SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 8
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३५० Jain Education International वर्ष अंक श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक डॉ० सनत् कुमार जैन श्री देवेन्द्र कुमार श्री कस्तूरमल बांठिया श्री श्रीप्रकाश दुबे प्रो० कल्याणमल लोढ़ा s - 9 ई० सन् १९८१ १९५४ १९६८ १९६२ १९९१ पृष्ठ १८-१९ ३१-३३ ७-११ ६-८ १-१० १९८ ४-६ ४४ १०-१२ For Private & Personal Use Only लेख अनेकान्तवाद की व्यावहारिक जीवन में उपयोगिता अपने को जानिये अभव्यजीव नवौवेयक तक कैसे जाता है ? अरविन्द का अनेकान्त दर्शन अहँ परमात्मने नमः अशोक के अभिलेखों में अनेकांतवादी चिन्तन : एक समीक्षा असंयत जीव का जीना चाहना राग है आकाश आगम साहित्य में कर्मवाद आचार्य दिवाकर का प्रमाण : एक अनुशीलन आचार्य हरिभद्रसूरि का दार्शनिक दृष्टिकोण आचारांग का दार्शनिक पक्ष आचारांग की दार्शनिक मान्यतायें आचारांग में उल्लेखित ‘परमत' आचारांग में सोऽहम् की अवधारणा का अर्थ । आत्म-अनात्म द्वन्द्वात्मिकी डा० अरुणप्रताप सिंह प्रो० दलसुख मालवणिया डॉ० मोहनलाल मेहता ८-१३ ३-६ ५-७ ४-१२ ३-६ mry ~ * * * * * * * * * * * १९९३ १९५३ १९६९ १९७१ १९६५ १९७१ १९८७ १९५३ १९६६ १९८४ १९८७ डॉ० श्रीरंजन सूरिदेव कु० सुशीला जैन स्व० डॉ० परमेष्ठी दास जैन डा० इन्द्र पं० बेचरदास दोशी मुनि योगेश कुमार संन्यासी राम १९-२३ १-११ २१-२४ www.jainelibrary.org ११ १९४० ९-१९
SR No.525035
Book TitleSramana 1998 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1998
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy