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________________ Jain Education International ga » or my For Private & Personal Use Only लेख आत्म परिमाण (विस्तार क्षेत्र) जैन दर्शन के सन्दर्भ में आत्मबोध का क्षण आत्म विज्ञान आत्मा और परमात्मा तु आत्मा का बल आत्मा की महिमा आधुनिक सन्दर्भ में जैन दर्शन आप सम्यग् दृष्टि हैं या मिथ्या दृष्टि आस्रव व बंध . आस्तिक और नास्तिक इन्द्रिय निग्रह से मोक्ष-प्राप्ति ईश्वर और आत्मा : जैन दृष्टि ईश्वरत्व: जैन और योग-एक तुलनात्मक अध्ययन उच्चगोत्र और नीचगोत्र उत्तराध्ययन का अनेकान्तिक पक्ष उत्तराध्ययन में मोक्ष की अवधारणा उपासकदशांगसूत्र का आलोचनात्मक अध्ययन श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक मुनि योगेश कुमार आचार्य आनन्द ऋषि ३४ श्री गोपीचन्द धारीवाल १६ डॉ० सागरमल जैन ३१ श्री किशोरीलाल मशरूवाला श्री जयभगवान जी एडवोकेट श्री बृजकिशोर पाण्डेय प्रो० इन्द्रचन्द्र शास्त्री २ श्री गोपीचन्द धारीवाल १७ डॉ० इन्द्र ५ श्री कृष्ण 'जुगनू' डॉ० श्रीरंजन सूरिदेव डॉ० ललितकिशोरलाल श्रीवास्तव ४१ डॉ० मोहनलाल मेहता २२ डॉ० श्रीरंजन सूरिदेव २८ डॉ० महेन्द्रनाथ सिंह डॉ० सुभाष कोठारी PM My Mar 212 ८ ई० सन् १९८४ . १९८३ १९६५ .१९८० १९५४ १९५२ १९७९ १९५१ . १९६५ १९५४ १९८६ १९८० १९९० १९७१ १९७७ १९८९ १९८६ . ३५१ पृष्ठ २८-३६ १०-११ ३१-३८ १ । १-२ ३० १८-२२ ३२-३६ १९-२५ २७-३० ५-७ १०-१४ ७१-८४ ३-४ ३-१० ३५-३८ ८-१३ १-२ ७ ११ ६ १०-१२ १२ १२ www.jainelibrary.org
SR No.525035
Book TitleSramana 1998 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1998
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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