९ ३१-३२ ३३-३७ १६-१९ २९-३१ २ ई० सन् १९५९ १९५६ १९५३ १९५० १९६३ १९५६ १९५६ १९५७ १९६३ १९५७ १९५० १९७१ १९७१ १९५४ १९५६ १९५५ १९५१ ८-११ 29 » xxy vvv rrrry ur 3-४ तलाक १५ २ २ ८ ३-४ २ २ २२७ २२ ४ १९-२० १८-२१ २९-३४ २६-३० २०-२४ ९-११ ३०-३४ ७-१३ २७-२९ दास, दस्यु और पणि द्राविण दीपावली की जैन परम्परा दुर्बलता का पाप दो क्रान्तिकारी जैन विद्वान् दो प्रेमियों की यह दीक्षा पं० महेन्द्रकुमार न्यायाचार्य श्री विनोदराय जैन श्री रतिलाल दीपचंद देसाई डॉ० मोहनलाल मेहता Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वर्ष ४ लेख दौरे के संस्मरण नया और पुराना धर्म और विद्या का विकास मार्ग निगंठनातपुत्त निरामिष भोजन : एक समस्या नई पीढ़ी और धर्म नरसिंह मेहता न्यायोचित विचारों का अभिनन्दन पथ-भ्रष्ट पार्श्वनाथ विद्याश्रम पार्श्वनाथ विद्याश्रम - एक सांस्कृतिक अनुष्ठान १४ ११ ९ श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक श्री हरजसराय जैन मुनि सुरेशचन्द्र शास्त्री पं० सुखलाल जी श्री भरतसिंह उपाध्याय डॉ० सम्पूर्णानन्द श्री नंदलाल मारु डॉ० इन्द्रचन्द्र शास्त्री पं० श्री जुगलकिशोर मुख्तार श्री अभयमुनि जी महाराज प्रो० विमलदास जैन पं० दलसुख मालवणिया पं० बेचरदास दोशी श्री महेन्द्र राजा . 3rma, verb - 9 - - urr ई० सन् १९५३ १९५५ १९६३ १९६० १९५८ १९६८ १९५४ १९६६ १९५५ १९५२ १९४९ १९६७ १९५६ १९५६ १९५६ १९६३ १९५१ 2 9 m ~~ 9 9 9 km ४८७ पृष्ठ २३-२६ २०-२२ ९-१७ २१-२३ २८-३३ ३५-३८ १७-२० १६-२१ ३३-३६ १३-२३ ३३-३४ ७-८ २७-२९ २५-२६ ७-९ । २८-३० २१-२५ पुलिस पुस्तक सूची ७ ४ ७ ६ पुनीत स्मरण पूज्य श्री जिनविजयेन्द्र सूरि जी प्रतिज्ञा श्री देवेन्द्रकुमार शास्त्री श्री शंकर मुनि श्री हुकुमचन्द सिंघई Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८८ लेख प्राच्यभारती का अधिवेशन प्रेम का अभ्यास बच्चों की मूलभूत आवश्यकताए बालक की व्यवस्थाप्रियता बुनियादी सुधार बैलून में भगवान् महावीर और दीवाली भगवान् महावीर : एक श्रद्धांजलि भगवान् महावीर के जीवन की एक झलक भारतीय त्यौहार भारतीय विश्वविद्यालयों में जैन शोध कार्य भावनाओं का जीवन पर प्रभाव भोग तृष्णा भोजन और उसका समय मगध में दीपमालिका महामानव की मानसिक भूमिका महावीर जयन्ती का अर्थ श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक डॉ० नवरत्न कपूर आचार्य विनोबा भावे कु० इला खासनवीस डॉ० मारीआ मॉन्तेसरि श्री उमाशंकर त्रिपाठी श्री मैक्स एडालोर डॉ० ज्योतिप्रसाद जैन डॉ० मङ्गलदेव शास्त्री पं० कैलाशचन्द्र शास्त्री सुश्री मोहिनी शर्मा डॉ० गोकुलचंद जैनप्रो० धर्मेन्द्रकुमार कांकरिया श्री गोपीचंद धारीवाल श्री अमृतलाल शास्त्री मुनि कांतिसागर प्रो० राजबली पाण्डेय भाई श्री बंशीधर जी वर्ष Fo For १५ १४ ९ २० ७ aa jo ४ १३ अंक १ or m J ३-४ ६ ४ V ६-७ १० १२ ११ १२ as w ई० सन् पृष्ठ १९६३ २६-३० १९४९ २२-२३ १९५७ १५-२० १९५७ ४९-५३ १९४९ १७-२० १९५५ २१-२८ १९६२ १९५६ १९५८ १९५२ १९६८ १९५७ १९६९ १९५६ १९४९ १९५३ १९६२ ८ ३-८ ३०-३२ २७-३० २९-२८ २५-२६ १८-१९ १८-२० ३७-४० ३-६ १९-२१ Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८९ अंक ७-८ लेख बुझती हुई चिनगारियाँ मातृभाषा और उसका गौरव मानव कुछ तो विचार कर मानवमात्र का तीर्थ मानवता के दो अखंड प्रहरी मेरी बम्बई यात्रा मूक सेविका : विजया बहन मृत्युञ्जय यह अगस्त का महीना यह मनमानी कब तक युद्ध और श्रमण युवकों के प्रति रवीन्द्रनाथ के शिक्षा सिद्धान्त और विश्वभारती 'रोटी' शब्द की चर्चा लखनऊ अभिभाषण लेखक और विश्वशांति लिखाई का सस्तापन Po n mg x rx 5 org n or a wan war श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक मुनिश्री सुशीलकुमार शास्त्री ३ डॉ० वासुदेवशरण अग्रवाल मुनिश्री महाप्रभविजय जी महाराज । पं० सुखलाल जी श्री भरतसिंह उपाध्याय ___ ११ डॉ० इन्द्र श्री शरदकुमार साधक श्री मोहनलाल मेहता श्री एम० के० भारिल्ल श्री राकेश ३ पं० कैलाशचन्द्र शास्त्री १ श्री चन्दनमल चांद २१ श्री शिवनाथ ६ पं० बेचरदास दोशी १८ पं० श्री सुखलाल जी संघवी डॉ० एस० राधाकृष्णन् श्री अगरचन्द नाहटा ई० सन् १९५२ . १९६२ १९५५ १९५३ १९६० १९५३ १९९२ १९५० १९५६ १९५२ १९४९ १९६९ १९५५ १९६७ १९५१ १९५५ १९५८ पृष्ठ ३५-३७ ९-१३ २३-२४ १-२ १४-२० ११-१५ ४०-४१ १४-१८ ७-९ ३१-३३ १२ १०-१२ ७ १० ७-८ २ ९-११ o oroo or an orn १३-१४ ३-७ १५-१९ ३-२८ ३०-३२ ३-५ Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४९० लेख वर्मा में होली का त्यौहार वहित और अहित विचारों पर नियन्त्रण के उपाय विजय विद्यालय से माता-पिता का सम्बन्ध विश्व कलेण्डर विश्वकलेण्डर क्यों नहीं अपनाया जाय ? विस्मृत परम्पराएँ वैराग्य के पथ पर विकास का मुख्य साधन (क्रमश:) "" व्यावहारिक क्रियाएँ शतावधानी रत्नचन्द्र पुस्तकालय शब्दों की शवपूजा न हो शाक विचार शास्त्रोद्धार की आवश्यकता शिशु की निद्रा शैतान श्रमण संघ के दस वर्ष श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक सुश्री निर्मला प्रीतिप्रेम श्री गणेशप्रसाद जैन प्रो० लालजी राम शुक्ल कु० सत्यवती जैन श्रीमती सुशीला श्री महेन्द्रकुमार जैन प्रो० वेंकटाचलम् मुनिश्री दुलहराज जी श्री हजारीमल बांठिया पं० सुखलाल जी कुमारी आरती पात्रा डॉ० मोहनलाल मेहता मुनिश्री नथमल जी श्री अत्रिदेव गुप्त विद्यालंकार आचार्य आत्मारामजी श्रीमती कमला देवी खलील जिब्रान डॉ० इन्द्रचन्द्र शास्त्री वर्ष २२ १६ ~ ~ ~ 5 mm १२ २ १३ अंक ११ १० २ ३-४ ४ ८ ५ १२ १० ११ ३-४ १२ ४ १० ४ ई० सन् १९५५ १९७१ १९५० १९५० १९५७ १९५५ १९५५ १९६५ १९५० १९५० १९५० १९५७ १९५१ १९६१ १९५१ १९६२ १९५४ १९५२ १९६२ पृष्ठ ३०-३२ २० - २३ ३१-३५ ३५-३८ २९-३२ ३३-३७ १४-१८ १८ १७-२५ १३-१८ ११-१३ २३-२८ ३१-३६ १५-१९ ३३-३६ ४१ ३२-३४ २३-३३ १७-१९ Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ E श्री कृष्ण की जीवन झाँकी श्री जैनेन्द्र गुरुकुल, पंचकूला श्री पार्श्वनाथ विद्याश्रम श्री रंजनसूरिदेव की कुछ मोटी भूलें श्री रत्नमुनि : जीवन परिचय . श्री लालाभाई वीरचन्द देसाई ‘जयभिक्खु' संघर्ष और आलिंगन संघर्ष करना होगा संसार की चार उपमाएँ संसार के धर्मों का उदय संस्कृत कवियों के उपनाम सच्चा जैन सच्चा वैभव सत् का स्वरूप : अनेकान्तवाद और व्यवहारवादकी दृष्टि में सदाचार ही जीवन है सन्त श्री गणेशप्रसाद वर्णी सफलता के तीन तत्त्व Wry 22423930 श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक ___ वर्ष श्री विजयमुनि शास्त्री प्रो० इन्द्रचन्द्र शास्त्री २ श्री हरजसराय जैन श्री जुगलकिशोर मुख्तार १८ श्री विजय मुनि १५ श्री कस्तूरमल बांठिया १९ डॉ० इन्द्रचन्द्र शास्त्री श्री निर्मल कुमार जैन श्री प्रेमीजी डॉ० इन्द्र श्री जगन्नाथ पाठक श्री यशोविजय उपाध्याय श्री एस० कान्त .fmorror boor rum role ई० सन् १९५८ १९५१ १९५६ १९६७ १९६४ १९६८ १९६६ १९५४ १९५६ १९५४ १९६० १९५५ १९५५ ४९१ पृष्ठ ६-९ १५-२० ६३-८० ३०-३० १९-२८ २८-३७ २५-३२ १९-२३ १३-१४ २०-२५ १३-१७ २५-२६ १९-३५ डॉ० राजेन्द्रकुमार सिंह मुनिश्री रंगविजय जी श्री कैलाशचन्द्र शास्त्री डॉ० इन्द्रचन्द्र शास्त्री ___४१ १ १२ १२ १९९० १९५० १९६१ १९६१ १७-२५ ३५-३७ १६-१८ २८-३० Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लेख अंक सफेद धोती सबसे पहला पाठ समस्त जैन संघ को नम्र विज्ञप्ति सांपू सरोवर सामुद्रिक विज्ञान श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक प्रो० महेन्द्रकुमार न्यायाचार्य श्री कृष्णचन्द्राचार्य मुनिश्री न्याय विजयजी श्री जय भिक्खु श्री विजय राज १९६४ सुधार का मूलमंत्र सुहृदय श्री मुनिलाल जी सेवक सेवा का अर्थ सेवाग्राम कुटीर का संदेश हम किधर बह रहे हैं? हम सौ वर्ष जी सकते हैं? हमारा आज का जीवन हमारा क्रान्तिवारसा श्री जुगलकिशोर मुख्तार श्री हरसजराय जैन प्रो० इन्द्रचन्द्र शास्त्री मुनिश्री विद्याविजय जी डॉ० राजेन्द्र प्रसाद डॉ० इन्द्र श्री देवेन्द्रकुमार जैन शास्त्री श्री रतनसागर जैन पं० बेचरदास दोशी Pr ~ 23 u urww x x x x x x x x mov - 9 Mom » 239 v rura ई० सन् पृष्ठ १९५१ २१-२४ १९४९ २८-३० १९६६ . ३४--३९ १९५४ ३४-३९ १९५४ २७-२९ १९५५ ३८-४० १९६२ ९-१६ ६६-६८ १९५० १७-२३ १९५० ३५-३८ १९५० ३६-३८ ५-१३ १९५५ ३१-३३ १९५० २७-३० १९५४ १-८ १९५४ ६-१५ १९५३ २८-३३ १९५२ १७-२२ १९६५ २७-३३ १९५२ हमारी यात्रा के कुछ संस्मरण हमारे जागरण का शीर्षासन हृदय का माधुर्य-करुणा लाला हरजसराय जैन मुनि सुरेशचन्द्र मुनिश्री विनयचन्दजी Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साहित्य सत्कार निर्ग्रन्थ (अंग्रेजी, गुजराती और हिन्दी भाषा में प्रकाशित होने वाली वार्षिक शोध पत्रिका, सम्पादक - प्रा० एम० ए० ढांकी; डॉ० जीतेन्द्र बी० शाह; प्रवेशांक वर्ष १९९६; पृष्ठ ९+ १०८+ ११०+६२; द्वितीयांक पृष्ठ १४+१००+१०६+५०; प्रकाशक- शारदाबेन चिमनभाई एज्युकेशनल रिसर्च सेन्टर, शाहीबाग, अहमदाबाद; आकार-डबल डिमाई; मूल्य - एक सौ रूपया प्रत्येक। __प्रस्तुत अंक अहमदाबाद में हाल के वर्षों में स्थापित एक नूतन शोधसंस्थान शारदाबेन चिमनभाई एज्युकेशनल रिसर्च सेन्टर की शोध पत्रिका है। जैनधर्म-दर्शन, साहित्य और भारतीय स्थापत्य कला के विश्वविख्यात मर्मज्ञ प्राध्यापक श्री मधुसूदन ढांकी तथा प्राकृत भाषा एवं साहित्य के प्रकाण्ड विद्वान, युवा मनीषी डॉ० जीतेन्द्र बी० शाह के सम्पादकत्त्व में प्रकाशित यह शोध पत्रिका अब तक प्रकाशित जैन पत्रपत्रिकाओं में सर्वश्रेष्ठ है। तीन भाषाओं में प्रकाशित होने वाली यह दूसरी शोध पत्रिका है। डबल डिमाई आकार में मुद्रित इस शोध पत्रिका में जैन दर्शन,भाषा, साहित्य, कला, इतिहास और पुरातत्त्व आदि विषयों पर चने हए श्रेष्ठ लेखों का संकलन है। इस पत्रिका की यह विशेषता है कि इसमें जहाँ एक ओर जैनविद्या के मूर्धन्य विद्वानों के लेखों को स्थान दिया गया है. वहीं दूसरी ओर युवा लेखकों के शोध लेखों को भी आवश्यक महत्त्व प्रदान किया गया है। इस पत्रिका की साज-सज्जा अत्यन्त आकर्षक और मुद्रण त्रुटिरहित है। पत्रिका में लेखों से सम्बन्धित चित्रों को सर्वश्रेष्ठ आर्टपेपर पर मुद्रित किया गया है, जिससे इसका महत्त्व और भी ज्यादा बढ़ गया है। ऐसे सुन्दर प्रकाशन के लिए सम्पादक और प्रकाशक दोनों ही बधाई के पात्र हैं। ___मानतुंगाचार्य और उनके स्तोत्र : लेखक-प्राध्यापक श्री मधुसूदन ढांकी और जीतेन्द्र शाह : प्रकाशक -शारदाबेन चिमनभाई एज्युकेशनल रिसर्च सेन्टर, अहमदाबाद ३८०००४; प्रथम संस्करण १९९७ ई०, पृष्ठ १२+१३४; आकार-रायल आक्टो; मूल्य-सदुपयोग। - युगादीश्वर जिन ऋषभ के गुणस्तवस्वरूप भक्तामरस्तोत्र का जैन परम्परा में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है। श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों ही सम्प्रदायों में इसे प्राय: समान प्रतिष्ठा प्राप्त है। इस अति महिम्न स्तोत्र के कर्ता श्वेताम्बर हैं या दिगम्बर, उनका समय क्या है; इस स्तोत्र की श्लोक संख्या ४४ है या ४८; इन सभी प्रश्नों का उत्तर ढंढने का प्रयास अब तक अनेक जैन और अजैन विद्वानों ने किया है, परन्तु वे कोई निष्पक्ष और सर्वांगीण निर्णय प्रस्तुत नहीं कर सके हैं। इस पुस्तक में प्राध्यापक श्री Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण : अतीत के झरोखे में मधुसूदन ढांकी ने इस स्तोत्र और उसके रचनाकार से सम्बन्धित सभी प्रश्नों का अकाट्य साक्ष्यों द्वारा सटीक उत्तर प्रस्तुत किया है। ग्रन्थ के प्रारम्भ में प्रो० जगदीश चन्द्र जैन द्वारा लिखित पूर्वावलोक, पं० दलसुख मालवणिया द्वारा लिखित परोवचन एवं लेखकद्वय द्वारा लिखित प्रास्ताविक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। वस्तुत: यह पुस्तक उच्च स्तर के शोधार्थियों के लिए मार्गदर्शक का कार्य करेगी। आज की भीषण मंहगाई के युग में भी इस अनमोल ग्रन्थ को अमूल्य ही वितरित करना प्रकाशक की उदारता का परिचायक है। सही अर्थों में यह ग्रन्थ अमूल्य ही है। ऐसे ग्रन्थरत्न के लेखन और प्रकाशन तथा उसके नि:शुल्क वितरण के लिए लेखक, प्रकाशक और प्रकाशन हेतु आर्थिक सहयोग प्रदान करने वाले ट्रस्टीगण सभी अभिनन्दनीय हैं। हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन-लेखिकाडॉ० दिव्य गुणाश्री, प्रकाशक-विचक्षण स्मृति प्रकाशन, श्री मुनिसुव्रत स्वामी जैनमंदिर, दादासाहेबना पगलां, नवरंगपुरा, अहमदाबाद- ३८०००९; प्रथम संस्करण मई १९९८ ई०, आकार-डिमाई, पृष्ठ- १०+२७५; हार्डबोर्ड वाइडिंग, मूल्य-सदुपयोग। जिस प्रकार पूर्वकाल में प्राकृत-संस्कृत और अपभ्रंश भाषाओं में अनेक रचनाकारों ने भगवान् महावीर के चरित्र का गुणगान किया है उसी प्रकार इस युग में राष्ट्रभाषा हिन्दी में भी विभिन्न रचनाकारों ने प्रबन्धकाव्यों के रूप में उनके जीवन चरित्र का वर्णन किया है जिसे साध्वीरत्न दिव्यगुणाश्री जी ने अपने शोध प्रबन्ध का आधार बनाया है। शोध प्रबन्ध चार अध्यायों में विभक्त है। प्रथम अध्याय में ४ खंड हैं। इनमें पूर्व भूमिका, जैनधर्म की प्राचीनता, तीर्थंकरों की परम्परा में भगवान् महावीर और आधारभूत प्रबन्ध काव्यों का साहित्यिक परिचय दिया गया है। द्वितीय अध्याय में भगवान् का विस्तृत जीवन परिचय देते हुए उनके पारिवारिकजनों का वर्णन है। तृतीय अध्याय में प्रबन्धंग्रन्थों के भावपक्ष का विवेचन है जिसके अन्तर्गत उनमें वर्णित जैनधर्म, राष्ट्रीय भावना, युगीन परिस्थितियों आदि का एक सौ पृष्ठों में विस्तृत विवेचन है। चतुर्थ अध्याय में विवेच्य प्रबन्ध ग्रन्थों के कलापक्ष पर ७० पृष्ठों में प्रकाश डाला गया है। जैन विद्या के विशिष्ट अभ्यासी डॉ० शेखरचन्द जैन के निर्देशन में तैयार किया गया यह शोध प्रबन्ध वस्तुत: साध्वी जी द्वारा विद्वत् समाज को दिया गया एक अनुपम भेंट है। पुस्तक की साज-सज्जा आकर्षक और मुद्रण त्रुटिरहित है। ग्रन्थ को नि:शुल्क वितरित करना प्रकाशक की उदारता का परिचायक है। श्री लावण्य जीवनदर्शन : काव्यप्रणेता-आचार्य श्रीमद् विजयसुशील सूरि प्रकाशक-श्री सुशील साहित्य प्रकाशन समिति, राइका बाग, जोधपुर, राजस्थान३४२००१; प्रकाशन वर्ष- मई १९९७ ई०; पृष्ठ ८+१२०; आकार-रायल आठपेजी; मूल्य- २५ रूपया। Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण : अतीत के झरोखे में प्रस्तुत पुस्तक तपागच्छ के प्रसिद्ध आचार्य स्व० श्री विजयलावण्य सूरीश्वर जी महाराज का सरल हिन्दी भाषा में छन्दोबद्ध जीवन चरित्र है जो उनके प्रशिष्य आचार्य विजयसुशील सूरि द्वारा प्रणीत है। मंगलाचरण से प्रारम्भ इस ग्रन्थ में आचार्यश्री के जीवन से सम्बन्धित घटनायें बड़े ही सुन्दर रूप में वर्णित हैं। सौराष्ट्रदर्शन नामक खंड में उक्त प्रान्त के विभिन्न तीर्थों का और अनुपम साहित्यसाधना के अन्तर्गत आचार्यश्री की साहित्यिक कृतियों का सुन्दर विवेचन है । कृति के अन्त में रचनाकार की प्रशस्ति और संदर्भ ग्रन्थसूची भी दी गयी है । ग्रन्थ का मुद्रण अत्यन्त कलात्मक और त्रुटिरहित है। श्रीलावण्यसूरिमहाकाव्यम् : प्रेणता - आचार्य श्रीमद् विजयसुशील सूरि जी म० प्रकाशक- पूर्वोक्त, प्रकाशन वर्ष - मई १९९७; पृष्ठ १६ + १५२; आकार-रायल आठपेजी; मूल्य-स्वाध्याय। प्रस्तुत महाकाव्य आचार्यश्री लावण्यसूरि जी महाराज के जीवन पर आधारित एक उत्कृष्ट रचना है। संस्कृत भाषा में रचित इस महाकाव्य में रचनाकार ने शक्य सभी तत्त्वों समावेश किया है और इस प्रकार उन्होंने संस्कृत साहित्य को वर्तमान काल में अपनी लेखनी से समृद्ध किया है। इस महाकाव्य में मूलगाथा के साथ उसका संस्कृत और हिन्दी भाषा में अनुवाद भी दिया गया है, जिससे सामान्यजन भी इससे लाभान्वित हो सकेगें। पुस्तक की साज-सज्जा आकर्षक और मुद्रण कलापूर्ण एवं निर्दोष है। महाराष्ट्र का जैन समाज : लेखक- श्री महावीर सांगलीकर; प्रकाशक जैन फ्रेण्ड्स, २०१, मुम्बई-पुणे मार्ग, चिंचवड़ पूर्व, पुणे ४११०१९; प्रकाशन वर्ष - अक्टूबर १९९८ ई०; आकार-डिमाई, पृष्ठ- ३२; मूल्य १५ रूपया । प्रस्तुत लघु पुस्तिका में विद्वान् लेखक द्वारा गागर में सागर भरने का सफल प्रयास किया गया है। यह पुस्तिका ६ अध्यायों में विभक्त है। इन में प्रस्तावना, महाराष्ट्र के जैन समाज और उसके प्रमुख व्यक्ति, स्थानीय जैन संस्थाओं आदि का बहुत ही सुन्दर विवेचन है। अन्त में परिशिष्ट (एक) के अन्तर्गत महाराष्ट्र की जैन जातियों और परिशिष्ट (दो) में जैन संस्थाओं तथा पत्र-पत्रिकाओं की सूची दी गयी है। यह पुस्तक वस्तुतः एक ऐतिहासिक दस्तावेज है अतः न केवल शोधार्थियों बल्कि जनसामान्य के भी लिये पठनीय और संग्रहणीय है । ज्ञानार्णव : एक समीक्षात्मक अध्ययन लेखिका - साध्वी डॉ० दर्शन लता; प्रकाशक श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी संघ, गुलाबपुरा ( राजस्थान); प्रथम संस्करण १९९७ ई; पृष्ठ २०+२५६ आकार - रायल आठपेजी; मूल्य १५० रूपया । प्रस्तुत पुस्तक साध्वी दर्शनलता जी के शोधप्रबन्ध का मुद्रित रूप है जिस पर Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४ श्रमण : अतीत के झरोखे में डॉ० आर० सी० द्विवेदी के निर्देशन में राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर से उन्हें पीएच० डी० की उपाधि प्राप्त हुई है। शोध प्रबन्ध ५ अध्यायों में विभक्त है। प्रथम अध्याय में भारतीय योग परम्परा का विस्तृत परिचय दिया गया है जिसके अन्तर्गत सिंधुकालीन सभ्यता में योग; तापस परंपरा, अवधूत परंपरा तप का योग के रूप में विकास, पातंजल योग, राजयोग, हठयोग, ज्ञानयोग, भक्तियोग, कर्मयोग, जैन तथा बौद्ध योग आदि की चर्चा है। द्वितीय अध्याय में ग्रन्थकार एवं ग्रन्थ का परिचय दिया गया है। तृतीय अध्याय में ग्रन्थ के स्वरूप व रचनाशैली पर प्रकाश डाला गया है। चतुर्थ अध्याय योगांगविश्लेषण के रूप में है। इसके अन्तर्गत आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, ध्यान की पात्रता - अपात्रता, शुद्धोपयोग, बहिरात्मा-अंतरात्मा-परमात्मा, ध्यान के प्रतिकूल स्थान, योग साधना में ध्यान, उपनिषदों में ध्यान संकेत, ध्यान के भेदप्रभेद आदि की १०० पृष्ठों में चर्चा की गयी है। पांचवां और अंतिम अध्याय उपसंहार स्वरूप है। इसके अन्तर्गत योग के क्षेत्र में आचार्य शुभचन्द्र की देन रचनाकार पर पूर्ववर्ती ग्रन्थकारों का प्रभाव तथा उत्तरवर्ती लेखकों पर शुभचन्द्र के प्रभाव की चर्चा है और अन्त में निष्कर्ष प्रस्तुत किया गया है। शोध प्रबन्ध में दो परिशिष्ट भी हैं जिनमें से प्रथम में वर्तमान काल में प्रचलित विभिन्न ध्यान पद्धतियों- विपश्यना, प्रेक्षाध्यान, समीक्षण ध्यान, भावातीत ध्यान तथा रजनीश द्वारा निरूपित ध्यान पद्धतियों आदि की सक्षिप्त चर्चा है। अंतिम परिशिष्ट में संदर्भ ग्रन्थों की सूची दी गयी है जो अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। प्रो० दयानन्द भार्गव द्वारा लिखित आमुख एवं डॉ० छगनलाल शास्त्री का पर्यवलोकन पुस्तक के महत्त्व को द्विगुणित कर देते हैं। एक श्वेताम्बर साध्वी द्वारा एक दिगम्बर आचार्य के ग्रन्थ को अपने शोध प्रबन्ध का आधार बनाना ही अत्यन्त आहलादक है। ऐसे प्रामाणिक ग्रन्थ के लेखन व प्रकाशन के लिए लेखिका और प्रकाशक संस्था दोनों ही धन्यवाद के पात्र हैं। अध्यात्म उपनिषद् भाग १-२ : रचनाकार-महोपाध्याय यशोविजय गणि; संस्कृत व गुजराती भाषा में टीकाकार व संपादक मुनि यशोविजय जी; संशोधक आचार्य जगच्चन्द्रसूरीश्वर जी एवं जयसुन्दरविजय जी गणि; प्रकाशक - श्री अन्धेरी गुजराती जैन संघ, करमचंद जैन पौषधशाला, १०६, एस० बी० रोड, इर्लाब्रिज, अंधेरी (पश्चिम) मुम्बई - ५६; प्रकाशन वर्ष - वि० सं० २०५४; प्रथम भाग - पृष्ठ २७+१५३; द्वितीय भाग २१ + १५४ से ३६७; दोनों भागों का मूल्य १९० रूपया; आकार - रायल आठ पेजी । श्वेताम्बर परम्परा के श्रेष्ठ रचनाकारों में तपागच्छीय महोपाध्याय यशोविजय जी का नाम अत्यन्त आदर के साथ लिया जाता है। उनके द्वारा रचित अनेक रचनाओं में अध्यात्मउपनिषद् भी एक है। इस कृति पर वर्तमान युग में तपागच्छ के ही विद्वान् मुनि श्री यशोविजय जी ने संस्कृत भाषा में अध्यात्म वैशारदी टीका और गुर्जर भाषा Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण : अतीत के झरोखे में में अध्यात्म प्रकाश व्याख्या की रचना की है जिनका संशोधन आचार्य श्री जगच्चन्द्र सूरीश्वर जी महाराज एवं श्री जयसुन्दरविजय जी गणि ने किया है। प्रस्तुत पुस्तक न केवल अध्यात्म प्रेमीजनों बल्कि शोधार्थियों के लिए भी अत्यन्त उपयोगी है। पुस्तक की साज-सज्जा अत्यन्त आकर्षक तथा मुद्रण दोषरहित है। यह पुस्तक प्रत्येक पुस्तकालय के लिए संग्रहणीय है। निर्ग्रन्थ परम्परा में चैतन्य आराधना : आचार्यश्री नानेश; प्रकाशकश्री अखिल भारतवर्षीय साधुमार्गी जैन संघ, समताभवन, बीकानेर; प्रथम संस्करण १९९७ ई०; आकार-डिमाई; पृष्ठ ८+८७; मूल्य-१० रूपया। बाह्याडम्बरों से दिग्भ्रान्त अशान्तचित्त मानव को अपना ध्यान चैतन्य की ओर लगाने से ही सच्ची शांति प्राप्त हो सकती है। मानव अपने चारों ओर स्वनिर्मित परिग्रहरूपी जाल में स्वयं फंस जाता है और प्रयास करने पर भी उससे छूट नहीं पाता। यदि मानव आज भी महावीर के उपदेशों पर चले, तो उसकी अनेक समस्यायें स्वत: हल हो जायेंगी। प्रस्तुत पुस्तक समताविभूति आचार्य नानेश के प्रवचनों का संग्रह है। इसमें उन्होंने अत्यन्त सरल किन्तु सारगर्भित भाषा में अपने विचार व्यक्त किये हैं जो न केवल जैन समाज बल्कि सभी मनुष्यों के लिए प्रेरणादायी है। प्रवचनपर्व : प्रवचनकार - आचार्यश्री विद्यासागर जी; प्रकाशक - मुनिसंघ साहित्य प्रकाशन समिति, कटरा बाजार, सागर, मध्यप्रदेश; प्रथम संस्करण १९९३, पृष्ठ १४४, आकार-डिमाई, मूल्य -१० रूपया। प्रस्तुत पुस्तक में सन्त शिरोमणि आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज द्वारा पर्युषणपर्व पर दिये गये प्रवचनों का संकलन है। शास्त्रों के गूढ़ रहस्यों को अत्यन्त सरल भाषा में जनसामान्य के समक्ष प्रस्तुत कर उसे बोधगम्य बना देना आचार्यश्री की विशेषता है। इस पुस्तक में उन्होंने पारम्परिक दृष्टान्तों की अपेक्षा मानवजीवन की दैनिक घटनाओं के उदाहरणों से अपने कथन को पुष्ट किया है, जिससे उनका हृदय पर सीधा प्रभाव पड़ता है। पुस्तक सभी के लिए पठनीय है। इसकी साज-सज्जा आकर्षक तथा मुद्रण त्रुटिरहित है। सागरना स्मरण तीर्थे (गुजराती), लेखक - आचार्य मनोहरकीर्ति सागरसूरि तथा डॉ० कुमारपाल देसाई; संपा० - मुनिश्री अजयकीर्तिसागर एवं मुनिश्री विनय कीर्तिसागर; प्रकाशक - श्री अविचल ग्रन्थ प्रकाशन समिति, प्राप्ति स्थान - श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वर जी जैन समाधि मंदिर, स्टेशन रोड, बीजापुर-३८२ ८७०; पृष्ठ १२+३१०. श्वेताम्बर मूर्तिपूजक गच्छों में तपागच्छ का आज सर्वोपरि स्थान है। इस गच्छ Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण : अतीत के झरोखे में की विभिन्न शाखाओं में सागर संविग्न शाखा भी एक है। उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम चरण एवं बीसवीं शताब्दी के प्रथम चरण में हुए अध्यात्मयोगी, प्रखर चिन्तक, शंताधिक ग्रन्थों के रचयिता आचार्य बुद्धिसागर सूरि तपागच्छ की इसी शाखा के थे। आचार्य बुद्धिसागर सूरि के पश्चात् उनके पट्टधर कीर्तिसागर सूरि हुए। सागरसंविग्न शाखा के वर्तमान गच्छनायक श्री सुबोधसागर सूरि इन्हीं के पट्टधर हैं। प्रस्तुत ग्रन्थ का प्रकाशन आचार्य कीर्तिसागर सूरि की जन्म शताब्दी और वर्तमान गच्छनायक श्री सुबोधसागर जी महाराज की आचार्यपद रजतजयन्ती महोत्सव (सं० २०२३-२०४७) के अवसर पर किया गया है। सर्वश्रेष्ठ आर्टपेपर पर मुद्रित सम्पूर्ण ग्रन्थ में बुद्धिसागर सूरि, आचार्य कीर्तिसागर सूरि और आचार्य सुबोधसागर सूरि के जीवन के विविध पहलुओं पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है। पुस्तक में सैकड़ों रंगीन एवं सादे चित्र दिये गये हैं। अन्त में श्रीमद् बुद्धिसागरसूरि जैन समाधि मंदिर का सचित्र विवरण दिया गया है। अत्यधिक लागत से निर्मित यह ग्रन्थ प्रत्येक. श्रद्धालु उपासकों के लिये संग्रहणीय है। रामायणनो रसास्वाद : प्रवचनकार-पूज्य आचार्यश्री रामचन्द्र सूरि जी म०; संपादक-आचार्यश्री विजयकीर्तियशसूरीश्वर जी महाराज; प्रकाशक- सन्मार्ग प्रकाशन, श्वेताम्बर मूर्तिपूजक तपागच्छ जैन आराधना भवन, पाछीयानी पोल, रिलीफ रोड, अहमदाबाद - ३८० ००१, द्वितीय संस्करण १९९५ ई०, पृष्ठ ४६०; आकार - डिमाई; मूल्य ७५ रूपया। ... हिन्दू परम्परा की भांति जैन परम्परा में भी प्राचीन काल से ही राम की कथा अत्यन्त लोकप्रिय रही है और इसका प्रमाण है प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश, गजराती, राजस्थानी आदि विभिन्न भाषाओं में विभिन्न जैन रचनाकारों द्वारा राम के चरित्र का वर्णन। प्रस्तुत पुस्तक तपागच्छीय संघनायक, पूज्य आचार्य विजयरामचन्द्र सूरि द्वारा रामायण पर दिये गये प्रवचन का द्वितीय संस्करण है। इसमें १० अध्यायों में दशरथ, उनकी रानियों, राम के राज्याभिषेक की तैयारी, राम को वन भेजने का निश्चय, भरत का राज्याभिषेक, सीताअपहरण, महासती अंजनासुन्दरी, लंकाविजय, अयोध्या में रामराज्य, सीता पर आक्षेप और अन्त में सीता का दिव्य और राम के निर्वाण का वर्णन किया गया है। सम्पूर्ण पुस्तक में रामायण के प्रमुख पात्रों - दशरथ, कौशल्या, कैकेयी, राम, लक्ष्मण, सीता, भरत, लवण, अंकुश, रावण, विभीषण, मंदोदरी, पवनंजय, महासती अंजनासुन्दरी, हनुमान, जटायु, नारद आदि के जीवन-सम्बन्धी विविध घटनाओं और आदर्शों को दर्शाते हुए उनसे मानव जीवन को ऊर्ध्वगामी बनाने की प्रेरणा दी गयी है। गजराती भाषा में होने के कारण हिन्दी भाषी इसके स्वाध्याय के लाभ से वंचित रहेंगे। Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७ श्रमण : अतीत के झरोखे में पुस्तक की साज-सज्जा सुन्दर और मुद्रण निर्दोष है। पक्के बाइंडिंग वाली इस पुस्तक का मूल्य लागत मात्र रखा गया है जो प्रकाशक की उदारता का परिचायक है। ___ अध्यात्म की अनूठी पत्रिका स्वानुभूतिप्रकाश निःशुल्क प्राप्त करें श्री सत्श्रुत प्रभावना ट्रस्ट, भावनगर द्वारा स्वानुभूतिप्रकाश नामक एक मासिक पत्रिका का प्रकाशन किया जाता है। यह पत्रिका जिन मंदिरों, शोध संस्थाओं, पुस्तकालयों, विद्वानों, प्रवचनकारों एवं तत्त्वजिज्ञासूओं को नि:शल्क प्रतिमाह भेजी जाती है। जो भी संस्थायें या स्वाध्याय प्रेमी उक्त योजना का लाभ लेना चाहते हों वे अपना पूरा पता पिनकोड के साथ साफ-साफ अक्षरों में लिख कर निम्नलिखित पते पर भेजें। संपादक - स्वानुभूतिप्रकाश श्री सत्श्रुत प्रभावना ट्रस्ट, ५८०, जूनी माणेक बाडी, भावनगर - ३६४००१ (गुजरात राज्य) डाक टिकट भेजकर सत्-साहित्य निःशुल्क मंगा लें आध्यात्मिक सत्पुरुष श्री कानजी स्वामी के प्रवचनों की श्रृंखला में आचार्य कुन्दकुन्द कृत ग्रन्थाधिराज समयसार (गाथा २३७ से ३०७) पर हए प्रवचनों का संकलन "प्रवचन रलाकार भाग-८" (पृष्ठ ४४६ कीमत २०/- रू.) तथा "नियमसार" (गाथा ३, ८, ९, १०, १४, १५) पर हुए प्रवचन "कारणशुद्धपर्याय" (पृष्ठ १२४ कीमत ६/-रू०) मगनमल सौभागमल पाटनी फेमिली चेरिटेबल ट्रस्ट की ओर से मुनिराजों, ब्रह्मचारियों, मंदिरों, संस्थाओं, मुमुक्षुओं को स्वाध्यायार्थ नि:शुल्क भेंट स्वरूप भेजी जा रही है। इच्छुक महानुभाव डाक खर्च के ४/- (चार रूपयें) के साफ-सुथरे (फ्रेश) टिकट भेजकर निःशुल्क मंगा लेवें। टिकट भेजने की अंतिम तिथि ३१ जनवरी ९९है। - नि:शुल्क साहित्य वितरण विभाग श्री टोडरमल स्मारक भवन, ए-४ बापूनगर, जयपुर ३०२ ०१५ (राज.) Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण : अतीत के झरोखे में साभार प्राप्त १. जीवन निर्माण - प्रवचनकार - पू० आचार्य श्री राजयशसूरि जी म० सा०, संपा० मुनि विश्रुतयशविजय जी म० सा०; प्रकाशक - लब्धि विक्रम संस्कृति केन्द्र, टी/७ए शांतिनगर, अहमदाबाद ३८० ०१३, पृष्ठ १६५, द्वितीय संस्करण १९९८ ई०, साइज डिमाई। २. राजचिंतनिका - चिन्तनकार - पू० आचार्य राजयशसूरि जी म० सा०, प्रकाशक - श्री आलंदूर जैन संघ, चेनई, प्रथम संस्करण १९९८ ई०, पृष्ठ ४८, पाकेट साइज। 3. An out Line of Jainism-Author - Acharya Rajayash Surishwar Ji Maharaj. Publisher - Shri Labdhi Vikram Sanskruti Kendra. T/7 A, Shanti nagar Society, Ahmedabad - 380 013 Pocket size. . ४. श्री तत्त्वसार विधान - श्री राजमल पवैया, संपा० श्री नाथूलाल जी शास्त्री; प्रकाशक - श्री भरत पवैया, संयोजन - तारादेवी पवैया ग्रन्थमाला, ४४ इब्राहिमपुरा- भोपाल - ४६२ ०० १; पृष्ठ ४८; प्रथम संस्करण जनवरी १९९८ ई०, मूल्य - ६ रूपये। ५. श्री तत्त्वानुशासन विधान - श्री राजमल पवैया; संपा० डॉ० देवेन्द्रकुमार शास्त्री; प्रकाशक - पूर्वोक्त, पृष्ठ २००; प्रथम संस्करण जुलाई १९९७ ई०; मूल्य २५ रूपये। ६. श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी विधान - श्री राजमल पवैया; संपा० डॉ० देवेन्द्रकुमार शास्त्री; प्रकाशक-पूर्वोक्त; पृष्ठ ३८४; प्रथम संस्करण - अगस्त १९९७ ई०; मूल्य ४० रूपये। ७. जैनागम नवनीत प्रश्नोत्तर (आचारांगसूत्र) पुष्य ३ -४- प्रश्नोत्तर लेखक - श्री तिलोक मुनि जी महाराज; प्रकाशक - श्री जैनागम नवनीत प्रकाशन समिति, C/ 0 श्री ललितचन्द्र मणिलाल सेठ, शंखेश्वरनगर, रतनपर, पोस्ट-जोरावर नगर, जिला - सुरेन्द्रनगर - ३६३ ०२०, गुजरात; प्रथम संस्करण - अप्रैल १९८९ ई०; पृष्ठ ३८८; मूल्य २० रूपये। ८. सम्यग्ज्ञान-दीपिका - रचयिता - क्षुल्लक धर्मदास जी; हिन्दी अनुवादपं० फूलचन्द जी सिद्धान्तशास्त्री; प्रकाशक - श्रीवीतराग सत् साहित्य प्रसारक ट्रस्ट, भावनगर-३६४ ० ० १; वीरनिर्वाण सम्वत् २५२३/१९९६ ई०; पृष्ठ ११९; आकारडिमाई; मूल्य २० रूपया। Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण : अतीत के झरोखे में प्रवचनकार ९. विधि विज्ञान श्री कानजी स्वामी; संपा० श्री शशीकान्त म० सेठ, प्रकाशक- पूर्वोक्त; भावनगर वीरनिर्वाण सम्वत् २५१५ / ई० सन् १९८९; पृष्ठ ७६; आकार - डिमाई; मूल्य ३ रूपया । १०. अनुभव प्रकाश - लेखक- स्व० दीपचन्द जी कासलीवाल ; प्रकाशकपूर्वोक्त, भावनगर, वीरनिर्वाणसम्वत् २५२० / ई० सन् १९९३; पृष्ठ ८४; आकारडिमाई; मूल्य १० रूपया। ११. जिण सासणं सत्वं प्रवचनकार पूज्य श्री कानजी स्वामी; संपा०श्री शशिकान्त म० सेठ; प्रकाशक- पूर्वोक्त, भावनगर, वीरनिर्वाण सम्वत् २५१६ / ई० स० १९८९; आकार डिमाई; पृष्ठ १५२; मूल्य ८ रूपया । - १२. तत्त्वानुशीलन - लेखक- श्री शशीकान्त म० सेठ, प्रकाशक- पूर्वोक्त; भावनगर वीरनिर्वाण सम्वत् २५२४ / ई० स० १९९८ ई०; आकार - डिमाई; पृष्ठ १६१; मूल्य २० रूपये । - १३. दृव्यदृष्टि - प्रकाश (श्री निहालचंद सोगानी के पत्रों का संकलन एवं श्री कानजी स्वामी के प्रवचनों का संग्रह); प्रका०- पूर्वोक्त; प्रकाशन वर्ष - वीर निर्वाण सम्वत् २५१९ / ई० स० १९९२; आकार- डिमाई; पृष्ठ १९६; मूल्य १५ रूपया । १४. निर्भ्रात - दर्शन की पगडण्डी पर - लेखक - श्री शशीकान्त म० सेठ; अनुवादक - श्री रमेशचन्द्र सोगानी ; प्रकाशक - पूर्वोक्त, प्रकाशन वर्ष - वि० सं० २०५३ ; पृष्ठ ६०; मूल्य १० रूपया । - १५. धन्य अवतार (श्री चम्पाबहन के सम्बन्ध में श्री कानजी स्वामी के उद्गार); प्रकाशक- पूर्वोक्त, पृष्ठ ३८ । १६. मुमुक्षुता का आरोहणक्रम विवेचक - श्री शशीकान्त म० सेठ; प्रका० पूर्वोक्त, प्रकाशन वर्ष १९८९ ई०, पृष्ठ १३६, मूल्य - १५ रूपये। जैन जगत, इन्दौर में आचार्यसम्राट श्री देवेन्द्रमुनि जी महाराज के सानिध्य में विविध आयोजन - आचार्यसम्राट श्री देवेन्द्रमुनि जी महाराज के चातुर्मासार्थ विराजने से यहां पर धर्मकी अभूतपूर्व प्रभावना हुई। उनके दैनिक प्रवचन में देश के विभिन्न भागों से श्रद्धालुगण पहुंचे। दि० ६ अगस्त को आचार्यश्री ने श्री प्रेमसुख जी महाराज व ७ अगस्त को मरुधरकेशरी श्री मिश्रीमलजी महाराज के व्यक्तित्व व कृतित्व पर विस्तृत Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० श्रमण : अतीत के झरोखे में प्रकाश डाला। ८ अगस्त को उन्होंने रक्षाबंधन के पावनपर्व के अवसर पर उसके महत्त्व की विवेचना की । दिनांक ९ अगस्त को मासखमण करने वाले ११ तपस्वियों का सम्मान किया गया। १४ अगस्त को जन्माष्टमी के शुभपर्व पर आचार्य श्री ने कर्मयोगी श्रीकृष्ण के जीवन और व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला। १५ अगस्त को स्वाधीनता दिवस के अवसर पर उन्होंने राष्ट्र के नाम संदेश दिया । १७ अगस्त को उनके द्वारा प्रतिभाशाली बालक-बालिकाओं का सम्मान किया गया। १९ अगस्त से २६ अगस्त तक पर्यषण पर्व के अवसर पर प्रतिदिन अपने आध्यात्मिक प्रवचनमाला के अन्तर्गत आचार्यश्री ने दान, दीक्षा, नारी जीवन की महत्ता, संवत्सरीमहापर्व आदि महत्त्वपूर्ण विषयों की सविस्तार चर्चा की। दिनांक ३१ अगस्त को सामूहिक क्षमापना का आयोजन किया गया जिसमें तेरापंथी समुदाय की महासती श्री कनकरेखा जी, कई मंदिरमार्गी संत तथा गुजराती समाज की महासती श्री भारती बाई व गौतम मुनि आदि के प्रवचन हुए। दिनांक ३ सितम्बर को श्रमण संघ के प्रथम पट्टधर आचार्यसम्राट आत्माराम जी महाराज की जयन्ती सोल्लास मनायी गयी। ५ सितम्बर को एक श्रद्धांजलि सभा आयोजित की गयी जिसमें महासती स्व० श्री सोहनकुंवर जी और स्व० रूपेन्द्र मुनि जी को श्रद्धांजलि अर्पित की गयी। इसी दिन आचार्य श्रीजयमल की भी जयन्ती मनायी गयी। दिनांक २८ सितम्बर से ४ अक्टूबर तक उपाध्याय पुष्कर मुनि जी महाराज की जयन्ती मनायी गयी। जयन्ती कार्यक्रम के अंतिम दिन ४ अक्टूबर को मुख्य आयोजन रहा जिसमें राजस्थान सरकार के शिक्षामंत्री श्री गुलाबचन्द्र कटारिया ने प्रमुख अतिथि के रूप में भाग लिया। इस अवसर पर श्वे० स्थानकवासी जैन कान्फ्रेन्स के अध्यक्ष श्री हस्तीमल मुणोत, महामंत्री श्री माणकचंद जी कोठारी, समाजरत्न श्री हीरालाल जैन तथा समाज के पदाधिकारी और बड़ी संख्या में देश के विभिन्न भागों से पधारे भक्तजन उपस्थित थे। सुप्रसिद्ध उद्योगपति श्री नेमनाथ जैन ने आगन्तुक अतिथियों का स्वागत किया और आचार्यश्री के सानिध्य में पौष्टिक आहार (गर्भवती गरीब महिलाओं हेतु) वितरण, रोगमुक्ति, व्यसन मुक्ति एवं ज्ञान-ध्यान की अपनी योजनाओं का शुभारम्भ किया जिसकी सभी ने भूरि-भूरि प्रशंसा की। आचार्यश्री देवेन्द्रमुनि जी महाराज का जन्मदिवस होने से धनतेरस के दिन विभिन्न वक्ताओं ने आचार्यश्री के व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला। दीपावली के पावन पर्व पर अपने उद्बोधन में आचार्यश्री ने लौकिक दीपावली के साथ-साथ आध्यात्मिक दीपावली मनाने का आग्रह किया। इन्दौरवासियों के लिए यह अत्यन्त सौभाग्य की Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण : अतीत के झरोखे में बात है कि पूज्य आचार्यसम्राट की प्रेरणा एवं आशीर्वाद से श्री नेमनाथ जी द्वारा पार्श्वनाथ विद्यापीठ की एक शाखा का इन्दौर में दिनाक १५ नवम्बर से शुभारम्भ हुआ राजकोट में आगमसूत्र का विमोचन सम्पन्न रायलपार्क, राजकोट ३० अगस्त: स्थानकवासी जैन उपाश्रय में गुजरात के मुख्यमंत्री श्री केशुभाई पटेल के सानिध्य में जैनागम नवनीत प्रश्नोत्तर-आचारांगसूत्र पुष्प ३-४ की विमोचन विधि एवं गुजराती भाषा में विवेचन युक्त आगम की समर्पण विधि का कार्यक्रम ३० अगस्त को सम्पन्न हुआ। पुस्तक का विमोचन करते हुए मुख्यमंत्री जी ने मुनिराज श्री तिलोकमुनि जी का अभिवादन करते हुए आचार की आवश्यकता से अपना वक्तव्य प्रारम्भ किया जो धार्मिक विचारों के साथ करीब ४० मिनट तक चला। "जैन परम्परा में तीर्थंकरों की अवधारणा' विषयक संगोष्ठी सम्पन्न उदयपुर १९-२० सितम्बर : समताविभूति आचार्य श्री नानेश एवं युवाचार्य श्री रामेश के सानिध्य तथा आगम, अहिंसा, समता एवं प्राकृत संस्थान, उदयपुर के सहयोग से श्री नवचेतना समता युवा मंच द्वारा विगत १९-२० सितम्बर को जैन परम्परा में तीर्थंकरों की अवधारणा विषय पर द्विदिवसीय विद्वत् संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी के संयोजक और आगम, अहिंसा, समता एवं प्राकृत संस्थान के प्रभारी डॉ० सरेश सिसोदिया ने विषय प्रवर्तन किया। संगोष्ठी के प्रथम सत्र में पार्श्वनाथ विद्यापीठ के प्रवक्ता, युवा विद्वान् डॉ० श्रीप्रकाश पाण्डेय ने तीर्थंकर अरिष्टनेमि पर अपना महत्त्वपूर्ण शोधनिबन्ध प्रस्तुत किया। इस सत्र में डॉ० उदयचन्द जैन एवं डॉ० मंजू सिरोया ने भी अपने शोधपत्रों का वाचन किया। संगोष्ठी के द्वितीय सत्र में डॉ० धर्मचन्द जैन; डॉ० जगतराम भट्टाचार्य और डॉ० प्रेमसुमन जैन ने अपने शोधपत्र प्रस्तुत किये। २० सितम्बर को संगोष्ठी के तृतीय सत्र में डॉ० सुरेश सिसोदिया और डॉ० आर० एम० लोढ़ा ने अपने शोध पत्र पढ़े। संगोष्ठी के अंतिम सत्र में उसी दिन डॉ० हकमचन्द जैन, डॉ० जीतेन्द्र बी० शाह, श्री कमल भूरा और डॉ० देव कोठारी के शोधपत्र प्रस्तुत हुए। संगोष्ठी के समापन समारोह में अखिल भारतीय साधुमार्गी जैनसंघ, बीकानेर के पदाधिकारी गण भी बड़ी संख्या में पधारे। समारोह के मुख्यअतिथि श्री सागरमल जी चपलोत ने सभी विद्वानों को श्री नवचेतना समता युवा मंच की ओर से स्मृतिचिन्ह भेंट किया। संगोष्ठी के सभी सत्रों का सकुशल संयोजन एवं संचालन डॉ० सरेश सिसोदिया ने किया। Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ श्रमण : अतीत के झरोखे में महाराष्ट्रप्रान्तीय जैन श्रावक संघों का शिविर सम्पन्न मुम्बई ३० सितम्बर : श्रमणसंघीय महामंत्री श्री सौभाग्यमुनि 'कुमुद' के सानिध्य और जैन कान्फ्रेन्स के उपाध्यक्ष श्री शांतिलाल जी छाजेड़ की अध्यक्षता में महाराष्ट्र प्रान्त के विभिन्न जैन श्रावक संघों के उच्च पदाधिकारियों का एक दिवसीय मार्गदर्शन शिविर पिछले दिनों नेमाडी बाड़ी, ठाकुरद्वार में सम्पन्न हुई। इस शिविर में बड़ी संख्या प्रत्येक जिले के जैन संघ के अध्यक्ष व मंत्री सम्मिलित हुए। देश की अखण्डता सन्तों पर निर्भर है आचार्य विमलसागर जी टीकमगढ़: सुप्रसिद्ध विचारक, जैनाचार्य श्री विमलसागर जी ने पिछले दिनों पार्श्वसागर त्यागी व्रती भवन के प्रांगण में अपनी प्रवचनमाला के अन्तर्गत भारी संख्या में एकत्रित जनसमुदाय के बीच कहा कि देश की अखण्डता प्राचीन काल से ही सन्तों के ऊपर निर्भर रही है और आज भी उन्हीं पर है। उन्होंने कहा कि सन्तों द्वारा समयसमय व्यक्त पर किये गये सद्विचार ही हमारे जीवन में आदर्श बनकर अन्धकार से निकाल कर प्रकाश की ओर ले जाते हैं। देश की वर्तमान राजनीति की चर्चा करते हुए उन्होंने लोगों के नैतिक मूल्यह्रास पर अत्यन्त दुःख प्रकट किया और कहा कि विश्वशांति के लिए राजनीति में धर्म का प्रवेश और सन्तों का मार्गदर्शन राष्ट्र की एकता और अखण्डता के लिए अनिवार्य है। श्री ऋषिमंडल पूजाविधान सम्पन्न कानपुर ३० सितम्बर : महानगर कानपुर में चातुर्मास कर रहे परमपूज्य उपाध्याय श्री विद्यासागर जी महाराज के सानिध्य में दि० २१ सितम्बर से २९ सितम्बर तक अष्टदिवसीय श्री ऋषिमंडल पूजाविधान सानन्द सम्पन्न हुआ। मुनिश्री सुमनकुमार जी महाराज की ४९ वी दीक्षा जयन्ती सम्पन्न चेनई ४ अक्टूबर : श्रमणसंघीय सलाहकार मुनिश्री सुमनकुमार जी की दीक्षा की ४९ वी जयन्ती यहां सोल्लास मनायी गयी। इस अवसर पर श्री रिखबचन्द जी लोढ़ा, श्री किशनलाल जी वैताला, श्री भंवरलाल जी सांखला आदि विभिन्न गणमान्य व्यक्तियों ने मुनिश्री के जीवन पर प्रकाश डाला और उनके दीर्घायु होने की कामना की। इस अवसर पर जरूरतमन्द लोगों को भोजन-वस्त्र आदि प्रदान किये गये। एक प्रस्ताव पास कर यह भी निर्णय लिया गया कि सम्पूर्ण तमिलनाडु में स्थित जैन स्थानकों की एक सूची का प्रकाशन और सम्पूर्ण राज्य में साधु-साध्वियों के विचरण की व्यवस्था की जाये। Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण : अतीत के झरोखे में भगवान् ऋषभदेव राष्ट्रीय कुलपति सम्मेलन सम्पन्न ४-६ अक्टूबर : जम्बूद्वीप हस्तिनापुर में गणिनीप्रमुख अर्यिकारल श्री ज्ञानमती माता जी के सानिध्य में भगवान् ऋषभदेव राष्ट्रीय कलपति सम्मेलन सम्पन्न हआ जिसमें २० कुलपति/प्रतिकुलपति तथा देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों के जैन विद्या विभागों, जैनपीठ तथा जैनधर्म-दर्शन के १०८ विद्वान् सम्मिलित हुए। तीन दिनों के ६ सत्रों में तिब्बती उच्च शिक्षा केन्द्र, वाराणसी के प्रो० एस० रिम्पोछे, जामिया हमदर्द विश्वविद्यालय, दिल्ली के कुलपति प्रो० अलादीन अहमद; महेशयोगी विश्वविद्यालय, जबलपुर के कुलपति प्रो० आद्याप्रसाद मिश्र, गुलवर्गा विश्वविद्यालय, गुलवर्गा के कुलपति प्रो० मुनियम्मा, मैसूर विश्वविद्यालय, मैसूर के कुलपति प्रो० एस० एन० हेगड़े, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र के कुलपति प्रो० एम० एस० रंगा आदि २० कुलपतियों ने भगवान् ऋषभदेव की शिक्षाओं, वैदिक ग्रन्थों में भगवान् ऋषभदेव के उल्लेखों, जैनधर्म का भारतीय संस्कृति पर प्रभाव, पर्यावरण-संरक्षण के सम्बन्ध में जैनधर्म की भूमिका और समाज व्यवस्था-राजनैतिक अवस्था आदि पर अपने विचार व्यक्त किये। इस पुण्य अवसर पर समागत विद्वानों द्वारा जम्बूद्वीप घोषणापत्र स्वीकार किया गया, जिसके अन्तर्गत विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से जैन अध्ययन केन्द्रों की स्थापना एवं तद्विषयक कार्यक्रमों को गति प्रदान करने का अनुरोध किया गया। इस सम्मेलन में विभिन्न प्रशासनिक प्रतियोगी परीक्षाओं में प्राकृत भाषा को भी स्थान देने की केन्द्र व राज्य सरकारों से मांग की गयी और विभिन्न विश्वविद्यालयों में वर्ष में एक दिन ऋषभदेव समारोह आयोजित करने तथा वर्तमान में जैनविद्या में कार्यरत अध्ययन केन्द्रों व शोधपीठों में प्राध्यापकों के समुचित पद स्वीकृत करने का अनुरोध किया गया। इसी अवसर पर शरदपूर्णिमा के दिन आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माता जी की प्रेरणा एवं आशीर्वाद से ऋषभदेव राष्ट्रीय विद्वत महासंघ की स्थापना भी की गयी। जैन विद्या के लब्ध प्रतिष्ठित विद्वान् प्रो० प्रेमसुमन जैन इसके प्रथम अध्यक्ष मनोनीत किये गये और डॉ० अनुपम जैन, डॉ० शेखरचन्द जैन को क्रमश: महामंत्री और कार्याध्यक्ष पद का कार्यभार दिया गया। इस संघ के परामर्श मंडल में प्रो० भागचन्द जैन तथा ब्रह्मचारी रवीन्द्रकुमार को स्थान दिया गया। आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माता जी के जन्मदिन के अवसर पर दि० त्रिलोक शोध संस्थान के उदार सहयोग से गणिनी ज्ञानमती शोधपीठ की भी स्थापना की गयी। विक्रमविश्वविद्यालय उज्जैन के पूर्व कुलपति प्रो० आर० आर० नादगांवकर इस Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण : अतीत के झरोखे में शोधपीठ के निदेशक नियुक्त किये गये। जैन विद्या के क्षेत्र में शोध करने के इच्छुक निम्नलिखित पते पर आवेदन करें। गणिनी ज्ञानमती शोधपीठ C/ दि० जैन त्रिलोक शोध संस्थान जम्बूद्वीप, हस्तिनापुर - २५०४०४ (मेरठ), उत्तर प्रदेश पार्श्वनाथ विद्यापीठ परिसर का इन्दौर में शुभारम्भ श्रीवर्धमान सेवा केन्द्र, इन्दौर के तत्त्वावधान में दिनांक १५ नवम्बर १९९८ को आचार्यसम्राट श्री देवेन्द्रमुनि जी महाराज की पावन निश्रा में आयोजित एक भव्य कार्यक्रम में पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी के इन्दौर परिसर का शुभारम्भ हुआ। इस अवसर पर बोलते हुए आचार्यश्री ने कहा कि आध्यात्मिक शिक्षण द्वारा आत्मा का अंतर्वत्तियों को शिक्षित किया जा सकता है। यह शिक्षा सदैव कल्याणकारी होता है क्योंकि यह महत्त्वाकांक्षा नहीं अपितु नम्रता लाता है; विनय और विवेक को जागृत करता है। आचार्यश्री ने आगे कहा कि ज्ञान ज्योति है और अज्ञान अन्धकार है। ज्ञान आत्मा का निजगुण है और उसे प्रकट करने के लिये ही पार्श्वनाथ विद्यापीठ की स्थापना हो रही है। पूज्यश्री शालिभद्रजी महाराज के मंगलाचरण से प्रारम्भ हुए समारोह में महासती श्रीकनकरेखा जी, महासती श्री शांतिकुंवर जी, महासती श्री ललितप्रभाजी, श्री गौतममुनि जी, श्री जगतचन्द्र विजय जी महाराज और श्री नरेशमुनि जी महाराज ने भी अपने विचार व्यक्त किये। ___ समारोह के मुख्य अतिथि श्री दीपचन्द गार्डी एवं अध्यक्ष श्री इन्द्रभूति बरार थे। पद्मश्री श्री बाबूलाल पाटोदी, डॉ० प्रकाश बांगानी, श्री हीरालाल पारिख, श्री जोधराज लोढ़ा, श्री सुजानमल बोरा, श्री लक्ष्मीचंद मंडलिक, श्री शांतिलाल धाकड़, डॉ० एन० पी० जैन (पूर्व राजदूत) इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित थे। श्री वर्धमान सेवा केन्द्र के अध्यक्ष श्री नेमनाथ जैन ने अतिथियों का स्वागत किया और बताया कि पार्श्वनाथ विद्यापीठ के इंदौर परिसर की पूरी योजना एक करोड़ रूपये की हैं तथा इसके लिए भवन निर्माण हेतु पृथक से उपयुक्त जमीन की तलाश की जा रही है। पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी में पिछले साठ वर्षों से संचालित है। इंदौर के परिसर के निदेशक होंगे डॉ० सागरमल जैन, जिन्होंने बीस वर्षों के अथक प्रयासों से विद्यापीठ को विश्वविख्यात बनाया। उनके मार्गदर्शन में जैन धर्म पर अब तक चालीस विद्यार्थी पी-एच० डी० प्राप्त कर चके हैं। इंदौर में परिसर खलने से यहां के विद्वानों Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण : अतीत के झरोखे में और जिज्ञासु विद्यार्थियों को भी आध्यात्मिक विषयों के अध्ययन और शोधकार्य की प्रेरणा मिलेगी ताकि वे जैन विद्या के विविध आयामों को उदघाटित कर सकें। __ आपने बताया कि इंदौर परिसर में फिलहाल आठ हजार दर्लभ धर्मग्रंथों का पुस्तकालय है। इसमें शीघ्र ही तीन हजार पुस्तकें और आने वाली हैं। पत्रकार वार्ता में उपस्थित श्री शांतिलाल धाकड़, श्री जयंतीभाई संघवी एवं श्री एन० के० जैन ने बताया कि पी-एच० डी० और डी० लिट० के लिए शोध कार्य के साथ इस विद्यापीठ में स्नातक और स्नातकोत्तर स्तर पर अन्य विषयों के पाठ्यक्रम भी चलाये जाएंगे। ये हैं- जैन विद्या (धर्म, दर्शन, समाज एवं संस्कृति), प्राकृत भाषा एवं जैन साहित्य, तनाव प्रबंधन, 'नैदानिकी मनोविज्ञान, ध्यान एवं योग तथा अहिंसा, शांति शोध एवं मूल्य शिक्षा।' इसके अतिरिक्त, विद्यापीठ जैन विद्या मनीषी और जैन विद्या वाचस्पति जैसी उपाधियों हेतु कक्षाएं भी संचालित करेगा। देश के लब्धप्रतिष्ठित जैन विद्वानों ने विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में आकर शोध-अध्ययन-संपादन को गतिशील बनाने के लिए अपनी स्वीकृति प्रदान की है। इस अवसर पर प्रसिद्ध समाजसेवी श्री शांतिलाल धाकड़ का श्री श्वेताम्बर जैन स्थानकवासी समाज की ओर से अभिनंदन किया गया। अभिनंदन का वाचन श्री जिनेश्वर जैन ने किया। * अभिनंनदनपत्र श्री गार्डी, श्री नेमनाथ जैन, श्री पाटोदी और डॉ. प्रकाश बांगानी ने भेंट किया। श्री धाकड़ ने कहा कि मैं समाज में समन्वय, संगठन और विकास के लिए कार्य करता रहूंगा उन्होंने समाज के प्रति आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर जैनिज्म इन ग्लोबल पर्सपेक्टिव, जैन कर्मोलॉजी और अपरिग्रह 'द ह्यूमन सोल्यूशन' पुस्तकों का विमोचन श्री गार्डी, डॉ० बांगानी और श्री पाटोदी ने किया। इस अवसर पर आचार्यश्री देवेन्द्र मुनिजी की पुस्तक श्रावकव्रत, आराधना एवं श्रावक के चौदह नियम पुस्तक का भी विमोचन किया गया। पार्श्वनाथ विद्यापीठ द्वारा प्रकाशित नवीन पुस्तकों का सेट श्री इन्द्रभूति बरार द्वारा आचार्य देवेन्द्र मुनि के चरणों में अर्पित किया गया। पार्श्वनाथ विद्यापीठ, इन्दौर परिसर के निदेशक डॉ० सागरमल जैन ने विद्यापीठ की कार्ययोजना व उद्देश्य की विस्तारपूर्वक जानकारी प्रदान की। पार्श्वनाथ विद्यापीठ के प्रशासनिक अधिकारी, प्रसिद्ध विद्वान् डॉ० श्रीप्रकाश पाण्डेय भी इस अवसर पर विशेष रूप से उपस्थित रहे। मुख्य अतिथि श्री दीपचंद गार्डी ने बोलते हुए कहा कि हमें ज्ञान एवं ज्ञानियों की पूजा करनी चाहिए। उनका सम्मान करना चाहिए, ज्ञानियों के माध्यम से ही हमें ऐसे विद्यापीठ संचालित करने में सहयोग मिलता है। आज जैन धर्म का विशद् अध्ययन आवश्यक है, इन्दौर में इसका शुभारम्भ एक सुखद संयोग है। इसके माध्यम Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण : अतीत के झरोखे में से समाज के सभी वर्ग, संत-सती एवं धर्म में रुचि 'खने वालों की जिज्ञासा शांत होगी, वहीं इस कार्य द्वारा देश की सेवा भी होगी। पद्मश्री श्री पाटोदी ने भी इस अवसर अपनी शुभकामनाएं व्यक्त की। समारोह का संचालन श्री हस्तीमल झेलावत और आभार प्रदर्शन श्री अनिल भंडारी ने किया। सम्राट खारवेल स्मृति पुस्तकालय भवन का शिलान्यास सम्पन्न नई दिल्ली १९ नवम्बर : कुन्दकुन्द भारती, नई दिल्ली के परिसर में सम्राट खारवेल स्मृति पुस्तकालय भवन का उड़ीसा के मुख्यमंत्री माननीय श्री जानकी वल्लभ पटनायक के करकमलों द्वारा दिनांक २९ नवम्बर को आयोजित एक भव्य समारोह में शिलान्यास किया गया। पूज्य आचार्य श्री विद्यानन्द जी महाराज के स..भ्य में आयोजित इस समारोह की अध्यक्षता प्रसिद्ध उद्योगपति साहू श्री रमेशचन जैन की। इस समारोह में बड़ी संख्या में समाज के प्रबुद्ध वर्ग उपस्थित थे। जैनधर्म-दर्शन का शरद्कालीन शिक्षण शिविर सम्पन्न दिल्ली १६ अक्टूबरः भोगीलाल लहेरचन्द इस्टिट्यूट ऑफ इण्डोलाजी, दिल्ली में प्रथम बार १५ दिवसीय शरद्कालीन विशेष शिक्षण शिविर का आयोजन किया गया। दि० ३ अक्टूबर से प्रारम्भ हुए इस शिविर का उद्घाटन टाइस ऑफ इण्डिया के प्रबन्ध सम्पादक साहू रमेशचन्द्र जैन ने किया। इस शिक्षण शिविर में देश भर से चुने हुए ३५ अध्येताओं ने भाग लिया। १६ अक्टूबर को अयोजित समापन समारोह के अवसर पर श्री के० पी० ए० मेनन, कुलाधिपति, श्री लालबहादुरशास्त्री केन्द्रीय संस्कृत विद्यापीठ, नई दिल्ली, प्रो० वाचस्पति उपाध्याय, प्रखर चिन्तक प्रो० नामवर सिंह, प्राकृत भाषा एवं साहित्य के मूर्धन्य विद्वान् स्वनामधन्य प्रो० सत्यरंजन बनर्जी तथा भारत सरकार के कई उच्चपदाधिकारी उपस्थित थे। अपने उद्बोधन में वक्ताओं ने शिविर के आयोजकों की सराहना की और अपने सुझाव भी दिये। श्रीमती विनय जैन का अनुकरणीय प्रयास अन्य भारतीय समाजों की भांति जैन समाज में भी बढ़ते हुए आडम्बरों, फिजूलखर्ची, त्योहारों पर उपहारों के आदान-प्रदान आदि को रोकने के लिए अखिल भारतीय श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन कान्फ्रेन्स की महिला शाखा की नवनिर्वाचित अध्यक्षा श्रीमती विनय जैन ने उक्त कुप्रथा के विरोध में समाचार पत्रों और सभी स्थानकों में इस्तहार लगवा कर एक अनुकरणीय कार्य किया है और इसमें बहुत अंशों Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण : अतीत के झरोखे में में उन्हें सफलता भी मिली है। श्रीमती जैन ने अपने इस प्रयास की सफलता से उत्साहित होकर अब दहेज विरोधी अभियान प्रारम्भ करने का निश्चय किया है और इस कार्य में सनाज से आपेक्षित सहयोग की मांग की है। अखिल भारतीय श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन कान्फ्रेन्स (महिला शाखा) का अधिवेशन सम्पन्न लियाना २९ नवम्बर: श्री अखिल भारतीय श्वे० स्थानकवासी जैन कान्फ्रेन्स (महिला शाखा) का एक दिवसीय अधिवेशन स्थानीय आत्मवल्लभ पब्लिक सीनियर हायर सेकेन्डरी स्कूल के विशाल प्रांगण में सोल्लास सम्पन्न हआ, जिसमें समाज की प्रबुद्ध महिलाओं एवं पदाधिकारियों के साथ-साथ बड़ी संख्या में महिलाओं ने भाग लिया । इस अवसर पर पच्चीस लाख रूपयों की राशि से महिलाकल्याणकोष की भी स्थापना की गयी। इस कोष के ब्याज से अर्जित धनराशि का उपयोग महिला कल्याण के कार्यों में दिया जायेगा। डॉ० फूलचन्द जैन 'प्रेमी' पुरस्कृत ___ पार्श्वनाथ विद्यापीठ के पूर्व शोधछात्र और वर्तमान में सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के जैन दर्शन विभाग के अध्यक्ष डॉ० फूलचन्द जैन 'प्रेमी' को पिछले दिनों दि० जैन अतिशय क्षेत्र दे हरा तिजारा (अलगर-राजस्थान) में उपाध्याय श्री ज्ञानसागर जी म० सा० के सानिध्य में श्रुत संवर्धन संस्थान, मेरठ की ओर से आयोजित समारोह में बिहार के राज्यपाल श्री सुन्दरसिंह भंडारी ने प्रशस्तिपत्र, अंग वस्त्र एवं जैनरत्न की मानद उपाधि से विभूषित करते हुए वर्ष १९९८ के सुमतिसागर स्मृतिपुरस्कार से सम्मानित किया। इसी समारोह में श्री मरेन्द्रप्रकाश जैन एवं श्री चेतनप्रकाश पाटनी को भी इसी प्रकार सम्मानित कर पुरस्कृत किया गया। पार्श्वनाथ विद्यापीठ परिवार डॉ० प्रेमी की इस उपलब्धि पर उनका हार्दिक अभिनन्दन करता है। Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण : अतीत के झरोखे में शोक समाचार डॉ० (श्रीमती) कमलप्रभा जैन के पिता की दुःखद मृत्यु ____ पार्श्वनाथ विद्यापीठ की पूर्व प्रवक्ता एवं डीजल रेल कारखाना, वाराणसी .. पूर्व महाप्रबंधक श्री राजेन्द्र कुमार जैन की पत्नी डॉ० (श्रीमती) कमल प्रभा जैन के पिता जम्मू निवासी श्री बलवन्त राय जैन का दिनांक 16-12-98 को एक 8 दुर्घटना में आकस्मिक निधन हो गया। आप सफल व्यवसायी, धर्म परायण .. उदारमना सुश्रावक थे। धर्म और साधु सन्तों के प्रति आपकी अटूट श्रद्धा सामाजिक और धार्मिक प्रवृत्तियों में आप सदैव अग्रणी रहते थे। आप नारी शिक्षा .. प्रति विशेष रूप से समर्पित थे। आप ने अपनी पुत्रियों को उच्च शिक्षा तो दी ही साथ ही समाज में भी लोगों को नारी शिक्षा के प्रति प्रेरित किया। आप इतने सरल स्वभाव और साधुवृत्ति के थे कि दुर्घटना वाले दिन भी सुबह तीन बजे से अपनी धर्मपत्नी को उत्तराध्ययन सूत्र पढ़कर सुनाते रहे और संस का मोह त्यागने की प्रेरणा देते रहे। आप अपने पीछे दो पुत्र, तीन पुत्रियाँ तथा नः पोतों का भरापूरा परिवार छोड़ गये हैं। पार्श्वनाथ विद्यापीठ में आपकी दु:खद मृत्यु का समाचार सुनते ही एक श् सभा आयोजित कर आपको भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की गयी तथा मृतात्मा शान्ति प्रदान करने हेतु ईश्वर से प्रार्थना की गयी। जैन भवन जम्मू में भी आपके शोक में एक श्रद्धांजलि सभा आयोजित व गयी जिसमें समग्र जैन समाज के प्रतिनिधियों ने आपको भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित क.